tag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post3186049277629764881..comments2024-03-12T00:43:05.067-07:00Comments on ज्ञानवाणी: साहित्य से सिनेमा तक ......वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-51976869238195481412011-11-18T23:07:24.389-08:002011-11-18T23:07:24.389-08:00ha ha ha ha....
fir thik hai..ha ha ha ha....<br />fir thik hai..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-67032214492662862722011-11-18T19:23:31.623-08:002011-11-18T19:23:31.623-08:00@ मैंने भी खरीद कर कहाँ पढ़ी :)@ मैंने भी खरीद कर कहाँ पढ़ी :)वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-15262951748239657862011-11-16T09:45:57.368-08:002011-11-16T09:45:57.368-08:00चेतन भगत के upanyaas padhne की ichcha aajtak हुई न...चेतन भगत के upanyaas padhne की ichcha aajtak हुई नहीं, कारण अब क्या बताऊँ..शायद हो सकता है पुस्तक खरीदते समय जब समुद्र में से बाल्टी या लोटा भर पानी ही उठा पाने की स्थिति जब भी बना करती है ,तो इससे बहुत ही महत्वपूर्ण कई अन्य रचनाकार मुझे दीखते हैं..इसलिए इस विषय पर कुछ भी कहने की स्थति में नहीं..हाँ, थ्री इडियट इन्ही की कहानी पर आधारित थी यह सुना था और यह फिल्म मुझे मनोरंजक लगी थी,चिंतन को खुराक देती नहीं ..<br /><br />जिन फिल्मों का आपने नाम लिया,या इसी तरह के कई अन्य फिल्म सचमुच ऐसे हैं जिनके पात्र और कथा दर्शक को ऐसे सम्मोहित करते हैं कि उन्हें उनके आपे में कम से कम फिल्म देखने तक तो नहीं ही रहने देते...<br /><br />सत्य है कि इन किरदारों को परदे पर उतारने वाले निश्चित ही पात्र को ओढ़े रहने भर में प्रभावित तो होते ही होंगे उन मनोभावों से...पर मुझे लगता है, चूँकि हम पूरी एक कहानी एक बार में देखते हैं,इसलिए उनके संग बहने लगते हैं,जबकि आज कल जिस तरह से फिल्म फिल्माए जातें हैं,इसमें सेट पर ही एक या आधे पन्ने का सीन पाने और ड्यूटी की तरह उसे अभिनीत कर निकल जाने वाले अभिनेता,इन मनोदशाओं से वैसे प्रभावित नहीं होते जैसे कि पुराने ज़माने में कई अभिनयकर्ता हुआ करते थे,या एक ही बार में नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार हुआ करते हैं..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-26017894985739092522011-11-07T08:13:59.839-08:002011-11-07T08:13:59.839-08:00चेतन भगत को पढ़ा है .....उनके पात्र आम और खास दोनो...चेतन भगत को पढ़ा है .....उनके पात्र आम और खास दोनों का व्यवहार विचार दिखाते हैं...... और यकीनन याद भी रहते हैं..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-62072063183147881442011-11-07T06:36:49.787-08:002011-11-07T06:36:49.787-08:00@अली सा आपने बड़ी मार्के की बात की है .....मगर लो...@अली सा आपने बड़ी मार्के की बात की है .....मगर लोकप्रियता को अनिवार्यतः साहित्यिकता से जोड़ना ठीक नहीं है ..साहित्य के अपने मानदंड हैं ,लोकप्रियता के अपने ....सामंजस्य हो जाय तो फिर क्या कहने ! चेतन भगत का आडियेंस बहुत ही भौगोलिक और दिक्कालीय सीमितता वाला सृजन है -उन्हें बुकर, नोबेल तो नहीं मिलेगा मगर हाँ श्रोताओं का एक बड़ा वर्ग जिसमें वाणी जी और रश्मि जी भी हैं ऐसे लेखक को हाथों हाथ उठाये रखेगा .....:अब यह भी पुरस्कार क्या कम है ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-2129351884084485702011-11-07T05:50:01.610-08:002011-11-07T05:50:01.610-08:00हम तो उपन्यास पढ़ ही नहीं पाते ।
फिल्मों का असर पड़...हम तो उपन्यास पढ़ ही नहीं पाते ।<br />फिल्मों का असर पड़ता तो है लेकिन थोड़ी देर के लिए । यदि आप पूरी तरह डूबकर फिल्म देख रहे हों तो पात्रों और घटनाओं के साथ साथ आपका मन बदलता रहता है । जैसी फिल्म देखोगे वैसा ही मूड बनेगा ।<br /><br />लेकिन अपराध को बढ़ाने में भी फिल्मों का असर दिखाई देता है ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-36815851850701411692011-11-07T05:14:08.176-08:002011-11-07T05:14:08.176-08:00लोकप्रियता के अपने कारण ज़रूर होते होंगे पर गंभीरत...लोकप्रियता के अपने कारण ज़रूर होते होंगे पर गंभीरता को जनबाहुल्य से जोड़ के देखना दुष्कर है ! साहित्य गंभीरता में है अथवा लोकप्रियता में , क्लिष्टता में है याकि सरलता में , यह तो समय ही तय कर सकेगा ! मेरे तईं समय ही सार्थकता का निर्धारण करने की सामर्थ्य रखता है और संभवतः इसी बिंदु पर साहित्य या असाहित्य का निर्धारण भी होता होगा ?<br />आलेख में उद्धृत उपन्यास और उपन्यासकार को पढ़ा नहीं इसलिए आप जो कह रही हैं उसी पर विश्वास कर रहा हूं ! <br /><br />एक बात जो अलग से सूझ रही है वो ये कि साहित्य से सिनेमा तक या फिर सिनेमा से साहित्य तक :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-32238549840131308082011-11-07T02:57:32.002-08:002011-11-07T02:57:32.002-08:00चेतन भगत की ३ किताबें पढ़ीं हैं पर सच पूछिए तो थोड...चेतन भगत की ३ किताबें पढ़ीं हैं पर सच पूछिए तो थोडा बहुत बाँध कर रखा तो फाइव पॉइंट ने ही.अब उनकी पुस्तकें क्यों बिकतीं हैं इसके कारण बहुत हो सकते हैं.<br />हाँ आपने जो बाकी बातें कीं कि कहानी का सिनेमा का असर पाठकों पर और पात्रों पर पड़ता है इससे पूरी तरह सहमत हूँ .shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-73393033137535145362011-11-07T01:38:13.729-08:002011-11-07T01:38:13.729-08:00अभी चेतन भगत की ये पुस्तक पढनी बाकी है...उनकी अन्य...अभी चेतन भगत की ये पुस्तक पढनी बाकी है...उनकी अन्य चारो किताबें पढ़ी हैं...पर प्रभावित सिर्फ पहली पुस्तक Five point someone ने ही किया था....पढ़ने के बाद ही इस पुस्तक के प्रति अपना नजरिया रख पाउंगी...हाँ, चेतन भगत की पुस्तकों का विषय...उसके पात्र हमारे बीच के ही लगते हैं...और उनके लेखन में प्रवाह गज़ब का है...जो पाठकों को अपने साथ बहा ले जाता है.<br /><br />फिल्मो में इन पात्रों का अभिनय करनेवालों पर तो इनके दुख-दर्द का गहरा असर पड़ता ही है...पर जो लोग इन पात्रों को गढ़ते हैं यानि लेखक..उन्हें दर्द के एक दरिया से गुजरना होता है...जानते हुए भी कि ये पात्र काल्पनिक हैं...उसका दुख उन्हें इस हद तक विचलित कर देता है कि कई बार...उनकी लेखनी भी वह सब अंकित करने से इनकार कर देती है..कई बार कहानियाँ/उपन्यास अधूरे ही रह जाते हैं या फिर पूरा होने में काफी वक़्त लेते हैं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-25219663888131200702011-11-07T01:09:47.271-08:002011-11-07T01:09:47.271-08:00अच्छी प्रस्तुति,भावपूर्ण लेख !
मेरे नए पोस्ट पर आ...अच्छी प्रस्तुति,भावपूर्ण लेख !<br /><br />मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।<br />http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.htmlHumanhttps://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-10802047647226900822011-11-06T23:50:25.446-08:002011-11-06T23:50:25.446-08:00इस पुस्तक का अंत पूरा फ़िल्मी है...इस पुस्तक का अंत पूरा फ़िल्मी है...नीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-91189270013111161052011-11-06T23:05:12.165-08:002011-11-06T23:05:12.165-08:00साहित्य से सिनेमा तक का सफ़र जारी रहे .....
घर ,...साहित्य से सिनेमा तक का सफ़र जारी रहे .....<br />घर , परिवेश और ब्लॉग के बीच आप अब भी समय निकाल पढ़ रहीं हैं<br />बहुत बड़ी बात है ......<br /><br />ख़ामोशी की हलकी हलकी याद है बहुत छोटे होते देखी थी .....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-14800853021805219522011-11-06T22:29:55.624-08:002011-11-06T22:29:55.624-08:00्कुछ पात्र और घटनाये हमारे मस्तिष्क और दिल पर ऐसा ...्कुछ पात्र और घटनाये हमारे मस्तिष्क और दिल पर ऐसा प्रभाव छोड जाते है कि हम भुलाना चाहे तो भी नही भुला पाते और खुद को उनसे जोड लेते है…………ऐसा हम सभी के साथ होता है ।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-2933022021478626732011-11-06T22:21:20.593-08:002011-11-06T22:21:20.593-08:00कभी कभी किसी उपन्यास या फिल्म के पात्र अपनी गहरी ...कभी कभी किसी उपन्यास या फिल्म के पात्र अपनी गहरी छप छोड़ जाते हैं ... दिलीप कुमार की बात पढते हुए अनायास ही मेरे मन में भी खामोशी फिल्म चलने लगी थी और पढते पढते देखा कि आपने भी उसका ज़िक्र किया है .. ऐसे ही एक फिल्म थी "सवेरा" ...शशि कपूर , राखी और रेखा ..आज तक तीनों पात्र अनायास दिमाग पर छा जाते हैं .<br />पुस्तक के बारे में अच्छी जानकारी मिली .संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-8419456184650227072011-11-06T22:20:12.767-08:002011-11-06T22:20:12.767-08:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-84687451660383673152011-11-06T21:53:35.132-08:002011-11-06T21:53:35.132-08:00मानवीय स्वभाव ही है जो हमें मनोनुकूल चरित्र के साथ...मानवीय स्वभाव ही है जो हमें मनोनुकूल चरित्र के साथ गहराई से जोड़ देता है. इसका प्रमाण हमारा धर्मग्रन्थ - रामायण,महाभारत आदि है ही.बढ़िया पोस्ट.Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-88511776918526972782011-11-06T21:44:18.521-08:002011-11-06T21:44:18.521-08:00अभिनेता न जाने कितनी बार उस क्षणों को जीता है जिनस...अभिनेता न जाने कितनी बार उस क्षणों को जीता है जिनसे सिहर उठता है मनM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-84585625089639849952011-11-06T21:09:00.123-08:002011-11-06T21:09:00.123-08:00चेतन भगत की ४ किताबें पढ़ी हैं, यह पाँचवी भी ले आय...चेतन भगत की ४ किताबें पढ़ी हैं, यह पाँचवी भी ले आये हैं, आज से पढ़ना प्रारम्भ करते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-55544421233667018502011-11-06T20:57:07.205-08:002011-11-06T20:57:07.205-08:00बात चेतन भगत से शुरू हुयी थी ...कहाँ से कहाँ तक पह...बात चेतन भगत से शुरू हुयी थी ...कहाँ से कहाँ तक पहुँच गयी -टिप्पणीकर्ता काम बढ़ता है !<br />मगर मनुष्य के इमोशनल व्यवहार के इन शेड्स पर आपने बहुत अच्छा लिखा है साधुवाद !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-30161096354470928992011-11-06T20:39:53.598-08:002011-11-06T20:39:53.598-08:00राघव के चरित्र का कचरा कर दिया है बंदे ने। एक व्यक...राघव के चरित्र का कचरा कर दिया है बंदे ने। एक व्यक्ति रिवोल्यूशन की जद्दोजहद करता अंत में सत्ताधारी पार्टी का केण्डीडेट बना दीखता है। <br />अच्छा भला उपन्यास अंत थे दस बीस पेजों में चिथड़ा सा दीखता है!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-30413763645221571462011-11-06T20:12:52.764-08:002011-11-06T20:12:52.764-08:00@ तीनों का बचपन , गोपाल के भीतर पलती ईर्ष्या , आरत...@ तीनों का बचपन , गोपाल के भीतर पलती ईर्ष्या , आरती का भोलापन , राघव की निष्ठा , गोपाल की खलनायकी...<br /><br /> किताब पढ़ी नहीं है इसलिये ज्यादा न कहूंगा। किंतु ये अंश स्लमडॉग मिलेनियर वाली स्टोरी सा लगा।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-40757467795601230352011-11-06T19:53:27.091-08:002011-11-06T19:53:27.091-08:00aajkal pahle ki tarah syaah safed paatra nahi hote...aajkal pahle ki tarah syaah safed paatra nahi hote<br />grey shed paatro ka chalan jyada hai.gamebheer lekhan aur sahitya par sawaal khade kiye hain<br /> <br /><br /> saahitya jise kaha jaaye usmai do baate honi chahiye meri samajh se<br />ek to jo kaha jaaye usse kooi na koi message nikal ke aaye<br />aur doosra kisi na kisi roop mai usse sakaratmak kuchh nikle<br />best seller hona gunvatta ki nishani nahi ho saktiAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/13199219119636372821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-76577702497765270002011-11-06T19:44:28.463-08:002011-11-06T19:44:28.463-08:00@ गंभीरता, क्लिष्टता का अपना सौन्दर्य है , मगर कृ...@ गंभीरता, क्लिष्टता का अपना सौन्दर्य है , मगर कृत्रिम दुनिया सरलता और सहजता अपनी ओर आकर्षित करती है, वह लेखन में हो या स्वभाव में ...सरल अंग्रेजी होने के कारण ही मेरे लिए भी चेतन को पढ़ पाना संभव हो पाता है , मैंने इस उपन्यास की समीक्षा नहीं लिखी है , इसे पढ़कर क्या उपजा मन में , यह लिखा है :)वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-37557508737176925362011-11-06T19:38:21.238-08:002011-11-06T19:38:21.238-08:00किताब तो नहीं पढ़ी है। पर आपकी पोस्ट में किताब से ...किताब तो नहीं पढ़ी है। पर आपकी पोस्ट में किताब से अलग भी कई बातें हैं। जैसे सदमा या खामोशी या अन्य कई फ़िल्मों की बातें हैं, इन फ़िल्मो को देखा है। देखने के बाद कई दिनों तक उन फ़िल्मों के अन्दर ही जीता रहा।<br />किताब एक पढ़ी थी, ‘गुनाहों का देवता’। बस चन्दर और सुधा के चरित्र से ऐसा एकाकार हो गया कि उससे निकलाना बहुत मुश्किल-सा हो गया। <br />सुना है कि बेन किंग्सले, गांधी का चरित्र जब किए तो साल भर तक उससे बाहर निकलना उनके लिए मुश्किल हो गया।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-21245663781530686252011-11-06T19:29:54.771-08:002011-11-06T19:29:54.771-08:00सिनेमा और साहित्य हमारे समाज का ही दर्पण है.हम यदि...सिनेमा और साहित्य हमारे समाज का ही दर्पण है.हम यदि भावुक और संवेदनशील हैं तभी देखने और पढ़ने में आनंद आता है.भले ही हम कई दृश्यों से आहत होते हों पर यही जीवन की वास्तविकता भी है.हमें भी कहीं न कहीं 'उस' कहानी को जीना होता है या उससे साक्षात्कार होता है.संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.com