tag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post2712918181945291506..comments2024-03-12T00:43:05.067-07:00Comments on ज्ञानवाणी: मॉल और मोबाइल संस्कृति और मध्यम वर्ग ....वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-31368339215980165402014-10-08T05:05:23.905-07:002014-10-08T05:05:23.905-07:00 जब हमारे सपनों तक में सेंध लगा बाज़ार चिंतन से ... जब हमारे सपनों तक में सेंध लगा बाज़ार चिंतन से ले चैन तक में समा चुका हो , तो जीवन का असंतुलन निश्चित ही है , निरा भौतिक विकास , उम्र भर की उमंगों में रंग नहीं भर सकता …………ऊब , अवसाद भरी थमती साँसों में अपने संस्कारों से कटता मानव को , अंतत : लौटना होगा … प्रकृति में , जड़ों में ……जैसा कि पश्चिम दो तीन दशकों पहले पूरब में तलाशता हुआ , जीवन को ढूंढ रहा है .........ALIVE HOPES <br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08871875590248714995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-18638515180746786072014-05-09T21:04:07.990-07:002014-05-09T21:04:07.990-07:00सुंदर आलेख !सुंदर आलेख !सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-5593492550993375012010-10-25T03:14:06.872-07:002010-10-25T03:14:06.872-07:00बाज़ारवाद की ये एक ऐसी चाल है की इसमें सब फँस कर र...बाज़ारवाद की ये एक ऐसी चाल है की इसमें सब फँस कर रह जाएँगे ... कोई कुछ भी नही सोचेगा ... सब दौड़ते रहेंगे ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-20076838957100325172010-10-25T00:52:19.454-07:002010-10-25T00:52:19.454-07:00वाणी जी तस्वीर देख कर भला कौन नही जाना चाहेगा? आज ...वाणी जी तस्वीर देख कर भला कौन नही जाना चाहेगा? आज आपकी बात नही सुनूँगी माल मे जरूर जाऊँगी[वैसे मेरे शहर से कोसों दूर तक माल नही है} मस्त हैं। क्या करें? जो बदलाव आ रहा है उसे रोकना अब शायद किसी के बस मे नही। शुभकामनायेंनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-22299287299498209802010-10-24T04:59:38.620-07:002010-10-24T04:59:38.620-07:00हर चीज़ के सकारात्मक और नकारात्मक २ पहलु होते हैं....हर चीज़ के सकारात्मक और नकारात्मक २ पहलु होते हैं.. अच्छा आलेख.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-79412217870093093052010-10-23T10:31:42.320-07:002010-10-23T10:31:42.320-07:00किसी भी दूसरी चीज की तरह इस माल-संस्कृति के अपने ह...किसी भी दूसरी चीज की तरह इस माल-संस्कृति के अपने हानि-लाभ हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं किसी मॉल से शापिंग करने के बजाय किसी छोटे दुकानदार से सामान खरीदना ज्यादा पसंद करता हूँ। जिन्हें मॉल्स में जाना अच्छा लगता है, वे अपनी मर्जी के मालिक हैं।<br />हाँ, कुछ लोगों को जब महंगे शोरूम से जानते बूझते महंगे रेट पर सामान खरीदते और रिक्शावाले से पांच पांच रुपये के लिये झिकझिक करते देखता हूँ, मेरा दिमाग सरक जाता है।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-83582796149508679112010-10-23T08:08:00.782-07:002010-10-23T08:08:00.782-07:00@ rashmi ravija ji
आपका यह कहना सही है कि यहां &q...@ rashmi ravija ji<br /><br />आपका यह कहना सही है कि यहां <b>" पिकनिक, कैम्पिंग पर जाने का रिवाज़ ना के बराबर है."</b> बिल्कुल सही है. इस तारतम्य में आपकी बात का सहारा लेकर कहना चाहुंगा कि यूथ होस्टल द्वारा साल में अनेकों ट्रेकिंग कैंप पूरे भारतवर्ष में नाम मात्र के शुल्क पर किये जाते हैं जिनकी आप कल्पना भी नही कर सकते. इसी साल जिसमे गोवा और पिछली साल कुल्लू से सरकुंडी लेक की ट्रेकिम्ग में मैं स्वयं भी गया हूं. इसमे बूढे भी जा सकते हैं.:)<br /><br />सभी से निवेदन है कि इसका लाभ लें और कम से कम एक ट्रेकिंग कैंप एक साल में अवश्य ज्वाईन करें, आपकी बैटरी चार्ज रहेगी और प्राक्रुतिक वातावरण में सप्ताह भर गुजारना एक स्वर्गिक आनंद आपको दे जायेगा.<br /><br />यूथ होस्टल की स्थानीय इकाईयां लोकल ट्रेकिंग कैंप हर माह आयोजित करती हैं.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-11479088073419703782010-10-23T07:55:53.053-07:002010-10-23T07:55:53.053-07:00क्या इन पर खर्च कर गरीब को और गरीब तथा अमीर को और ...<b>क्या इन पर खर्च कर गरीब को और गरीब तथा अमीर को और अमीर बनाने में सहयोग किया जाना चाहिए ... आप क्या कहते हैं ...??</b><br /><br />आपका सवाल बिल्कुल सीधा और सहज लगता है पर इसकी जडें हमारे हाथ में नही हैं. यह जो ग्लोबलाईजेशन की आंधी चली थी (जिसका उस समय कई लोगों ने विरोध भी क्या था)उसी का प्रतिफ़ल है. आज अमीर और अमीर एवम गरीब और गरीब होता जारहा है. पहले हमारी यह कोशीश रहती थी कि जो कुछ कमायें उसमें से कुछ बुरे समय के लिये बचा कर रखें, आज EMI चुकाते यह पीढी बडी हो रही है बचत की बात छोडिये.<br /><br />असल में सारा खेल द्वैत का है. इस व्यवस्था मे जहां भारत के उद्योगपतियों के नाम विश्व स्तर पर उभरे हैं वहीं गरीब की रोजी और रोटी दोनों छीनती जा रही हैं. आज सब कुछ यानि की सरकारें तक पूंजीवादी इशारों पर चल रही हैं तो शायद बर्बादी का मंजर देखने के सिवा कुछ चारा नही है.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-51752663924733405262010-10-23T04:58:52.126-07:002010-10-23T04:58:52.126-07:00.
मध्यमवर्ग..घर से निकल कर जाए तो कहाँ जाए...ऐसे ....<br /><br />मध्यमवर्ग..घर से निकल कर जाए तो कहाँ जाए...ऐसे में ये मॉल्स बड़े काम आते हैं. खरीदारी ना भी की तो कुछ देर रौनक का आनदं लिया...चाट खा ली..वापस आ गए.<br /><br />I agree with Rashmi Ravija. <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-7730066421396503982010-10-23T03:42:44.512-07:002010-10-23T03:42:44.512-07:00अँधेरा उजाले से ही भी पैदा होता है..मोबाइल का भी क...अँधेरा उजाले से ही भी पैदा होता है..मोबाइल का भी कुछ ऐसा ही किस्सा है..अब इसके बिक बिना काम तो चल नहीं सकता सो अब ये सबके पास हो गया है..अब बात है किसके पास कितना महंगा और बड़े ब्रांड का मोबाइल है..अन्य वस्तुओ की तरह इसमें भी दिखावा है..कोई नयी बात नहीं है..SAKET SHARMAhttps://www.blogger.com/profile/11249488966676421573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-54449071918970790762010-10-23T03:38:57.084-07:002010-10-23T03:38:57.084-07:00achchhi post!! lekin Dr. Daral ke baat se sahmat h...achchhi post!! lekin Dr. Daral ke baat se sahmat hoon, Mobile aaj ki jarurat hai chahe wo nimn vargiya hi kyon na ho..........:)<br /><br />aapne idea ka ad nahi dekha, kaise paan ki dukan ka bhi business badh jata hai...:Dमुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-72347876643449181502010-10-23T03:07:02.306-07:002010-10-23T03:07:02.306-07:00मॉल्स -- नए ज़माने की सहूलियत है । हम कॉलिज के दिनो...मॉल्स -- नए ज़माने की सहूलियत है । हम कॉलिज के दिनों में यूँ ही मार्केट्स में घूमते रहते थे , गंदगी के बीच । आज के युवाओं के लिए मौज मस्ती का इनसे बेहतर ठिकाना और कोई नहीं । वो भी बिना टिकेट ।<br /><br />खरीदने वाले १०-१५ % ही होते हैं ।<br /><br />मोबाईल तो आज सभी की आवश्यकता है । इसने तो व्यवसायिक लोगों की जिंदगी बहुत आसान बना दी है । आज सब्जी वाला भी मोबाइल पर ऑर्डर लेकर सब्जी घर पहुंचा देता है ।<br /><br />इसलिए कन्फ्यूजन कोई नहीं होना चाहिए ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-54050192146412454322010-10-23T01:50:38.869-07:002010-10-23T01:50:38.869-07:00आपकी यह पोस्ट पढ़ इतना कुछ घूमने लगा है दिमाग में क...आपकी यह पोस्ट पढ़ इतना कुछ घूमने लगा है दिमाग में कि यदि सब लिखने लगूँ तो आपकी पोस्ट से कम से कम आठ दस गुना बड़ी टिप्पणी तो जरूर हो जायेगी...इसलिए अपने आप को सम्हाल/रोक लेना बहुत जरूरी है...<br /><br />हज़ार रुपये महीना कमाने वाले से लेकर करोड़ रुपया महीना कमाने वाले तक हम सभी बाज़ार की गिरफ्त में हैं और अपनी क्षमता से अधिक बाज़ार को अपने गिरफ्त में करना चाहते हैं...सारा खेल बस यही है...किसी भी वस्तु की आवश्यकता है या नहीं,इसकी बात ही कहाँ हैं..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-1234190960415906182010-10-23T01:43:24.386-07:002010-10-23T01:43:24.386-07:00वाणी,
मुझे मॉल की एक और खासियत नज़र आती है...(इसे ...वाणी, <br />मुझे मॉल की एक और खासियत नज़र आती है...(इसे मैने परिकल्पना पर भी लिखा था ) हमारे देश में मनोरंजन के साधनों की बड़ी कमी है. पिकनिक, कैम्पिंग पर जाने का रिवाज़ ना के बराबर है. ऐसे में मध्यमवर्ग..घर से निकल कर जाए तो कहाँ जाए...ऐसे में ये मॉल्स बड़े काम आते हैं. खरीदारी ना भी की तो कुछ देर रौनक का आनदं लिया...चाट खा ली..वापस आ गए.<br /><br />और आजकल मोबाइल कंपनियों के ऐसे -ऐसे स्कीम हैं कि अगर ना चाहें तो ज्यादा पैसे खर्च नहीं होंगे....दूर-दराज़ गाँवों में रहने वाले रिश्तेदारों से संपर्क का बढ़िया जरिया है...जिसका निम्न वर्ग के लोग भी बहुत फायदा उठा रहें हैं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-4687418015450466962010-10-23T01:03:06.946-07:002010-10-23T01:03:06.946-07:00कल अगर यह विदेशी कम्पनी वापिस अपने देश चली गई तो??...कल अगर यह विदेशी कम्पनी वापिस अपने देश चली गई तो?? ्फ़िर दिखाबे की जिन्दगी कितना सकून देती हे?दिखावा हमेशा दिखावा ही रहता हे. धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-59337766183817032662010-10-23T00:04:44.316-07:002010-10-23T00:04:44.316-07:00वक्त के साथ सब बदलता है और वो ही हो रहा है बिना सो...वक्त के साथ सब बदलता है और वो ही हो रहा है बिना सोचे समझे क्या सही है और क्या गलत या किस हद तक्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-72442232023210512862010-10-22T21:14:33.627-07:002010-10-22T21:14:33.627-07:00आज मोबाईल आवश्यकता बन गया है ..जैसे फ्रिज या गैस क...आज मोबाईल आवश्यकता बन गया है ..जैसे फ्रिज या गैस का प्रयोग...<br />हाँ अभी मॉल अभी आम पहुँच से थोड़ा दूर है ...लेकिन सुभिक्षा या ऐसे ही स्टोर्स<br />उपभोक्ता को राहत भी देते हैं ....संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-11501048295070099802010-10-22T20:27:20.485-07:002010-10-22T20:27:20.485-07:00क्या उन्हें इन अतिरिक्त खर्चों को वहन कर खुश हो जा...<b>क्या उन्हें इन अतिरिक्त खर्चों को वहन कर खुश हो जाना चाहिए...</b><br /><br />अतिरिक्त खर्च न होकर अतिरिक्त आय और बचत का साधन भी हो सकता है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-84125407196346319712010-10-22T20:23:49.781-07:002010-10-22T20:23:49.781-07:00jis varg ki aap baat kar rahee haen us varg mae ja...jis varg ki aap baat kar rahee haen us varg mae jab mobile ityadi kae kharchae nahin they tab desi sharaab kae they<br /><br />sabsey jaruri haen shiksha kaa prachaar prasaar wahii sabko sammanta daetaa haen <br /><br />apnae aas paas sabko shiksha kaa prachaar prasaar karna chaiyaeरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-76852015055170274712010-10-22T19:49:46.343-07:002010-10-22T19:49:46.343-07:00यदि इतना सामान दुकानों के माध्यम से बेचा जाये तो अ...यदि इतना सामान दुकानों के माध्यम से बेचा जाये तो अधिक स्थान की आवश्यकता होगी। प्रयास तो उनन्ति के हैं पर छोटे दुकानदारों के हित अनदेखे नहीं किये जा सकते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-41220648447257978842010-10-22T19:49:02.460-07:002010-10-22T19:49:02.460-07:00दिल और दिमाग की रस्साकशी -सृजनात्मकता कितनी आभारी ...दिल और दिमाग की रस्साकशी -सृजनात्मकता कितनी आभारी है इस रस्साकशी कीArvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-21557166684349854482010-10-22T18:44:07.431-07:002010-10-22T18:44:07.431-07:00आवश्यकता काम दिखावा जादा है|आवश्यकता काम दिखावा जादा है|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-5828530061726765792010-10-22T18:13:56.589-07:002010-10-22T18:13:56.589-07:00ये आवश्यकताएं हैं या सिर्फ दिखावा, सही सवाल उठा है...ये आवश्यकताएं हैं या सिर्फ दिखावा, सही सवाल उठा हैS.M.Masoomhttps://www.blogger.com/profile/00229817373609457341noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7676889437502455189.post-6888184978924545922010-10-22T17:59:53.635-07:002010-10-22T17:59:53.635-07:00अच्छा आलेख।
क्या यह दिखावा नहीं है?अच्छा आलेख। <br />क्या यह दिखावा नहीं है?हास्यफुहारhttps://www.blogger.com/profile/14559166253764445534noreply@blogger.com