जिंदगी बस उस दम ही लगी भलीजब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिलीपसरा रहा दरमियाँ खुला आसमांसंकरी लगने लगी रिश्तों की गलीजज्बातों ने ले ली फिर अंगड़ाईअरमानों की खिलती रही कलीपलकों की सीप में अटके से मोतीराह आने की तकती रही उसकी गलीदामन खींचती हवा चुपके से पूछ रहीआज किसकी है कमी तुझको खलीजिन्दगी पहले तो नही थी इतनी हसींआती जाती रही लबों पर जो इतनी हँसीतुझसे मिलकर ही जाना जिन्दगी
तू है वही जो ख्वाब बनकर आँखों में पलीजिंदगी पहले कभी ना लगी इतनी भलीजब तलक उससे मैं मैं बनकर ना मिली...................................................................................