गुरुवार, 21 जनवरी 2010

मेरे घर की खुली खिड़की से .....



मेरे घर की खुली खिड़की से
अलसुबह
जगाता है मुझे
चिड़ियों का कलरव गान.....

ठिठोली कर जाती है
रवि की प्रथम किरण
अंगडाई लेते कई बार.....



पूरनमासी का चाँद भी
झेंपता हुआ सा
झांक लेता है बार -बार....

झर-झर झरते पीले फूल
देते हैं दस्तक
खिडकियों पर कई बार.....



मीठी तान छेड़ जाती है
मदमस्त हवा
चिलमन से लिपटकर बार-बा....

खिडकियों से ही नजर आती है
कुछ दूर ...बंद खिड़कियाँ ..
हवेली की ऊँची दीवार......


सुबह-शाम
देख कर उन्हें
सोचती हूँ
कई बार ....

ऊँचे जिनके मकान होते हैं
छोटे कितने उनके आसमान होते हैं ....



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वसंत आया मेरे घर की छोटी सी बगिया में ....