शनिवार, 19 जून 2010

भागती जिन्दगी से चुराए गर्मी की छुट्टियों के कुछ पल ..

गर्मी की छुट्टियाँ बस समाप्त ही होने को है ...इन छुट्टियों का सबसे ज्यादा इंतजार होता है बेटियों को और उनके नन्हे मुन्नों मुन्नीयों को ...गर्मी की छुट्टी का मतलब नानी के घर जाबा दे ...दूध मलाई खाबा दे ...मोटो हों आब दे (नानी के घर जाने दो , दूध मलाई खाने दो ,मोटे होकर आने दो )...भागमभाग और बढ़ते प्रतियोगी माहौल में परीक्षाओं की तैयारी या अन्य हौबी कक्षाएं आजकल के बच्चों से गर्मी की लम्बी छुट्टियों की बेफिक्री और ननिहाल सुख़ को लीलती जा रही हैं ...और तिस पर मायका यदि एक ही शहर में हो और आपका एकल परिवार मानो करेला ऊपर नीम चढ़ा ...लम्बी लम्बी छुट्टियों की बात तो भूल ही जानी चाहिए ...भूल गए हैं हम भी जब से पिता के देहावसान के बाद माँ अपने संयुक्त परिवार सहित इसी शहर में निवास करने लगी हैं ...लू चलती भरी दुपहरी में खुद की देखभाल के प्रति हद दर्जे के लापरवाह पति को कुछ दिन को भी अकेला छोड़ कर जाना बड़ा मुश्किल होता है ...मगर जब इस बार पतिदेव कुछ दिनों के लिए व्यस्त थे तो मौका देखकर तीन चार दिन मायके जाने का जुगाड़ भिड़ा ही लिया ...
घर गृहस्थी की चिंता माँ के आँचल तले भी अब वैसी बेफिक्री तो नहीं रहने देती ...मगर कुछ पल के लिए ही सही आनंददायक पल लौटा लाती है ...और बच्चे तो महाखुश ...नानी , मामा -मामी और उनके बच्चों के साथ मस्त ...विवाहिता बेटियों के लिए शादी के बाद मायके में टिकना एक तनी हुई रस्सी पर संभल कर चलने जैसा ही होता है ...माँ के लिए यह मानना आसान नहीं होता कि हमउम्र होने के कारण बेटियां और बहुएं वैचारिक धरातल पर एक जैसी ही होंगी ...वही भाभियों के मन में एक पूर्वाग्रह कि बेटी तो मां का ही पक्ष लेगी ...दोनों के बीच संतुलन बनाने का शउर जिसने सीख लिया वही इन छुट्टियों को मजे से बिता सकता है .......

बेटियों के लिए उनकी पसंद की ड्रेस के लिए रंग चुनती मां बहुओं के सलवार कमीज ,गाउन आदि पहनने पर मन ही मन भुनभुनाती है तो मैं मुस्कुराये बिना नहीं रहती ...कह देती हूँ ...

" क्या हुआ , हम भी तो ये सब पहनते हैं अपने घर में "...

"तुम्हारी बात और है ...तुम सास के साथ थोड़े ना रहती हो ...उनके सामने तो सर ढकती हो , घूँघट भी ..."

" हाँ मां , वो इसलिए कि ससुराल में पर्दा प्रथा की जानकारी होने के बाद भी आप लोगों ने अपनी मर्जी से रिश्ता किया था ...और मैं सोचती हूँ कि कोई भी घर अपनी परम्पराएँ एकदम से नहीं छोड़ सकता , अब तो वहां भी इतना नहीं रहा ...सिर्फ अपनी पसंद के कपडे पहन सके इसलिए सास के साथ नहीं रहना चाहिए क्या ..."मुझे हंसी आती है ...

" तो मैं कहाँ मना करती हूँ ...सब तो पहनती हैं ये ..और कहाँ सर ढकती हैं ...घूंघट तो कभी भी नहीं निकाला ..."माँ शांत हो जाती हैं ...

पूरी उम्र लगर कर संवारी गृहस्थी की डोर छूटने पर खालीपन महसूस करती सास और घर को अपने तरीके से चलाने के लिए अतिउत्साहित बहू के बीच परिवार के बाकी सदस्यों को संतुलन बना कर चलना होता है ......कौन इनके बीच में पड़े (मुस्कुराहट ).... सास बहूओं की नोक- झोंक कब एक दूसरे के लिए फिक्र में बदल जाती है , पता ही नहीं चलता ...दो दिन के लिए सासू माँ अगर शहर से बाहर हो तो घर और बच्चों को संभालती आंसू बहाती जल्दी वापस घर लौटने का आग्रह करती बहू और बहू की जरा सी तकलीफ और पोते -पोतियों की चिंता में घुलती हाय तौबा मचाती दौड़ती भागती इस सास को देखना मुझे बहुत मनोरंजक लगता है ...

शाम को छत पर लाईन से बिस्तर में अटे देर रात तक माँ से बतियाते , भाई भतीजे भतीजियों के साथ अन्ताक्षरी खेलते , बचपन के दिन याद करते और हंसी ठहाके सुनकर शहरी पडोसी (एयर कंडीशन के बीच सिर्फ धीमी फुसफुसाती आवाज़ों के साथ अपनी शहरी औपचारिकता बनाये रखने वाले ) रश्क तो करते होंगे ...

माँ के घर पर नहीं होने पर बचपन में चोटी पकड़ कर रसोई में अपना मनपसंद हलुवा बनवाने वाला भाई बिहार से फोन पर छेड़ते हुए कह रहा है " जर्दा आम की पेटी भेजी है ...अपने बिन्द के लिए भी ले जाना ...कभी देखे नहीं होंगे पेड से टूटे ताज़ा आम ..." और शिकायत भी " बड़ी हा- हा, ही - ही हो रही है ...करो, खूब मजे करो "

कौन सा रंग नहीं होता इन रिश्तों में ...रूठना , मनाना , गरियाना , पुचकारना ....मुझे कई बार कमेंट्स के तौर पर कही गयी गिरिजेश जी की बात याद आती है ..." परिवार टूटेंगे ..." " विवाह संस्था समाप्त की जानी चाहिए ..."
क्या सचमुच ...
परिवार
के सुख के पीछे छोटे छोटे दुखों को नजरअंदाज करते हम क्या सिर्फ आत्ममुग्धता के ही शिकार है ...
भावनाओं
के धोगों से कच्चे पक्के धागों से बांधे खट्टे मीठे रिश्ते आत्ममुग्ध होने के सिवा कुछ नहीं है ....!!




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रविवार, 13 जून 2010

अम्माजी का लचीलापन (लघु कथा )





अम्माजी की तीखी आवाज़ घर से सटे छोटे से किचन गार्डेन से पार होती हुई पूजा करती हुए शुभी के कानों तक पहुंची । कल ही गाँव से आई है अम्माजी और आज सुबह सुबह पूरे घर की व्यवस्थाओं का जायजा लेते हुए किचन गार्डेन तक पहुँच गयी । करीने से बनी हुई क्यारियों में ताजा हरी पालक , भिन्डी , हरी मिर्च , बैंगन , टमाटर आदि के छोटे -छोटे कच्चे हरियाये पौधों से उल्लासित अम्माजी गाँव की खुशबू को जी लेती हैं । अपने बेटे गिरीश के लिए शुभी को पसंद करने के निर्णय पर नाज होता है उन्हें । परम्पराओं और आधुनिकता का मेल है शुभी। घर को खूब अच्छी तरह संभाल रखा है । मन ही मन खुश होती हुई अम्माजी की नजर अचानक सलीके से बनी प्याज की क्यारियों पर जा कर अटक गयी । गार्डेन में काम करते माली पर चीख पड़ी ...
" तुम्हे प्याज लगाने को किसने कहा , पता नहीं है तुम्हे हम वैष्णवी प्याज़ लहसुन खाना तो दूर ,स्पर्श तक नहीं करते "

" बाबा और बेबी तो प्याज के बिना सलाद को छूते भी नहीं "....माली कहते कहते रुक गया गलियारे के गेट से आती हुए शुभी के इशारे को देख कर "

" जी, अम्माजी , नयी सब्जियां लगाने के समय मैं कुछ दिन घर से बाहर रही, इस नए माली को पता नहीं था । इसने बाकी सब्जियों के साथ प्याज भी लगा दिया । वापस लौटी तो नन्हे- नन्हे पौधे तैयार हो चुके थे । अब लगभग तैयार हो गयी है पौध तो माली को कह देती हूँ निकाल कर ले जाएगा । आप जानती हैं ना इनका भोजन तो प्याज और लहसुन के बिना पूरा नहीं होता ।

अम्माजी ने पूरी क्यारी का मुआइना किया ..." कितने किलो हो जायेंगे "

" यही कोई30-35किलो "

" तुम इतने सारे प्याज उठाकर इसको दे दोगी " बहू को घूरती हुई अम्माजी बोली.

" जी अम्माजी , बच्चे सलाद में लेते हैं कभी कभार । पर आप तो इसे छू भी नहीं सकती । इसलिए इन्हें रखने से क्या फायदा "

" ऐसा करो , इन्हें आँगन में बने लकड़ीघर में रखवा देना । इतने सारे प्याज एकदम से यूँ ही बाँट दोगी क्या , आँगन में ही खाना खिला दिया करना बच्चों को " नफा- नुकसान का हिसाब लगाती हुई अम्माजी बोली ।

अम्माजी के आने से पहले प्याज लहसुन को घर से बाहर का रास्ता दिखा देने वाली शुभी हैरान थी । अभी पिछली बार अचानक पहुंची अम्माजी रसोई के बाहर छोटी टोकरी में प्याज देखकर आपे से बाहर हो गयी थी , और पूरी रसोई को गंगाजल से पवित्र करने के बाद ही भोजन करने को तैयार हो पाई थी ।

अम्माजी का यह बदलाव नयी पीढ़ी के साथ सामंजस्य की शुरुआत थी या प्याज की बढ़ी हुए कीमतें और माली को मुफ्त दिए जाने की नागवारी .....शुभी सोच विचार में लगी थी।