कल दैनिक भास्कर के इस आलेख को पढ़कर मन में अजीब सी बेचैनी छा गयी .....
इनसे सावधान हो जाएँ ...
ऐसे लोगों का अपने आसपास होना जो आपकी निजता , आपकी पहचान चुरा लेते हैं , चिंताजनक है ...मित्रों और परिचितों की अचानक बदलती नजरों को आप समझ भी नहीं पाते , बस भीतर ही भीतर हैरान होते रहते हैं कि आखिर आपने किया क्या है ...आपसे कुसूर क्या हुआ है ...आपको पता ही नहीं चलता कि कोई आपका करीबी बन कर किस बेदर्दी से आपकी ही जड़ें खोदे जा रहा है ...जिंदगी के इस सफ़र में कई बार ऐसे लोगों से पाला पड़ा है ...जब भी ऐसा होता है , देर सबेर आप समझ तो जाते हैं मगर कुछ कह नहीं पाते , संकोच के कारण या फिर उस व्यक्ति से अपने लगाव के कारण ...
आलेख की इन पंक्तियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया ...
"जो घनिष्ठता की जड़ों को ठीक से जमा लेते हैं, उनकी पहचानें कहीं नहीं खो सकतीं। कोई भी दो करीबी दोस्तों या रिश्तेदारों में दरार या दूरी तभी पैदा कर सकता है, जबकि इसकी गुंजाइश हो।"
सबसे बड़ी बात यही है कि यदि दो व्यक्तियों के बीच इतना प्रेम , विश्वास या समझ है तो उनके बीच में दरार होनी भी कैसे चाहिए ... गौर करें कि कहीं अनजाने ही इसका कारण हम खुद तो नहीं ....हमारे आपसी रिश्तों में पारदर्शिता है तो किसी शक की कोई गुन्जायिश नही होनी चाहिए ....
मैंने सोचा तो पाया कि अंतरजाल पर तो यह और भी आसान है ...किसी की तस्वीर .... प्रोफाइल और रचनाएँ आसानी से दूसरे की पहचान चुराई जा सकती है...तकनीक के जहाँ फायदे हैं , नुकसान भी ....किसी भी इंसान को कुछ भी साबित किया जा सकता है ...
राजस्थान के गाँवों में अशिक्षित लोगों के बीच किसी भी महिला के संपत्ति को हड़पने या दुश्मनी निकलने के लिए डायन साबित कर बेदखल कर देना आम घटना से हो गयी है ...जब अशिक्षित लोगो द्वारा यह सब किया जा सकता है तो शहरों के पढ़े लिखे लोगों द्वारा तकनीक के सहारे कुत्सित मनोवृति के लोगो द्वारा किसी भी महिला को क्या से क्या साबित नहीं किया जा सकता ...इसकी भयावहता का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है ....
अपना एक संस्मरण बाँट रही हूँ ....बहुत कुछ इस लेख को स्पष्ट करता हुआ ...
हॉस्टल में ज्यादा समय नहीं रहना पड़ा मगर जितने दिन भी रहे , वे यादगार पल थे ...हमउम्र सखियों के साथ 24 घंटे एक साथ रहना , खाना पीना , बतियाना , पढ़ना ...जीवन भर याद रखने लायक सुनहरी यादें दे जाता है ... मितभाषी रही हूँ शुरू से ...मगर जाने कैसे बहुत सार संभाल करने वाली सखियाँ अपने आप जिंदगी से जुडती चली गयी है ...लापरवाही से जमाया मेरा ब्रीफकेस , फैली पुस्तकें , कपड़ों की सीवन पर तुरपाई करने जैसे कई काम रूम मेट ही कर देती थी ...अब ये हमारी भोली सूरत का असर था या बचपन सी मासूमियत का ..ईश्वर ही जाने ...ऐसे ही एक बहुत प्यारी दोस्त थी ...मंजूश्री ....जब भी छुट्टियों से लौट कर आती ...टिफिन भर कर मेरे पसंद का नाश्ता लाना नहीं भूलती ...एक बार छुट्टियों से लौटते उसे याद आया कि मुझे एक बैग की जरुरत है ...नेपाल बोर्डर के नजदीक बसे उसके कस्बे से खरीददारी करने वे लोंग नेपाल ही जाते रहे थे ...वर्षों तक हमारी खरीददारी भी नेपाल में ही होती रही ...हाँ तो ...वह अपने साथ बहुत ही खूबसूरत सा बैग लेकर आई मेरे लिए ...बहुत इसरार करने पर ही उसका मूल्य बताने और लेने को को राजी हुई ...मेरे कस्बे की ही एक और कन्या जो मेरी रूममेट थी, को उस बैग की कीमत ज्यादा लगी ...मैंने उसकी बात को उड़ा देने गरज से सिर्फ इतना ही कहा ...कि कोई बात नहीं अगर कीमत ज्यादा भी हो तो , वो वैसे भी मेरे लिए इतना कुछ करती है ....बात आई गयी हो गयी ... मैं भूल भी गयी इस बात को ...
तीन चार दिन बाद मैंने देखा कि मंजूश्री अपने रूम में बैठी रो रही है ...मैं उसके पास गयी पूछने तो वह मेरा हाथ झटक कर वहां से उठ कर चली गयी ...उसका यह अप्रत्याशित व्यवहार देखकर मैं भोंचक रह गयी ...तब जाकर मुझे याद आया कि इधर तीन चार दिन से हमारी कोई बात ही नहीं हो रही थी ..सचमुच मैं बहुत नासमझ हो जाती हूँ कभी कभी ...मैंने ये सोचा ही नहीं कि इसका कारण उसकी नाराजगी है ....मुझे तो यही लगता रहा ही कि हम अपनी परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त है इसलिए बात नहीं हो पा रही होगी ...बहुत पूछताछ करने पर पता चला कि उसकी नाराजगी का कारण मेरी कस्बाई सखी से बैग के सम्बन्ध में हुई बातचीत थी ...पता नहीं हलके मूड में कही गयी मेरे बात को उसने किस तरह तोड़ मोड़ कर मंजूश्री के सामने पेश किया कि वह इतनी आहत थी ...बहुत कोशिश की मैंने उसे अपना पक्ष समझाने की ...आखिर मैंने भी यही सोच कर संतोष कर लिया कि कही ना कहीं हमारी दोस्ती में ही बड़ा झोल था ...वरना किसी के कुछ कहने पर बिना मेरा पक्ष जाने उसे इस तरह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करनी चाहिए थी ....रिश्ता टूट तो जाता है मगर यह टीस बनी रह जाती है कि बिना वजह आपको इतनी अच्छे मित्र को खोना पडा ....
अपने आस पास के इन नारद और मंथरा टाइप लोगों से सावधान होने की जरुरत है ...आपकी कही बात को जाने किस तरह तोड़ मोड़ कर दूसरों के सामने रख दें कि आपको शर्मसार होना पड़े ...
फिर भी इस अविश्वास भरी दुनिया में मेरा विश्वास बना रहेगा कि अच्छे लोगो को अच्छे लोंग भी हमेशा मिल जाते हैं .....ईर्ष्यालुओं की ही तरह ...
कुछ लोगो को यह पोस्ट निरर्थक से लग सकती है ...मगर दिमाग से बोझ उतरने के लिए आवश्यक भी ....!