शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

" क्या करूँ ...छोड़ना चाहते हैं , छूटता नहीं है "

" क्या करूँ ...छोड़ना चाहते हैं , छूटता नहीं है "
बस स्टॉप पर बच्चों की इस खुसर पुसर से कान खड़े हो गए मेरे ...देखा तो छोटी बच्चियां घेरा बनाकर अपनी सिनिअर दीदी से कुछ बात कर रही थी ...टहलते -टहलते मैं भी सरक ली उनके पास....
"क्या गुपचुप बातें हो रही है " ...मुझे देखकर एक दम से चुप हो गयी लड़कियां ...
उनकी सबसे बड़ी दीदी मंद -मंद मुस्कराते हुए चुप खड़ी थी ...जोर देकर पूछने पर उसे बताना ही पड़ा ...
" ये अपनी क्लास की किसी लड़की की बात बता रही थी ...उसका कोई बॉय फ्रेंड है ...जिसने अपने हाथ पर ब्लेड से उसका नाम लिख लिया है ...."
मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था क्यूंकि जिन बच्चों की बात हो रही थी...वे बहुत छोटी बच्चियां हैं ...
मैंने मुड़ते हुए उस बच्ची से पूछा ," बेटा , आपकी उम्र क्या है "
" बारह साल "
"
तुम लोंग इस तरह की बातें किया करती हो"
" आंटी , वो मुझ पर भरोसा करती है इसलिए अपनी सब बात बता देती है "
" उससे कहना कि अगली बार ये बात अपनी दीदी को या मम्मी को बता दे " मैंने उसे हल्का -सा डांट दिया ...

गुड्डे- गुडिया , परियों, राजा -रानी की कहानियों , खेलने कूदने वाली उम्र में बच्चों की ये बातचीत ....कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करूँ ...कुछ समझ नहीं आ रहा ...
बच्चों की मासूमियत , भोलापन कहाँ हवा हो गया है ....
छोटे बच्चे ही नहीं , किशोर उम्र के बच्चों के बीच भी अपने सब्जेक्ट से ज्यादा बातचीत बॉय फ्रेंड , गर्ल फ्रेंड से संबधित ही होती है ...जो वास्तव में ये भी नहीं जानते कि दोस्ती (फ्रेंड ) होती क्या है ...वैसे तो बड़े ही कौन दोस्ती का सही मतलब समझते हैं ...फिर भी ...

मोहल्ले की बेटी अपनी बेटी जैसे माहौल में पले बढे लोंग ऐसे समय में क्या करें ...मैं बहुत दुविधा में पड़ जाती हूँ ...उनके अभिभावकों को कहा जाए या बस चुप रह लें ....असमंजस -सी स्थिति हो जाती है कि कहीं कोई गलत ना समझ ले .... कही न कहीं यह खयाल भी रहता है कि आदर्शवादी बनने के चक्कर में किसी के साथ अन्याय ना हो जाये ...किशोर उम्र की सच्ची चाहत वाले बच्चे अलग हो जाएँ और फिर अपने पचासवें में कोई प्रेम कथा लिखते हुए पाए जाएँ ...
आप भी गुजरते होंगे ना ऐसे दुविधाओं से ...क्या करना चाहिए ऐसे में ...बच्चों को प्यार से समझा कर छोड़ देना चाहिए या उनके अभिभावकों को सचेत कर देना चाहिए ....????