सर्दी के मौसम में रजाई में ठण्ड और भय से सिकुड़ते सिमटते कांपते हममे से बहुतों ने भूत- प्रेत की कहानिया अपनी दादी , नानी , मौसी आदि से सुनी होंगी ...हमारे बचपन के जमाने में माँ कहानियां नहीं सुनाया करती थी ..."माँ" लोगों को घर गृहस्थी के कामों से ही फुर्सत नहीं हुआ करती थी , सो कहानियां सुनाने का जिम्मा दादी -नानी का ही हुआ करता था ....
भूत- प्रेत आदि की कहानियों से बच्चे डर जाते हैं लेकिन इन कथाओं का रोमांच उन्हें आकर्षित करता है , इसलिए डरते हुए भी वे बार -बार ऐसी ही कहानियां सुनने की जिद भी करते हैं ...एक कहानी हमने भी सुनी अपने बचपन में ....जरुर आपने भी सुनी होगी ... कटे हाथ की कहानी ....
एक आदमी देर रात फिल्म का आखिरी शो देख कर घर लौट रहा था ....उसे रास्ते में झाड़ियों के बीच कुछ अजीब सी चीज चलती नजर आई ....उसने पास जाकर देखा , झाड़ियों में एक कटा हाथ रेंग रहा था ... डर के मारे उसकी घिग्घी बंध गयी ... अकेले पैदल ही घर लौटते वह व्यक्ति बहुत भयभीत हो चुका था ....मुख्य मार्ग पर अपने आगे चलते एक व्यक्ति को देखकर उसे कुछ राहत मिली ....तेज कदम से उसकी और अपनी दूरी को कम करते हुए वहां तक पहुंचा और उस व्यक्ति के कंधे पर हाथ रख दिया ....
पास जाने पर देखा कि उसके बाएं कंधे पर झोला लटक रहा था ...कुछ कदम ही साथ चले थे कि राहगीर ने उस व्यक्ति की बेचैनी को भांपते हुए उससे पूछ ही लिया ," क्या बात है ,बहुत घबराये हुए हो " ....
उस व्यक्ति ने डरते हुए झाड़ियों में कटे हाथ को चलता देखने की घटना का वर्णन कर दिया ... राहगीर सुनकर मुस्कुराने लगा ...उसने अपने झोले में हाथ डाला और जब वापस बाहर निकाला तो उसके हाथ में वही कटा हाथ था ....दिखाते हुए उसने पूछा ," कही यही हाथ तो नहीं था " ...
भय से कंपकंपाते वह व्यक्ति वहां से भाग छूटा ...
कुछ दूर चलने पर उसे एक रिक्शावाला नजर आया ...घबराहट में रिक्शा रुकने से पहले ही वह उस पर चढ़ बैठा ..." क्या बात है भाई , इतनी जल्दी क्या है ...अभी गिर पड़ते , चोट लगती "
तुम यहाँ से जल्दी से चलो , मार्ग में सारी बात बताऊंगा ...
रिक्शा चल पड़ा ...चलते चलते उसने झाड़ियों के बीच कटे हाथ को देखने और फिर उस राहगीर के पास भी वैसा ही हाथ देखने की घटना बयान कर दी ....अब रिक्शे वाले ने पीछे मुड कर देखा और उसकी सीट से कुछ निकालकर उसे दिखाया ,' कहीं यही तो नहीं है !'
अब तक उस व्यक्ति का डर और घबराहट से बुरा हाल हो चुका था .....गनीमत थी कि तब तक रिक्शा उसके घर तक पहुँच चुका था ...दरवाजे को जोर -जोर से पीटने की आवाज़ सुनकर उसकी माँ किवाड़ खोल कर बाहर आई ...घबराते ,कांपते वह व्यक्ति धम्म से बिस्तर पर जा बैठा और माँ को पूरी कहानी सुनाने लगा ....कहानी समाप्त होते- होते उसकी माँ ने मुस्कुराते हुए उसे कुछ दिखाया ...." यही हाथ तो नहीं था "
अब तो उस व्यक्ति के मुंह में झाग आ गए और बेहोश हो कर गिर पड़ा ....
आपको नहीं लगता वही कटा हाथ कहानियों से निकल कर ,कई हजार कटे हाथ बनकर अखबार , टी वी , इन्टरनेट तक फ़ैल चुका है ...!
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