हमारे समाज में महिलाओं के लिए शारीरिक संबंधों पर बात करना या लिखना इतना आम नहीं है ...परिवारिक और सामाजिक मर्यादाओं में घिरे हम लोंग इस विषय पर चुप रहना ही पसंद करते हैं , मगर जिस तरह से इन मुद्दों को उछाल कर बहस का केंद्र बना लिया जाता है , विषयवस्तु यदि बच्चों और महिलाओं पर ही केन्द्रित हो और इसका असर महिलाओं और बच्चों के जीवन पर पड़ने की पूरी सम्भावना हो तो आम महिलाओं के लिए भी इसे बहुत देर तक नजरअंदाज करना संभव नहीं होता ....मन -मस्तिष्क को आंदोलित करता भीतर पल रहा आक्रोश बेचैन करता रहता है ...
पिछले दिनों ऐसे ही दो मुद्दों की आंच पर दिमाग सुलगता रहा ... पहला मुद्दा है महिला एवं बाल विकास आयोग द्वारा १२ वर्ष की उम्र के बच्चों को आपसी सहमति के आधार पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छूट देने का प्रावधान करते हुए क़ानून के निर्माण की वकालत का मसौदा राज्या सरकारों को भेजा जाना ....जहाँ अभी तक बाल यौन शोषण और बाल श्रम से जुड़े कानून का पालन ही एक मजाक बना हुआ है , वहां इस तरह के प्रस्ताव पर विचार करना भी कुंठित मानसिकता की ओर ही इशारा करता है ....ये हालत तब है जब कि खुद इस मंत्रालय (महिला एवं बाल विकास ) की रिपोर्ट बता रही है कि " देश का हर चौथा बच्चा यौन शोषण का शिकार हो रहा है " ....वही यूनिसेफ की यह रिपोर्ट भी कम नहीं दहलाती कि लगभग 65 प्रतिशत बच्चे शिक्षा केन्द्रों पर यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं जिनकी जिम्मेदारी स्वस्थ और अच्छे संस्कार की युवा पीढ़ी के निर्माण की है ...यह रिपोर्ट सिर्फ विद्यालयों में शिकार मासूमों की है , जबकि कच्ची बस्ती और विभिन्न रोजगारों में लगे बच्चों का प्रतिशत और भी अधिक होने की संभावना है .... इस मसौदे को तैयार करने वालों की बुद्धि पर तरस खाने के सिवा और क्या किया जा सकता है ...जहाँ महिलाओं से जुड़े शारीरिक प्रताड़ना के अधिकाँश केस अनसुलझे रह जाते हैं क्योंकि इसे साबित करने के लिए बहुत ही कष्टदायक मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है , वहां ऐसे अत्याचार झेलने वाले अबोध मासूम बच्चे क्या साबित कर पाएंगे कि उनके साथ ज्यादती उनकी आपसी सहमति के बिना हुई है .... बहुत स्पष्ट तौर पर यह कानून बाल पोर्नोग्राफी और उनके व्यापार को आड़ देने का कार्य करेगा ...सयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग १२ लाख बच्चे हर वर्ष खरीद फरोख्त के शिकार होते हैं जिनमे बहुत बड़ी संख्या भारत सहित अन्य एशियन देशों की है ....असीमित जनसँख्या , रोजगार की कमी , शिक्षा और संसाधनों का का अभाव ऐसे देशों में बाल शोषण की बढती संख्या पर लगाम नहीं कस पा रही और इस तरह के वाहियात कानूनों के मसौदे पेश कर उन्हें अंधे कुएं में धकेलने की पूरी तैयारी की जा रही है ....सबसे ज्यादा निराशाजनक स्थिति उस एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा इस तरह के कानूनों की पैरवी करना है जिसकी स्थापना महिलाओं और बच्चों से जुडी समस्याओं का समूल नाश करने के मंतव्य से की गयी हो ....इस तरह होगा हमारे देश में बच्चों का विकास ....इस विभाग को बच्चों की शिक्षा, पालन पोषण और उनके अधिकारों की रक्षा से ज्यादा बड़ी चिंता उनके शारीरिक सम्बन्ध बनाने की उम्र का निर्धारण की है ....बाड़ द्वारा खेत को खाने की कहावत का सार्थक उपयोग यही नजर आ रहा है ....
मीडिया की जब तब आलोचना करने वाले हम लोगों को कम से कम इस कानून को अमली जामा पहनाये जाने के खिलाफ चेताने के लिए शुक्रिया तो अदा कर ही देना चाहिए , उनकी सक्रियता के बिना जाने ऐसे कितने कानून चुपचाप पास हो जाए और हमें भनक भी ना लगे ....
एक और मुद्दा जो ब्लॉगर्स के बीच छाया हुआ है ...सामाजिक समस्याओं पर मिल जुल कर समाधान करने की अपील के साथ भारी भरकम बहस हो रही है इस पर ...वह है ....विवाह की उम्र को 13-15 वर्ष कर देने की वकालत ...और इसके लिए जो तर्क दिए गए हैं , वैज्ञानिक दृष्टि से सही होते हुए भी व्यावहारिक नहीं लगते हैं .... कहा गया है कि शरीर की मांग को अनसुना करते हुए संस्कार पर भाषण देना हकीकत से मुंह मोड़ लेना है ....
मेरा मानना है कि ...वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर होने पर ही विवाह करना चाहिए ...घर -गृहस्थी को बांधे रखने के लिए सिर्फ शारीरिक जरूरतें नहीं , भावनात्मक सम्बन्ध अत्यावश्यक हैं ...सिर्फ शरीर की जरुरत के लिए सम्बन्ध पशु बनाते हैं ...इस तरह की जरूरतों का हवाला देकर बच्चों के खेलने की उम्र में विवाह की जिम्मेदारी डालना मैं उचित नहीं समझती हूँ ...क्योंकि विवाह सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध नहीं है , एक जिम्मेदारी है , एक भावनात्मक रिश्ता है जिसके लिए मानसिक रूप से परिपक्व होना भी जरुरी है !
किसी भी उम्र में विवाह के बाद विभिन्न परिस्थितियों जैसे शिक्षा , नौकरी , व्यवसाय , अस्वस्थता आदि के कारण अलगाव के बाद भी पति- पत्नी को जो भावना जोड़े रखती है , वह उनके संस्कार ही होते हैं ... इसलिए युवाओं को संस्कारित करना हकीकत से मुंह मोड़ना नहीं है , बल्कि अभिभावकों के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम समाज को संस्कारवान स्वस्थ मानसिकता वाले युवा प्रदान करें ...ना कि व्यभिचार को प्रोत्साहित करते हास्यापद तर्क दें ....!
...........................................................................
पिछले दिनों ऐसे ही दो मुद्दों की आंच पर दिमाग सुलगता रहा ... पहला मुद्दा है महिला एवं बाल विकास आयोग द्वारा १२ वर्ष की उम्र के बच्चों को आपसी सहमति के आधार पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छूट देने का प्रावधान करते हुए क़ानून के निर्माण की वकालत का मसौदा राज्या सरकारों को भेजा जाना ....जहाँ अभी तक बाल यौन शोषण और बाल श्रम से जुड़े कानून का पालन ही एक मजाक बना हुआ है , वहां इस तरह के प्रस्ताव पर विचार करना भी कुंठित मानसिकता की ओर ही इशारा करता है ....ये हालत तब है जब कि खुद इस मंत्रालय (महिला एवं बाल विकास ) की रिपोर्ट बता रही है कि " देश का हर चौथा बच्चा यौन शोषण का शिकार हो रहा है " ....वही यूनिसेफ की यह रिपोर्ट भी कम नहीं दहलाती कि लगभग 65 प्रतिशत बच्चे शिक्षा केन्द्रों पर यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं जिनकी जिम्मेदारी स्वस्थ और अच्छे संस्कार की युवा पीढ़ी के निर्माण की है ...यह रिपोर्ट सिर्फ विद्यालयों में शिकार मासूमों की है , जबकि कच्ची बस्ती और विभिन्न रोजगारों में लगे बच्चों का प्रतिशत और भी अधिक होने की संभावना है .... इस मसौदे को तैयार करने वालों की बुद्धि पर तरस खाने के सिवा और क्या किया जा सकता है ...जहाँ महिलाओं से जुड़े शारीरिक प्रताड़ना के अधिकाँश केस अनसुलझे रह जाते हैं क्योंकि इसे साबित करने के लिए बहुत ही कष्टदायक मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है , वहां ऐसे अत्याचार झेलने वाले अबोध मासूम बच्चे क्या साबित कर पाएंगे कि उनके साथ ज्यादती उनकी आपसी सहमति के बिना हुई है .... बहुत स्पष्ट तौर पर यह कानून बाल पोर्नोग्राफी और उनके व्यापार को आड़ देने का कार्य करेगा ...सयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग १२ लाख बच्चे हर वर्ष खरीद फरोख्त के शिकार होते हैं जिनमे बहुत बड़ी संख्या भारत सहित अन्य एशियन देशों की है ....असीमित जनसँख्या , रोजगार की कमी , शिक्षा और संसाधनों का का अभाव ऐसे देशों में बाल शोषण की बढती संख्या पर लगाम नहीं कस पा रही और इस तरह के वाहियात कानूनों के मसौदे पेश कर उन्हें अंधे कुएं में धकेलने की पूरी तैयारी की जा रही है ....सबसे ज्यादा निराशाजनक स्थिति उस एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा इस तरह के कानूनों की पैरवी करना है जिसकी स्थापना महिलाओं और बच्चों से जुडी समस्याओं का समूल नाश करने के मंतव्य से की गयी हो ....इस तरह होगा हमारे देश में बच्चों का विकास ....इस विभाग को बच्चों की शिक्षा, पालन पोषण और उनके अधिकारों की रक्षा से ज्यादा बड़ी चिंता उनके शारीरिक सम्बन्ध बनाने की उम्र का निर्धारण की है ....बाड़ द्वारा खेत को खाने की कहावत का सार्थक उपयोग यही नजर आ रहा है ....
मीडिया की जब तब आलोचना करने वाले हम लोगों को कम से कम इस कानून को अमली जामा पहनाये जाने के खिलाफ चेताने के लिए शुक्रिया तो अदा कर ही देना चाहिए , उनकी सक्रियता के बिना जाने ऐसे कितने कानून चुपचाप पास हो जाए और हमें भनक भी ना लगे ....
एक और मुद्दा जो ब्लॉगर्स के बीच छाया हुआ है ...सामाजिक समस्याओं पर मिल जुल कर समाधान करने की अपील के साथ भारी भरकम बहस हो रही है इस पर ...वह है ....विवाह की उम्र को 13-15 वर्ष कर देने की वकालत ...और इसके लिए जो तर्क दिए गए हैं , वैज्ञानिक दृष्टि से सही होते हुए भी व्यावहारिक नहीं लगते हैं .... कहा गया है कि शरीर की मांग को अनसुना करते हुए संस्कार पर भाषण देना हकीकत से मुंह मोड़ लेना है ....
मेरा मानना है कि ...वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर होने पर ही विवाह करना चाहिए ...घर -गृहस्थी को बांधे रखने के लिए सिर्फ शारीरिक जरूरतें नहीं , भावनात्मक सम्बन्ध अत्यावश्यक हैं ...सिर्फ शरीर की जरुरत के लिए सम्बन्ध पशु बनाते हैं ...इस तरह की जरूरतों का हवाला देकर बच्चों के खेलने की उम्र में विवाह की जिम्मेदारी डालना मैं उचित नहीं समझती हूँ ...क्योंकि विवाह सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध नहीं है , एक जिम्मेदारी है , एक भावनात्मक रिश्ता है जिसके लिए मानसिक रूप से परिपक्व होना भी जरुरी है !
किसी भी उम्र में विवाह के बाद विभिन्न परिस्थितियों जैसे शिक्षा , नौकरी , व्यवसाय , अस्वस्थता आदि के कारण अलगाव के बाद भी पति- पत्नी को जो भावना जोड़े रखती है , वह उनके संस्कार ही होते हैं ... इसलिए युवाओं को संस्कारित करना हकीकत से मुंह मोड़ना नहीं है , बल्कि अभिभावकों के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम समाज को संस्कारवान स्वस्थ मानसिकता वाले युवा प्रदान करें ...ना कि व्यभिचार को प्रोत्साहित करते हास्यापद तर्क दें ....!
...........................................................................