रविवार, 10 जून 2012

कुछ अशुद्ध शब्द जो अंतर्जाल पर बहुतायत में हैं ...(हिंदी को पढ़ते हुए --2)


रविवार की एक शाम यूँ ही घूमते -घामते  एक पर्यटक स्थल के प्रवेश द्वार पर कुछ सूचनाओं को पढ़ते हुए  जयपुर विकास प्राधिकरण के एक बोर्ड के "व्यस्क " शब्द पर  नजर टिक गयी .  सही शब्द व्यस्क या वयस्क  क्या होना चाहिए.  इस पर वाद विवाद होता रहा . प्रतिष्ठानों,  पार्कों, चिकित्सालयों जैसे स्थानों पर लिखी गयी सूचनाओं को लिखने अथवा चित्रित करने का कार्य  अक्सर अशिक्षित पेंटर ही करते हैं इसलिए इनमें मात्राओं की गलतियों की अनदेखी कर दी जाती है.  परंतु पिछले कुछ वर्षों में दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल से लेकर प्रिंट मिडिया तक पर कई बार हिंदी के अशुद्ध शब्द आँखों से होकर गुजरते रहे हैं . यहाँ लिखने वालों के अशिक्षित होने का तो सवाल ही नहीं है . विचार करने पर पाया कि  मुद्दा शिक्षित या अशिक्षित होने का नहीं है . कई बार टाईपिंग के कारण होने वाली गड़बड़ियों के कारण भी शब्द अशुद्ध लिख दिए जाते हैं . परंतु क्या सचुमच ऐसा ही है !
 क्या यह अशुद्धियाँ सिर्फ  टाईपिंग की गलतियों के कारण ही है !!

बच्चों की स्कूली शिक्षा के दौरान  उनकी हिंदी की जाँची हुई कॉपी में भी मात्राओं की भयंकर अशुद्धियों को देखकर कई बार बहुत खीझ हुई है .
  बच्चे बड़ी सफाई से कहते -  एक क्लास  में साठ बच्चे हैं. मैम आखिर कितने ध्यान से चेक करेंगी और वह भी इंग्लिश मीडियम से पढने वाले बच्चों की हिंदी की कॉपियां  . ऐसे में मुझे अपने समय के गुरु /गुरुआईन  बहुत याद आते . हिंदी अथवा अंग्रेजी में श्रुतलेखन में अशुद्ध पाए जाने वाले शब्दों को लिखकर दुहराने की सजा मिलती थी . दुहराव  की संख्या संख्या दस से पचास तक भी हो सकती थी .  बच्चे जब किसी शब्द के बारे में पूछते तो भ्रम होने की अवस्था में शब्द को लिखकर देखते ही सही मात्रा याद हो आती . इसे चाहे रट्टा मारना ही कहें परंतु गणित के पहाड़े और हिंदी और अंग्रेजी के शब्द  इसी प्रकार याद कराये जाते थे . अब जब विद्यार्थियों को अशुद्ध  लिखने के लिए टोका ही नहीं जाता तब वे शुद्ध और अशुद्ध शब्द का अंतर कैसे पता कर पायें .  सिर्फ अपनी पुस्तक से ही तो सही लिखना पढ़ना  सीखा नहीं जा सकता . विद्यार्थियों की शंकाओं का समाधान और गलतियों या अशुद्धियों को सही कर पाने में ही विद्यालय और शिक्षकों की उपयोगिता   है . आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में कैलकुलेटर और लैपटॉप पर पढ़ने वाली अथवा हिसाब किताब करने वाली पीढ़ी के लिए कुछ भी रटने की आवश्यकता नहीं है . कुछ याद ना आये तो गूगल है ही . अँगुलियों पर ही जुबानी हिसाब किताब कर पाने वाली हमारी पीढ़ी  कई बार सोच में पड़ जाती है  . क्या यह स्थिति सही है . कहीं  इस प्रकार भावी पीढ़ी के दिमाग की कार्यक्षमता प्रभावित तो नहीं हो रही !!!  
वर्तमान पीढ़ी के गूगल या अन्य सर्च माध्यमों पर निर्भरता को ध्यान में रखते हुए अंतर्जाल   पर लेखकों  की  शब्दों की शुद्धता और सही सूचनाओं को प्रस्तुत करने करने की जवाबदेही बनती है .  मेरी  अपनी ही एक पोस्ट में शेर शब्द के प्रयोग करने पर कुछ वरिष्ठ ब्लॉगर झूम रहे थे . जब लेखन की शुद्धता पर ध्यान देना शुरू किया तब उनका तंज़ समझ आया :). 
कुछ ऐसे ही शब्द हैं यहाँ जो प्रिंट अथवा दृश्य माध्यमों में भी टंकण अथवा फौन्ट्स की त्रुटि के कारण अधिकाधिक अशुद्ध ही लिखे पाए जाते हैं .... 

शुद्ध   --   अशुद्ध 

दीवाली -- दिवाली 
कवयित्री  -- कवियित्री
परीक्षा   --   परिक्षा
तदुपरांत -- तदोपरांत 
निःश्वास -- निश्वास 
त्योहार --  त्यौहार
गुरु      -   गुरू 
निरीह -- निरिह   
पारलौकिक -- परलौकिक 
गृहिणी   --  गृहणी /ग्रहिणी
अभीष्ट -- अभिष्ठ 
पुरुष  --  पुरूष 
उपलक्ष्य -- उपलक्ष 
वयस्क --  व्यस्क 
सांसारिक --  संसारिक
तात्कालिक -- तत्कालिक  
ब्राह्मण  --  ब्राम्हण 
हृदय -- ह्रदय 
स्रोत --स्त्रोत 
सौहार्द --  सौहाद्र 
चिह्न -- चिन्ह 
उददेश्य --  उदेश्य 
श्रीमती -- श्रीमति 
आशीर्वाद --आर्शीवाद 
मध्याह्न  --- मध्यान्ह 
साक्षात्कार --साक्छात्कार 
रोशनी -- रौशनी 
धुँआ -- धुआँ  

मात्राओं का सही ज्ञान नहीं होने के कारण अथवा टंकण या फॉन्ट की गड़बड़ी के कारण  अंतर्जाल  पर  कई ब्लॉग्स  (मेरे या आपके भी हो सकते हैं ) , समाचारपत्रों , साहित्यिक पत्रिकाओं तक में  ये अशुद्धियाँ प्रचुरता में हैं . 

यकीन नहीं होता ना , सर्च कर देखें !!! 
कुछ त्रुटियाँ इस लेख भी हो तो अनदेखा ना करें , टोकें अवश्य  !