एक ज़माने में सभी लड़कियां खूबसूरत थी या नहीं ,रोती बहुत थी. चक्की चलाते आटा पिसती , तेज धूप में मीलों सिर पर पानी की गागर उठाये चलती , कपास कातती, खेतों से सिर पर मनों वजन उठाये उबड़ खाबड़ सड़क पर लड़खड़ा कर चलते सहमकर बातें करती , हंसती मुस्कुराती यूँ कि जैसे रोती थी .
वक़्त से पहले झुकती कमरें , चेहरों की झुर्रियों वाली उन रोती हुई उदास स्त्रियों में से ही किसी एक ने रची एक कहानी , यह सोच कर कि उनकी बेटी को भी यूँ ही रोना ना पड़े ....
ठुड्डी पर दोनों हाथ टिकाये एक उदास बच्ची को उसकी माँ ने पास बुलाया , गुदगुदाया ...क्या हुआ ?
कुछ नहीं ...अनमनेपन से नहीं कहते हुए उसकी आँखों के पीछे उदासियों का शुष्क समंदर लहराया ...
हूँ ...माँ की आँखों में प्रश्न नहीं थे ! वह भी कभी एक ऐसी ही उदास बच्ची थी , उसकी नानी भी , दादी भी ....
मगर उस माँ को इन उदासियों को यही रोक देना था ...
तुम्हे पता है , मैं जब छोटी थी मेरे माँ ने मुझे एक कहानी सुनायी थी , तुम सुनोगी ...
हाँ हाँ, क्यों नहीं , मगर परियों वाली , सफ़ेद घोड़े के राजकुमार की कहानी तो तुम मुझे कई बार सुना चुकी ....अब लड़की की आँख में आकाशदीप झलका.
कहानी तो सुनायी मैंने , लेकिन कहानी कहते हुए माँ ने जो कहा , मैंने नहीं सुनाया ...तुम्हे पता है , जिस वक़्त परमात्मा ने सृष्टि रची , स्त्री को बनाया , उसी समय उस ने किसी को उसके लिए बनाया जो उसे हर समय प्रेम करता है , हर स्थिति में , उसके होने में , ना होने में ! अच्छे- बुरे होने में , सफल -असफल होने में ! वह उसे कभी मिलता है , कभी नहीं मिलता है , कभी दिखता है , कभी नहीं दिखता है ...मगर वह होता है या होती भी है !
ऐसा हो सकता है मां , ऐसा होता है !!
हाँ,होता है ना , वह हमेशा सफ़ेद घोड़े पर आने वाला राजकुमार ही नहीं होता , हाथ पकड़कर पुल पार कराने वाला पिता भी हो सकता है , चोटी खींच कर भाग जाने वाला भाई , रूठ कर मनाने वाली बहन , चिढाते रहने वाला मित्र , कोई भी हो सकता है ...वह दृश्य हो या अदृश्य , मगर वह होता जरुर है !
लड़की की आँखों के शुष्क समंदर में आशाओं का पानी उतर आया था ...
तुमने मुझे बताया , मगर सब उदास बच्चों को कैसे पता होगा ....
तुम उनको यही कहानी सुनाना !
लड़की ने इस कहानी के आगे सोचा ... कहानी सुनाने के साथ वह स्वयं भी तो वैसी ही हो जाए तो , जैसे कि किसी को ईश्वर ने किसी के लिए बनाया , उसे भी बनाया ...
आँचल के साए में घेर लेने वाली मां , अनुशासन में सुरक्षित रहने की सीख देता पिता , उसकी पसंद की चीज बहुत खिझा कर देने वाला वाला स्नेहिल भाई या बहन , सन्मार्ग को प्रेरित करता मित्र , कंटीली राहों पर क़दमों के नीचे फूल बिछाने वाला प्रेमी या हाथ पकड़कर हर मुश्किल में साथ रहने वाली प्रेमिका ....वह जितनी अपने करीब आती गयी वैसी ही होती गयी , जैसे कि ईश्वर ने उसे किसी के लिए बनाया .
उस लड़की ने कहानी में सब कहा , जोड़ा और स्वयं भी वैसी हो गयी . जब वह लड़की बड़ी हुई , माँ हुई तब उसने अपनी बेटी को सुनायी यही कहानी ... पीढ़ी दर पीढ़ी सब कहते सुनते गये , खुशहाल होते गये ....
वरना ऐसा कैसे हो सकता था कि लड़कियां इतनी खुश रह लेती !!!!