आज आठ मार्च है ,महिला दिवस ...मुफ्त बांटी जाने वाली रेवड़ियों की तरह एक दिन तुम्हारा भी ले लो , बाकी दिन तो हमारे ही हैं, क्या कहना चाहता है समाज हमसे .
न न ...मैं महिला दिवस की विरोधी नहीं हूँ , निरंतर घटती उनकी संख्याओं और सामाजिक उत्पीडन की बढती घटनाओं के बीच उनके जिन्दा मुक्त अस्तित्व को याद रखने वाला एक दिन तो आवश्यक है .
मगर क्या बस यह काफी है !!
हमारे समाजों ने , सरकारों ने बस हर गंभीर समस्या पर बस एक सतही दृष्टि डालनी शुरू कर दी है . बुजुर्ग उपेक्षित दिखें , उनका एक दिवस मना लो . परिवार अधिक टूटते हैं , एक परिवार दिवस. महिलाये असुरक्षित नजर आती है तो एक दिवस उनके नाम सही ! समस्या की तह में जाकर उसका निदान , समाधान करने की ओर कदम कब और कैसे बढ़ेंगे , इस पर कोई दूरदृष्टि नजर नहीं आती. एक दिवस मना लेना ही सुरक्षा, समृद्धि और शक्ति की गारंटी होती तो आये दिन इन घटनाओं की पुनरावृति नहीं होती .
स्त्री इस समाज की एक स्वतंत्र इकाई है . स्त्री के सम्मान और सुरक्षा की व्यवस्था परिवार से , प्रत्येक घर से होते हुए समाजो और देश में विकसित हो , तब ही यह लम्बे समय तक कारगर है , वर्ना तो कुछ दिन का हो हल्ला , फिर वही ढाक के तीन पात!
परिवार के सहयोग अथवा असहयोग से भी जो स्त्रियाँ विभिन्न क्षेत्रों में आगे आकर अपनी पैठ बना चुकी हैं , स्वयं उनका अन्य महिलाओं के सम्मान और स्वाभिमान के प्रति क्या रवैया होता है , यह भी स्त्री समाज के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण हो सकता है , मगर एक स्तर पर अपने को सामान्य महिलाओं से अलग मान कर इनकी गोलबंदी होती है , बल्कि कई बार तो इनका व्यवहार असहिष्णुपूर्ण और असहयोगी होता है . बांटा जाता है उन्हें क्लास के नाम पर , जाति के नाम पर , धर्म के नाम पर क्योंकि जब तक वे बँटी रहेंगी , उनकी मुट्ठी में होंगी .
माफ़ कीजियेगा , यहाँ मैं पुरुषों की बात नहीं कर रही , उस पर तो प्रखर नारिवादियाँ कह देंगी , लिख भी देंगी .
मेरी शिकायत स्वयं स्त्रियों से हैं .
नारीवाद पर लम्बे चौड़े आख्यान लिख कर यदि ये अपने घर परिवार या समाज , देश की अन्य स्त्रियों के प्रति असहिष्णु हो जाती है तो इनका क्या औचित्य हुआ . नारी सम्मान पर चीखती स्त्रियों के पारिवारिक अथवा सामाजिक व्यवहार पर वे स्वयं ही एक चोर दृष्टि डालें तो असलियत सामने होंगी . नारीवाद का झंडा लिए कितनी स्त्रियाँ ऐसी होंगी जो अपने परिवार की अन्य स्त्रियों के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकारते हुए उनको यथोचित सम्मान दे सके , दिला सके . अपने लिए हक़ की मांग करती हुई इन स्त्रियों के बीच ही कुछ ऐसी स्त्रियाँ भी मिल जायेंगी जिनका अपनी सास अथवा बहू ही नहीं , अन्य स्त्रियों के प्रति भी बहुत ही असम्मानजनक व्यवहार होता है . और ये स्त्रियाँ पढ़ी -लिखी संभ्रांत परिवारों की हैं . दहेज़ विरोधी होने का मुलम्मा चढ़ाये कितनी स्त्रियाँ इस बात पर सहमत होंगी की उनके घर दहेज़ लिया या दिया नहीं जाएगा , नारी के लिए सम्पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग करने वाली कितनी स्त्रियाँ होंगी जिन्होंने अपने परिवारों में भ्रूण हत्या का विरोध किया होगा , बताएं जरुर क्योंकि इस पर ही तो नारी सशक्तिकरण के आंकड़े तय किये जायेंगे .
सैंतालिस वर्ष की उम्र में जब एक बुजुर्ग ने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया तो मैं चौंक उठी , क्योंकि उस परिवार में सबसे समृद्द और सबसे ज्यादा कमाऊ उनकी सबसे छोटी पुत्री दूर शहर में पूर्ण आत्मनिर्भर जीवन यापन करती हुई उनके लिए विभिन्न सुविधाएँ जुटाती रही है . उसी परिवार की एकमात्र पुत्रवधू सर पर आँचल लिए बड़े हो चुके बेटे के जूते लाने से लेकर हर सदस्य की फरमाईश के अनुसार कार्य करने में जुटी रहती है . उक्त आत्मनिर्भर युवती की माताजी अपनी बहु के प्रति बेहद कठोर व्यवहार रखते हुए पोते के खाना पसंद नहीं आने पर थाली उठा कर फेंक देने जैसे बर्ताव को सही ठहराते हुए बहु के काम में मीनमेख निकालती मिल जायेंगी .
ये सिर्फ एक दो उदहारण है , ऐसे अनेकानेक मिल जायेंगे .
यहाँ इसे लिखने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि मैं सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखती . मुझसे असहमत होने से पहले जान ले कि ये जीवन के अनुभव है , महज किताबी ज्ञान नहीं . महज कुछ गोष्ठियों में सम्मिलित होकर , नारी सशक्तिकरण पर भाषणबाजी कर हम किसी मुकाम पर नहीं पहुँच सकते.
"फिर कभी मांग लेंगे दुनिया से हक़ अपना
अभी तो लडाई घर में बड़ी लम्बी है "
नारियों के लिए स्वयं नारियां आगे आये , परिवारों और समाजों में अन्य स्त्रियों के अधिकार और विकास के लिए सहयोगी बने . परिवार में प्रत्येक स्त्री के सम्मान को स्वयं स्त्री ही सुरक्षित करे , अपने अधिकारों पर बात करते हुए अन्य स्त्रियों के प्रति अपने कर्तव्यों को ना बिसराएँ , परिवार में स्त्री के विरुद्ध होने वाले अन्याय अथवा अत्याचार के खिलाफ डट कर खड़ी हो , स्त्री सशक्तिकरण परिवार से प्रारंभ होकर समाज ,देश और सम्पूर्ण मानवजाति तक पहुंचे . प्रत्येक स्त्री जड़ से शुरुआत करें , हमें किसी एक दिवस की आवश्यकता नहीं होगी , हर दिवस हमारा हो ....
यह स्वप्न पूर्ण होने की आशा रखते हुए फिलहाल इस "वीमेंस डे" की बधाई भी स्वीकार कर लें !!