मणिपुर में इतने सैनिक मरे.
कश्मीर में उग्रवादियों ने पर सेना के काफिले पर हमला किया.
छत्तीसगढ में कैम्प पर धावा बोला .
बारुदी सुरंग में उडा दी गई जीप मे इतने शहीद हुए. अपने शरीर के अँगो को खो बैठने वालों की तो सूचना भी नहीं मिलती.
इक्का दुक्का रोज मरने वालों की तो ऐसे भी कोई गिनती नहीं....उन्हें अखबार के एक नामालूम कोने में जगह मिलती है हालाँकि सैनिकों के कठिन जीवन की जानकारी का फिल्मांकन करते हुइ उनकी कार्यप्रणाली की सूचना लीक करने में कोई कोताही नहीं होती. तारीख बदली,खबर बदल जाती है.
बडे घोटालों, सामाजिक असमानता, सांप्रदायिकता , नारी शोषण की खबरों , उन पर प्रतिक्रिया , धरने , मोमबत्ती मार्च करने वालों की सलेक्टिव संवेदनशीलता ऐसे मौके पर जाने किस पाताल लोक में समाई होती है.
हो भी क्यों न!
नेता,अभिनेता,व्यवसायी, लोकसेवकों , समाजसेवकों की संतानें जो यह पेशा /पैशन नहीं अपनाती. कठोर अनुशासन से बँधे सैनिक न पटरिया रोक कर आंदोलन कर सकते हैं और न ही भीषण दर्द सहकर कमजोर पड़ते हुए अपने साथियों के लिये नियम के विरुद्ध जा सकते हैं. एक प्रकार से उचित ही है कि ऐसे डरपोक, संवेदना हीन, स्वार्थी , सुविधाभोगियों लोगों के साये से सेना बची ही रहे. मगर क्या वे हमारे कुछ आँसुओं के हकदार भी नहीं. सोचा कई बार होगा मगर गौतम राजऋषि के स्टेटस ????ने जैसे सूखे घाव की परत हटाई.
यह सिर्फ एक मेजर अथवा कर्नल की पीडा नहीं प्रत्येक सैनिक और उससे जुडे , उसके परिवार , मित्रों की भी है. प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति की पीडा है.
कोफ्त होती है बहुत . आखिर कितने कृतघ्न होते रहेंगे हम कि उनके शौर्य प्रदर्शन में सहयोगी न भी हो सकें तो कम से कम उन्हें बता सकें कि उनके दुख में हर माँ का कलेजा छलनी है, हर बहन की दुआ का धागा उनकी खुशहाली भरे जीवन के लिये अभिमन्त्रित है.
यह लिखने का तात्पर्य यह कत्तई नहीं कि हमने कोई बीडा उठाया है या फ़िर खुद ऐसा कुछ कार्य कर लिया है बस यह बताना है कि उनके दुख में हमारी भी आंखें नम रहती हैं. वे थके मांदे भयभीत अनगिनत जीवन के प्रेरक तत्व हैं , संजीवनी हैं.
आपके त्याग बलिदान , शौर्य, और पहरेदारी से निरपेक्ष रह सकने वाले गुनहगार हैं.
इन्हें क्षमा मत करना!
कश्मीर में उग्रवादियों ने पर सेना के काफिले पर हमला किया.
छत्तीसगढ में कैम्प पर धावा बोला .
बारुदी सुरंग में उडा दी गई जीप मे इतने शहीद हुए. अपने शरीर के अँगो को खो बैठने वालों की तो सूचना भी नहीं मिलती.
इक्का दुक्का रोज मरने वालों की तो ऐसे भी कोई गिनती नहीं....उन्हें अखबार के एक नामालूम कोने में जगह मिलती है हालाँकि सैनिकों के कठिन जीवन की जानकारी का फिल्मांकन करते हुइ उनकी कार्यप्रणाली की सूचना लीक करने में कोई कोताही नहीं होती. तारीख बदली,खबर बदल जाती है.
बडे घोटालों, सामाजिक असमानता, सांप्रदायिकता , नारी शोषण की खबरों , उन पर प्रतिक्रिया , धरने , मोमबत्ती मार्च करने वालों की सलेक्टिव संवेदनशीलता ऐसे मौके पर जाने किस पाताल लोक में समाई होती है.
हो भी क्यों न!
नेता,अभिनेता,व्यवसायी, लोकसेवकों , समाजसेवकों की संतानें जो यह पेशा /पैशन नहीं अपनाती. कठोर अनुशासन से बँधे सैनिक न पटरिया रोक कर आंदोलन कर सकते हैं और न ही भीषण दर्द सहकर कमजोर पड़ते हुए अपने साथियों के लिये नियम के विरुद्ध जा सकते हैं. एक प्रकार से उचित ही है कि ऐसे डरपोक, संवेदना हीन, स्वार्थी , सुविधाभोगियों लोगों के साये से सेना बची ही रहे. मगर क्या वे हमारे कुछ आँसुओं के हकदार भी नहीं. सोचा कई बार होगा मगर गौतम राजऋषि के स्टेटस ????ने जैसे सूखे घाव की परत हटाई.
यह सिर्फ एक मेजर अथवा कर्नल की पीडा नहीं प्रत्येक सैनिक और उससे जुडे , उसके परिवार , मित्रों की भी है. प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति की पीडा है.
कोफ्त होती है बहुत . आखिर कितने कृतघ्न होते रहेंगे हम कि उनके शौर्य प्रदर्शन में सहयोगी न भी हो सकें तो कम से कम उन्हें बता सकें कि उनके दुख में हर माँ का कलेजा छलनी है, हर बहन की दुआ का धागा उनकी खुशहाली भरे जीवन के लिये अभिमन्त्रित है.
यह लिखने का तात्पर्य यह कत्तई नहीं कि हमने कोई बीडा उठाया है या फ़िर खुद ऐसा कुछ कार्य कर लिया है बस यह बताना है कि उनके दुख में हमारी भी आंखें नम रहती हैं. वे थके मांदे भयभीत अनगिनत जीवन के प्रेरक तत्व हैं , संजीवनी हैं.
आपके त्याग बलिदान , शौर्य, और पहरेदारी से निरपेक्ष रह सकने वाले गुनहगार हैं.
इन्हें क्षमा मत करना!