जब माँ थीं तब छोटी छोटी पुरानी चीजें सहेज लेने की उनकी आदत पर सब बहुत खीझा करते थे. अनुपयोगी वस्तुओं का अंबार हो जैसे... दादी तो खैर उनसे भी अधिक सहेज लेने वाली थीं.
पापा का खरीदा पहला बड़ा रेडियो, शटर वाली पुरानी टीवी, पुराने ड्रम ,बारिश के पानी में भीग कर फूली हुई चौकी, जंग खाये लोहे के बक्से , घिसा पिटा कूलर जाने क्या क्या..
माँ की ढ़ेरों साड़ियाँ एक छोटा सा ढ़ेर जैसा इधर उधर बिखरी रहती थीं. रसोई में बरतन, कड़ाही आदि भी ज्यादातर पुराने घिसे, जले कटे ही रहते थे.
अचानक मेहमान के आने पर पुरानी मोच खाई गिलासें, अलग अलग साइज की कटोरियाँ , चिकनाई लगी ट्रे, छोटे चाय के कप ही काम में आते क्योंकि ऐन वक्त पर उनकी उस आलमारी या कमरे की चाबियाँ गुम रहती थीं. सूटकेस, पेटियों और दरवाजे के ताले तोड़े जाने के उदाहरण सैकड़ों में रहे होंगे, ऐसा लगता है मुझे.
मगर जब उनके आखिरी समय के बाद उनकी अस्थियों के साथ उनके कमरे की चाबी आई तो उनके कमरे का दरवाजा खोलती मैं दंग थी- कमरे में एक भी चीज बेतरतीब नहीं थी. सफर पर रवाना होने के समय बदलने वाली एक साड़ी के अतिरिक्त कुछ भी बिखरा हुआ नहीं था... सभी साड़ियाँ/वस्त्र आदि बहुत करीने से जमाये हुए आलमारी में थे.
माँ पर उनके बिखरे से साम्राज्य के लिए उन पर झुँझलाती रहने वाली मैं कितनी स्तब्ध हुई!
कितना अजीब खाली-खाली लगा मुझे , बता नहीं सकती शब्दों में...
मन करता रहा कि कहूँ माँ से कि यह बेतरतीबी ही तुम्हारा जीवन थी. समेट लेने को हम बेकार ही कहते रहे.
जिनके लिए थे उनके दुख, उनकी चिंताएं, उनका श्रम - उनका जीवन उनके बिना भी चल रहा और बहुत बेहतरीन चल रहा...
जैसे सब कुछ माया-सा था. जाने वाला अपने साथ सब समेट ले गया.... अपना जीवन, अपना दुख, अपनी चिंताएं!!
कुछ भाव इतने अमूर्त होते हैं कि उन्हें बस खाली जगहों से ही महसूसा जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंजैसे सब कुछ माया-सा था. जाने वाला अपने साथ सब समेट ले गया.... अपना जीवन, अपना दुख, अपनी चिंताएं!!
जवाब देंहटाएंसच ही तो है , सारी चिंता ,दुःख इस संसार की ही मोह माया में होते हैं ।
भावुक कर देने वाला संस्मरण ।
संस्मरण की अंतिम पंक्तियाँ भावविह्वल कर मन छू गयी।
जवाब देंहटाएंमन से जुड़ी स्मृतियां अनमोल खज़ाना होती हैं।
जैसे सब कुछ माया-सा था. जाने वाला अपने साथ सब समेट ले गया.... अपना जीवन, अपना दुख, अपनी चिंताएं!!
जवाब देंहटाएंभावमय करता संस्मरण
मन में जागता यह तीव्र विराग कितनी रिक्तता और सन्नाटा भर जात है !
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