शुक्रवार, 7 मई 2010
इंसानियत....
दुनिया में अच्छे और बुरे कहलाने वाले हर प्रकार के इंसान है ...कहलाने वाले इसलिए कि हमेशा हर अच्छा दिखने वाला अच्छा और बुरा दिखने वाला बुरा ही हो , यह जरुरी नहीं ...हर इंसान अपने भीतर राम और रावण को साथ लेकर जीता है ...जो उससे क्रमशः अच्छे और बुरे कर्म करने को प्रेरित करता है .....जीवन -यात्रा में कई घटनाएँ होती हैं हमारे आस- पास जो बताती हैं कि तमाम बुराईओं के अपने फन उठाये खड़े होने के बावजूद इंसानियत मरी नहीं है ...मरेगी नहीं ...मुट्ठी भर लोगों में ही सही ...जिन्दा है ...रहेगी और जब तक ये मुट्ठी भर लोग रहेंगे ...विश्वास कायम रहेगा .....
एक बार गर्मी की तपती दुपहरी में अपनी किसी बहुत ही करीबी सम्बन्धी को देखने के लिए टी बी हॉस्पिटल जाना पड़ा ...साथ में दो वर्ष की छोटी बच्ची ...मोपेड पर कई किलोमीटर का सफ़र ....हालाँकि पानी की बोतल हमेशा साथ रहती थी मगर इस भयंकर गर्मी में बोतल खाली होते देर नहीं लगती ...घर लौटते रास्ते में अचानक ही पानी-पानी कर रोने चिल्लाने लगी ....दूर- दूर तक सूनी सड़क...इक्का दुक्का खुली हुई दुकाने ....सामने एक मिठाई की दूकान नजर आई ... ..सोच कर कदम बढ़ गए कि मिठाई की दूकान में पानी की क्या कमी होगी...मगर होटल मालिक ने साफ़ इनकार कर दिया ...पानी सिर्फ खाने के ऑर्डर पर ही दिया जा सकता है ... मैंने कहा कि बच्ची को बहुत तेज प्यास लगी है ...अभी खाने के लिए कुछ लेना नहीं है ...मगर होटल मालिक अपनी जिद पर अड़ा रहा ... आखिर मैंने सोचा कि इस बहस का कोई फायदा नहीं है ...बच्ची का रोना देखा नहीं जा रहा था इसलिए मैं पति से पैसे लेने के लिए मुड़ी ताकि कुछ ख़रीदा जा सके ...उस दुकान के पास ही एक लोहे- लक्कड़ की दूकान भी थी ...उसका मालिक बैठा हुआ हमारी बातचीत सुन रहा था ...जैसे ही मैं मिठाई की दुकान से बाहर आई , वह उठ कर अपनी दुकान से बाहर आया और बोला ..." बहन जी , आपको पानी चाहिए ना ...और कहते हुए अपनी पानी की बोतल उठा लाया ....धन्यवाद कहते हुए मैंने पानी की बोतल भरी ...उस दुपहर ने अपने साथ हमेशा अतििरिक्त पानी रखने का सबक तो दिया ही ...इंसानियत पर विश्वास बनाये रखने का आश्वासन भी ....
क्या परिस्थितियां होती हैं जो एक मिठाई की दुकान वाले को पत्थर ह्रदय बना देती हैं जो दिन- रात जीते जागते इंसानों से घिरा रहता है ...और वे कौन सी परिस्थितियां होती हैं जो लोहे -लक्कड़ का कारोबार करने वाले व्यापारी के दिल में इंसानियत का जज्बा मिटाने में कामयाब नहीं होती ...
ये मुट्ठी भर लोग ही हैं जो इंसान और इंसानियत पर विश्वास को अविश्वास में बदलने नहीं देते ...ईश्वर इन्हें बनाये रखे ....
आँखों से चुराकर पानी वे बेच देंगे
जवाब देंहटाएंऐसा होता है
मिठाईवाला (बड़ा !!) व्यापारी होगा और कबाड़वाला ---
तमाम बुराईओं के अपने फन उठाये खड़े होने के बावजूद इंसानियत मरी नहीं है
जवाब देंहटाएंसच कहा...ईश्वर इन्हें बनाये रखे!!
जवाब देंहटाएंSahmat
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख!
जवाब देंहटाएंहम भी सहमत हैं!
वाणी जी,
जवाब देंहटाएंमैं भी यही मानता हूं कि इस दुनिया में इंसान जाति, धर्म, नस्ल के आधार पर नहीं बंटे होते है...वो सिर्फ दो तरह के होते हैं...अच्छे या बुरे...हां ये हो सकता है कि कभी अच्छा बुरा बन जाए या बुरा अच्छा बन जाए...
जय हिंद...
Vani,bada sundar sansmaran likha jo manme wishwas dila gaya..duniyame dono tarah ke log maujood hain..rahenge..
जवाब देंहटाएंसही कहा कुछ लोग हैं जो इंसान और इंसानियत पर विश्वास को अविश्वास में बदलने नहीं देते। ईश्वर इन्हें बनाये रखे!
जवाब देंहटाएंbilkul sahi ,achhe aur bure insaan ki aaju baju ki paristhiti par nirbhar nahi karta,andar se insaaniyat honi chahiye.sunder likha hai.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संस्मरण...ऐसे लोगों से ही इंसानियत और विश्वास दोनों बचे हुए हैं...
जवाब देंहटाएंमिठाई वाला उस समय भी अपने व्यापार की ही सोच रहा था....और मजबूरी से लाभ कमाना चाहता था ....
अशुद्ध --- शुद्ध कए --- कई
जवाब देंहटाएंअदा --- अड़ा
[ गिरिजेश भाई से प्रेरित होकर यह करने लगा हूँ पर
उनके जितना कर पाना अपने मान का कहाँ ! ]
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अच्छे और बुरे लोगों पर 'कुछ अन्य भी' पोस्टें
देखने को मिलीं पर वहाँ इस विषय का सहज प्रवर्तन
नहीं है बल्कि वैयक्तिक कलुष-वमन ही अधिक है !
आपने इस विषय का बड़ा सहज प्रस्तुतीकरण किया,
जहां चीजें सोचने को प्रेरित करती हैं ! लघु-कहानी की
प्रवाह में !
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एक ही परिस्थितियों में अच्छे और बुरे हो जाने की
सही चर्चा की आपने , गोस्वामी तुलसीदास जी की
चौपाई की एक अर्द्धाली आपके सामने रख रहा हूँ ---
'' उपजहिं एक संग जल मांहीं |
जलज जोंक निज गुन बिलगाहीं || ''[ उत्तर - काण्ड ]
----- एक ही जल में कमल और जोंक दोनों मिल जाते हैं ,
इनका गुण स्वभाव - विभाजन कर देता है !
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अच्छी प्रविष्टि ! आभार !
''लघु-कहानी के
जवाब देंहटाएंप्रवाह में ! '' --- ऐसा पढ़ा जाय ! क्षमा चाहूँगा !
वक़्त बड़ी अजीब चीज़ है इसके एक पन्ने पर जो आदमी आपको अच्छा दिख रहा है ...इसके दूसरे पन्नो पर शायद न दिखे ..एक व्यक्ति जो अपने परिवार ओर परिवार वालो के लिए बहुत ज्यादा संवेदनशील है ....बाकि दुनिया के लिए कठोर हो सकता है ...ये चीज़े मनुष्यगत स्वभाव में होती है ...कही सिखाई नहीं जा सकतीमन्त्र कहानी याद है न आपको....एक अनपढ़ बूढ़ा कैसे आदमियत को रिप्रेसेन्ट करता था ....
जवाब देंहटाएंkabhi kabhi hamara perception hi kuch galat ho jata hai...waise badhiya aalekh
जवाब देंहटाएंनदियाँ के दो किनारे होते हैं,
जवाब देंहटाएंसिक्के के दो पहलू
बहुत कुछ कहता है आपका लेख।
ऐसे ही चन्द लोगो की वजह से तो इन्सानियत ज़िन्दा है.. किसी ने कहा भी है न..
जवाब देंहटाएं’घर से मस्जिद है बहुत दूर, मगर यू कर ले,
किसी रोते हुये बच्चे को, हसाया जाये’...
@ अमरेन्द्रनाथ त्रिपाठी
जवाब देंहटाएंलेखन त्रुटियों पर ध्यान दिलाने का बहुत आभार ...
कुछ लोगो के कारण आज भी इंसानियत जिन्दा है, वो मिठाई वाला क्या सच मै इंसान कहलाने के काबिल होगा????
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा।
जवाब देंहटाएंpancho ungliya ek samaan nahi hoti...aur sabhi insaan professional nahi hote.
जवाब देंहटाएंacchhi rachna.
bahut sundar prastuti..
जवाब देंहटाएंअभी तक यहाँ नहीं हुआ है
हैप्पी मदर्स डे...
लेकिन भारत में हो गया है...
शुभकामना...
बहुत ही सुन्दर संस्मरण..
जवाब देंहटाएंमानवीय संवेदनाओं को रेखांकित करता हुआ..
और कुछ कडवे सच भी बयाँ करता हुआ..
भगवान अनेक रूपों में सामने आते हैं।
जवाब देंहटाएंमिठाई की दुकान वाला निमित्त था यह अनुभव कराने में!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंव्यापारी ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाकर एक प्याऊ खोलता है अल्प समय के लिए और दूसरा इन्सान नफा नुकसान नहीं देखता वो हमेशा इंसानों में सम भाव रखता है |विडम्बना है की हम पैसे वालो को देखकर समझते है आज भारत ने कितनी उन्नति की है ?
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक संस्मरण |
सही कहा आपने.....ईश्वर इन्हें बनाये रखें...
जवाब देंहटाएंआनन्ददायक ।
जवाब देंहटाएंइस विषय पर अन्य प्रविष्टियाँ भी आयी हैं आपकी ! सहज ..ग्राह्य !
जवाब देंहटाएंघटनाएं लिखकर प्रविष्टियाँ मारक बना देती हैं आप !
आभार !