मुबारक हो ...हम एक बार फिर स्वतंत्र होने जा रहे हैं ...... एक बार फिर तरंगा लहराएगा , राष्ट्र गान गायेंगे , लड्डू या अन्य मिठाईयां बाटी जायेंगी ....विद्यालयों में तो फ़िल्मी गानों पर लटके झटके दिखाते छोटे- मोटे सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हो जाएँ शायद ... सार्वजनिक स्थलों पर परेड भी ...बस इस तरह मन जाएगा स्वतन्त्रता देवास ...हर वर्ष की भांति ही ...बस कलेंडर में वर्ष तिथि बदली होगी ...और क्या बदलेगा .....
गरीबी , अशिक्षा , भूखमरी , हिंसा , साम्प्रदायिकता ये सब कुंडली मारे ज्यों के त्यों बैठे रहेंगे ...लोकतंत्र और उदार होता रहेगा ...चाहे आर्थिक और सामाजिक ढांचा चरमराता रहे , हिमालय की चोटियों से कोई ललकारता रहेगा , देश के विभिन्न कोनों से अलगाववाद की चिमनी से निकलता धुआं , खाप पंचायतों की भेंट चढ़े कुछ और परिंदे , हमारा स्वतंत्रता दिवस बदस्तूर बिना किसी रूकावट यूँ ही मनाया जाता रहेगा ....
बल्कि मेरा तो मानना है कि सरकारी संस्थानों और विद्यालयों में स्वतंत्रता दिवस समारोहों की रिकॉर्डिंग कर रख ली जानी चाहिए और हर वर्ष उसे विडियो पर घर बैठे देख लेना चाहिए .....फालतू आने जाने में बच्चे और बड़े परेशान क्यूँ ....हर वक़्त किसी हादसे की चपेट में आने का डर क्यूँ पालें ... सुरक्षा व्यवस्था पर इतना खर्च क्यों ....समय और धन दोनों की ही बचत हो जायेगी ...एक औपचारिकता को निभाने के लिए इतना ताम जहां क्यूँ ...माफ़ कीजिये यदि आपको इस लेख में कुछ तल्खी नजर आये ....मगर कवि रामनाथ सिंह जी की इन पंक्तियों को पढ़कर बताये ....कि हम कितने आज़ाद है ...
'सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है
दिल पे रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है'।
बेशक रस्मी ही मनाएं स्वतंत्रता दिवस ...एक बार याद कर लें उस महापुरुष को जिसने रामराज्य के सपने देखे थे...उसी देश में राम के अस्तित्व को ही नकारा जा रहा है और रावण असलियत का जामा पहने अट्टहास करता नजर आ रहा है ... स्वतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत करने का सन्देश प्रसारित किया जाता है ....आखिर हमारी सुरक्षा इतनी असुरक्षित क्यूँ हो गयी है जो 64 वर्षों से हर बार पहले -से कड़ी होने के बाद भी सुरक्षित नहीं ...
स्वतंत्र होने का औपचारिक जश्न मानते सरकारी मुलाजिम और लोकसेवक , देश प्रेम की सच्ची भावना क्या है ...क्या होनी चाहिए ...देखिये आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने क्या कहा ....
" जन्मभूमि का प्रेम , स्वदेश -प्रेम यदि वास्तव में अंतःकरण का कोई भाव है तो स्थान के लोभ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ... इन लोभ के लक्षणों से शून्य देश प्रेम कोरी बकवाद या फैशन के लिए गढ़ा हुआ शब्द है ... यदि किसी को अपने देश से प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य , पशु , पक्षी , लता , गुल्म , पेड , पत्ते , वन , पर्वत , नदी , निर्झर सबसे प्रेम होगा ...सबको वह चाह भरी दृष्टि से देखेगा , सबकी सुध करके वह विदेश में भी आंसू बहायेगा ....जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किसी चिड़िया का नाम है , जो यह भी नहीं सुनती के चातक कहाँ चिल्लाता है ...जो आँख भर यह भी नहीं देखते के आम प्रणय सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं , जो यह भी नहीं झांकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है , वे यदि दास बने ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बता कर देश प्रेम का दवा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि " भाइयों , बिना परिचय का यह प्रेम कैसा ...? जिनके सुख-दुःख के तुम कभी साथी नहीं हुए , उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो , यह समझते नहीं बनता । उनसे कोसों दूर बैठे बैठे , पड़े पड़े , या खड़े खड़े तुम विलायती बोली में अर्थशाश्त्र के दुहाई दिया करो , पर प्रेम का नाम उनके साथ ना घसीटो । "
प्रेम हिसाब किताब की बात नहीं है । हिसाब - किताब करने वाले भाड़े पर मिल जाते हैं पर प्रेम करने वाले नहीं । हिसाब किताब से देश की दशा का ज्ञान मात्र हो सकता है । हित- चिंतन और हित- साधन की प्रवृत्ति इस ज्ञान से भिन्न है । वह मन के वेग पर निर्भर है , उसका सम्बन्ध लोभ या प्रेम से है जिसके बिना आवश्यक त्याग का उत्साह हो ही नहीं सकता है । जिसे ब्रज की भूमि से प्यार होगा इस प्रकार कहेगा ...
नैनन सो रसखान जबै ब्रज के बन बाग़ तडाग निहारौं
केतिक ये कलधौत के धाम करीक के कुंजन ऊपर बारौं ..
रसखान तो किसी की लकुटी अरू कमरिया पर तीनों पुरों का राजसिंहासन तक त्यागने को तैयार थे , पर देश प्रेम की दुहाई देनेवालों में से कितने अपनी किसी थके -मांदे भाई के फटे पुराने कपड़ों और धूल भरे पैरों पर रीझकर या कम से कम खीझकर , बिना मन मैला किये कमरे की फर्श भी मैली होने देंगे ...
अब पूछिए के जिनमे वह देश प्रेम नहीं है उनमे वह किसी प्रकार भी हो सकता है ...? हाँ , हो सकता है ....परिचय से ...सान्निध्य से .....
जय हिंद ..
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक लेख के लिए आभार
सांस का हर सुमन है वतन के लिए
जिन्दगी एक हवन है वतन के लिए
कह गई फ़ांसियों में फ़ंसी गरदने
ये हमारा नमन है वतन के लिए
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
क्या बात कही है वाणी जी, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
जवाब देंहटाएं'हिसाब किताब रखने वाले भाड़े पर मिल जाते है पर प्रेम करने वाले नहीं'
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचारोत्तेजक आलेख
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसादर
समीर लाल
स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचार....
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार के सभी सदस्यों को शुभकामनाएं और बधाई !
आपको और आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब आलेख, शुभकामनाएं और स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बात तो आपने ठीक कही है .पर देश तो अपना ही है
जवाब देंहटाएंआजादी का दिन बहुत मुबारक हो..
सारे उठाये गये विषय साँप से कुंडली मार बैठे हैं भविष्य पर। हालात चिन्तनीय है, उत्सव मनाने का समय नहीं। स्वतन्त्रता पर इतरा लें और पुनः कार्य पर लग जायें।
जवाब देंहटाएंएक ललित निबंध मगर मन खिन्न कर गया !
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लेख. स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंक्या बात है वाणी जी ......?
जवाब देंहटाएंआजादी की बंधी गठरी खोल दी ......अरे बंधी ही रहने दीजिये .....
और हम यूँ ही कवितायेँ लिख लिख मना लेंगे ये दिन .....आज़ादी का .....
यहाँ तो लोग एक झंडा तक फहराने को डरते हैं .....क्या यही आज़ादी है .....???
वाणीजी मुझे तो आपके आलेख में तल्खी नज़र नहीं आई बल्कि और बहुत कुछ भी लिखा जा सकता है |सलामी के दौरान बच्चो का बेहोश होना , नेताओ का देर से पहुंचना?घिसे हुए फ़िल्मी देशभक्ति गाने बजना |और भी बहुत कुछ मन को उदिग्न बना देता है |बहुत अच्छा आलेख |
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख ...आज ध्वजारोहण करने में समय की बर्बादी लगती है ...वो देश के प्रति कितनी इमानदारी निबाहेंगे नहीं मालूम ...
जवाब देंहटाएंआखिरी पंक्तियों में छुपा कन्सेप्ट हैरान कर गया। सचमुच...काश कि ऐसा हो पाता
जवाब देंहटाएंराम का नाम लेने पर अब सांप्रदायिक ठहराया जाता है और गांधी कांग्रेस आई के एक ऐसे ब्रांड अम्बेसडर बन कर रह गए हैं, जिनके नाम पर तो राजनीती की दूकान चलाई जा सकती है,पर उनके सिद्धांतों को अछूत ,देश की तरक्की में बाधक मान लिया गया है...
जवाब देंहटाएंआचार्यवर का लिखा पढ़वाकर आपने बड़ा उपकार किया है.....बाकी तो इस दिवस पर जो भावनाएं आपके मन में उठीं, वह हमारे मन को भी घेर व्यथित करती रहीं..
कराहता हुआ देश बेचारा क्या कर सकता है..?
जवाब देंहटाएंआजादी मुबारक हो!
आज़ादी दिवस ..पर कैसी आज़ादी ?
जवाब देंहटाएंइसके सही मायने में कोई भी राजनीति पार्टी या नेता खरा उतार सका खुद को .....फिर भी
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
स्वतंत्रता दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनाएं
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