मेंम साहब की पामेरियन
कुत्तों के लगातार भौंकने की आवाज़ और गाड़ी के होर्न , कारिंदों की चहल -पहल से अनुमान लगाया कांता ने कि नगरनिगम की गाडी आ गयी है ...आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए ...
बोरी उठाये गली के कुत्तों के पीछे दौड़ते कर्मचारी और उनसे बच निकलने की कोशिश कुत्तों की ...बिल्ली चूहे या चोर पुलिस के खेल सा दृश्य दृष्टिगोचर होने लगता है ...आजादी की कीमत तो ये कुत्ते भी खूब समझते हैं .... गली के कोने पर कूं - कूं करता पड़ा हुआ टौमी कराह रहा था ..पूरे दो दिन से वही एक जगह पड़ा हुआ ....कुछ दिन पहले उसकी पीठ पर घाव का निशान देखा था कांता ने ...दूसरी गली के कुत्तों के साथ जंग में घायल हो गया था बेचारा ...उसके होते किसकी मजाल थी कि किसी दूसरी गली का कुत्ता आये और भौंक कर चला जाए ...मगर इस बार घाव गहरा था ....अब तो बिलकुल ही हिलना डुलना मुश्किल था ...
पिछले कई महीनों से देख रही थी कांता इसे ...आस पास के घरों से रोटी मिल जाती थी और गली के कोने में ऐसे अलसाया पड़ा रहता , मगर जैसे ही कोई अजनबी नजर आता कान खड़े हो जाते उसके , दौड़ा भगा चलता आता ...भोंक भोंक कर नाक में दम कर देता ...कई बार कांता जब सब्जी लेने या किसी काम से घर से निकालती तो वह भी साथ हो लेता ...बाकायदा गली के आखिरी छोर तक उसके साथ चलता ....बच्चे हँसते थे उसपर ...बौडीगार्ड है आपका ....मोहल्ले वाले उसकी वफ़ादारी से बहुत प्रसन्न थे यहाँ तक कि कांता की कर्कशा पड़ोसन भी जो जब तब हर किसी से भिड जाती थी ...माली , सब्जी वाला , पेड -पौधों वाला , मोची ... ..मजाल है जो आजतक किसी को उसने वाजिब कीमत दी हो ..काम पूरा करवाने के बाद थोड़े बहुत पैसे बहुत एहसान के साथ पकड़ा देती इन लोगों को और यदि किसी ने साहस कर लिया पूरी कीमत मांग लेने का तो फिर उसकी खैर नहीं ....ऐसी महिला यदि किसी कुत्ते से खुश है , टिके रहने देती है गली में तो उसमे कुछ न कुछ ख़ास तो पक्का ही है ...
मगर घाव खाया टौमी ( नाम कांता ने ही दिया था ) जब से बीमार पड़ा है , उसके घाव में कीड़े पड़ गए हैं , वही महिला हाय तौबा मचाये रखती है ....जब भी कांता नजर आ जाती है उसे तो तीखा बोले बिना नहीं रहती ..." रोटी दे दे र हिला लियो ...कत्तो बास मार है ...लोगां ना कियां क्यां काम सूझ ...आपक घर में क्यूँ ना राख लेव " (रोटी खिला कर मुंह लगा लिया इसे ...कितनी बदबू मार रहा है ...लोगों को भी क्या क्या काम सूझते हैं , अपने घर में क्यूँ नहीं रख लेते )....
आखिर कांता ने नगरनिगम के पशु विभाग में फ़ोन कर बीमार कुत्ते की इत्तला कर दी ...और वही गाडी आ पहुंची थी उसे लेने ....इस हालत में टौमी भाग नहीं सकता था इस लिए आसानी से गिरफ्त में आ गया ....उसे ले जाते देख कांता को थोडा दुःख तो हुआ मगर उसे संतोष था कि पशु चिकित्सालय में उसका ठीक से इलाज़ हो सकेगा ...कम से कम उम्मीद तो यही थी ...
सुनो , रामलीला मैदान में सहकार मेला लगा है , तिब्बती मार्केट भी लगा हुआ है ...आज फ्री हूँ ...जो लाना है चल कर ले आओ ...फिर मुझे समय नही होगा तो जान खाओगी ...गाड़ी की धुलाई करते हुए कांता के पति ने पत्नी और बच्चों को कहा ...
दोनों बच्चे बड़े खुश हो गए ...हाँ हाँ, पापा चलिए , मुझे नयी डिजाईन की जैकेट लानी है ...शायद तिब्बती मार्केट में मिल जाए ...
व्यस्ततम बाजार में गाडी पार्क करते एक बड़ी सी गाडी पर कांता की नजर ठहर गयी ...उसकी खिड़की से एक सफ़ेद झक पामेरियन कुतिया झाँक रही थी ..."बेबी , मुंह अन्दर करो , डोंट क्राई"...उसकी मोटी -सी मालकिन गोदी में लेकर लाड़ दुलार कर रही थी ....बेबी के लिए एक अच्छा सा ब्लैंकेट देखना है , बहुत ठण्ड हो गयी है ..अपने पास बैठे व्यक्ति से कहा उसने ....
कांता को एकदम से टौमी याद आ गया ....देशी कुत्तों को कहाँ यह सब नसीब है ...बेचारे गली -गली भटकते रहते हैं , अक्सर दुत्कारे जाते हैं ...कोई तरस खाकर कुछ खिला दे तो ठीक वरना ....
तभी देखा उसने एक गन्दा सा लड़का , मिट्टी में सना कपड़े से उस महिला की गाडी साफ़ करता रिरिया रहा था.....दो रूपये दे दीजिये ...अपने पप्पी के मुंह में महंगे बिस्किट ठूंसती महिला ने मुंह फेर कर अपने ड्राईवर से कहा ," अरे , हटाओ इसे ...गाड़ी साफ़ कर रहा है या और गन्दी कर देगा ...हटाओ इसे यहाँ से "
कांता की उदासी बढती गयी ....नर्म बिस्तर , ममतामयी गोद , गरम कपड़े ,महंगा खाना .... देशी कुत्ते ही क्यों , बिना घर बार वाले अनाथ बच्चों , या घर -बार होकर भी मांगने को विवश बच्चों से भी अच्छे हैं ...विदेशी कुत्तों के नसीब.......एक गहरी सांस लेकर खुद को सामान्य रखने की कोशिश करती मेले की ओर बढ़ चले कांता के कदम ...
चित्र गूगल से साभार ....
सबका अपना अपना प्रारब्ध है।
जवाब देंहटाएंएक बहुत पुरानी बात किसी की याद आ गयी. कवि का नाम तो मालूम नहीं मगर वो अपना नाम कवि चोंच कहते है और रसखान के स्टाइल में लिखते हैं...:
जवाब देंहटाएं"मानुस हों तो वही कवि चोंच, बसों सिटी लन्दन के कही द्वारे , जों पशु हों तो बनो बुलडोग फिरों नित कार में पूंछ निकारे"
एक बात दिनकर जी की भी याद आती है...."दूध से स्वान को नहलाते हैं ... दूध दूध ओ वत्स!तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं..
सोचने वाली बात है....
bade log bade log !
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट.....सब प्रारब्द्ध ही है ...
जवाब देंहटाएंअपना अपना भाग!
जवाब देंहटाएंदिनकर जी ने यूँ ही थोड़े ही लिखा था...
जवाब देंहटाएं'श्वानों को मिलते दूध-वस्त्र
भूखे बच्चे अकुलाते हैं
माँ की छाती से चिपक
जाड़े की रात बिताते हैं"
कई बच्चों को तो आज भी माँ की गोद का ही सहारा है....पर श्वानो को दूध-वस्त्र से आगे बढ़..डिजाइनर कपड़े...बर्थडे केक...ए.सी... नर्म कम्बल..सब मिलने लगे हैं...
सही याद दिलाया - मेरे देखते देखते गरदन पर घाव लगने से मर गये या मरणासन्न हैं। घाव पड़ता है, फिर कीड़े, फिर राम-नाम-सत्त।
जवाब देंहटाएंटामी में विलायती नसल का अंश है। पर है गली का। गले में एक पट्टा। कभी किसी ने पालतू बनाने की कवायद की होगी!
अब देखा - उसके गले में भी घाव है। :-(
सोचने को विवश करती है आपकी ये पोस्ट्।
जवाब देंहटाएंअपनी अपनी किस्मत सबकी.
जवाब देंहटाएंbade log ke bade dog.
जवाब देंहटाएंसिवाय किस्मत के और क्या कह सकते हैं? सोचने को बाध्य करती रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भाग्य का खेल है।
जवाब देंहटाएंहाँ सोचने को मजबूर करती है ये पोस्ट. किन्तु कुछ बदलने वाला नही.
जवाब देंहटाएंभाग्य कह कर पीछा छुडा लेते है हम. ये तो पशु है.इंसानों के बच्चो साथ.....???? जानवर किस्मत वाले है उनकी जाती,धर्म,माता,पिता,खानदान कोई नही पूछता किन्तु इंसान का बच्चा किसी नाली या कचरे के ढेर पर मिल जाए तो........?????
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
जवाब देंहटाएंविचार-प्रायश्चित
अपना अपना भाग्य है..
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहा जा सकता है..
सोचने को विवश कर गई आपकी पोस्ट..
अपना अपना भाग्य है..
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहा जा सकता है..
सोचने को विवश कर गई आपकी पोस्ट.. दी....
मुझे टामी के बारे में सुनकर बहुत दुःख हुआ. पता है जो लोग कुत्तों से वास्तव में प्यार करते हैं, वो इस तरह से सड़कों पर काम करने वाले बच्चों के लिए इतने असंवेदनशील नहीं होते, वो लोग सभी सेप्यार करते हैं. लेकिन कुछ लोगों के लिए विदेशी नस्ल के कुत्ते पालना स्टेट्स सिम्बल होता है. वो कार वाली मेमसाहब ऐसी ही होंगी.
जवाब देंहटाएंमुझे कुत्ते बहुत पसंद हैं, पर ऐसे लोगों से सख्त नफरत है जो अपने देश के मजदूरों और गरीब आदमियों से ज्यादा विदेशी नस्ल के कुत्तों को अहमियत देते हैं.
ऐसी बातें बहुत दुःख देती हैं :(
जवाब देंहटाएंदुखद!
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सोचने पर विवश करती है ये पोस्ट |इश्वर ने सब प्राणियों को इस धरती पर भेजा है जीवंत |हमने अलग अलग ढंग से जीने का वर्गीकरण क्र दिया है |
जवाब देंहटाएंअपनी बात अपने सशक्त कही है -मगर शब्द पामेरियन नहीं बल्कि पामरेनियन है ,हो सके तो सुधार लें !
जवाब देंहटाएंव्यक्ति जब तक भाग्य मानकर चलता रहेगा वह गरीब ही रहेगा। उसे कर्म का सहारा तो लेना ही होगा।
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग्य है..............................आज समाज की वास्तविकता ही यही है।
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