शनिवार, 19 सितंबर 2009

क्यों भाई क्यों ..??

अभी एक दिन लिंक से लिंक जोड़ते हुए जब एक ब्लॉग पर पहुँची तो काफी लंबे अरसे से दिमाग में उमड़ घुमड़ रहा कुछ विचारों की शक्ल लेने लगा। किसी ब्लॉग पर एक मोहतरमा बता रही थी कि उन्हें ऑरकुट के जरिये उन्हें ब्लॉग पर एक भाई मिला ...न ना ...मैं यहाँ कुम्भ के मेले में बिछडे भाई की बात नही कर रही हूँ ..उनका मतलब था कि ऑरकुट पर उनकी एक व्यक्ति से जान पहचान हो गयी ..जिसे उन्होंने भाई कहा ...तो वह लड़का बहुत भावुक हो गया ..कि आज से पहले किसी ने उसे सोशल नेट्वर्किंग साईट पर भाई नही कहा था ...बहुत अभिभूत था वह
बात बचकाना सी है जिसे नजरंदाज कर आगे किसी दुसरे लिंक पर आगे बढ़ा जा सकता था ...मगर ये दिमाग ठस से वहीं पसर गया ...आगे यह पढ़कर की ...अब उनके इस भाई को ऑरकुट पर आना पसंद नही था जबकि उनकी जान पहचान इसी मध्यम से हुई थी...
यह है हमारे अधिकांश भारतीय मध्यमवर्गीय युवकों की सोच ...मैं कहना चाहती थी ...क्यों भाईजान ...जब ऑरकुट पर आना ..दोस्त बनाना इतना ही बुरा है तो आप यहाँ किस खुशी में तशरीफ़ लिए आते हैं ...जो कार्य वह उन लड़कियों और महिलाओं के लिए बुरा नही है ...जिनका जन्मे से ..विधि से ..या मन से आपका कोई रिश्ता नही है ...वही कार्य आपकी बहन के लिए बुरा क्यों है ...क्यों भाई क्यों ...??
यह वाकया हमारे समाज में दोहरी मानसिकता वाली सोच को प्रतिबिंबित करता है ...हमारे परिवारों में बहन बेटियों बहुओं के लिए अलग नियम कानून बनाये जाते हैं जबकि होने वाली पत्नियों और बहुओं के लिए अलग ...
जब शादी के लिए लड़की पसंद करने निकलेंगे तो उनके मापदंड कुछ और होते हैं ...और जब उसी लड़की को घर की बहु बनाकर ले आयेंगे तो उसके लिए अलग नियम कानून लागू कर दिए जाते हैं ...क्या यह हास्यास्पद नही है ...शादी से पहले जिस लड़की को आपने जींस पैंट सलवार कुरता में बेपर्दा ही पसंद किया हो ...अपने घर आने के बाद उससे अपेक्षा की जाए कि ...वह 6 गज की साड़ी लपेटकर...घूँघट नही तो कम से कम सर तो ढक कर ही रखे...उसकी शिक्षा , घरेलू कार्यों में उसकी दक्षता और रुचियों की पूरी जानकारी ली जाए मगर साथ ही उससे यह अपेक्षा रखी जाए की उसकी शिक्षा दीक्षा और रुचियाँ उनकी जरुरत के हिसाब से आर्थिक भार को कम करने में काम आए ना की उसके स्वयं के व्यक्तित्व के विकास में ..

अपने इन विचारों को शब्दों में बांधे हुए कुछ ज्यादा वक़्त हो गया है ...पहले लगा कि यह विषय नारी ब्लॉग पर लिखने के लिए ही ठीक रहेगा ..पोस्ट भी किया था मगर कुछ तकनीकी खामी थी ब्लॉग पर इसलिए प्रकाशित नही हो सका ...और इस आलसी मन से दुबारा पोस्ट किया नही गया ...अभी इसको यहाँ लिखने का भी एक कारण है ...अपनी टिपण्णी में महफूज़ भाई बार बार दी कह कर संबोधित कर रहे है ...अभिभूत हूँ मैं इस छोटे भाई की बड़ी बहन बनकर ...मगर डर भी लग रहा है ...भाई जान आप तो ऑरकुट सदस्यता पर पाबन्दी लगाने की बात नही करेंगे ना ...(हा हा)

24 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ यह दोहरी मानसिकता तो है मगर इसका कारण सामजिक सांस्कृतिक है या फिर जैवीय बुद्धि चकराती है !

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  2. बहुत सार्थक सवाल उठाया है आपने
    दोहरी मानसिकता पर प्रहार जरूरी है

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  3. sahii mudda uthaya aapne ... bhaai log ekdum badal jaate hain .. pad badalate hi mahaqamaa badal jaata hai ..

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  4. अभी बहुत समय लगेगा भेद भाव मिटने में । समाज में ऐसे लोगों की अधिकता है जो बड़ी बड़ी बात तो करते हैं पर जब खुद पर बन आती है तो सारी हेकड़ी मुंह के बल आ जाती है ।
    बहुत बढ़िया । आभार ।

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  5. कामना है कि आपका डर खतम हो जाये!

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  6. जैवीय बुद्धि ! अच्छा कारण बताया है अरविन्द जी ने ।

    अजीब-सा वाकया है । मानसिकता का मामला तो बनता ही है ।

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  7. aisi mansikta aam hai,par blog,orkut ne kai baudhik aur aatmiye rishte diye hain........yah bhi satya hai

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  8. dohri maansikta पर sateek prahaar किया है आपने ......... अच्छा lekh है

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  9. बहुत सुंदर बात लिखी आप ने , यहां लिख दी इस लिये पढ लिया, अगर कही ओर लिखती तो हम पढ भी नही पाते, क्योकि हम वहां कम ही जाते है :)

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. .
    .
    .
    अरविन्द मिश्र जी ने कहा:-

    "हाँ यह दोहरी मानसिकता तो है मगर इसका कारण सामाजिक सांस्कृतिक है या फिर जैवीय बुद्धि चकराती है !"

    बहुत गहरी बात कह दी अरविन्द जी, निश्चित ही इस पर शोध की आवश्यकता है। एक दो जगह और भी देखा है कि आप बहुत ही गहरा सोचते हैं हर मुद्दे पर...मुरीद हो गया हूँ आपका...

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  12. maakool sawaal!
    maansiktaa abhi bhi wahi hai badalne men samay lagega

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  13. बहुत ही सही मुद्दे को उठाया है आपने..
    ऐसी दोहरी नीति हमें हर कदम पर देखने को मिलती है ..
    इस तरह की अव्यावहारिकता पर न ही सिर्फ बहस की आवश्यता है अपितु ऐसी मानसिकता में बदलाव की तुंरत जरूरत है..
    लोगों को यह समझना बहुत ज़रूरी है की ऐसी भावनात्मक प्रताड़ना स्त्रियों के प्रति जघन्य कृत्य हैं..

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  14. समाज में व्याप्त दोहरे मापदण्ड के प्रति आपकी चिन्ता जायज है।
    विचारणीय प्रश्न उठाया है आपने।

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  15. सार्थक आलेख. यही दोहरे मापदंड हमारी सोच को खोखला बना रहे हैं.

    बहुत बढ़िया मुद्दा.

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  16. वाणी जी दरअसल ये दोहरी मानसिकता ..............हमने मिक्स कर ली हैं अपने आचरण में ...................अरविन्द जी ने कह ही दिया हैं जैवीय बुध्ही चकराती हैं ...................पर यह इतनी छोटी बात नहीं ..................असल में नारी के खिलाफ़ षडयंत्र आदि काल से चल रहे हैं ...........और बहुत बारीकी से .............वो जिस घर में रहती हैं उसी घर में ................अग्नि परीक्षा सीता ही देती हैं वाणी जी ...............और हमारे राम को शर्म नहीं आती ....................इस्लाम में ७२ हज़ार अप्सराएँ ज़न्नत का पर्याय बन जाती हैं ..........................पाकिस्तानी शायरा सारा शगुफ्ता याद आती हैं ...................."यह कैसा घर ? कि
    औरत और इजाज़त में कोई फर्क नहीं ?,कभी मैं दीवारों में चिनी गयी, कभी बिस्तर मैं चिनी जाती हूँ ,..............औरत तू किस कुनबे कि माँ हैं ?,ज़िनाह-बिल्ज़ब्र की ?, कैद की ?, बेटों के बातें हुए जिस्म की ? ".........................

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  17. इसमें दोहरी मानसिकता कहाँ है... यह तो सरासर सनकपन है.. निरी संकीर्णता, घटिया सोच

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  18. चलिये, अच्छा है आपने यहां लिखा। अन्यथा पढ़ भी न पाते। और भारतीय पुरुष समाज में सम्बन्धों को ले दुमुहां पन है ही!

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  19. बहुत सही आलेख है आपने तो हमे भी डरा दिया हमारे भी कई बेटे और भाई ताऊ बेटियाँ बहने हैं इस ब्लाग पर । अब उनसे एक बार जरूर स्पश्टी करण ले लेंगे। शुभकामनायें

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  20. hahahahahahahahaha.....di......... main aisa nahi hoon.............. chota bhai hoon......... chote bhai ki tarah hi rahoonga........

    par ek baat boloon di........ ?

    main apni maa se bahut pyar karta tha........ mujhe wo saari baaten yaad hain .......... jo main apni maa se kiya karta tha...... main sirf 11 saal ka tha...... jab wo chalin gayin........

    par mujhe unke saath bitaye huye har pal yaad hain.......... aur main sab mein apni maa hi khojta hoon......... yahan tak ki main apni behen ka bhi comparison apni maa se hi karta hoon........

    shayad yahi reason hai......... ki meri kabhi kisi ladki se dosti nahi huyi....... qki sab mein main apni maa hi khojta hoon/tha..... aur jinse huyi ....... wo pareshan ho ke bhaag gayin......... hehehehehehehehehe.....ki hamesha maa maa hi karta rehta hai........ itna pampered boy nahi chahiye............ hihihihihihi.......

    Di.......kuch log aise hote hain...... jo rishte to bana lete hain........ par nibha nahi paate......... par mera yaqeen kariye......... main har rishte ko bahut achche se nibhata hoon......... poori maryaada ke saath.........

    yeh ORKUT life nahi hai.......... yahan rishte log bana to lete hain.......... par choonki har cheez virtual hoti hai......... to isiliye zabardasti possesiveness dikhaate hain....... par rishta ....to rishta hota hai......... unko poore tarike se........ maryaada mein rehte huye nibhanan hi chahiye........


    mera yaqeen kariye........... mujh se aapko kabhi aisi shikayat nahi hogi......... aapko di kaha hai.........

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  21. बहुत कुछ कह डाला आपन इन चंद पंक्तियों में
    आभार.
    मेरे दो लघु आलेख एक खबरिया चैनल रचनाकार पर व दूसरा बस के हादसों का शहर हिंदुस्तान का दर्द पर प्रकाशित हैं उन्हें भी पढें व अपनी प्रतिक्रिया दें
    rachanaravindra.blogspot.com

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