ज्ञानवाणी
दिल दिमाग की रस्साकशी
बुधवार, 19 जुलाई 2023
पाँव के पंख- एक दृष्टि
सोमवार, 26 जुलाई 2021
जीवन-माया
जब माँ थीं तब छोटी छोटी पुरानी चीजें सहेज लेने की उनकी आदत पर सब बहुत खीझा करते थे. अनुपयोगी वस्तुओं का अंबार हो जैसे... दादी तो खैर उनसे भी अधिक सहेज लेने वाली थीं.
पापा का खरीदा पहला बड़ा रेडियो, शटर वाली पुरानी टीवी, पुराने ड्रम ,बारिश के पानी में भीग कर फूली हुई चौकी, जंग खाये लोहे के बक्से , घिसा पिटा कूलर जाने क्या क्या..
माँ की ढ़ेरों साड़ियाँ एक छोटा सा ढ़ेर जैसा इधर उधर बिखरी रहती थीं. रसोई में बरतन, कड़ाही आदि भी ज्यादातर पुराने घिसे, जले कटे ही रहते थे.
अचानक मेहमान के आने पर पुरानी मोच खाई गिलासें, अलग अलग साइज की कटोरियाँ , चिकनाई लगी ट्रे, छोटे चाय के कप ही काम में आते क्योंकि ऐन वक्त पर उनकी उस आलमारी या कमरे की चाबियाँ गुम रहती थीं. सूटकेस, पेटियों और दरवाजे के ताले तोड़े जाने के उदाहरण सैकड़ों में रहे होंगे, ऐसा लगता है मुझे.
मगर जब उनके आखिरी समय के बाद उनकी अस्थियों के साथ उनके कमरे की चाबी आई तो उनके कमरे का दरवाजा खोलती मैं दंग थी- कमरे में एक भी चीज बेतरतीब नहीं थी. सफर पर रवाना होने के समय बदलने वाली एक साड़ी के अतिरिक्त कुछ भी बिखरा हुआ नहीं था... सभी साड़ियाँ/वस्त्र आदि बहुत करीने से जमाये हुए आलमारी में थे.
माँ पर उनके बिखरे से साम्राज्य के लिए उन पर झुँझलाती रहने वाली मैं कितनी स्तब्ध हुई!
कितना अजीब खाली-खाली लगा मुझे , बता नहीं सकती शब्दों में...
मन करता रहा कि कहूँ माँ से कि यह बेतरतीबी ही तुम्हारा जीवन थी. समेट लेने को हम बेकार ही कहते रहे.
जिनके लिए थे उनके दुख, उनकी चिंताएं, उनका श्रम - उनका जीवन उनके बिना भी चल रहा और बहुत बेहतरीन चल रहा...
जैसे सब कुछ माया-सा था. जाने वाला अपने साथ सब समेट ले गया.... अपना जीवन, अपना दुख, अपनी चिंताएं!!
गुरुवार, 24 जून 2021
लक्ष्मण को आवश्यक है राम जैसा भाई...
रामायण /रामचरितमानस में श्रीराम द्वारा स्वयंवर की शर्त पूरी करने के लिए धनुषभंग करने के वृतांत से कौन परीचित न रहा होगा. धनुष तोड़ दिये जाने से क्रोधित ऋषि परशुराम के क्रोधित होने और राम के छोटे भ्राता लक्ष्मण का व्यंग्यपूर्वक उनका सामना करने/ढ़िठाई रखने का प्रसंग भी लोकप्रिय रहा है. बहुत समय तक दोनों के मध्य हुए वाद विवाद का पटाक्षेप होने के बाद ऋषि स्वयं नतमस्तक हुए . अपने से छोटा जानकर भी उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की.
क्या कारण रहा होगा कि अपने कुल की बड़ों को सम्मान देने की नीति का पालन करते हुए भी ऋषि के आगे वे तने ही रहे. स्पष्ट है कि मिथ्या अभिमान में बड़ों द्वारा अपमान/असम्मान किये जाने का प्रतिकार करने में कोई अपराध न समझा गया. यह अवश्य है कि ऋषि के क्रोध और लघु भ्राता के मध्य एक प्राचीर अथवा सेतु कह लें, राम धैर्यपूर्वक खड़े थे.
कई बार बुजुर्ग इसी प्रकार अपने मिथ्या अभिमान में अपने से छोटों के प्रति अकारण ही रोष प्रकट कर जाते हैं. और यदि उनसे छोटे अपनी सही बात पर अड़े रहकर प्रतिकार करने पर विवश हों तब उन्हें बड़ों/बुजुर्गों के असम्मान करने का दुष्प्रचार करते पाये जाते हैं.
देश/समाज/परिवार की वर्तमान परिस्थितियों में विभिन्न वैचारिक मतभेदों के मध्य में राम जैसे एक बड़े भाई का होना आवश्यक लगता है जो विनम्रता पूर्वक अपने बाहुबल का बखान कर लघु भ्राता लक्ष्मण के प्रतिकार को सहज मानकर आश्रय दे सके. वहीं दूसरे पक्ष को भी जता सके कि सिर्फ बड़े होने के कारण ही वे किसी के पूज्य नहीं हो सकते. उनके अपने कर्म ही उन्हें सम्मानित बना सकते हैं.