मरू भूमि राजस्थान ...बरसों सूखी पड़ी धरा के साथ सामंजस्य स्थापित करते यहाँ के वासियों ने अपनी जीवटता से अपने लोक उत्सवों और रंग बिरंगे परिधानों से गिने चुने रंगों की एकरसता को दूर कर दिया है ...और इस बार जब सावन जम कर बरसा है ...धरा हरी चुनरी पहन कर इठला रही है तो इन पारंपरिक उत्सवों की छटा ही निराली है ...
प्रत्येक त्यौहार और मांगलिक अवसर के अनुसार विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगे वस्त्र और भोजन राजस्थानी संस्कृति की अनूठी विशेषता है ...
राजस्थान में तो त्योहारों की शुरुआत ही इस विशेष पर्व से होती है ...
लोकश्रुति में तो कहा भी जाता है ...
"तीज त्यौहारां बावड़ी ले डूबी गणगौर'' ...
यानी तीज सभी त्योहारों को लेकर आती है गणगौर अपने साथ वापस ले जाती है ...जयपुर के सीटी पैलेस की जनानी ड्योढ़ी से निकलने वाली तीज की सवारी विशेष आकर्षण होती है ...
तीज के पहले दिन सिंजारे पर महिलाएं सोलह श्रृंगार कर सजती संवारती हैं , मेहंदी लगाती हैं , झूला झूलती हैं ...नवविवाहिताओं के लिए तो यह पर्व और भी ख़ास होता है ...पहले सावन मास में सास से दूर रहने की परंपरा के चलते अधिकांश नवविवाहिताएँ मायके में होती हैं और उन्हें ससुराल पक्ष की ओर से " लहरिया" और इसके साथ ही लाख की लहरिया डिजाईनदार चूड़ियाँ , घेवर , फल आदि भी भेंट किये जाते हैं ...लहरिया पहने हाथों में मेहंदी सजाये झूला झूलते बरबस ही गुनगुना उठती हैं ...
" पिया आओ तो मनड री बात कर ल्यां "
पर्व सभी महिलाओं के लिए ख़ास है इसलिए कहीं कहीं वे पति से लहरिया दिलाने की मनुहार करती भी नजर आ जाती हैं ...
" म्हान लाई दो नी बादीला ढोल लहरियों सा "
उत्तर भारत में भी यह पर्व " हरितालिका तीज " के रूप में मनाया जाता है ...
चित्र गूगल से साभार
प्रत्येक त्यौहार और मांगलिक अवसर के अनुसार विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगे वस्त्र और भोजन राजस्थानी संस्कृति की अनूठी विशेषता है ...
राजस्थान में तो त्योहारों की शुरुआत ही इस विशेष पर्व से होती है ...
लोकश्रुति में तो कहा भी जाता है ...
"तीज त्यौहारां बावड़ी ले डूबी गणगौर'' ...
यानी तीज सभी त्योहारों को लेकर आती है गणगौर अपने साथ वापस ले जाती है ...जयपुर के सीटी पैलेस की जनानी ड्योढ़ी से निकलने वाली तीज की सवारी विशेष आकर्षण होती है ...
तीज के पहले दिन सिंजारे पर महिलाएं सोलह श्रृंगार कर सजती संवारती हैं , मेहंदी लगाती हैं , झूला झूलती हैं ...नवविवाहिताओं के लिए तो यह पर्व और भी ख़ास होता है ...पहले सावन मास में सास से दूर रहने की परंपरा के चलते अधिकांश नवविवाहिताएँ मायके में होती हैं और उन्हें ससुराल पक्ष की ओर से " लहरिया" और इसके साथ ही लाख की लहरिया डिजाईनदार चूड़ियाँ , घेवर , फल आदि भी भेंट किये जाते हैं ...लहरिया पहने हाथों में मेहंदी सजाये झूला झूलते बरबस ही गुनगुना उठती हैं ...
" पिया आओ तो मनड री बात कर ल्यां "
पर्व सभी महिलाओं के लिए ख़ास है इसलिए कहीं कहीं वे पति से लहरिया दिलाने की मनुहार करती भी नजर आ जाती हैं ...
" म्हान लाई दो नी बादीला ढोल लहरियों सा "
उत्तर भारत में भी यह पर्व " हरितालिका तीज " के रूप में मनाया जाता है ...
चित्र गूगल से साभार