गुरुवार, 10 जून 2021

विकट समय में स्वाभिमानी एवं स्वावलंबी के प्रति जवाबदेही किसकी....

 


लॉकडाउन शुरू होने के एक दो दिन पहले पतिदेव के पास एक अनजान व्यक्ति का फोन आया कि उसे अर्जेंट धन की आवश्यकता है. यह बहुत अप्रत्याशित था क्योंकि सामाजिक कार्यों में लिप्त होने के बावजूद कभी किसी अनजान व्यक्ति ने इस प्रकार की सहायता के लिए कभी आग्रह नहीं किया था . वह व्यक्ति बहुत ही परेशान लग रहा था. अपने बच्चे के इलाज के लिए एक अस्पताल के पास कमरा लेकर रह रहा वह व्यक्ति इस चिंता में दिन भर भटकने जैसी स्थिति में था कि घर पहुँचने पर बच्चे को क्या कहेगा कि आज उसके पास बाजार स कुछ भीे ले आने को पैसे नहीं थे. पतिदेव ने उन्हें हिम्मत बँधाई . उनका मूल पता पूछ कर सहायता करने का आश्वासन दिया. पता चला कि वह अपने गाँव में समृद्ध परिवार से रहे हैं परंतु पिछले एक वर्ष से भी लॉकडाउन/ कोरोना कर्फ्यू  की अवधि में कुछ काम धंधा नहीं कर पाये हैं. उपर से बच्चे का इलाज चल रहा है. अगले ही दिन सख्त लॉकडाउन हुआ. उनका फिर से फोन आया . गूगल पे पर मौजूद नहीं होने के कारण उन्हें सहायता कैसे पहुँचाई जाये, यह भी बड़ी समस्या थी.

पतिदेव ने अपने सामाजिक मंच पर उनके लिए फंडरेज ( ) करने का  सुझाव दिया परंतु उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया कि इससे गाँव में उनकी साख को बट्टा लग जायेगा. छल फरेब वाले इस समय में आश्चर्य और शंका होनी स्वाभाविक थी. हैरानी थी कि इस आपदकाल में भी वे साख की सोच रहे थे.  हमने आपस में विमर्श किया तब एक स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए इस प्रकार की सोच उचित नहीं तो भी संभावित ही लगी. 

खैर, जिस इलाके में वे रह रहे थे, पतिदेव ने एक दो परीचितों को फोन कर उन तक पहुँचने की अपील की. 

इसी विमर्श के दौरान यह निष्कर्ष भी निकला कि इस कठिन समय में घर,गाड़ी, मोबाइल होने से ही किसी व्यक्ति के सम्पन्न होने का अंंदाजा नहीं लगाया जा सकता. रोज माँगकर ही अपना जीवनयापन करने वालों के सामने अधिक समस्या नहीं थी परंतु छोटे मोटे व्यापारियों, मेहनत कर रोज कमाई करने वालो,सीमित स्तर पर विद्यालय मालिकों, शिक्षकों , दूकानो पर कार्य करने वाले कर्मचारियों , मंदिरों में सेवा पूजा करने वाले सेवकों जैसे अनेकानेक समूहों के सामने बड़ी विकट समस्या उत्पन्न हो गई थी. ये वे लोग थे जो अपनी मेहनत के दम पर समाज में अपनी ठीकठाक प्रतिष्ठा बनाये हुए थे. वे किसी के सामने हाथ फैला भी नहीं सकते थे.  सरकार अथवा सामाजिक संगठनों की सहायता भी अत्यंत गरीब लोगों को ही उपलब्ध होती है. स्वाभिमानी निम्न मध्यवर्गीय इस प्रकार की सहायता नहीं ले सकता.  जब सब कुछ ही बंद हो तो घर का कीमती सामान, गाड़ियाँ आदि बेचकर भी धन का इंतजाम नहीं कर सकता था. वैसे भी इस बार वाले विकट कोरोना समय में  सहायता करने के लिए सरकार अथवा सामाजिक संगठनों की भूमिकाएं गायब सी ही रहीं .  रोग के तेजी से फैलेा संक्रमण ने  भी समाज समूहों को चपेट में लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ ही रखा. 

हमारे देश/समाज में दान देने की परंपरा के बारे में हम जानते  ही हैं. पक्षियों के एक परींडे, वृक्षारोपण में एक पेड़ उगाने, एक राशन किट के वितरण, एक चेक की मदद करते दर्जनों हाथ और अखबार में बड़ी तस्वीरें छपवा लेने को तत्पर हम लोग.

उधेड़बुन रही कि  अपने सीमित संसाधनों जिसमें से पीएम रीलिफ फंड, मुख्यमंत्री सहायता कौश आदि में धन जमा करने के बाद भी ऐसे स्वाभिमानी लोगों की सहायता किस प्रकार हो कि उनको शर्मिंदा भी न होना पड़े.  सबसे पहले अपने स्तर पर ही 20 राशन किट बनवाना तय किया और अपने सामाजिक मंच पर अपील की कि जिसको भी आवश्यकता है, वह फलाने नंबर पर संपर्क करे. उनका नाम पता सार्वजनिक किये बगैर  उन तक सहायता पहुँचाई जायेगी . अन्य लोगों से भी अपील की कि वे अपने आसपास जरूरतमंदों के बारे में बतायें जो स्वयं हिचकिचा रहे हों. 

जैसा कि होता रहा है दो चार लोग मजाक उड़ाने वाले होते हैं- ऐसे कौन आयेगा माँगने, पहले इनका तो उनका तो कर लो, आदि आदि

धीरे - धीरे सहायता माँगने के लिए फोन आने लगे और सहायता करने की चाह रखने वालों के भी.  सहायता पहुँचाई जाती रही. पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि किसे सहायता की गई, उनका नाम पता नहीं बताया जायेगा, न कोई तस्वीर. बस एक शर्त थी कि जरूरतमंदों को अपने आधार कार्ड की कॉपी देनी होगी ताकि रिकार्ड रखा जा सके.  जितनी जरूरत थी, उतनी ही सहायता ली गई. 

आज के हालात में यह एक बहुत ही छोटा सा प्रयास था जबकि आवश्यकता बहुत अधिक करने की है विशेषकर स्वाभिमानी स्वावलंबी लोगों के लिए जो अचानक ही इन विकट परिस्थितियों से घिर गये हैं.

 यहाँ साझा करने का आशय इतना सा है कि कुछ साझा नहीं करने का मतलब यह भी नहीं की कुछ किया नहीं जा रहा है.