सोमवार, 16 जुलाई 2012

कब मिल पायेगा लड़कियों को एक सुरक्षित समाज ....


कहीं किसी शहर के एक कमरे (कमरा कहा है , कौन लोंग हैं --अंदाज़ा लगायें ) में कुर्सियां लगा कर विडियो पर फिल्म देखी जा रही थी  . दृश्य देखते अचानक इन्ही लोगों के बीच एक पत्रकार जैसा व्यक्ति  बदहवास- सा नजर आता है . साथियों के पूछने पर  कुछ नहीं कहता , अचानक उठ कर चल देता है . दूसरे दिन उस व्यक्ति की बहन  की  आत्महत्या की खबर अख़बारों में . 
नहीं जानती कितनी सच्चाई थी इन उडती -सी ख़बरों में , मगर इस तरह हुआ एक बेइन्तहा खौफनाक काण्ड का खुलासा जिसने सांस्कृतिक दृष्टि से संपन्न राज्य में अफरातफरी मचा दी  . जिस तरह परते खुलती गयी , लड़कियों की आत्महत्याओं की संख्या बढती गयी. 
सुनने में आया कि इस दलदल में लड़कियां अपनी मर्जी से जानबूझकर नहीं आई ...एक लड़की, उसकी सहेली  , फिर उसकी सहेली , किसी की ननद , किसी की भाभी , किसी की कोई  ...अपने बचाव के लिए दूसरे को फंसाने  से शुरू हुए इस  ब्लैकमेलिंग के  सफ़र की गिरफ्त में संभ्रांत परिवारों की जाने कितनी लड़कियां भंवर की तरह उलझती  गयी . 
हममे से शायद ही कोई इस तथ्य से अपरिचित होगा  कि एक सभ्य माने जाने वाले समाज में व्यापक स्तर पर ब्लैकमेलिंग क्यों कर संभव हो पाती है . लड़कियों/स्त्रियों के भीतर अपनी या परिवार की बदनामी का भय या फिर  अपने  अपने साथ हुई अनहोनी का जिक्र अपने परिवार से करने का साहस ना हो पाना,  साहस कर भी लिया तो दोषी उन्हें ही ठहराया जाना ...सबसे दुखद यह है ऐसे संगीन मामलों की शुरुआत अक्सर  नजदीकी रिश्तेदार , करीबी मित्रों से ही होती है .  
यदि उस दिन उस व्यक्ति ने वह विडियो नहीं देखा होता तो जाने यह सीरिज जाने कितनी लम्बी चलती .... जिन लोगों का जिक्र यहाँ हैं वे शायद अपनी ड्यूटी निभा रहे थे , मगर ऐसे लोगो की कमी नहीं है जो अपने शौक के लिए ऐसी  फ़िल्में देखते हैं और बड़े फख्र से मनोवैज्ञानिक कारणों का तर्क देते हुए उसका स्पष्टीकरण भी देते हैं . कहा जाता है कि जब लड़कियां खुद अपने आप को उघाड़ रही है तो हमें देखने में हर्ज़ क्या, बल्कि उन्हें बोल्ड होने की संज्ञा देते हुए उनकी प्रशंसा की जाती है . कितने ही तर्कों से इसे ढांकने की कोशिश की जाए मगर सच यह है कि इस तरह की फ़िल्में या साहित्य समाज में एक निम्न स्तर की घृणित उत्सुकता जगाती है जिसकी आंच उन बोल्ड/मजबूर  लड़कियों से होती हुई सामान्य घरों तक पहुँचती है . उच्च वर्ग की बोल्ड लड़कियां अंग प्रदर्शन कर  करोड़ों कमाती हैं मगर इसके बुरे साईड इफ़ेक्ट के रूप में सामान्य घरों की लड़कियां  या स्त्रियाँ उन निम्न स्तरीय निर्माताओं के हाथ की कठपुतली बनती है  जो कम पैसे खर्च कर करोड़ों कमाना चाह्ते हैं ,  लड़कियों की बोल्डनेस को ढाल बनाने वाले उपर्युक्त घटना से जान सकते हैं कि वे बोल्ड किस प्रकार  बनाई जाती है. घृणित उत्सुकता  सस्ते विकल्प के रूप में छिपे कैमरों को किसी मॉल के चेंजिंग रूम से  लेकर किसी होटल के कमरे तक पहुंचाती है . परेशान लड़कियां चीख कर खुले आम कहती हैं कि जब बिकना ही है तो अपने दाम और अपनी शर्तों पर क्यों नहीं---- काश यह समाज   इन शब्दों के पीछे  की गहन  पीड़ा , क्षोभ , दर्द , टीस को महसूस कर सकता . दरअसल उनकी चीख सफेदपोशों के चेहरे पर झन्नाट थप्पड़  है जिससे बौखलाते हैं हम सब मगर  हम उनकी तकलीफ को महसूस नहीं करते , बल्कि उन्हें चालू , कुलटा , वेश्या , लालची, व्यभिचारिणी  के उपनाम दे कर निश्चिन्त हो जाते हैं . 

इस बीच देश को शर्मसार करने गुवाहाटी की घटना से आहत लोंग तर्क देते नजर आते हैं कि इव टीजिंग की घटनाएँ स्त्री- पुरुष को एक- दूसरे से अलग रखने के कारण संभव हो पाती है . तब तो ये निर्माता बड़ा नेक(??) करम कर रहे हैं .
आदि हो जाने का क्या मतलब है , मुझे  यही समझ नहीं आया . क्या ये लोंग अपने घर में अपनी  माँ -बहनों-भाभी -चाची-या अन्य महिला रिश्तेदारों  के साथ नहीं रहते ?  बच्चे कैसे शिक्षा प्राप्त करें यह अलग बात है , वे साथ पढ़ते हैं , लिंग विभेद के बिना आपस में बातचीत करते हैं , इसलिए उन्हें एक दूसरे से बात करने में संकोच नहीं होता , यह बिलकुल अलग बात है . इसका इव टीजिंग से कोई  वास्ता  नहीं है. स्त्रियों के प्रति अभद्र व्यवहार किसी  व्यक्ति/ समाज विशेष की मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है .  
यदि स्त्री -पुरुष का अलग संसार ही इन दुष्कृत्यों का कारण है  तो इस दृष्टिकोण  से  हर धर्म के साधू -सन्यासी , ब्रह्मकुमारी , सिस्टर या नन, अविवाहित स्त्री- पुरुष , विभिन्न कारणों से एक दूसरे से दूर रहने वाले  पति- पत्नी आदि, इन  सभी को  दुराचारी या विपरीत लिंग के प्रति अभद्र हो जाना चाहिए. इस प्रकार के तर्क  दुराचरण को सिर्फ एक आवरण प्रदान करते हैं.  

कुछ लोगो का हास्यास्पद तर्क सुना / पढ़ा कि लड़कियों का खुला स्वभाव या उनके छोटे वस्त्र ही इव टीजिंग की घटनाओं का कारण बनते हैं या उकसाते हैं . आये दिन अखबार रंगे होते हैं छोटे बच्चों के साथ दुराचरण की ख़बरों से . क्या मासूम बच्चे किसी प्रकार की उकसाहट का कारण बन सकते हैं .    क्या पूरे वस्त्र पहने स्त्रियाँ अभद्र नजरों, कटाक्षों या व्यवहार से बच पाती हैं ...नहीं .  
बुरी नजरों या अभद्र व्यवहार का कारण  मानसिक रुग्णता ही अधिक होती है . 
दुष्ट प्रवृतियाँ बुरी संगति , घटिया साहित्य या मानसिक रुग्णता के कारण होती है , निराकरण इन परिस्थितियों का किया जाना चाहिए . 
मेरी समझ से दुराचरण या अभद्र व्यवहार के दोष से बचने के लिए स्त्री -पुरुषों को  एक दूसरे के शरीर का  आदि बनाये जाने की बजाय  आत्मनियंत्रण सीखने /सिखाने की आवश्यकता अधिक  है  . विभिन्न समाजों में स्त्रियों या लड़कियों को यह बहुत समय से सिखाया जाता रहा है , इसलिए पुरुषों के प्रताड़ित होने की संख्या ना के बराबर रही है.  यदि हम सामाजिक संतुलन के लिए स्त्रियों को दुर्व्यवहार अथवा अभद्र व्यवहार से बचाना चाह्ते हैं तो पुरुषों को भी उसी मात्रा में संयम और आत्मनियंत्रण सीखने और सिखाये जाने की आवश्यकता अधिक है ना कि स्त्रियों को और अधिक बंदिशों में रहने /रखने अथवा उघाड़ने की सीख दिए जाने की . 

समस्या जिस भी कारण से हो , आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण से बढ़कर और कोई समाधान मुझे नजर नहीं आता .
आत्मसंयम के प्रश्न पर मुझे  स्वामी विवेकानंद से जुडा संस्मरण याद आता है ...  
अमेरिका भ्रमण के समय एक महिला ने स्वामी जी से विवाह की इच्छा प्रकट की क्योंकि वह उनकी विद्वता पर  मोहित थी . स्वामी जी ने जब उस महिला से उनसे विवाह का कारण जानना चाहा तो उसने बताया कि वह विवेकनद जैसे जहीन बच्चे की माँ बनना चाहती है . तब उन्होंने स्वयम को ही उनके बच्चे के रूप में प्रस्तुत किया .  




(यह अधूरा लेख ड्राफ्ट में सेव था , पिछले दो दिन व्यस्तता में रहे , तभी रश्मि रविजा की पोस्ट नजर आ  गयी  . स्त्रियों के प्रति अभद्रता और उन्हें बाजार बना दिया जाना , दोनों ही विषय एक दूसरे से सम्बद्ध नजर आये तो उसकी पोस्ट की टिप्पणी के रूप में लेख को  विस्तार दिया )