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जिंदगी बस उस दम ही लगी भली
जब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली
पसरा रहा दरमियाँ खुला आसमां
संकरी लगने लगी रिश्तों की गली
जज्बातों ने ले ली फिर अंगड़ाई
अरमानों की खिलती रही कली
पलकों की सीप में अटके से मोती
राह आने की तकती रही उसकी गली
दामन खींचती हवा चुपके से पूछ रही
आज किसकी है कमी तुझको खली
जिन्दगी पहले तो नही थी इतनी हसीं
आती जाती रही लबों पर जो इतनी हँसी
तुझसे मिलकर ही जाना जिन्दगी
तू है वही जो ख्वाब बनकर आँखों में पली
जिंदगी पहले कभी ना लगी इतनी भली
जब तलक उससे मैं मैं बनकर ना मिली
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