करीने से सजा कर रखे गए लाल बड़े अक्षरों से लिखा नाम " वायब्रेंट मिडिया हाऊस " . शीशे की पारदर्शी दीवारों से झांकती अन्तःसज्जा … राह चलते कितनी बार कदम रुके होंगे , कितनी बार चीते की खाल जैसे चित्रकारी से सजी अपनी स्कूटी को रोका होगा उसने !
कब से संजों रखा था सपना उसने किसी दिन इस ऑफिस में बतौर संपादक नहीं तो , पत्रकार या कर्मचारी के रूप में ही सही . बड़े घोटालों के खुलासे , सफेदपोशों के काले कारनामे , अन्याय के विरुद्ध डट कर खड़े रहना , जाने कब ख़बरों ही ख़बरों में वह इस हाउस से जुड़ गयी थी और जब अपने लिए करियर चुनने का अवसर आया तब उसने यही अपनाया।
घर में सबने टोका , बहुत मुश्किल है यह लड़कियों के लिए , क्यों पड़ती हो झंझट में। पत्रकारिता में क्या है , लिखो घर सजाने के बारे में , परिवारों को एकजुट रखने के बारे में , अच्छा खाना बनाने की टिप्स , सौंदर्य और ग्लैमर की दुनिया के बारे में जानकारी देना , कविता , कहानियां भी लिखती हो , क्या यह काफी नहीं है ....
कोई समझाता विस्तृत आकाश है तुम्हारे सामने , तुम्हे पत्रकार ही क्यों बनना है ! कितना खतरा है इसमें और तुम लड़की जात , कैसे करोगी सामना !
कोई समझाता विस्तृत आकाश है तुम्हारे सामने , तुम्हे पत्रकार ही क्यों बनना है ! कितना खतरा है इसमें और तुम लड़की जात , कैसे करोगी सामना !
जैसे और लड़कियां कर रही हैं , तुमने नहीं देखा मेघा , निष्ठा को। कितना आत्मविश्वास है उसमे। कितनी बेबाकी से भ्रष्ट राजीनीति , अफसरशाही , कालाबाजारी , घोटालों पर लिखती है , आज लड़कियां कहाँ नहीं हैं , क्या नहीं कर रही हैं , पुलिस ,सेना ,गुप्तचर विभाग , वकालत और जाने क्या क्या , क्या उनका परिवार नहीं है , तुम नाहक फ़िक्र क्यों करती हो।
माँ के गले में बांहे डाल उसे आश्वस्त करने की कोशिश करती।
माँ के गले में बांहे डाल उसे आश्वस्त करने की कोशिश करती।
मीडिया हाउस में ऊर्जावान पत्रकारों की नयी भर्तियों के बारे में जैसे ही पता चला , वह मिली उत्कल से . उत्कल और तेजस्वी पडोसी और सहपाठी होने के कारण अच्छे मित्र भी थे। बारिश के पानी में साथ कुलांचे भरने , नाव बहाने से से लेकर स्कूल के पास सटे मूंगफली और मूली के खेतों में सेंधमारी तक के कार्य उन्होंने एक साथ ही किये थे। माध्यमिक विद्यालय तक आते दोनों के विद्यालय बदल गए . उत्कल के पिता कई प्रमोशन पा कर अपने विभाग के उच्चाधिकारी बन चुके थे , हर प्रमोशन के साथ ही उनका रहन -सहन उच्च से उच्चतर होता गया , उत्कल की माँ सोने से लदती गयी , गैरेज में खड़े दुपहिया का स्थान महंगे चौपहिया ने ले लिए ,गाड़ियां महँगी होती गयी और इसी अदला बदली में उत्कल सरकारी विद्यालय से प्रमोट होकर सबसे शहर के सबसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय का विद्यार्थी हो गया। तेजस्वी और उसके परिवार के साथ उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ , हालाँकि उत्कल के माता- पिता जब तब अपने रुतबे का शंख बजाये बिना नहीं रहते।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर उत्कल शहर के ही जाने माने संस्थान से जुड़ चूका था , तेजस्वी अपनी पढ़ाई पूरी कर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं का सामना करते हुए अपने सपने को पाल रही थी। उत्कल भी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ ही उसके सपने पूर्ण करने में अपनी सलाह और प्रेरणा देना नहीं भूलता। उत्कल ने ही मीडिया हॉउस की चीफ एडिटर का पता देते हुए उसे सलाह दी कि आवेदन करने से पहले वह पहले एक बार उससे मिल ले। उसके बाद ही अपना आवेदन दाखिल करे।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर उत्कल शहर के ही जाने माने संस्थान से जुड़ चूका था , तेजस्वी अपनी पढ़ाई पूरी कर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं का सामना करते हुए अपने सपने को पाल रही थी। उत्कल भी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ ही उसके सपने पूर्ण करने में अपनी सलाह और प्रेरणा देना नहीं भूलता। उत्कल ने ही मीडिया हॉउस की चीफ एडिटर का पता देते हुए उसे सलाह दी कि आवेदन करने से पहले वह पहले एक बार उससे मिल ले। उसके बाद ही अपना आवेदन दाखिल करे।
परिचय से लेकर साक्षात्कार तक उसका आत्मविश्वास कई बार डगमगाया। बॉब कट हेअर स्टायल और मिनी स्कर्ट वाली फॉर्मल आउटफिटमें टाइटफिटेड माला ने उसे ऊपर से नीचे आँख भर देखा तो वह एक बार सकपका गयी। उसने भी खुद पर एक नजर डाली , सलवार कमीज पर लापरवाही से ओढ़ा स्टोल और रूखे बालों में गुंथी हुई चोटी । खुद को कोसा उसने , कम से कम बाल खुले ही रख लेती , मगर घबराहट को छिपाते हुए चेहरे पर आत्मविश्वासी मुस्कान लाने में कामयाब हो ही गई ।
बात यही ख़त्म नहीं हुई , धड़धड़ाती अंग्रेजी में पूछे गए माला के सवालों ने फिर से उसके दिल की धड़कने बढ़ा दी। अंग्रेजी ज्ञान बुरा नहीं था उसका , मगर हिंदी माध्यम से ली गयी शिक्षा पटर पटर अंग्रेजी बोलने पर अंकुश लगा देती। उसने धीमे शब्दों में अपना परिचय देते हुए अपने आने का मकसद बताया।
ओहो , पत्रकार बनने आई हो ,होठों को तिरछा कर भीषण हंसी को रोकते माला ने हिंदी में ही कहा । चोर नजरों से तेजस्वी ने देखा ,उसके पास ही खड़े एक कर्मचारी के होठों पर भी तीव्र मुस्कराहट थी। गले में लटके बैज पर नाम भी देखा उसने -साहिल मिश्रा !
तेजस्वी ने एक गहरी सांस ली और अपने सपने को याद किया।
जी हाँ ! वैदेही मैम कब और कहाँ मिलेंगी। तन कर खड़े रहते उसने जवाब दिया.
जी हाँ ! वैदेही मैम कब और कहाँ मिलेंगी। तन कर खड़े रहते उसने जवाब दिया.
वैदेही के नाम से माला कुछ संयत हुई। कार्य के प्रति अपने समर्पण के साथ ही बेबाकी और साहस के लिए जाने जाने वाली अनुशासनप्रिय उपसम्पादक वैदेही का अपना रुतबा था.
माला से केबिन का पता लेकर चल पड़ी तेजस्वी वैदेही से मिलने ।
माला से केबिन का पता लेकर चल पड़ी तेजस्वी वैदेही से मिलने ।
वैदेही उससे बड़े प्यार से मिली , उत्कल ने उसे तेजस्वी के बारे में बता दिया था। उसकी शैक्षणिक योग्यता के साथ ही उसके पसंदीदा विषय को भी जानना चाहा .
तुम्हे किस विषय पर लिखना अधिक पसंद है.
देश की सामाजिक , राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर चिंतन और बेबाक लेखन मुझे बहुत पसंद है।
स्त्री सशक्तिकरण अथवा स्त्रियों से ही जुड़े अन्य मुद्दों में तुम्हारी रूचि नहीं है ? वैदेही का चौंकना लाज़िमी था !
सामाजिक व्यवस्था मतलब नारी नहीं हुआ !
हम्म्म्म …मगर जैसी हमारी सामाजिक व्यवस्था है , उसमे स्त्री एक कमजोर पक्ष मानी जाती है. उसे विशेष संरक्षण , सहानुभूति , देखभाल की आवश्यकता है।
मैं समाज के प्रत्येक अंग के चिंतन ,विकास और संरक्षण पर ध्यान देना और दिलाना चाहूंगी।
तेजस्वी को अपनी चोंच से अंडे का खोल फोड़ कर बाहर आने वाली चिड़िया की कहानी याद थी.
वैदेही ने उसे आवेदन और चयन की कार्यविधि समझाई।
तेजस्वी मानती रही है कि खूबसूरती देखने वाले की आँखों में होती है , यह सिर्फ इंसान पर ही लागू होता है . घर में उसकी भाई बहन से कई बार कहा सुनी हो जाती. उसकी टेबल को कोई हाथ ना लगाये , जो चीज जहाँ से ली वहीं रखे . कई बार माँ समझाती भी उसे - थोडा इग्नोर भी किया करो ,मगर उसे घर , स्टडी टेबल , ऑफिस सब व्यवस्थित ही चाहिए।
जब उसे सुन्दर रंगों और शीशे से घिरे व्यवस्थित केबिन से सजा धजा ऑफिस अपने कार्यक्षेत्र के लिए मिला तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना ही नहीं था। उसका सपना सच होने जा रहा था !
क्रमशः ....
चित्र गूगल से साभार लिया गया है , आपत्ति होने पर हटा दिया जाएगा !
जब उसे सुन्दर रंगों और शीशे से घिरे व्यवस्थित केबिन से सजा धजा ऑफिस अपने कार्यक्षेत्र के लिए मिला तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना ही नहीं था। उसका सपना सच होने जा रहा था !
क्रमशः ....
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