गुरुवार, 11 जून 2009

गुल या खार














मैं

गर गुल हूँ तो वो नहीं
जो सदाबहार है
मैं वो गुल हूँ
जिसे चंद लम्हों में मुरझाना है
मैं
गर खार हूँ तो वो नहीं
जो गुलों का हिफाजती है
मैं वो खार हो
जो हरदम आँखों में खटका है

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