शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

बस ... मुझसे मेरा हाल ना पूछा ...!!


शहर में है दावानल.... पूछा
लपटों का बवाल भी पूछा
वाशिंदों का मिजाज़ भी पूछा
इत्लाफ़ का हिसाब भी पूछा
धुंधलाया था क्या चाँद भी पूछा
धुआं धुआं था आसमां भी पूछा
ज़हर था फिजाओ में पूछा
पशेमां था खतावार पूछा
सब पूछा
बस ...
मुझसे मेरा हाल
ही ना पूछा ...!!


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23 टिप्‍पणियां:

  1. जी वाणी जी..
    कोई बता रहा था के बड़ी भयानक आग लगी है...

    सच में ये दिवाली काफी कुछ ख़ाक में मिला गयी...

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  2. होली... दिवाली
    दोनों ही त्यौहार कम खतरनाक नहीं होते वाणी जी..

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  3. खता माफ़ ,बताईये न कैसी हैं आप ?

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  4. वाणी जी क्या हाल है आपके कविता सुंदर है पर बडी मायूसी भरी । जल्द ही दावानल ठंडे हों, आसमान साफ हो चांद अपने निखार पर हो आदि शुभकामनाओं के साथ ।

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  5. वाणी,
    झूठ क्यों बोलती है री....!
    मैंने पूछा है..सबकुछ....!!
    ये बहुत ही दुखद घटना घटित हुई है.....बहुत बड़ी क्षति हुई है ...जिसका घाव धीरे-धीरे ही भरेगा ....
    लेकिन हम आपसे हर दिन आपका हाल पूछते रहेंगे...वादा करते हैं.....
    काव्यात्मक प्रस्तुति अतिसुन्दर...भावपूर्ण है..

    @मनु जी...
    जहाँ दीवाली सौभाग्य लेकर आती है वही कभी-कभी दुर्भाग्य भी लाती है....हर साल न जाने कितने घर जाल कर राख हो जाते हैं...
    बहुत दुखद होता है यह...लेकिन शायद नियति को यही मंजूर हो....
    बस परम पिता परमेश्वर से इसे झेल जाने के लए प्रार्थना करते हैं...

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  6. di........ bahut hi achchi kavita...samvednapoorn....


    di........... itlaaf ka matlab kya hota hai?

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  7. @ महफूज अली
    शायद अत्लाफ का मतलब नुक्सान होता है ...अगर गलत हो तो बता देना ..सही कर दूंगी ..dhanywaad

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  8. बहुत ही दुखद है. एक सामयिक और सटीक रचना.

    रामराम.

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  9. बहुत ही नजाकत से शिकायत भी आप करती है ..........बहुत ही खुबसूरत रचना!

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  10. दावानल हर तरफ पुरजोर है.......हाल पूछने को कोई हमनवां ना रहा

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  11. rachna ne ek achoote lamhon ko chuaa hai .... aksar roshni mein doob kar log daavanal ko nahi yaad karte ..... bhaavok rachna hai ....

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  12. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने
    सच ही है हाल बताने वाले का हाल अक्सर लोग भूल जाते है.
    महाभारत का संजय भी व्यथित हुआ होगा कभी न कभी किसी न किसी घटना या प्रसंग पर
    कैसी हैं आप?

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  13. हमने जो पूछा उनका हाल
    देखा किए वे कहर का सामान।
    गुम थे सुम थे
    लौट आए हम
    फिर सुलगते रह गए अरमान।

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