शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

दिल और दिमाग की कहासुनी

14 तारीख की शाम को अचानक ही फ़ोन ठप्प हो गया ...अब चूँकि इन्टरनेट और टीवी भी फ़ोन से ही जुडा है ...तो अचानक ही लगने लगा कि पूरी दुनिया से ही दूर हो गए हैं ...टेलीफोन विभाग से संपर्क करने पर पता चला कि पास में ही कहीं खुदाई में केबल को काफी नुकसान पहुंचा था ....लगभग 800 टेलीफोन एक साथ मृतप्राय हो गए ...ठीक होने में तीन चार दिन लगने की सम्भावना है ....संचार साधनों पर निर्भरता कभी कभी बहुत रिक्तता पैदा कर देती है ...मगर मोबाइल सुविधा और भारतीय गृहिणियों के पास बहुत सारे वैकल्पिक साधन मौजूद होने के कारण यह कमी इतनी ज्यादा नहीं खली ...बस फिक्र यही रही कि ब्लॉगजगत में कही भगोड़ा साबित नहीं कर दिए जाए ....और कुछ शुभचिंतक भी परेशान हो रहे होंगे कि अचानक कहाँ गायब हो गई. 
इन्ही छुट्टियों (ब्लॉग छुट्टी ) में एक दिन शाम कों पतिदेव घर लौटे तो हाथ में हेलमेट के साथ भूरे रंग का लेडिज पर्स साथ लिए ... मेरे दिमाग का पारा चढ़ता ...उससे पहले ही बोल उठे ..." रास्ते में गिरा पड़ा था ...पता नहीं किस जरूरतमंद का होगा ...अभी इसमें से एड्रेस देख कर फ़ोन कर दूंगा ..जिसका हो आकर ले जाए ..."
 उनकी आशा के विपरीत मेरा पारा चढ़ ही गया ... " क्या जरुरत थी आपको इसे उठा लाने की ...पड़े रहने देते वहीँ ....पता नहीं किसका हो ...इसमें क्या हो ...कही उलटे गले पड़ जाए कोई ...." मेरा बड़बड़ाना चालू हो गया ... कुछ देर तो बेटियां भी मेरे साथ ही रही मगर पापा कों उदास देख झट पाला बदल लिया ...." बस ...मम्मी का रेडियो शुरू हो गया ...पूरी बात पूछेंगी नहीं ...पहले ही गुस्सा कर लेंगी ..." स्त्रियोचित गुण ही है यह प्रकृति प्रदत्त ...पिता की निरीहता बर्दाश्त नहीं कर सकती ...क्या करते हम भी ...आखिर सरेंडर कर ही बैठे ... पर्स कों उलट पुलट कर देखा ...कुछ रुपये थे और एक मोबाइल भी ....मोबाइल स्विच ऑफ था ...जैसे ही उसे ऑन किया ...उसकी घंटी बज गयी ..." आप कहाँ से बोल रहे है , ये फ़ोन आपको कहाँ मिला ...." " पहले आप बताएं कि आपने इस नंबर पर फ़ोन किया ...आपको यह नंबर कहाँ से मिला ...." पति देव पूरी तरह आस्वस्त होना चाह रहे थे ..कोई नकली उम्मीदवार ना टपक पड़े .... " दरअसल ये मेरी पत्नी का नंबर है , अभी स्कूल से लौटे समय रास्ते में कही गिर गया ..." उक्त महाशय का जवाब था ... " हाँ ...मुझे ये फोन रास्ते में पड़ा मिला मय पर्स ...कुछ रूपये भी है इसमें ...आप आकर ले जाए ..." पति ने उन्हें पूरा पता समझाते हुए आने के लिए कहा ... अब इधर हमारी धुक धुक शुरू ...पता नहीं कौन हो ....कोई गुंडा मवाली टाइप हुआ तो...कही उलटे हमें ही चोर साबित कर पर्स में पैसे कम होने का शोर मचा दे ...आज कल आये दिन ऐसे किस्से होते हैं ...मेरा मूड एक बार फिर से बिगड़ने लगा था .... मैंने पहले ही कहा था इसे फेंक आओ रास्ते में ...मगर अब क्या किया जा सकता था ...आगंतुक का इन्तजार करने के अलावा ...थोड़ी देर बाद फिर से वही फ़ोन बजा ...उक्त महाशय घर से थोड़ी दूर तक पहुँच गए थे मगर यहाँ तक आने का रास्ता नहीं मिल रहा था ...आखिर उन्हें वही रुक कर इन्तजार करने कों कह पतिदेव पर्स लिए रवाना होने लगे तो किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत मैं भी बाईक की पिछली सीट पर जा बैठी ...उन महाशय के बताये पते पर पहुंचे तो कोई दो सज्जन सुनसान विद्यालय की बाहरी दीवार के सहारे बेंच पर बैठे दिख गए ...अब एक बार फिर से मन में बुरे ख्याल उपजने लगे ...इस अँधेरी रात में सुनसान सड़क पर कुछ दुर्घटना हो गयी तो ... कड़क आवाज़ में पति उनसे पूछ बैठे ..." क्या बात है ....यहाँ क्यों बैठे हो ..." हम लोग जांचना चाह रहे थे कि क्या यही वो लोग तो नहीं जिनका पर्स ग़ुम गया है .... वे दोनों एकदम से हडबडा उठे ..." अजी महाराज , म्हे तो अयांयी बैठ गा अठे ...." उनसे और कुछ पूछते इससे पहले ही आगे से एक मोटरसायकील आ रुकी ...एक सज्जन अपने दो छोटे बच्चों के साथ मौजूद थे ..." आप शायद मुझे ही ढूंढ रहे थे ...." ..पति ने और उन महाशय ने एक दूसरे से हाथ मिलाया ..." सर , आजकल आप जैसे लोग कहाँ होते हैं , आप समझ सकते है एक मध्यमवर्गीय इंसान की हालत ...आपका बहुत धन्यवाद ..." दोनों ने जब अपने परिचय का आदान प्रदान किया तो पता चला कि वे महाशय पतिदेव के दफ्तर की बिल्डिंग के दूसरे ऑफिस में ही कार्यरत हैं ...घर पास ही था इसलिए उन्होंने कृतज्ञता जताते हुए पतिदेव के चाय पीकर जाने के अनुरोध कों तुरंत स्वीकार कर लिया...इस तरह एक रोचक तरीके से एक और परिवार और सहकर्मी से जान पहचान हुई ...मगर मैं कहे बिना नहीं रह सकी...." हम तो इन पर नाराज हो रहे थे "... उनको विदा कर रहत की साँस लेते हुए मैं कुछ देर सोचती रही...क्या मेरी सारी आशंकाएं निर्मूल थी ....दिल से सोचने वाली महिलाएं ऐसे मौकों पर अपनी व्यावहारिकता का परिचय देते हुए क्या दिमाग कों ज्यादा महत्व नहीं देती ...अक्सर पड़ जाती हूँ मैं इस दिल और दिमाग के चक्रव्यूह में ... आज सुबह ही एक सन्देश था मोबाइल पर .... To handle yourself , use your head.... To handle others , use your heart..... इस सन्देश के साथ उपर्युक्त घटना कों जोड़े और अपने होठो पर आने वाली मुस्कराहट कों खिलखिलाहट में बदलने दे .......और महिलाओं द्वारा दिमाग पर दिल कों तरजीह देने की शिकायत कों खारिज करें ...हाल फिलहाल तो ......


28 टिप्‍पणियां:

  1. हम भी आपकी अनुपस्थिति से व्यथित थे -मेरा नाम भी अपने शुभ चिंतकों में जोड़ लें बिना शक सुबहा !
    पर्स वृत्तांत बहुत रोचक रहा -आप अपने श्रीमन की बाडी गार्ड हैं क्या ? दुबले पतले हैं क्या ? हा हा ! उन्हें नमस्कार कहिएगा !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत साफगोई है आपके पोस्ट में। मन के अन्तर्द्वन्द को आपने खूब उकेरा है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman. blogspot. com

    जवाब देंहटाएं
  3. पहले तो यह, कि परेशान मैं भी था । मेरा नाम नहीं लिया न आपने!

    दूसरे यह, कि मेरी आशंका कि कहीं किसी चीज से व्यथित होकर आप भी चुप बैठ गयीं हैं - गलत साबित हुई ।

    तीसरे यह कि अब आश्वस्ति बनी है कि मेरी प्रविष्टियों को पढ़ने वाले कुछ लोगों में आप थीं, आप बनी रहेंगी ।

    प्रविष्टि पर टिप्पणी बाद में करता हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  4. ओह तो ये कारण था , उफ़्फ़ ये फ़ोन वाले कब समझेंगे कि हमें ब्लागियाने की जबरद्स्त आदत पड गई है जी इसके बिना चैन कहां रे, लगता है एक आध टेलीफ़ोन बाबू को भी ब्लोग्गिंग में उतारा जाए तो बात बने । पर्सनामा बडा ही रोचक रहा , और जो कुछ आपने बताया बोला वो स्वाभाविक ही था । समझिए उनसे परिचय और मुलाकात का यही बहाना तय था । हां अक्सर ये तो होता ही है कि दिल की अनसुनी करके हम कुछ खो जाते हैं ....मगर आजकल जो माहौल है उसमें दिमाग ही हावी हो जाता है ।वापसी हुई ...हमें भी अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूब ! स्त्री सुलभ अपनी शंकाओं और द्वंद को बहुत अच्छी तरह बयान किया है आपने । आपका अनुभव बड़ा आपबीती सा लगा । बधाई और धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  6. अरे वाणी जी दिल से प्रेशान तो मैं भी थी मगर दिमाग से काम नहीं लिया कि मेल कर के पूछ लूँ हम लोग बस दिल से ही अधिक काम लेती हैं न। सण्स्नरण अच्छा लगा शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी अनुपस्थिति साफ़ महसूस होने लगी थी. आपने विकेट आऊट का जश्न मना रहे लोगों के रंग मे भंग डाल दिया.:)

    आजका आपका संस्मरण मानवीय संवेदनाओं के साथ साथ आपकी रोचक लेखन शैली का सुंदर नमूना है. बिल्कुल ऐसा लगा जैसे आपका यह संस्मरण पढने की बजाये सुन रहे हैं. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  8. यूँ लगा जैसे आप पास हों और सबकुछ सुना रही हों...........

    जवाब देंहटाएं
  9. विशुद्ध ब्लॉगरी ! मैं तो यही कहूँगा।
    घर घर की दास्ताँ है यह ! साहचर्य और केयर - पतिदेव के साथ चल देना यही तो है। दिल क्या दिमाग क्या ! दोनों दुरुस्त रहते हैं जब आपस में प्रेमभाव हो। दोनों एक दूसरे को संतुलित भी कर देते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  10. जैसा कि रश्मि जी ने कहा, पढ़कर बिलकुल यह लगा ही नहीं कि इसे पढ़ रहे हैं, जैसे आप कह रहीं हो और हम सुन रहे हैं, सच भी है ब्‍लागिंग बिना सब कुछ अधूरा सा लगता है, लेकिन सुविधाओं के साथ-साथ असुविधा कभी-न-कभी आ ही जाती है ।

    जवाब देंहटाएं
  11. हे सुंदरी,
    हम जानना चाहते हैं कि वो कौन से नर-नारी थे जो आपके प्रस्थान मात्र कि कल्पना से प्रसन्न थे.....नाम तो बता ..अभी खबर लेती हूँ ......हाँ नहीं तो....सब कुछ तोड़-फोड़ कर रख दूंगी....हा हा हा ..महफूज़ मियाँ का असर होता जा रहा है ...हा हा हा ...
    अरे नहीं ..सभी चिंतित थे.....और जिनसे लगाव होता है .. उनके लिए पता नहीं क्यूँ कैसे-कैसे ख्याल आते हैं.....
    बस अब आश्वस्त हैं सभी....अरे ब्लॉग्गिंग छोड़ कर कोई तभी जाएगा जब कोई सीधा ऊपर चला जाएगा.....और विश्वास है वहां भी कुछ न कुछ इंतज़ाम कर ही लेगा.....
    ब्लॉग्गिंग कि आदत ...ड्रग की आदत है....
    और तेरा संस्मरण....कमाल की ..भाषा और शैली ...तारीफ से परे होती जा रही है....अब हम इतनी तारीफ के लिए ऐसी सुन्दर भाषा कहाँ से लायें बाबा....एक ही पोस्ट में नारी सुलभ सारे भाव बता दिया... उलाहना, डरना, डराना, मनाना, फुसलाना, समझना, बिगड़ना, झगड़ना, ऐंठाना, समझाना, धमकाना इत्यादि इत्यादि सब !!!! शाबाश......

    जवाब देंहटाएं
  12. वाणी जी,
    कुछ देर से आया, लेकिन आपके लेखन के मुरीदों में एक अदना सा नाम अपना भी है...वैसे आपके साहब की सदाशयता का कायल हो गया हूं...वरना आज कौन दूसरों के फट्टे में हाथ डालता है...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  13. सुन्दर वाकये .
    रोचक प्रस्तुति ..
    ............... आभार ,,,

    जवाब देंहटाएं
  14. ' heart ' और ' head ' का सटीक कार्य बताया आपने .
    उपयोगी और समयानुकूल !

    जवाब देंहटाएं
  15. गाँठ बाँध ली है -
    "To handle yourself, use your head..
    to handle others, use your heart..."

    आपकी आशंका समय की धारा से उपजी मनःस्थिति थी, पर उस पर भारी पड़ती है, सदाशयता की थाती ! आप खुद ही गयीं, देखा, महसूस किया, समझ गयीं - दिल तो अपना काम करता ही रहता है दिलवालों के क्रियाकलापों में । युगधर्म के नाते आपकी आशंका ने आकार बड़ा लिया - दिमाग ने पैर फैलाये ।

    जवाब देंहटाएं
  16. ओह..! हम भी न दिमाग लगा रहे थे.
    कितना सहज और मर्यादित पोस्ट है ये.
    आगे से मुझे भी आपकी कमी खलेगी. अब नियमित आने की कोशिश करूँगा...फिलहाल तो दिल से कह रहा हूँ..

    - सुलभ

    जवाब देंहटाएं
  17. ओह..! हम भी न दिमाग लगा रहे थे.
    कितना सहज और मर्यादित पोस्ट है ये.
    आगे से मुझे भी आपकी कमी खलेगी. अब नियमित आने की कोशिश करूँगा...फिलहाल तो दिल से कह रहा हूँ..

    - सुलभ

    जवाब देंहटाएं
  18. आपका अंदाज़ बहुत ही रोचक है .......... लाजवाब रहा आपका पर्सनामा ....... ऐसी शंकाएँ उतना स्वाभाविक है ख़ास कर के आज के माहॉल में ..........

    जवाब देंहटाएं
  19. ऐसे लोग अब भी हैं?

    आखिरी का पंच-लाइन...मुस्कुरा रहा हूँ मैं।

    जवाब देंहटाएं
  20. दी ... .. मुझे वाकई में बहुत फ़िक्र हो गई थी ...उस वक़्त.....चिंता करना तो भाई का फ़र्ज़ है....

    जवाब देंहटाएं
  21. वाणी जी..मैं तो आपके आने की ख़ुशी में आपसे बात करके इतनी खुश हो गयी कि आपकी नयी पोस्ट देखी ही नहीं...आज आपकी परेशानी की चर्चा अखबारों में छपने की खबर पढ़ कर यहाँ पहुंची...बधाई हो....और अपनी चिंता छुपा मैं सबको समझा ही ज्यादा रही थी कि ऐसा होता है...कभी कभी एक हफ्ते तक.नेट डाउन रहता है.
    आपका पर्सनामा बहुत रोचक रहा...मुंबई में तो लोग कोई अनजान पर्स पड़ी देख..छूने की हिम्मत भी नहीं करते और सीधा पुलिस को खबर कर देते हैं...अक्सर शंका निर्मूल होती है..और हंसी का सबब बन जाती है....आपके पतिदेव ने तो बडा धरम का काम किया...वो मोहतरमा दिल से दुआएं दे रही होंगी (अब जल मत जाना :) )

    जवाब देंहटाएं
  22. सुन्दर! ऐसी साफगोई ब्लॉगजगत को सशक्त बनाती है।
    बढ़िया पोस्ट!

    जवाब देंहटाएं