बुधवार, 4 मई 2011

जन आस्था का केंद्र ..."बूटाटी"





स्वास्थ्य के क्षेत्र में विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है ...देश में बुजुर्गों की बढती संख्या और औसत आयु इसे प्रमाणित भी करती है ...आज चिकित्सकों के पास अधिकांश बिमारियों का इलाज़ है और नित नए अनुसन्धान और शोध प्रत्येक बीमारी को जड़ से समाप्त करने के लिए उपचार की विधि की तलाश में संलग्न है ..इतना सब कुछ होने पर भी बहुत कुछ ऐसा है जो चिकित्सा विज्ञान की सीमा से परे है ...प्रकृति के रहस्यों को पूरी तरह जानने में अभी भी विज्ञान असमर्थ है...जब भरपूर इलाज़ लेने के बाद भी कोई व्यक्ति पूर्णतया स्वस्थ नहीं हो पाता है तो वह वैकल्पिक चिकित्सा के अतिरिक्त कई टोटकों को भी अपनाने लगता है ...जहाँ विज्ञान की सीमा समाप्त होती है , वही से श्रद्धा और अंधविश्वास का प्रारम्भ होता है ...उदाहरण के रूप में नजर लगना जैसी किसी बीमारी को हममे से अधिकांश लोंग मजाक में हँस कर उड़ा देते हैं , मगर वही जब अपना कोई परिचित भरपूर इलाज़ के बाद भी ठीक ना हो रहा हो , या बिना किसी कारण सुस्त , उखड़ा या उदास हो तो हम झट नजर उतारने के हथियार इस्तेमाल करते हैं ..

पक्षाघात /लकवा के रोगियों को भी चिकित्सकों के इलाज के बाद श्रद्धा नागौर के बूटाटी ग्राम में खींच लाती है ...अभी पिछले दिनों एक रिश्तेदार अचानक ब्रेन हैमरेज का शिकार होकर लम्बे समय तक कोमा में रही ...कोमा की स्थिति से बाहर आने तक उनके पूरे आधे शरीर पर पक्षाघात का असर हो चुका था ...पिछले कई महीनों से वे ना सिर्फ चलने- फिरने में असमर्थ हैं , अपितु करवट बदलने तक के लिए भी उन्हें मदद की आवश्यकता होती है ... चिकित्सा के दौरान ही उन्हें किसी ने राजस्थान के नागौर जिले के बूटाटी ग्राम के बारे में बताया ..आखिरी उम्मीद के रूप में किसी प्रकार हिम्मत जुटा कर परिजन उन्हें लम्बी दूरी तय करते हुए आंध्र प्रदेश से राजस्थान लेकर आये ...तीन दिन की परिक्रमा के बाद उनकी दशा में इतना सुधार हुआ कि कई महीनों से से लघु शंका के लिए लगी नलियाँ हटा दी गयी ...चार पांच दिन में वे बिना सहारे 3-4 कदम भी चली (जैसा की उनके परिजनों ने बताया )..हालाँकि अभी पूरी तरह बिना सहारे चलना मुमकिन नहीं है , मगर महीनों से सिर्फ बिस्तर पर लेटे मरीज के लिए एक सप्ताह में इतना परिवर्तन भी कम सकारात्मक नहीं है ... बूटाटी धाम के बारे में सुना तो पहले भी कई बार था , और सुनी सुनायी बातों पर यकीन नहीं किया जा सकता मगर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण पहली बार देखा ...बताते हैं की लकवा के नब्बे प्रतिशत मरीजों की स्थिति में यहाँ सुधार होते देखा गया है ...

राजस्थान के नागौर जिले में स्थित यह क़स्बा " बूटाटी" पक्षाघात के रोगियों के लिए तीर्थ धाम बन चुका है ... यह मंदिर सिद्ध पुरुष चतुरदास जी महाराज की समाधि है ...लकवा के मरीजों को सात दिन का प्रवास करते हुए रोज एक परिक्रमा लगाते हैं ... सुबह की आरती के बाद पहली परिक्रमा मंदिर के बाहर तथा शाम की आरती के बाद दूसरी परिक्रमा मंदिर के अन्दर लगानी होती है , ये दोनों परिक्रमा मिलकर पूरी एक परिक्रमा कहलाती है ...सात दिन तक मरीज को इसी प्रकार परिक्रमा लगानी होती है ...अक्सर मरीज स्वयं चलने फिरने में असमर्थ होते हैं ,उन्हें परिजन परिक्रमा लगवाते हैं ... निवास के लिए यहाँ सुविधा युक्त धर्मशालाएं हैं ... यात्रियों को जरुरत का सभी सामान बिस्तर , राशन , बर्तन, जलावन की लकड़ियाँ आदि निःशुल्क उपलब्ध करवाई जाती हैं ...इसके अतिरिक्त पास में ही बाजार भी हैं जहाँ यात्री अपनी सुविधा से अन्य वस्तुएं खरीद सकते हैं ... हर माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को यहाँ मेला लगता है ,इसके अतिरिक्त वैशाख , भाद्रपद और माघ महीने में भी विशेष मेलों का आयोजन होता है !

23 टिप्‍पणियां:

  1. बूटाटी -महत्वपूर्ण जानकारी

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  2. विशिष्ठ जानकारी!!

    सही कहा जहां सम्भावनाएं खत्म होती है आस्था वहीं से प्रारम्भ होती है।

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  3. मेरे लिए पूर्णतः नयी जानकारी है ये, अच्छा लगा जानना बूटाटी के बारे में।

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  4. पहली बार जाना इस बारे में. दिमाग इस तरह की बातें नकारने की कोशिश करता है परन्तु फिर भी चमत्कार तो होते हैं.और मेरे ख़याल से विश्वास बहुत बड़ी चीज़ होती है.बड़े से बड़े रोग का निदान उससे संभव हो सकता है.

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  5. विज्ञान अपनी जगह ठीक है लेकिन आस्था उससे बड़ी होती है. हर चीज को हम प्रयोग की कसौटी पर नहीं कस सकता है. यही आस्था और विश्वास है. विश्वास के लिए कोई पारस पत्थर नहीं होता जिससे उसको परख कर देखा जा सके. इसी दिशा में हमारी मंत्र शक्ति भी है जिसके आगे विज्ञान पंगु है. उसके लिए विज्ञान कुछ नहीं कर सकता है. इस लिए पूजा , आस्था और विश्वास किसी विज्ञान के लिए प्रयोग सिद्ध नहीं हो सकते हैं.

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  6. बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी है यह,
    अपने आस-पास के इस तरह के स्थलों के विषय में जरूर लिखना चाहिए...क्या पता, कहाँ पर किसका भला हो जाए..

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  7. मेरे ख्याल से मरीज़ का हौसला / विल पावर मायने रखता है चाहे वो जिस चिकित्सा विधि से बढे :)

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  8. वाणी जी, सच है कि जहां संभावना खत्म हो जाती है वहां से आस्था शुरु होती है।

    मेरे खुद के जीवन में तीन ऐसे चमत्कार हुए हैं, जहां हम निराश थे वहां से लौटे हैं।

    एक बार खुद ... दो दो डिस्क स्लिप और डॉक्टर ने कहा कि बिना ऑपरेशन के चल-फिर नहीं पाओगे। आज से २० साल पहले इस दिशा में अधिक काम भी नहीं हुआ था। एक गुरु मिले और मिला मंत्र। सच कहूं तो उस रोग के लिए आज तक एक भी पेन किलर नहीं खाया तब से।

    दूसरे पत्नी के दोनों लन्ग्स में कफ़ भर गया, सूख कर आधी थी, बस समझिए कि ठीक नहीं हो सकता था ... एक पीर मिले, मिला एक मज़ार, उनका आशीर्वाद, एक सप्ताह में सारा कफ़ गायब .. अपोलो का डॉक्टर हैरान कि एक सप्ताह में ये चमत्कार कैसे हुआ?

    तीसरा मेडविन हैदराबाद में एक एक्सिडेंट के बाद बेटा भर्ती होने जा रहा था, दोनों जॉ-बोन टूटे थे, सुबह ऑपरेशन होना था। वहां से किसी शक्ति ने वापस आ जाने को कहा, निकल भागे, दूसरे दिन उस शक्ति ने रास्ता दिखाया, बिना ऑपरेशन के वह ठीक हो गया।

    *** बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने।

    कोई अगर इन बातों, इन आस्थाओं को अंधविश्वास कहता है, तो मैं अंधविश्वासी कहलाना पसंद करूंगा।

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  9. @ रेखा जी
    आप सही कह रही हैं।
    हमने एक पैन्क्रियाज़ में कैन्सर के पेसेण्ट को देखा, जिसने चार-चार बार अमेरिका जाकर ऑपरेशन कराया, फिर भी पूर्णतया ठीक होते नहीं पाया। वह एक मंत्र से ठीक हुआ, और १५ साल हो गए जिन्दा है। स्वस्थ है।

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  10. वाणी जी , हमने भी सुना है इस के बारे में । लेकिन विश्वास नहीं होता । मनोज कुमार जी की बातें चमत्कारी लग रही हैं ।
    हमारे शरीर में स्वयं हील होने की अद्भुत क्षमता होती है । विशेषकर लकवा -समय के साथ और फिजियोथेरपी से ही ठीक होता है । टूटी हुई हड्डी भी अपने आप ही जुडती है । ओपरेशन से जल्दी जुड़ जाती है और टेढ़ी नहीं जुडती ।

    नज़र उतारना बेसिकली एक सायकोथेरपी का काम करती है ।
    बाकि तो सब विश्वास की बात है जी ।

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  11. Vani ji, butati meri saasuji bhi gayi thi. lekin unhe abhi tak koi labh nahi mila.

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  12. आस्था तो ठीक हे, लेकिन यह सब मेरे ख्याल मे उस जगह पर मरीज का विश्वास देख कर ओर फ़िर सात दिन तक उस जगह की परिक्रमा जो शायद आसान नही होगी करनी मरीज दुवारा , इसी बहाने उस मरीज की कसरत हो जाती हे, ओर रगो मे धीरे धीरे खुन दोडने लगता हे, तीसरा हो सकता हे उस जगह का पानी कुछ खास तत्व रखता हो,
    अगर मरीज घर मे ही इतना चले तो जरुर अच्छा हो जायेगा, लेकिन घर मे सब इतना नही करते, डरते हे कही गिर ना जाये मरीज, ओर मरीज की रगो मे खुन सही दोरा नही कर पाता, ओर वहां आस्था के कारण सब कुछ हो जाता हे लोग भी पुन्य के नाम पर मदद कर देते हे.... बस यही राज हे

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  13. नयी जानकारी मिली .... जब इंसान हर ओर से निराश हो जाता है तो आस्था ही शायद उसको प्रेरित करती है ...वैसे कुछ चमत्कार तो मैंने भी देखे हैं ...लिखने से लगेगा की अंधविश्वासी हैं ;)

    उपयोगी जानकारी देती पोस्ट ..

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  14. सही कहा जहां सम्भावनाएं खत्म होती है आस्था वहीं से प्रारम्भ होती है।विशिष्ठ जानकारी!!

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  15. आस्था के आगे हर चीज़ हार जाती है..... एकदम नई बात बताई आपने ...

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  16. विश्वास है तो आस है ...अच्छी लगी यह जानकारी

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  17. जन आस्थाएँ कितनी सचेत होती हैं, अपने इर्द-गिर्द तीर्थ बना लेती हैं, दूर कहाँ जाना! गणेश की तरह, कहाँ जाएँ धरती घूमने - अपने माता पिता की परिक्रमा कर ली। आस्थामय वह भी जीता है जो चारों धाम नहीं जाता/जा पाता, ‘बटूटी’ जैसी जगहें इनकी मक्का-मदीना सब होती हैं! साधुवाद!!

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  18. बड़ी उपयोगी जानकारी दी आपने....

    रेखा जी ने मेरे मन की बात कह दी अपनी टिपण्णी में...

    अपनी बात कहने लगूंगी तो पता चला एक पोस्ट बन गया...

    इसलिए आपकी बात का अनुमोदन करते हुए आपको आभार देती हूँ...

    संसार में ऐसा बहुत कुछ है जो किसी यन्त्र द्वारा देखा सुना चखा नहीं जा सकता...लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसका आस्तित्व होता ही नहीं...

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  19. उपयोगी जानकारी।
    मैं अंधविश्वास का विरोधी हूँ। लेकिन यह भी मानता हूँ कि आस्था में चमत्कारी शक्ति होती है। जिन्हें विश्वास है..आस्था है..श्रद्धा है..उन्हें अवश्य लाभ होता होगा, ऐसा मेरा मानना है। यहाँ भी सावधानी जरूरी है। ऐसे स्थलों में छलिये भी हो सकते हैं।

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