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बुधवार, 20 जून 2012

जंगल का लोकतंत्र ....



जंगल में सभी जानवर एक दूसरे के दुश्मन होकर भी हिल -मिल कर रहते थे . शेर , चीता , हाथी जैसे बड़े और बलवान भी तो लोमड़ी ,भेड़िये जैसे धूर्त भी .,यहाँ तक कि खरगोश , हिरन जैसे निरीह जंतु भी. इन सब जानवरों ने मिलकर शेर को राजा बना लिया था . सदियों से राजा बने रहने के कारण शेर को अपने आप पर बहुत घमंड हो गया था . वह भूल गया था कि सभ्यता के विकास और प्राकृतिक उथलपुथल का असर मनुष्यों के साथ जानवरों के स्वभाव और प्रकृति में भी स्पष्ट नजर आने लगता है . 

समय के साथ परिवर्तन अवश्यम्भावी है . शेर के खिलाफ भी जंगल के प्राणियों में खुसर- फुसर शुरू हो गयी . अपने घमंड में सना शेर यह नहीं समझ पाया था कि जनता में व्यवस्था से पनपा असंतुष्टि का भाव सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका निभाता है . बलवान शेर से मुकाबला किसी एक अकेले जानवर के लिए संभव नहीं था . सभी जानवरों ने विचार विमर्श कर निर्णय लिया कि हाथी बलवान तो होते ही हैं और झुण्ड में रहना उनकी शक्ति को और बढाता है ,वही धूर्तता में लोमड़ी का कोई सानी नहीं है इसलिए यदि ये दोनों एक साथ शेर के खिलाफ एकजुट हो जाए तो उसका घमंड तोडा जा सकता है .

जंगल में सभा हुई और सर्वसम्मति से हाथी और लोमड़ी को मिलकर जंगल का प्रशासन सँभालने का भार सौंपा गया .शेर के सामने पदत्याग के सिवा चारा नहीं था .अब चूँकि लोमड़ी और हाथी को एक साथ व्यवस्था का सञ्चालन करना था तो दोनों ने आपसी सहमति से तय किया कि दोनों बारी -बारी से 6 महीने के लिए जंगल का राज्य संभालेंगे . जब हाथी राजा होगा तो लोमड़ी को उसके निर्देशों का पालन और सहयोग करना होगा , वही कार्य लोमड़ी के जंगल की बागडोर सँभालने पर हाथी को करना होगा .सबसे पहले लोमड़ी को राज्य सँभालने का मौका मिला . लोमड़ी स्वभाव से ही धूर्त होती है , उसने पद सँभालते ही अपनी मीठी बोली से सभी जानवरों को अपने पक्ष में करने का अभियान प्रारंभ कर दिया . 

अपनी स्थिति कमजोर देखकर शेर अभी तो चुप बैठा था मगर भीतर ही भीतर उसने हाथियों को भड़काना शुरू कर दिया . उसने हाथी को समझाया कि 6 महीनों तक लोमड़ी अपनी पैठ जमा चुकी होगी , जानवरों के साथ खजाने पर भी उसका आधिपत्य हो जाएगा , तुम तो बस राजा बनने के सपने ही देखते रहना . हाथी को भी अब शेर की बातों में दम नजर आता था . उसने व्यवस्था बनाये रखने के लिए लोमड़ी के लिए गए हर निर्णय का विरोध करना शुरू कर दिया . आये दिन हाथियों और लोमड़ी में तकरार होने लगी जिसका असर प्रबंधन पर भी नजर आने लगा . जिस अव्यवस्था से उकताकर जानवरों ने इन्हें अपना राजा बनाया था , वह तो ठीक हुई नहीं , उलटे जानवरों के छोटे- छोटे झुण्ड बनकर उनमे आपस में बैर भाव शुरू हो गया . 

अब बेचारे जानवर रोज माथा पीटते थे . इससे तो शेर ही भला था, सिर्फ एक तानाशाह ही तो था , उसे तो जैसे- तैसे झेलते थे , अब तो हर तरफ से मार पड़ने लगी थी . हाथी और लोमड़ी के बीच बढती कलह को देखकर आखिर जंगल में मध्यावधि चुनाव करवाए गए . जंगल की जनता खिचड़ी सरकार की करमात देख चुकी थी इसलिए इस बार शेर को भारी समर्थन से राजा बनाया गया . अब चूँकि सत्ता की चाबी शेर के हाथ में थी , वह फिर से बलशाली हो गया था . उसने अपने गुप्तचरों को सभी उन प्रमुख जानवरों के पीछे लगा दिया जिससे उसे खतरा हो सकता था . गुप्तचरों ने सूचना दी कि भालू और लोमड़ी अभी चुप बैठे हैं , मगर मौके की तलाश में है . अब शेर को उनका शिकार करना था , मगर जंगल के लोकतंत्र में भी बिना किसी साबित अपराध के सजा नहीं दी जा सकती थी . शेर ने कुछ दिन धीरज रखा . 

शीत ऋतु में ठण्ड के आते -जाते दौर ने शेर को भी नहीं बख्शा . जुखाम के कारण छींक -छींक कर बेहाल हुआ जा रहा था . वो राजा ही क्या जो अपनी किसी भी कमजोरी या बीमारी को भी इस्तेमाल ना कर सके . .उसके दिमाग ने भी अपनी बीमारी को हथियार बनाकर षड्यंत्रकारियों से बदला लेने का उपाय ढूंढ लिया . पूरे जंगल में खबर फैला दी गयी. शेर अस्वस्थ है , उसे जुखाम हो गया है . सभी जानवर बारी- बारी से अपने राजा का हालचाल पूछने राजा की गुफा के बाहर इकठ्ठा हुए . जंगल के वैद्य को बुलाया गया . वैद्य को पहले ही ताकीद कर दी गयी थी कि सभी जानवरों के सामने राजा की बीमारी का पूर्वनियोजित कारण और उपाय ही बताना है . वैद्य जी ने  परीक्षण  करते हुए अपना आला बैग में रखा और गंभीर मुद्रा में सर हिलाते हुए राजा को गंभीर संक्रमण के कारण बीमार होना घोषित किया . वैद्य ने बताया की जुखाम नामक रोग वायु के साथ कीटाणुओं के फैलने से होता है . जंगल के ही किसी प्राणी में इस रोग के कीटाणु हैं , यदि जल्दी ही इसकी रोकथाम ना की जाए तो सभी जानवरों को इस रोग से संक्रमित होने का गंभीर खतरा है .

 वैद्य के सामने एक- एक कर सभी जानवरों का परिक्षण किया गया . अपनी षड्यंत्रकारी योजना के अनुसार भालू और लोमड़ी को रोक कर बाकी जानवरों को वैद्य ने संक्रमण मुक्त होने का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र दे दिया . भालू और लोमड़ी चकित . वे जुखाम से पीड़ित नहीं थे . लोमड़ी ने कहा ," वैद्य जी , हमें जुखाम नहीं है , बल्कि हमें अपनी जिंदगी में कभी जुखाम नहीं हुई . " "ह्म्म्म....तो तुम्हारे परिवार में किसी को हुआ होगा ." "नहीं महाराज , हमारे परिवार में भी कोई इस रोग से पीड़ित नहीं है ." "तो तुम्हारे दादा -परदादा को रहा होगा ". "मगर वे तो कबके सिधार चुके ." ..तो क्या हुआ . यह एक गंभीर रोग है . इसके कीटाणु वर्षों तक सुरक्षित रहते हैं , जब उन्हें जुखाम हुआ होगा और छींकें आयी ही होंगी , तब ये कीटाणु वातावरण में फ़ैल गए होंगे जिन्होंने आज मुझे बीमार कर दिया है . आखिर भालू और लोमड़ी को जंगल प्रदेश छोड़ कर जाने का फरमान सुना दिया गया . साथ ही यह चेतावनी भी दी गयी कि समय -समय पर जंगल में सभी जानवरों का परीक्षण किया जाएगा , जिसमे भी इस रोग के कीटाणु मिलेंगे , उन्हें जंगल छोड़ कर जाना पड़ेगा . 

राजा और वैद्य के षड़यंत्र को समझते हुए भी रोग के फैलने या अपने परीक्षण में संक्रमित पाए जाने के डर से अन्य किसी भी जानवर ने इसका विरोध नहीं किया ... अब शेर का जंगल पर एकछत्र शासन था !!


बुधवार, 23 मई 2012

आपका नाम क्या है!.......थैंक्स ,राम !(2)

थैंक्स, राम ! से आगे ....


दूसरी ओर फोन पर आर्णव हमेशा की तरह अस्तव्यस्त ..."मेरी चौकलेटी शर्ट नहीं मिल रही , और वो पीली फाईल भी "
अब 2000 किलोमीटर की दूरी से भी मैं तुम्हे ये बताऊँ कि तुम्हारी कौन सी चीज कहाँ रखी है ?
अंजना को खीझ होनी चाहिए थी , मगर वह मुस्कुरा रही थी ...वह आर्णव की उस पर निर्भरता के इन पलों को बहुत इंजॉय करती है .

कहता है आर्णव ..."तुम लड़कियां बहुत चतुर होती हो ...अपनी जड़ें छूटने का पूरा बदला हम बेचारे मासूम लड़कों से लेते हुए हमारी हर एक चीज , हर एक आदत पर अपना अधिकार जमाते हुए अपनी मर्जी से बनाती , बिगाड़ देती हो ... तुमने भी मेरी सारी आदतें बिगाड़ दी है , मैं अपनी सब चीजें व्यवस्थित रखता था , अब मुझे अपने हर काम के लिए तुम पर निर्भर होना पड़ता है "
अंजना में नहले पर दहला मारने से नहीं चूकती ," पता है मुझे ,तुम्हारा व्यवस्थित रहना कैसा होता था ...एक सूटकेस में कुछ जोड़ी कपड़े , फालतू के कागज़ , ज्यादा हुआ तो एक परफ्यूम की बॉटल ...अलमारी , ताकों पर बेकार के कागजों का ढेर , जिन पर मनों धूल जमी होती थी ... शुक्र मानो , तुम्हे घर में रहना हम लड़कियां ही सिखाती हैं, वरना तुम्हारे लिए घर और जंगल में क्या अंतर होता है..."

खुद के प्रति लापरवाह आर्णव... ताजा खाना फ्रिज में ठूंस कर आई थी ,उसके अलावा मठरियां , लड्डू भी ...जानती है , हर काम इत्मीनान से करने वाले आर्णव को बस खाना ठीक से खाने की फुर्सत नहीं होती ...रोज ऑफिस के लिए घर से निकलने से पहले खाने की थाली लिए उसके पीछे चक्कर काटना पड़ता है ...कई बार झुंझलाती है अंजना , खाना तो ढंग से बैठ कर खा लो मगर हमेशा की तरह आर्णव का वही गीत..." आज फिर देर हो गयी है "...

जब स्कूल में उसकी मोर्निंग शिफ्ट शुरू हो जाती है तो स्टाफ रूम से फोन पर आर्णव को खाना ठीक से खा लेने को कहते हुए वह एक नजर उसकी साथी शिक्षिकाओं को कोहनियों से एक दूसरे को टोहका मारते देख आँखें तरेर देती है ...नारी  जागृति  मंच से जुडी मिशेल कई बार ताना मारती है " तुम्हारी जैसी नारियां तो मेरे नारी सशक्तिकरण मंच की हवा ही निकाल कर रख देंगी , तुम्हारा पति कोइ बच्चा है ??"
" अरे बाबा , जिससे प्यार करते हैं , उसकी चिंता तो रहती ही है, ये नारी ,पुरुष की बात नहीं है ना ..." अंजना मुस्कुराने  लगती  थी ...

"तुमने नाश्ता किया या नहीं"
"नहीं , ऑफिस में ले लूँगा"
"इतना कुछ बना कर आई हूँ .थोडा तो खा लेते , कितनी तेज गर्मी है , भूखे पेट घर से मत निकलो "
"तुम कब लौट रही हो अपने घर"
"काकी से कह देती हूँ , एक दिन में ही सारी रस्में निपटा दे" चिढ़ा रही थी अंजना ... "अच्छा सुनो , राशिका जी के परिचित का सामान पहुंचा दिया"
"वही देने तो आई हूँ , यही पास में ही लीना का घर भी है , उसे लेते हुए घर लौटना है"
"अच्छी तरह चल रही है शादी की तैयारियां??"
"हाँ , बस तुम्हरी कमी लग रही है , सब पूछ रहे थे कंवर साहब क्यों नहीं आये ,"
"तुम जानती तो हो , औडिट का काम चल रहा है , मैं नहीं सकता था ...शादी के माहौल को एन्जॉय करो और जल्दी लौटो "....
"बाय.. टेक केअर"
आर्णव की कलिग राशिका जी का ससुराल भी यहीं था  ...लम्बी दूरी पर रहने वाले परिचित जैसे सामान पहुँचाने वालों की ताक में ही रहते हैं , जैसे ही पता चलता है कि कोई उनके शहर जाने वाला है , लाने और ले जाने वाले सामान या उसकी लिस्ट के साथ हाज़िर हो जाते हैं ...आरामदायक यात्रा के लिए कम से कम सामान ढ़ोने का आपका सपना साकार होने से पहले ही ढह जाता है ...दूरियों के मारे स्नेह से भीगते लोगों को इनकार भी तो नहीं किया जा सकता ...खुद काकी ने कई बार परिचितों के माध्यम से उसके लिए ख़ास हैदराबादी नान खटाई , टमाटर और इमली की खट्टी चटनी के साथ कई प्रकार के लहसुनिया अचार भेजे हैं उसके लिए !
राशिका जी का सामान पहुंचा कर अंजना फटाफट लीना के घर पहुंची ...लीना यूँ तो उसकी रिश्तेदार है , मगर साथ ही अच्छी सहेली भी है...अंजना के हैदराबाद पहुँचते ही धमकी भरा फ़ोन खुड़का दिया ,
" तुम रही हो या मैं जाऊं , चूल्हे पर चढ़ी दाल और आटे में डला पानी यूँ ही छोड़ कर "
भरोसा नहीं है लीना का , उसी हाल में घर छोड़ कर भागी आये ...
" तुम्हारे पड़ोस में ही काम है मुझे , मैं ही आती हूँ , मगर जरा फ्रेश तो हो लूं , तुम तैयार रहना , साथ ही लौटेंगे संगीत में ...
काकी को सामान अर्जेंट पहुंचा कर जल्दी लौटने का वास्ता देकर बड़ी मुश्किल से मनाया ...
"एक तो ऐन टाइम पर पहुंची हो , अब घूमने चल दी ....बहू के घर आज मेहंदी की रस्म है , वहां भेजे जाने वाले गहने ,कपड़े तो देख ले ...सब तो तैयारी हो गयी है , बस बहू की छोटी बहन के लिए कुछ लाना रह गया था '...

"आपकी तैयारी है तो सब कुछ परफेक्ट ही होगा , फिर भी जो रह गया है मैं लीना के साथ मार्केट से ले आउंगी ...क्या लाना है , साडी या सलवार कमीज" ...
"तू देख ले , जो तुझे पसंद हो ,ले आना , मगर समय से लौटना , फिर हमें यहाँ से मैरिज हौल भी जाना है , तू कुछ रिहर्सल भी कर लेती महिला संगीत के लिए"

हंसी आती है अंजना को , मेहंदी लगाते महिलाओं की हंसी -ठिठोली के बीच गाये जाने वाले विवाह गीतों का स्थान एक- एक कर स्टेज पर फ़िल्मी गीतों पर नृत्य कला के प्रदर्शन ने ले लिया है ..
उसे याद आया ...महिला संगीत में बहनों की ओर से क्या बांटा जाएगा ...सीमा से पूछा उसने ," जीजी, मैं ले आई हूँ , आप निश्चिन्त रहें "
ठीक है , कितने रूपये देने हैं , मुझसे ले लेना ...अभी तो मैं भागती हूँ , फिर जल्दी लौटना भी है ...और वह रिक्शे में बैठ कर चली आये लीना से मिलने ...

"कहाँ है तेरी जली हुई दाल ,फ़ोन पर तो यूँ दिखा रही थी कि बेचारी गृहस्थी के बोझ से दबी जा रही है , देख रही हूँ कि तेरा खुद का बोझ कितना बढ़ गया है " लीना से गले मिलते उसके बढ़ते मोटापे की ओर इशारा किया अंजना ने ...

"ओये नजर मत लगा , खाते -पीते घर के हैं हम" ... गले मिलते लीना ने धौल जमा दिया उसकी पीठ पर
"हाँ , मासी तो तुझे कुछ खिलाती- पिलाती नहीं थी "....लीना की माँ को अंजना मौसी ही कहती थी .
दोनों सहेलियां चाय की चुस्कियों के बीच एक दूसरे के परिवारों के हालचाल पूछती बतियाने लगी ...

चल अब तू जल्दी कर . थोड़ी शॉपिंग करते हुए लौटना है घर ...सभी इंतज़ार कर रहे हैं वहां ...अंजना ने बाजार से ख़रीदे जाने वाले सामान की लिस्ट निकाली...
"यह सब तो यही पास में मिल जाएगा , तुझे याद है, वो किराये का मकान जिसमे हम रहा करते थे ...उस पूरे बाड़े को गिराकर एक नया शॉपिंग काम्प्लेक्स बना दिया गया है , वही कर लेते हैं सारी शॉपिंग "लीना ने लिस्ट पर नजर डालते हुए कहा ...

बाड़ा , एक बड़ी सी धर्मशाला रही होगी कभी ...किसी पुराने मारवाड़ी सेठ की बनवाई हुई ...शादियों में बारात को रुकवाने या शहर घूमने आये अतिथियों के सस्ते और आरामदायक निवास के लिए शहर में कई स्थानों पर धन्ना सेठों द्वारा धर्मशालाएं बनाई गयी थी , मगर समय के साथ इन धर्मशालाओं को नौकरी पेशा लोगों के रहने के लिए किराये पर दिया जाने लगा ...उसी बाड़े के एक हिस्से में लीना रहती थी अपनी माँ के साथ ...लीना के जन्म के कुछ समय बाद ही कम उम्र में विधवा हुई उसकी माँ ने बड़ी मुश्किलों के बीच उसका पालन पोषण किया ...पति के जाने के बाद ससुराल से ठुकराई छोटी दुधमुंही बच्ची को गोद में लिए मायके आ तो गयी थी मासी , मगर भाई -भाभियों पर बोझ बन जाना उसे मंजूर नहीं था ...बहुत जिद करने पर उसके भाई ने ही अपनी परिचित द्वारा उस बाड़े में मामूली से किराये पर आजीवन रहने का बंदोबस्त कर दिया था , मासी ने दूसरों के कपडे सिलते , खाना बनाते , पापड़ मंगोड़ी बना कर बेचते हुए भी लीना के लिए हर प्रकार की सुविधाएँ जुटाने में कोई कसर नहीं रखी थी ...मगर पिता के साये से महरूम लीना को पढने लिखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी , उसकी दुनिया सजना संवरना , फ़िल्में देखना और बस पूरे बाड़े में उछल कूद मचाये रखना ...

मित्रता मित्र के गुण -अवगुण से परे होती है , एक सामान विचारों अथवा स्वभाव का होना वांछनीय नहीं है ...कई बार लगता है उसे, बाकी रिश्तों की तरह मित्रता भी ईश्वर ही तय करता है वर्ना कहाँ अंजना जैसी धीर, गंभीर,  ज़हीन  और सादगी पसंद लड़की , किताबें जिसके हाथ से छूटती नहीं और कहाँ किताबों के नाम से ही दूर भागने वाली फैशन परस्त लीना ...कोई जोड़ नहीं था दोनों का , मगर फिर भी उनके बीच अच्छी मित्रता थी.
कुछ ही देर में दोनों सखियाँ शॉपिंग काम्प्लेक्स में दाखिल हो रही थी ...उसकी आधुनिक साजसज्जा देख कर यकीन ही नहीं कर सकता कोई कि यहाँ कोई पुरानी धर्मशाला रही होगी, जिसकी सीढियों पर दर्जन भर परिवारों की आवाजाही रहती होगी , नीचे एक कोने में दूध की डेयरी जहाँ कुछ भैंसे भी बंधी होती थी ...

" कुछ याद आया " लीना छेड़ रही थी उसे ...देख यहाँ कही दीवारों पर तेरा नाम तो नहीं ...
तू सुधरने वाली नहीं है ...
एस्केलेटर से सीढियाँ उतरते उसकी धीमी खटर पटर में सुना अंजना ने ..." आपका नाम क्या है "
चौंक कर देखा इधर -उधर ... कोई नहीं था ...लीना की शैतान मुस्कराहट अंजना को भी संक्रमित कर रही थी ...वह भी धीमे से मुस्कुराने लगी ।
मगर तब वह इस तरह मुस्कुराई नहीं थी ...
गुस्से से लाल- भभूका हो गया था उसका चेहरा , जब राह चलते एक किशोर ने रोक कर उससे पूछ लिया....
" आपका नाम क्या है " अंजना के बिगड़े मूड को देख कर लीना ने उसकी हथेलियाँ अपने हाथ में कसकर दबा ली थी ...



क्यों गुस्सा हो गयी थी अंजना इस कदर , नाम क्यों पूछा उससे किसी अनजान शख्स ने ...
क्रमशः

थैंक्स राम ! (1)

अन्जना कई वर्षों के बाद लौट आयी थी इस शहर मे ...गगनचुम्बी अट्टालिकाएं और उन पर लगे बड़े- बड़े होर्डिंग्स ,घुप्प अँधेरी रात में भी रौशनी से जगमगाता निजामों का शहर हैदराबाद ... प्राचीन धरोहरों को बड़े करीने से संभाले यह शहर पुरातन और आधुनिकता का अनोखा संगम है ...जहाँ गुलजार हौज़ , शमशेरगंज , बेगम बाज़ार , सहित शहर की तंग गलियों में क्रिकेट की बॉल के साथ जूझते बच्चे तो वहीं आबिद रोड की चौड़ी सड़कों पर फ़र्राट बाईक दौडाते भी ...

चारमीनार के पास से गुजरते उसके चारों ओर ट्रैफिक की रेलमपेल , भेलपुरी ,कट्लीस , डोसा , आमलेट की बंडीयां (थडीयां ), बांह भर हरी -लाल चूड़ियाँ खनकाती काले  क्रीमी   नकाब से झांकती सिर्फ़ आँखें , वहीँ चार मीनार के पास सड़कों के किनारे पर स्वादिष्ट चाट के चटकारे लेती महिलाएं , उसे याद है, शाम को घर से पैदल घूमते चारमिनार तक चक्कर काट आना ...  भेलपुरी , चाट का स्वाद , जीभ पर खट्टा -मीठा सा स्वाद तैर आया ...

लाड़ बाजार मे लाख के जडाऊ कड़ों का मोल -भाव करती दर्जन भर महिलाएं ...कुछ भी तो नहीं बदला था ...पत्थर गट्टी पर मोतियों के जगमगाते शो रुम के बीच अलग प्रभाव जमाता गार्डेन वरेली शोरुम , सड़क के दूसरे किनारे पर रेडीमेड सलवार कमीज ,मैचिंग दुपट्टे की छोटी दुकाने पीछे छोड़ता हुआ उसका रिक्शा आगे बढ़ रहा था ....उसे याद आया काकी के साथ छोटे भाईओं को उनके मिशन स्कूल से लेकर लौटते अनगिनत बार यहीं पेड़ के नीच गन्ने का जूस पिया जाता  था , गुलज़ार हौज़ से घर की और पैदल ही लौटते दुकानों के बाहर चिल्ला कर ग्राहकों को आमंत्रित करते ,
" देख लो दीदी , नयी डिजाईन के सलवार कमीज है ,या अम्मा ऐसे क्या करते , देख तो लो , नहीं जमे तो नक्को होना बोल देना "
कई बार पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता था ...
काकी ठसक कर कहती ..." क्या करते जी तुम , तुम्हारे मालिक को बोलती अभी , ऐसे राह चलते लोगों को परेशान करते , हौला समझ के रखा है क्या हमको " बेचारे खिसिया कर अपनी राह नापते .

शहर की चहल पहल से आँखे मिलाते पता ही नहीं चला , उसका रिक्शा छः लाईन पुल को कब का पीछे छोड़ चुका था ... सुल्तान बाजार चौराहे पर बहुमन्जिला इमारत के एक कोने पर तेज धूप मे चमकता आंध्रा बैंक का होर्डिंग ...
"बस यहीं रोक दो भैया" ....वर्षों बाद ऐसे रिक्शे पर बैठना हुआ था उसका ...पिता की नौकरी ने उसे मातृभूमि से अक्सर दूर ही रखा मगर जब भी हैदराबाद लौट कर आना होता तो घुटनों को पेट तक सटाए रिक्शे पर बैठे लोगों को देखकर बहुत हंसती थी ...कितने अजीब रिक्शे हैं ...और जब पूरा परिवार इन पर एक साथ लद कर निकलता तो नजारा देखने लायक होता था ...रिक्शे पर चार सवारी एडजस्ट की जाती , दो बैठे हुए और दो नीचे पैर लटका कर , अंजना भाग छूटती ," मुझसे नहीं बैठा जाता , मैं ऑटो से आउंगी " उसी अंजना को आज क्या सूझा...?

" कहाँ जाना है अम्मा " घर से निकलते ऑटो रिक्शे वालों की पुकार को अनसुना कर जानबूझ कर यह रिक्शा पसंद किया उसने ...इन बीच के वर्षों में उसकी और आर्णव की नौकरी के के चलते कई छोटे -बड़े शहरों में प्रवास करना हुआ ...
" किसी शहर को जानना हो , उसकी ख़ूबसूरती निहारनी हो तो , उसे पैदल घूमो , या फिर छोटे रिक्शा में ...तेज भागते वाहनों से भी कभी किसी शहर को जाना जा सकता है ".. अक्सर आर्णव कहता था .
और फिर ये तो उसका अपना शहर था ,उसकी भीनी खुशबू को अपने नथुनों में भर लेना चाहती थी , जाने फिर कितने वर्षों बाद उसे यह मौका मिले ...उसे याद आया ,यहाँ पहुँचते ही उसे फोन करना था , पर्स से मोबाइल निकाल कर आर्णव का नंबर मिलाने लगी .


क्रमशः  थैंक्स राम ! (2)थैंक्स राम ! (3)थैंक्स राम ! (4)), थैंक्स राम ! (5), 
थैंक्स राम !  (6) आखिरी किश्त 


बहुत दिनों से नहीं , सालों से कहानियों के पात्र दिल और दिमाग में हलचल मचाते रहे हैं , देखूं... लेखनी से क्या कुछ कहते हैं!!

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

बिना बात की बात ...


कल हमारे केस की हीअरिंग है , मुझे वकील साहब के पास जाना है , मेरे बैग में ज़रूरी समान रख देना ...पापा माँ से कह रहे थे . अपने कमरे से सुनकर दौड़ी आई रेवती ..
पापा .कल मैं भी आपके साथ चलू, मुझे भी अपने कॉलेज में कुछ काम है , आप जबतक अपना काम निपटायेंगे मैं अपनी हॉस्टेल की फ्रेंड्स से मिल लूंगी , आप लौटते समय मुझे साथ ले आना .
ठीक है , लेकिन सुबह जल्दी तैयार रहना.
सुबह जल्दी करते हुए भी रेवती कुछ देर से तैयार हो पाई . पापा के ऑफिस की गाडी घर के गेट पर लग चुकी थी .
जल्दी करो , रेवती को आवाज़ लगाते हुए पापा कमरे से बाहर निकले . रेवती दुपट्टा सँभालते हुए एक हाथ में कंघी लिए दौड़ती भागी पहुंची . पीछे माँ आवाज़ लगाती ही रह गयी , रेवती , बेटा कुछ तो खा लो !
तब तक गाडी का होर्न बज चुका था. जानती है पापा को लेटलतीफी बिलकुल पसंद नहीं , उसे घर पर ही छोड़कर रवाना हो जायेंगे.
क्या पापा , जीप मंगवाई है आपने , कोई कार फ्री नहीं थी .
पापा ने पीछे की सीट पर मुड कर देखा , गैरेज में कोई कार नहीं थी , और मुझे इंतज़ार नहीं करना था , फिर यहाँ की सड़कों के लिए तो जीप ही ठीक है.
बुरा सा मुंह बनाया रेवती ने . सही कहा था पापा ने .कम्पनी के कम्पाउंड से बाहर निकलते ही टूटी सड़कों के कारण हिचकोलों के झूले प्रारम्भ हो गये थे .
आम और लीची के बागों से गुजरते इन पगडंडियों की टूटी सड़कें हिचकोलों के दर्द को थोडा कम कर देती है . दोनों ओर बड़े- बड़े पेड़ों की शाखाएं ऊपर जाकर इस तरह मिल जाती हैं कि पता ही नहीं चलता कि इनकी जड़ें सड़क के दो विपरीत छोरों पर हैं . इनके झुरमुटों के बीच से अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए सूरज को कितनी तिकड़में लगानी पड़ती होंगी .
दूसरे छोर पर वृक्षों की हरी पत्तियों के बीच आसमान की लाली के बीच एक क्षीण सी किरण पत्तों से टकराकर इन्द्रधनुषी दृश्य उपस्थित कर रही थी . इन सबके बीच मुंह पर अंगोछा ढके लोटा लिए जाते हुए , तो कही मोटरसाकिल पर दूध के बड़े ड्रम लटकाए हुए लोंग भी नजर आ रहे थे .
लौरिया के अशोक स्तम्भ से गुजरते हुए सोचा रेवती ने , इतिहास की किताबों में खूब पढ़ा है इनके बारे में , मगर यहाँ किस कदर असरंक्षित है यह स्मारक. घर का जोगी जोगना बाहर का सिद्ध . मानव स्वभाव भी अजीब है , सबसे करीब या आसानी से उपलब्ध वस्तुएं हमारा ध्यान आकर्षित नहीं करती . यही विचित्रता रिश्तों में भी तो होती है . अपने सबसे करीबी रिश्तों के प्रति हम कितने लापरवाह होते हैं .

चाय तो पीनी है, मगर रुकेंगे तो देर हो जायेगी , वकील साहब हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे , बहुत तैयारी करनी है . पहले इसके कॉलेज की ओर मोड़ लो , अच्छा है वकील साहब का घर भी पास ही है , वे शहर की सीमा में प्रवेश कर चुके थे .
कॉलेज के बाहर पसरे सन्नाटे से आशंकित रेवती ने पता किया ऑफिस में , आज कॉलेज की छुट्टी है .
ओह , फोन करके घर से निकलना था . अब क्या करे , यहाँ किसी परिवार से भी परिचित नहीं है . अब दिन भर पिता के साथ उनकी कानूनी कार्यवाही का साक्षी बनते घूमना होगा .
आजका तो दिन ही खराब है , कोई बुक , नोवेल भी साथ नहीं लाई , कैसे दिन गुजरेगा. वह सोच रही थी कि उनकी गाडी शहर के प्रसिद्ध वकील शिवशंकर श्रीवास्तव के घर के बाहर जा रुकी . ऊँची बाउंड्री से घिरे मकान का कोई हिस्सा बाहर से नजर नहीं आ रहा था . बड़ी कोफ़्त होती है रेवती को , लोंग ऐसे घरों में क्यों रहते हैं कि ना बाहर से कुछ नजर आये ना भीतर से बाहर के लोंग नजर आये .
मैं वकील साहब से बात करके आता हूँ , फिर साथ ही कोर्ट में चलना पड़ेगा ...तुम जीप में ही रहना , हम आते हैं.
आधा घंटा हो गया था पिता को अन्दर गये हुए , और उस बड़े बंगलों वाली सुनसान सड़क पर जीप की अगली सीट पर उबासियाँ लेती हुई दोनों हाथों में सिर छिपाकर स्टीयरिंग के सहारे बैठी रेवती मन ही मन खुद से बात कर रही थी . कहीं भी नींद ना आने की भयंकर बीमारी थी रेवती को वरना इस शांत स्थान पर नींद का एक दौर तो आसानी से पूरा हो सकता था . बहुत गुस्सा और झुंझलाहट हो रही थी उसे अपने आप पर , पापा के साथ आने का लोभ क्यों किया उसने , बस से ही आ जाती तो इतनी बोरियत तो नहीं होती .
" दीदी जी , आपको साहब अन्दर बुला रहे हैं ", जीप के पास से किसी की आवाज़ सुनकर उसने सिर उठाकर देखा, शायद उस बंगले का नौकर था .
जी पापा , आपने बुलाया ...
ये मेरी बेटी रेवती है , यहीं कॉलेज के हॉस्टल में रहती है , आज कॉलेज की छुट्टी है , नाहक ही मैं अपने साथ ले आया . रेवती से मुखातिब होते हुए उसके पिता ने कहा ...हमें बहुत समय लगेगा , तुम यही आराम करो.
नमस्ते अंकल , कहते हुए रेवती ने हाथ जोड़ दिए .
कोई बात नहीं ,यह भी अपना ही घर है . किशोर , इन्हें दीदी के पास ले जाओ .

कानून की मोटी किताबों और फाइलों के अम्बार से सजे उनके ऑफिस में पिता के साथ कम्पनी के केस की हीअरिंग की तैयारियां चल रही थी.
बड़ी सी कोठी की आलिशान बैठक को क्रॉस कर नौकर उसे गेस्ट रूम में ले गया .
आप बैठिये , मैं दीदी को बुलाता हूँ .
बैड , ड्रेसिंग टेबल , स्टडी टेबल पर लैम्प , बड़ी आलमारियां , मन ही मन सोच रही थी रेवती , ये इंतजाम तो मेहमानों के लिए है , तो खुद के लिए क्या होगा.
पूरे घर में जैसे सन्नाटा सा था . बंगला उपन्यासों की गंभीर पाठिका रेवती ने सोचा ,बड़ी कोठियां निर्जन होने के लिए अभिशप्त ही होती हैं शायद.
थोड़ी देर में एक युवती एक युवक का सहारा लेकर धीरे -धीरे चल कर कमरे में आई . गर्भावस्था के कारण चलने में उसे थोड़ी परेशानी थी .
दोनों के बीच परिचय का आदान प्रदान हुआ . इस घर की बेटी शर्मीला अपनी पहली जचगी के लिए मायके आई हुई थी . उनके विवाह को अभी डेढ़ साल ही हुआ था . अपने और अपने भाई वीर के परिचय के साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि माँ को आवश्यक काम से लिए शहर के बाहर जाना पड़ा , डिलीवरी में अभी एक महीने से भी ज्यादा का समय है .
तब तक किशोर चाय ले आया .
सचमुच उसे चाय की बहुत तलब हो रही थी , जीप से उतर कर एक चक्कर भी लगाया था उसने आस पास कि कही कोई चाय की दूकान नजर आये , मगर वहा तो दूर- दूर तक सन्नाटा पसरा था , कुछ ऐसा ही सन्नाटा कोठी के भीतर भी महसूस हुआ उसे . इतने बड़े बंगले में घर में कुल तीन प्राणी थे , दो नौकर जो घर के पिछले हिस्से में बनी रसोई में नाश्ते और खाने के प्रबंध में जुटे थे . वह अपनी कॉलोनी के छोटे से बंगले में भरे -पूरे परिवार के शोरगुल के बीच रहने की आदी थी .

चाय ले लो , नाश्ता भी तैयार है ...दीदी किशोर को आदेश दे रही थी , थोड़ी देर में ले आना ...
नहीं , आप लोंग करें नाश्ता , मैं घर से करके आई हूँ , संकोचवश साफ़ झूठ बोल गयी रेवती , नाश्ता कहा किया था उसने.
शर्मीला दी ने उससे उसकी कॉलेज के बारे में पूछा ...वे आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी से बोली , अच्छा , इसी कॉलेज में पढ़ती हो , ये तो हमारे घर के पास ही है , मैंने भी अपनी बी एस सी यही से की है . शर्मीला की ख़ुशी ने जताया कि उन एकसार लम्हों या स्थानों से गुजरे लोंग अचानक ही अपने सहयात्री लगने लगते है. और रेवती को महसूस हुआ जैसे विदेश में एक ही कस्बे के रहने वाले दो अजनबी मिले हों .
फिर वे सभी लेक्चरर्स के बारे में पूछने लगी , फिजिक्स की नयी मैंम आई हैं, कैमिष्ट्री के सर पुराने हैं , वे अपने ग्रुप की पुरानी शरारतों को याद कर रही थी, जब रेवती ने बताया कि हम भी उन लम्बे और दुबले पतले सर को पेंडुलम सर(उनके सामने नहीं ) कह कर ही बुलाते हैं , तो वे खूब हंसी .
इस हंसी में वीर भी शामिल था और उसने टोक दिया कि मेरा अक्सर आना होता है कॉलेज में . एक बार सहमी रेवती मगर फिर से उसी उत्साह से बोली , तो क्या , मैं थोड़े ना बुलाती हूँ उन्हें पेंडुलम , मेरी अच्छी इमेज है क्लास में , सबसे ज्यादा सवालों के सही जवाब मैं ही देती हूँ .
तीनों की बातों का दौर कई घंटो तक चलता रहा, खेल , राजनीति , कॉलेज लाईफ , प्रतियोगी परीक्षाएं , फ़िल्में ,साहित्य ,शरतचंद्र , प्रेमचंद्र कौन सा ऐसा विषय नहीं होगा जो उनकी बहस में शामिल नहीं हुआ होगा . इस बीच वीर खुद चाय भी बना लाया . दीदी हँसते हुए उसे छेड़ रही थी, कुछ खा रही नहीं हो , चाय तो पी लो .
बीच में वह घडी भी देख लेती . दोपहर हो आई थी . उसे बुरा लग रहा था शर्मीला दीदी के लिए , उन्हें आराम की जरुरत थी , और उन्हें उसके कारण इतनी देर वहां बैठा रहना पड़ रहा था . बाहर कुछ क़दमों की आहट सुनकर बोला वीर , अंकल आ गये हैं शायद .
रेवती ख़ुशी से एकदम बाहर लपकने को हुई तो शर्मीला और वीर हँस पड़े .
क्या हम तुम्हे इतना बोर कर रहे थे .
अरे नहीं , झेंप गयी रेवती . बल्कि मैंने आप लोगों को इतना परेशान किया , इतना समय लिया . अच्छा लगा आप लोगो से ढेर सारी गप शप कर के .
रेवती , आ जाओ ... पापा आवाज़ लगा रहे थे . रेवती उन लोगों से इज़ाज़त लेकर बाहर आ गयी .

हॉस्टल में सन्डे यानि छुट्टी का दिन बहुत ख़ास होता है . बाथरूम के बाहर अपना टॉवेल ,ब्रश , बाल्टी ,मग और कपड़ों सी लदी फंदी लड़कियां लाईन लगाकर खड़ी थी. . आम दिनों से अलग आज देर से सोकर उठना, बालों में शैम्पू करना , कपड़े धोकर सुखाना, अपनी टेबिल , ब्रीफकेस में समान को करीने से रखना . और सबसे बड़ी तैयारी आउटिंग के लिए . रेवती का कोई लोकल गार्जियन नहीं था इस शहर में , इस लिया बहुत सी लड़कियों की तरह उसे किसी के आने का इंतज़ार नहीं था , ना ही आज कही बाहर जाने का मन था , इसलिए वह अपने बिस्तर में धंसी किताबों में डूबी थी .
तभी अचानक लड़कियों के झुण्ड में हलचल मची . बाथरूम में अपनी लाईन का झगडा भूल सब एक साथ बाहर की ओर लपक ली . उसकी रूममेट माया उसका हाथ खींचते हुए से बोली ," चल बाहर , वीर आये हैं "
कौन वीर , किसके भैया और तुम इतना उत्साहित क्यों हो रही हो ,तुम्हारे भी रिश्तेदार हैं ??
अरे नहीं पागल , वो तो उषा के चचेरे भैया , जो उसके लोकल गार्जियन है, उनके दोस्त हैं. हमारी ऐसी किस्मत कहाँ ! आह भरने का नाटक करते हुए माया ने कहा .
नौटंकी , अभी पूछ लो कि अकबर किसका पुत्र था तो याद नहीं आएगा , और लड़कों की दूर-दूर की रिश्तेदारी तक मालूम है .

रेवती बहुत खीजती है लड़कियों की इस आदत पर. किसी का भी कोई रिश्तेदार आ जाये , इनकी खिंचाई या ताकाझांकी से नहीं बच सकता . कौन कहता है ,लड़के ही छेड़ते हैं लड़कियों को , कोई इन गर्ल्स हॉस्टल के नज़ारे देखे , किसी भी स्टुडेंट का रिश्तेदार कोई हैंडसम लड़का अगर उससे मिलने आ गया तो उसकी खैर नहीं , सवाल कर के परेशान कर देती हैं , यहाँ आकर उनकी सारी हीरोगिरी हवा हो जाती है .
सुनो , तुम ही करो यह ताका झांकी.
रेवती अलग है इन लड़कियों से . इस उम्र में जहाँ लड़कियों के आदर्श सिनेमा के स्टार होते हैं , उनके चित्र टेबल और दीवारों पर सजाते हैं , उसकी टेबिल पर सजती हैं लतामंगेशकर की वह तस्वीर जो उसने धर्मयुग के बीच के पेज से निकाली थी .
अरे , चल ना एक बार देख तो कितने हैंडसम है वीर जी , उसके दुगुने कद और शरीर की माया उसका हाथ खींचते हुए बाहर ले आई . गेस्ट रूम के बाहर के लौंज में कुर्सी पर बैठे वे लोंग अपनी बहनों से बात कर रहे थे ,सामने खुले लॉन में बहुत सी लड़कियां अचानक ही पढ़ाकू बनी किताबों से जूझ रही थी . माया ने टोहका मारा , देख उस वनश्री की किताबें , उलटी पकड़ी हैं . दोनों ठहाका मारकर खूब हंसी, हँसते हुए ही अचानक उसकी नजर लाउंज में बैठे वीर की ओर देखा.
ओह ,ये वही वीर श्रीवास्तव है , जिनसे पिछले हफ्ते इतनी लम्बी बातचीत हुई थी. परिचय की एक झलक आँखों में देख कर कुछ कदम आगे बढती रेवती वही रुक गयी . यदि इन लड़कियों को पता चल गया कि उनके हीरो से, जिसकी एक झलक देखने के लिए वे लाईन लगा कर खड़ी रहती हैं , उसकी बहनों की खुशामद करती है कि वो आये तो उनको हमारा परिचय भी देना , उससे रेवती मिल चुकी है , इतनी देर तक गपबाजी कर चुकी है तो खोद -खोद कर सवालों की झड़ी लगा देंगी , और बिन बात की बात मशहूर हो जाएगी.
तुम ही मिलो इन लोगों से , मैं तो चली , माया से हाथ छुड़ा कर रेवती अपने कमरे की ओर बढ़ गयी .
बहुत लोगों के लिए ख़ास हो जाने वाली घटनाएँ किसी के लिए कितनी आम हो जाती है . या जीवन में जो साधारण घट जाता है , वह कितना असाधारण भी हो सकता है ! लौरिया के निकट स्थित अशोक स्तम्भ फिर से याद आया रेवती को !


गुरुवार, 26 मई 2011

सिनेमाई यादें ......थैंक्स राम !(3)

आपका नाम क्या है .. से आगे


" आपका नाम क्या है " ....उसने सामने देखा ,घुंघराले बालों वाला एक किशोर सामने खड़ा उससे ही मुखातिब था ...
" तुम्हे क्या मतलब है मेरे नाम से "
"नहीं , ऐसे ही पूछ लिया "
" ऐसे ही से क्या मतलब , ऐसे ही राह चलते किसी को भी रोक कर नाम पूछ लेते हो , तमीज नहीं है"...उबल पड़ी अंजना ....
शांत स्वभाव की अंजना का यह रौद्र रूप लीना ने कभी नहीं देखा था ,मगर अंजना ऐसी ही थी , यूँ तो शांत स्वभाव था उसका , मगर गुस्सा होने पर उसकी वाणी धाराप्रवाह आग उगलती थी ...उसने ये भी नहीं देखा कि आस पास लोंग इकट्ठे हो गये हैं ....लीना ने स्थिति सँभालते हुए तेलगु में कुछ कहा उस लड़के से , वह वहां से चला गया ...लीना उसका हाथ पकड़कर खींचती हुई घर ले आई थी ...

" ऐसा कुछ नहीं है अंजू , तू तो यूँ ही इतना गुस्सा हो गयी "
" यूँ ही का क्या मतलब ,बात गुस्सा होने की नहीं है, हिम्मत तो देख उसकी , खा जाता अभी थप्पड़ ...और तूने क्या कहा उस लड़के से , तेलगु में कहने की क्या जरुरत थी , बात ही क्यों करनी थी"
" मैं जानती हूँ उस लड़के को ...यही इसी बाड़े में रहता है "
" क्या , कहाँ रहता है , बता उसका घर , अभी उसके पेरेंट्स से बात करती हूँ , ये तमीज सिखाई है उन्होंने "
"तू क्यों इतना गुस्सा हो रही है , बात तो सुन ले पूरी ...अभी पिछली बार तू यहाँ आई थी तो तुझे देखा था उसने , हमसे नाम पूछा तो कहने लगा नहीं , ये नाम नहीं हो सकता , आप झूठ कह रहे हो , इसलिए जब आज तू अचानक नजर आ गयी तो उसने पूछ लिया "
" जान ना पहचान मैं तेरा मेहमान , करना क्या है उसको मेरे नाम से, खुद का क्या नाम है उसका , कौन से हीरे मोती जड़े हैं उसके नाम में " अंजना अभी तक डपट रही थी लीना को ..
" उसका नाम रामदास है , अच्छा मैं समझा दूंगी , नहीं पूछेगा " लीना हँस रही थी ....
मासी लौट आई थी काम से ...सब सुन कर हंसने लगी
मासी आप भी ...अंजना ने बुरा -सा मुंह बनाया !
तू रामू की बात पर इतना गुस्सा हो रही है , यहीं नीचे की मंजिल में रहता है , बुरा लडका नहीं है ,बावला है , ऐसे ही पूछ लिया होगा , अच्छा परिवार है , माँ टीचर है , पिता सिंचाई विभाग में इंजिनीअर हैं , उनके मकान का काम चल रहा है , यहाँ कुछ दिनों के लिए ही हैं " मासी लीना से भी दो कदम आगे बढ़कर उसका पूरा इतिहास, भूगोल बताने लगी थी...

" चल, तेरा मूड ठीक करते हैं , मूवी देख कर आते हैं ...दिलशाद में राम तेरी गंगा मैली लगी हुई है " बाड़े से कुछ ही कदम की दूरी पर था दिलशाद टॉकीज..

कम दूरियों पर ही अधिक सिनेमाहॉल , ये भी हैदराबाद की विशेषता मानी जानी चाहिए थी ...मूवी का नाम जाने बिना भी काकियाँ कई बार घर से रवाना हो लेती कि किसी न किसी थियेटर में तो अच्छी मूवी मिल ही जायेगी , पास -पास ही तो हैं ...महेश्वरी के साथ परमेश्वरी , संतोष के साथ सपना , रामकृष्ण में एक साथ तीन स्क्रीन , ऐसी ही एक दोपहर में मूवी तलाशते पहुच गयी थी वे लोंग मधुमती देखने ...

अच्छी मूवी होगी क्या ...काकियाँ सशंकित थी ...
"अच्छी क्लासिकल मूवी है , देख लेते हैं " ककियाँ उसपर भरोसा करके चली तो गयी मगर कलरफुल सिनेमा के दौर में उन्हें श्वेत श्याम देखना पसंद नहीं आया , देर तक कोसती रही उसे ," कहाँ लेकर आई है "

आखिर परेशान होकर इंटरवल से पहले ही निकल आई हॉल से और पास के टॉकीज में ले गयी पाताल भैरवी दिखाने...देखो , ऐसी मूवी देखने लायक ही हो आपलोग और काकियों को पूरी तन्मयता से पूरी मूवी देखते हुए उनकी पसंद पर अपना माथा ठोकती रही ...इस शोरगुल में थियेटर में सोया भी तो नहीं जा सकता था...

अंजना गंगोत्री के खूबसूरत दृश्यों में खोयी हुई थी , अचानक लीना को अपनी पास वाली सीट पर किसी से फुसफुसाते हुए बातें करते सुना ...मगर वे दोनों तो अकेले ही आई थी , ये तीसरा कौन है ..लीना पूरी देर उसी लड़के से बात करती रही ..मूवी ख़त्म होने से कुछ देर पहले वह युवक हॉल से बाहर चला गया ... दोनों बाहर निकली तो उसने लीना से उस युवक के बारे में पूछा ..." यहीं पास में ही रहता है , मेरी ही कॉलेज में है " लीना ने टरकाते हुए संक्षिप्त- सा जवाब दिया ...
लीना के ग्रुप से तो परिचित है अंजना , ये उनमे से नहीं था ...हमेशा को एजुकेशन में पढ़ी है लीना ..होगा कोई ..अंजना ने भी अपना सिर झटक दिया ...

घर पहुँचते ही एक और सरप्राईज उसका इंतज़ार कर रहा था ...ककियाँ अपने बाल -बच्चों के साथ बिलकुल तैयार ही थी , उसके घर में कदम रखते ही बोली ," चल , आज तुझे राम तेरी गंगा मैली देखा लायें , हम बस तेरा ही इतंजार कर रहे थे "
गश खाकर गिरना ही बाकी रह गया था अंजना का , कैसे कहती कि अभी यही मूवी देख कर लौटी है लीना के साथ ...चल ,जल्दी कर , कहते हुए काकी ने उसके हाथ में अपना बैग थमा दिया ...छोटे बच्चे हैं साथ में , दूध भर कर बॉटल , बिस्किट वगैरह भरे हैं बैग में ...बड़बड़ाती थी अंजना कई बार ," इतना क्या शौक है आपलोगों को , आलस भी नहीं आता , कांख में बच्चों को दबाये चल देती हैं झट से , कभी कोई रोयेगा , कोई बिस्किट के टुकड़े बिखेरेगा ,"

घर के बीचों बीच बने खुले चौक की रेलिंग से झांकते फुर्ती से से चलते काकियों के हाथ देखकर ...कभी कपड़े धोती , खाना बनाते , बर्तन साफ़ करते , बच्चों को नहलाते धुलाते ...सोचती अंजना कई बार , क्या जिंदगी है इनकी ,वही रोज की दिनचर्या , ये लोंग इतना खुश कैसे रह लेती हैं ...
कभी उसकी अपनी जिंदगी भी ऐसी ही होगी , अंजना ने तब सोचा नहीं था ...

ढेरों सपने थे , एक खास मुकाम पर पहुंचना है , पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर होना है , बहुत कुछ सीखना है , घर की चारदीवारियों के बाहर की दुनिया को जानना है , कुछ करना है इन सबसे अलग ...

सपने , ढेर सारे सपने ..कुछ पूरे होते हैं , कुछ टूट जाते हैं ...जिन सपनों को देखते इंसान बच्चे से बड़ा होता जाता है , टूटे हुए आईने की तरह उन टूटे सपनों की किरचें भी बहुत लहूलुहान करती हैं , आईने का छोटा टुकड़ा जो बाहर चमड़ी पर नजर आता हो , चिमटी से निकाल दिया जाए तो भी लहू तो बहता ही है , कुछ छूटे छोटे टुकड़े जो चमड़ी की सतह को पार कर भीतर चले जाते हैं , कौन सी चोट ज्यादा घायल करती है , बाहर खून टपकती छोटी खरोंचे या या जिगर के भीतर रिसते ज़ख्म ... कैसे भरा जाता है इन्हें ...शायद समय ही!

" देख ये कलर कैसा रहेगा " मजेंटा कलर की साडी का आँचल लहराते लीना उसे ही कह रही थी ...
मजेंटा की पृष्ठभूमि में हरे रंग के बौर्डर के साथ छोटे फूलों की कढ़ाई ...बहुत पसंद आई उसे साडी ...यही ले लेते हैं ...
" और कुछ बचा तो नहीं रह गया " अंजना ने लिस्ट चेक की ...सब काम हो गया ...

दोनों पैदल ऑटो स्टैंड तक आई...बाटा का शोरूम था अभी भी वहीँ , यहाँ से निकलते कई बार विम्मो दी ठिठक जाती थी ..देखना कोई बैठा है क्या , इधर तो नहीं देख रहा ...विम्मो यानि विमला दी , लीना के कॉलेज की चंडाल चौकड़ी की सबसे वरिष्ठ सदस्य , विमला दी सीनिअर थी , एक साल परीक्षा नहीं दे पाई थी , इस लिए एक ही क्लास में होने के बावजूद सब उन्हें विम्मो दी ही कहते थे ...अशफाक भाई भी इस चंडाल चौकड़ी के लिए अनजाने नहीं थे...वही, बाटा शोरुम वाले ...लीना के ग्रुप के सभी सदस्य उन्हें भाई जान ही कहते थे ...कॉलेज में उनके सीनिअर थे...उनके पिता और बड़े भाई व्यवसाय संभालते थे , अशफाक भाई को भी कहा था उन्होंने ," क्या करोगे पढ़ कर , घर का व्यवसाय है , संभालो इसे " मगर उन्हें अपने व्यवसाय में दिलचस्पी नहीं थी ....उनका लक्ष्य उच्च शिक्षा प्राप्त कर विदेश में नौकरी करना था ...विमला दी और अशफाक के रिश्ते के बारे में अशफाक के पिता और भाई के साथ ही लीना के ग्रुप के सभी सदस्य जानते थे , मगर इससे अनजान थे कि वे विवाह बंधन में भी बंध चुके हैं , अशफाक भाई जान और विम्मो दी दोनों ही पहले आत्मनिर्भर होना चाहते थे ....धर्म के कारण बाद में होने वाले विवादों से बचने के लिए कोर्ट मैरिज कर चुके थे, अभी ग्रुप में कुछ लोगों को ही पता था ...

विम्मो दी कहाँ है आजकल ...
अभी दोनों दुबई में हैं ...दो प्यारे छोटे बच्चे हैं उनके ! शुक्र है सबकुछ राजी खुशी निपट गया , वरना हम लोंग उनके लिए बहुत चिंतित थे ...प्रेम कथा सुखद अंजाम तक पहुंची आखिर ...

दोनों ने ऑटो को रोका ," गुलज़ार हौज़ "!



क्रमशः
विवाह की रस्मों के बीच अंजना और लीना तय करेंगी लीना की सगाई से विवाह तक का यादों का सफ़र ...