आज छठ पूजा है , छठ व्रती और श्रद्धालु शाम को ढलते सूरज को अर्ध्य देंगे। यह इकलौता ऐसा पर्व है जहाँ डूबते सूरज को दिया जाता है।आज वर्षों बाद इस दिन बेचैनी नहीं है। माँ वर्षों से करती रही है इस व्रत को , उनका विश्वास रहा कि पापा इस व्रत के कारण ही अपनी जिंदगी के अनमोल दस वर्ष और जी पाये। पापा भी इस कठिन व्रत की पालना के समय उनका पूरा ध्यान रखते थे। व्रत के लिए आवश्यक फल फूल सब्जियाँ , दौरे , सूप जैसी समस्त सामग्रियों को लाने और ढंग से धोकर जमाने तक में भूखी प्यासी माँ की सहायता के लिए सहायक उपस्थित होते थे।
पिता के जाने के बाद व्रत करते हुए भी इन सब चीजों की व्यवस्था माँ स्वयं करती , बाजार जाती , सब्जी फल सूप वगैरह खुद चुन कर लाती , मन हमेशा चिंताग्रस्त बना रहता। माँ को सबने बहुत समझाया कि वे अब इस व्रत को त्याग दें , जिनके लिए करती थी वही नहीं रहे , और जिन संतानों के लिए करती रही है , वे स्वयं खुद कर लेंगे अपनी सुरक्षा के लिए , मगर माँ होते हुए समझ सकती हूँ ममता की लाचारी। दिल के दौरे के बाद हुई एन्जियोंप्लास्टी के कारण आखिर माँ को यह व्रत दूसरे को सौंपना ही पड़ा। कहते हैं कि इस व्रत को छोड़ा नहीं जा सकता , किसी दूसरे को अर्पण किया जाता है , यानि वह व्यक्ति इस व्रत को करने का संकल्प लेता है ! पिछली छठ को बिहार जाकर इस व्रत को त्याग आई माँ और यही कारण है कि आज मैं कुछ निश्चिन्त हूँ। हालाँकि उन माताओं की भी चिंता मन में है जो अपने परिवार के समुचित सहयोग के बिना इस व्रत को कर रही होंगी।
माँ के व्रत के बहाने जयपुर के गलता घाट की रौनक , प्रसाद , व्रतियों के सूप में दूध का अर्ध्य , सात स्त्रियों से प्रसाद माँगना , सिन्दूर लगाना , पहाड़ी पर सूर्य देवता के दर्शन आदि की कमी भी महसूस हो ही रही है !
माँ के व्रत के बहाने जयपुर के गलता घाट की रौनक , प्रसाद , व्रतियों के सूप में दूध का अर्ध्य , सात स्त्रियों से प्रसाद माँगना , सिन्दूर लगाना , पहाड़ी पर सूर्य देवता के दर्शन आदि की कमी भी महसूस हो ही रही है !
तीन दिन तक बिना पानी -खाने के अलावा रात में जाग कर ठेकुवे का प्रसाद बनाना , रात भर खुले आसमान के नीचे दूसरे दिन उगने वाले सूर्य का इन्तजार करना , ठन्डे पानी में गीले बालों और वस्त्रों के साथ खड़े रहना निश्चित ही इतना आसान नहीं है। परिणाम स्वरुप अक्सर व्रती स्त्रियां चिड़चिड़ी हो जाती हैं। दौरे को रखने , अर्ध्य देने आदि के दौरान कई बार लड़ने झगड़ने के स्वर सुनाई देते हैं।
एक बार का दृश्य याद है जब सूर्योदय के अर्ध्य के बाद व्रती स्त्री के पति द्वारा लाये गए चाय के ग्लास को उठाकर उस स्त्री ने फेंक दिया , पता नहीं किस बात पर गुस्से में भरी हुई थी। इस दौरान उनके चिड़चिड़ेपन पर मुझे गुस्सा नहीं आता , डिहाईड्रेशन के कारण उनके चिड़चिड़ेपन को समझा जा सकता है। हालाँकि इस व्रत को सिर्फ स्त्रियां नहीं करती , पुरुष भी तड़के ठण्ड में ठिठुरते गीले कपड़ों में नारियल आदि लिए सूर्यदेव का इन्तजार करते नजर आते हैं , वहीं कुछ लोग पत्नी या माँ के सहयोग के लिए भी उपस्थित रहते हैं। इन व्रत त्योहारों के धार्मिक कारण कुछ भी हों , परन्तु ये आयोजन परिवार और समाज के बीच एक सेतु बनाने का कार्य अवश्य करते हैं।
जयपुर के गलता घाट पर छठ की पुरानी तस्वीरें
मिलजुल कर पर्व की तैयारियां करना ,एक दूसरे की सहायता करना , गीतों के बोलों के साथ हंसी- ठिठोली , एक ही छत के नीचे सबका इकट्ठा होना परिवार और समाज को एकजुट रखने में महती भूमिका निभाता है। समाज के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें अपने परिवार में बच्चों को आपस में मिलजुल कर तथा पास पड़ोस को भी उल्लास में सम्मिलित करने को प्रेरित करना उचित है , बात उल्लास और आनंद के संचार की हो ना कि गहने , कपडे , घरेलू उपकरणों ,विलास की सामग्रियों के थोथे प्रदर्शन का प्रतीक बन कर ना रह जाए ये उत्सव , त्यौहार !
परिवारों , समाजों में उल्लास बना रहे , मन का उत्सव भी रगीन खुशनुमा हो , छठ पर्व की अनगिनत शुभकामनाएँ !
पोस्ट पढ़कर बीते दिनों की याद आ गयी. इस पर्व पर मेरी जिम्मेदारी होती थी घर से कंधे पर घाट तक 'डाला' ले जाना. वो भी बिना उतारे. बहुत प्यारा माहौल होता था. आपको भी छठ पर्व की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंछठ पर्व की अनगिनत शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंमांगी कोखी जुड़ाइल रहअ ....
बहुत सुंदर.छठ पर्व की शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंइस आलेख के माध्यम से बहुत ही सुंदर दिया, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बात उल्लास और आनंद के संचार की हो .... सच
जवाब देंहटाएंछठ पर्व की अनंत शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-11-2013) "गंगे" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1421” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
आभार !
हटाएंसुंदर पोस्ट ....शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वर्णन....बीते दिनों की याद आ गयी. छठ पर्व की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबचपन की याद है। मैं भी जाता था माँ के साथ। संपूर्ण आयोजन माँ घर में नहीं करती थीं। व्रत रहती थीं और शामिल हो जाती थीं पड़ोस में। फिर उन्होने भी अपना व्रत दूसरे को दे दिया। हम लोगों को भी खूब भाग-दौड़ करनी पड़ती थी। बहुत कठिन व्रत है। आपने सुंदर वर्णन किया है।
जवाब देंहटाएंमैंने इस व्रत को बहुत सहज ढंग से किया - मुझे मेरी दीदी को देखकर कोई नहीं कहता था कि हमने व्रत किया है - .... अगले वर्ष से नहीं कर पाऊँ शायद,तबियत बहुत ठीक नहीं रहती
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य समस्या होने पर परेशानी होती ही है !
हटाएंkathin vrat hai. shriddha ulaas se kia jaaye to achha ... chidchidaa aur gussa ya bimaar hone kee naubat aa jaye to na karna hi behtar :).
जवाब देंहटाएंआप तो पूरी पूर्विया लग रही हैं संस्कारों से -छठ का जो प्रभाव इधर है राजस्थान में तो सुना नहीं
जवाब देंहटाएंयह त्यौहार एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पर्व है ,जो मनुष्यता को अपनी कृतज्ञता ,तप और समर्पण से समृद्ध करता है ←
क्या आप जानती हैं यह पर्व सूर्य के साथ साथ उनकी पत्नी प्रत्यूषा को भी समर्पित है !
वसुधैव कुटुंबकम कहिये न , संस्कार तो हमारे पूर्वी , पश्चिमी , दक्षिणी और उत्तर सारे ही सम्मिलित हैं , भारत की इस विविधता पर अचम्भित होने के साथ गर्व भी होता है !
हटाएंनई जानकारी के लिए आभार !
छठ पर्व पर अच्छी जानकारी मिली .... चार वर्ष झारखंड में रहने पर इस पर्व की महत्ता और व्रत धारियों की कठिन तपस्या समझ पायी ... हर त्योहार उल्लाद और प्रेम का प्रतीक बने यही कामना है ... अरविंद जी ने और नयी जानकारी दी है ...
जवाब देंहटाएंबिहार में रह चुके लोग इस व्रत की कठिनता और महत्ता दोनों ही जानते हैं ! आभार !
हटाएंऐसा कोई जरूरी नहीं कि व्रत किसी को सौंप ही दिया जाए. मेरी दादी छठ व्रत करती थीं ,पर वे हमेशा कहतीं, 'मैं अपनी किसी बहु को नहीं सौंपुंगी , जब तक शरीर साथ देगा, खुद ही करुँगी.' उनके जाने के बाद दो साल तक हमारे घर में छठ नहीं हुआ...पर उस दिन घर में ऐसी उदासी छाई रहती ..ऐसा सूनापन कि मेरी माँ ने यह व्रत करने का निर्णय लिया. तब से वे यह व्रत कर रही हैं, और उन्होंने भी यही कहा है कि किसी बहु को नहीं सौंपेंगी.
जवाब देंहटाएंछठ पूजा पर तो घर जितना याद आता है..उतना पूरे साल नहीं आता .
और उत्तर बिहार में ही यह रिवाज है कि हर साल यह व्रत किया जाए. दक्षिण बिहार जो अब झारखंड है (वैसे पटना, आरा, छपरा में भी ) किसी साल मन्नत हो तो मन्नत पूरी हो जाने पर यह यह व्रत किया जाता है.प्रत्येक वर्ष करना जरूरी नहीं.
हटाएंछठ पूजा पर हमें भी बिहार बहुत याद आता है !
हटाएंछठ पर्व के बारे में बहुत कुछ जाना आपके आलेख के माध्यम से ! ऐसे तीज त्यौहार, सामाजिक सौहार्द्र एवँ उल्लास के प्रतीक होते हैं ! व्रत सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ रह कर निष्ठा से किये जाएँ तो सदैव आनंद का प्रसार होता है ! लेकिन क्षमता ना होने पर अपने शरीर को इतना कष्ट देकर और बीमार हो जाने में तथा परिवार को सदस्यों को व्यग्र व चिंतित कर देने में कोई अर्थ नहीं है ! छठ पर्व की आपको भी अनेक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंछठ पर्व के बारे में बहुत रोचक जानकारी मिली...छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंहमारे पर्व और त्यौहार इसी लिए बने हैं की समाज का रूप, समरसता बनी रहे ... छट पूजा का भी अपना ही महत्त्व है हांलांकि हर पर्व में निष्ठा, भक्ति और उलास का रंग रहता है ... पर्व की रोचक जानकारी दि है आपने ... बहुत अच्छा लगा जान कर .....
जवाब देंहटाएंव्रत के बहाने सारे समाज को एकजुट रखने की परम्परा अच्छी है। गलता तीर्थ से बहुत यादे जुड़ी हैं, सारा बचपन ही वहीं बीता है।
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