यमुना के तट वंशी बजाये , कालिया नाग को नाच नचाये , कंस को उस लोक पठाये , राधा -रुक्मिणी -मीरा के मन में समाये, सुदामा -अर्जुन- द्रौपदी के सखा कहाये । मानव जीवन के प्रत्येक सोपान यानि उम्र की सीढियाँ चढ़ते हुए कितने ही प्रतिमान बनाये। धरती पर प्रेम की सभी सम्पूर्ण अवस्थाओं को रस ले- ले निभाया . कृष्ण ने युगों तक इस धरती के लिए प्रेम की व्याख्याएं गढ़ी नहीं बल्कि अपनाकर(जी) कर दिखाई।
हिंदी पंचांग में हिंदुओं के लिए पवित्र कार्तिक मास का बहुत महत्व है। राधा -दामोदर को समर्पित इस पवित्र कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में विभिन्न तिथियों ( कार्तिक षष्ठी , गोपाष्टमी , आँवला नवमी ,वैकुण्ठ चतुर्दशी , भीष्म पंचक ) के अनुसार पर्व विशेष उत्साह पूर्वक मनाये जाते हैं . सुबह -सवेरे स्त्रियों और पुरुषों द्वारा तारों की छाँव में किये जाने वाली स्नान -पूजा और भजन , गीतों से पूरा वातावरण पवित्र हो उठता है .
कार्तिक मास में दामोदर भगवान् को रिझाने के लिए ग्रामीण आंचलिक बोलियों में गाये जाने वाले गीतों की बात ही अनूठी है . इन गीतों ( पाँवड़ियाँ , रसोई , बुहारी , आरती आदि ) के माध्यम से वे श्रीकृष्ण को विभिन्न वस्त्रादि , भोजन , खडाऊ आदि भेट/अर्पित करती हैं . अपनी सरल सरस भाषा में स्त्रियाँ /पुरुष योगेश्वरश्रीकृष्ण को अपने मध्य का एक आम इंसान ही बना लेते हैं और श्रीकृष्ण अपनी इंसानी लीलाओं के माध्यम से ही तो जन -जन से जुड़े हुए थे . वही बालसुलभ मिट्टी खाने , माखन मिश्री चुराने , माता को विभिन्न उलाहने देने , मित्रों के साथ चुहलबाजी जैसी कारस्तानियाँ ही उन्हें स्त्री /पुरुष से इतना जोड़े रखती हैं कि वह उनके बीच का तू ही हो जाता है .
कार्तिक मास में श्रीकृष्ण को खड़ाऊ भेंट /अर्पित किये जाने वाला ऐसा ही एक लोक भजन/गीत " श्रीकृष्ण की पाँवड़ियाँ" मुझे बहुत प्रिय है!
राधा दामोदर , जयपुर |
" श्रीकृष्ण की पाँवड़ियाँ"
म्हे थाने पूछा म्हारा श्री भगवान्
रंगी चंगी पाँवड़ियाँ कुण घाली थांके पाँव
म्हे तो गया था राधा खातन के द्वार
वे ही पहराई म्हाने पवरियाँ जी राज़
इतनी तो सुन राधा खातन के जाए
खातन बैठी खाट बिछाए
म्हे तो ए खातन थां स लड़बा ना आया
थे मोहा जी म्हारा श्री भगवान्
थार सरीखी म्हारी पाणी री पणिहार
कान्हा सरीखा म्हारा गायाँ रा गवाल
राधा खातान में हुई छे जो रार
उभा -उभा मुलक श्री भगवान्
सामी पगां थे लड़बा ना जाए
आछो ए राधा मांड्यो छे रार
आप कुवाया पाणी री पणिहार
म्हाने कुवाया थे गायां रा गवाल ...
इस गीत में वर्णित कथा इस प्रकार है कि एक दिन श्री भगवान् के चरणों में रंग -बिरंगी खडाऊ देख कर श्री राधा उनसे पूछती है कि आपके पैरों में इतनी सुन्दर खडाऊ कहाँ से आई . श्रीकृष्ण उनसे कहते हैं कि मैं खातन ( बढई की पत्नी ) के घर गया था , उसने ही मुझे इतनी सुन्दर खडाऊ भेंट की . श्रीराधा को यह सहन नहीं हुआ। जलती- भुनती राधा उस खातन से लड़ने पहुँच गयी कि वह इतनी सुन्दर खडाऊ भेंट कर श्रीकृष्ण को रिझाना /मोहना चाहती हैं . इस पर खातन राधा को आड़े हाथों लेते हुए कहती है कि " राधा ,तू अपने आपको क्या समझती है. तेरे जैसी तो मेरे पानी भरने वाली पनिहारनियाँ हैं , और तेरे कृष्ण जैसे मेरे गायों को चराने वाले गवाल , मैं क्यों उन्हें रिझाउँगी ." राधा का गर्व चूर -चूर हो गया .
भक्त के प्रेम के वश में बंधे श्रीकृष्ण तिरछे मुस्कुराते हुए कहते हैं ... " राधा , ये तूने क्या किया , मैं तो भक्तों के प्रेम में बंधा हूँ , उनके लिए उन जैसा ही सामान्य हूँ , सामने होकर लड़ने गयी तब भी मैं तो ग्वाला ही रहा , तुमने स्वयं को भी पनिहारन कहलवाया ".
श्रीकृष्ण का प्रेम सामान्य मानव में भी अद्भुत साहस भर देता है। इसी साहस ने उस स्त्री के मुंह से ये बोल बुलवाये। अपनी विविध लीलाओं से मन को मोहने वाले मनमोहन श्रीकृष्ण प्रभावी सन्देश देकर जनमानस में अपनी छवि अंकित करते हैं। श्रीकृष्ण ने जिसकी अंगुली पकड़ी , निर्भय हुआ !!
इस गीत में प्रेम और ईर्ष्या के कारण होने वाली तकरार तो है ही और उससे भी बड़ी सीख है कि ईर्ष्याग्रस्त होकर जानबूझकर किसी से झगड़ा मोल लेने वाले का अपना मान- सम्मान तो कम होता ही है , बल्कि इसी कारण से वह अपने सबसे प्रिय व्यक्ति को भी अपमानित होने पर विवश करता है .
इस गीत के बहाने ही उस साधारण स्त्री ने उन आत्ममुग्ध , परिवार , अपने रुतबे से गर्वोन्मत्त सभी स्त्री- पुरुषों को सन्देश दे दिया कि जो बेवजह ईर्ष्या से ग्रस्त होकर उन पर अधिकार ज़माने की चेष्टा में अपने सबसे प्रिय व्यक्तियों की जगहंसाई करवाते हैं . एक तो यह कत्तई आवश्यक नहीं कि जो व्यक्ति आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है ,उसका दूसरे के लिए भी उतना ही महत्व हो . दूसरी ओर यह भी है कि वह ख़ास व्यक्ति उस आम व्यक्ति के प्रेम /भक्ति /स्नेह के लिए उस जैसा साधारण ही बना रहना /दिखना चाहता हो.
जो आपके लिए अनमोल हो , हो सकता है कि दूसरों के लिए उसका मोल कौड़ी भर भी ना हो !
जो आपके लिए अनमोल हो , हो सकता है कि दूसरों के लिए उसका मोल कौड़ी भर भी ना हो !
अहा ! राधा कृष्ण के अमर प्रेम के वर्णन से अमृतमय पोस्ट ...अच्छा लगा पढकर
जवाब देंहटाएंराधा कृष्ण के प्रेम से जुडी अनेक कथाओं में आज एक और कथा जुड़ गई जिसका पता नहीं था पहले .... कार्तिक के महीने का महत्त्व अपने पूरे समाज में अलग अलग तरीके से दर्शाया जाता है ... जहां पंजाब, हरियाणा (कम से कम पुरानी जगहों पे तो जरूर) प्रभात फेरियां निकलती हैं .. वहीं किसी और जगह दामोदर पूजा चलती है पूरे महीने ... अब तो हमासे दुबई में भी दामोदर पूजा होने लगी है ...
जवाब देंहटाएंराधा , ये तूने क्या किया , मैं तो भक्तों के प्रेम में बंधा हूँ , उनके लिए उन जैसा ही सामान्य हूँ , सामने होकर लड़ने गयी तब भी मैं तो ग्वाला ही रहा , तुमने स्वयं को भी पनिहारन
जवाब देंहटाएंकहलवाया ".
कृष्ण मुस्कुराते दिख रहे,और अपराधी सी राधा
इस किस्से को कभी नही सुना था आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंआहा! ...बहुत अच्छा लगा सोच रही हूँ कि राधारानी गुस्से में कितनी सुन्दर दिख रही होगी ...और उस पर कॄष्ण की मुस्कुराहट .... वाह!
जवाब देंहटाएंइस कथा के बारे में पहले नहीं पढ़ा था .... सबसे खूबसूरत बात कि कथा से जो निष्कर्ष निकाला है उसे समझने की आवश्यकता है ... जानकारी युक्त पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मन मेंप्रेम रस का संचार करती सुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंपाँवड़ियाँ की पूर्ण व्याख्या के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. ईश्वर जब भी 'तू' रूप में रहते हैं तो बहुत प्यारा अनुभव होता है. इसी वजह से शिव और कृष्ण मेरे सबसे प्रिय हैं. उनके जीवन में हर कोई अपना रूप देख सखता है. बहुत बढ़िया पोस्ट.
जवाब देंहटाएंकृष्ण - राधा के संवाद वाले बड़े प्यारे प्यारे लोकगीत रचे बसे हैं ...हमारी संस्कृति में
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट
राधा कृष्ण के संवाद हमेशा से ही बहुत प्रिय रहे हैं, बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
राधा कृष्ण राधा कृष्ण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .... मनमोहक प्रेममयी पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंबढई की पत्नी की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी ......
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढकर...प्रेममयी पोस्ट !
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
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