शनिवार, 18 जून 2011

थैंक्स , राम !......... (अंतिम किश्त)

थैंक्स, राम! भाग एक , भाग दो , भाग तीन , भाग चार , भाग पांच से आगे ...



कहाँ खो गयी , लीना ने झिंझोड़ा तो अंजना चौंक पड़ी ...हो गयी तेरी पूजा ...

अंजना ने मोती के कुछ आभूषण ख़रीदे,कुछ मैचिंग दुपट्टे भी ...अंजना के हैदराबाद जाने की खबर सुन उसकी ननद ने ख़ास फरमाईश की थी ...खरीददारी करते हुए सामने लकड़ी की सीढियाँ वाले छोटे से रेस्तरां को देख लीना को चाय की तलब हो आई ...लीना भी अजीब है , कब क्या मन कर जाए ...ऐसे ही एक दिन घर लौटते ईरानी चाय की होटल देख उसके मना करते भी खींच ले गयी थी ....बहुत कहा अंजना ने घर पास में ही है , वहीं पी लेंगे ...स्टील की छोटी गिलासों में छोटी प्लेट के साथ सर्व की गयी मलाई युक्त नमक डली ईरानी चाय ...पहले सिप में ही उबकाई आते-आते रह गयी अंजना को ...दूध या मिल्कशेक में से भी छान कर मलाई निकाल देने वाली अंजना चाय में मलाई कब पसंद करती ...मुंह का स्वाद ख़राब कर दिया , अब कुछ चटपटा खाना पड़ेगा ...बहुत बिगड़ी थी अंजना ...पसंद तो लीना को भी नहीं आई थी और दोनों चाय वैसी ही छोड़ कर बाहर निकल आई थी ...

दोनों दोपहर तक घर पहुंची ...माँ और काकियाँ निकासी की सामग्री जुटा रही थी ...दूल्हा चेहरे पर मास्क लगाये अपने दोस्तों से घिरा था ...आजकल लड़कों को भी कम तैयारी नहीं करनी पड़ती ...अम्मा (दादी) हँस रही थी उसकी हालत देख ...
माँ ने छोटी काकी को आवाज़ लगाई थी ," चने की दाल समय से भिगो दी थी या नहीं, बताशे कागज़ की थैलियों में पैक करवा लेती हूँ , यही ले आ "
वहीं काका निकासी के समय बहू बेटियों को देने वाले नेग के लिफाफे तैयार कर रहे थे ...दूल्हा जब घोड़ी पर बैठ कर घर से निकलने की तैयारी में होता है ,तब घोड़ी पर बैठे दूल्हे की घर की सभी महिलाएं आरती करती हैं , यही एक रस्म है जहाँ माँ और भाभी को दूध पिलाने और काजल लगाने के विशेष नेग के साथ ही परिवार की सभी बहू और बेटियों को भी नेग दिया जाता है...
बैंड बाजे के साथ नाचते गाते पहुचे वधू के द्वार तो रात गहरा गयी थी ...विवाह की मस्ती में रिश्तेदारों और दूल्हे के दोस्तों को नृत्य करने से रोकना और आगे बढ़ते रहने को कहना भी एक दुष्कर कार्य ही होता है , काका के जल्दी चलो कहते भी बहुत समय लग गया उन्हें विवाह स्थल तक पहुँचने में ...द्वार पर अगवानी में दोनों पक्षों में मीठी नोंक- झोंक होती रही, फिर भी वधू की भाभी दूल्हे की नाक पकड़ने में कामयाब हो ही गयी ...कुछ रस्मों और खाने के बाद लीना , अंजना और काकी की दोनों भांजियों को अपने कजिन्स के साथ वहीं रुकने का निर्देश दे कर घर की महिलाओं के साथ अधिकांश बाराती लौट चुके थे ....सप्तपदी की रस्म में ससुरापक्ष की ओर भेंट किये जाने वाले वस्त्र और आभूषण अंजना और लीना को ही देने थे ...वे पास ही पड़ी कुर्सियों पर बैठ सप्तपदी की रस्में होती देखती रही ...इन रस्मों के समय हर विवाहित अपनी शादी के समय को जरुर याद करता होगा , दोनों सहेलियां बतियाने लगी ....

लीना के विवाह में दुल्हन की खास सहेली होने के कारण पूरे सप्तपदी के दौरान अंजना वही बैठी रही थी , लीना ने बार- बार उसे अपने साथ ही रहने की जिद जो की थी ....सुबह सुहागिन महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाते ,उबटन लगाते हुए उसने अचानक अंजना से पूछा ," तूने राम के हाथ में पट्टी बंधी हुई देखी "
पता नहीं , मैंने ध्यान नहीं दिया , मेरे पास फालतू समय नहीं होता इधर -उधर निहारने के लिए...अनजान चिढ गयी थी !
तुझे देखना चाहिए था ...लीना गंभीर हो गयी ,तू किस दुनिया में रहती है , तुझे आस- पास की कुछ खबर नहीं रहती ...
क्या हुआ ...
कलाई पर कुछ लिखने की कोशिश में ब्लेड से हाथ कटवा बैठा ...
क्या घटिया हरकत है ...
तुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता !!..
.काश कोई हमारे लिए ऐसा करता !!...एक गहरी सांस लेते लीना ने अभिनय किया तो उसके चेहरे पर फिर वही बांकपन था ...अंजना को तसल्ली हुई ...

ऐसी घटिया हरकतों से वही लोंग खुश होते हैं ,जिनका ऊपरी माला खाली होता है ...
बात एक ही है जान , हमारा ऊपरी खाली है , तेरा भीतर का खाली है , तेरा तो दिल ही नहीं है....
ज्यादा हिंदी फ़िल्में देख कर तेरा दिमाग खराब हो गया है , ऐसा कोई प्यार नहीं होता है , किसी को एक बार देखा , ना जान ,ना पहचान ...तू विदा हो ले एक , फिर खबर लेती हूँ इसके पूरे परिवार की ...
अंजना ने घूर कर देखा तो लीना चुप हो गयी ....

"अशुभ है" दिमाग में फिर कहीं बजने- सा लगा ... लीनाके विवाह के भात की रस्म में काका के साथ पूरा परिवार भी शामिल था ...अंजना का दिल जोरों से धड़का ...दर्द की एक तेज लहर उठी उसने पर्स से पेन किलर की गोली निकाली और गटक गयी ...आज दर्द सहन करने के लिए समय कहाँ था ...

तू अपनी मर्जी से दवा मत ले , एक बार डॉक्टर को दिखा लेते हैं ...
हां , चल पहले यही काम कर लेते हैं , शादी तो होती रहेगी ...दोनों जोर से हंसी तो सभी चौंक कर उनकी ओर देखने लगे थे ...

दिन भर विभिन्न रस्मों के बाद दुल्हन के साज श्रृंगार के लिए जब लीना ब्यूटी पार्लर गयी तो भी उसने अंजना को एक पल के लिए नहीं छोड़ा ...उनके साथ गाडी में पूर्णिमा और रामदास भी था ...बहाने से हाथ की पट्टी को सरकाते हुए उसके खरगोशी कुतूहल को अंजना ने देख कर भी अनदेखा कर दिया ...

तूने खाना खाया या नहीं ....लीना राम से मुखातिब थी ...सुना अंजना ने भी मगर असमय इस बेतुके सवाल पर खीझते हुए बोली ...कुछ घंटों में विवाह है तेरा , चकर- चकर लगा रखी है ,थोडा कम बोल लेने में कोई नुकसान नहीं है ...
मेरी बकबक को कोई नहीं रोक सकता , कोई भी नहीं ...

फेरे शुरू होने वाले थे ..मंत्रोच्चार के बीच लीना ने अंजना का हाथ दबाया जोरो से ...

क्या हुआ ...
कुछ देर बाद मैं विदा होकर चली जाउंगी , बस मेरी एक बात मान ले ...राम को खाना खाने को कह दे ...
हद है ...बहुत गुस्सा आया आया लीना को , क्या लड़की है , अपनी शादी के फेरे शुरू होने वाले हैं , फिक्र किसी और की है अभी इस वक़्त भी ...
लीना , तुझमे बिलकुल समझ नहीं है , ये समय ऐसी बातों का है ?? फुसफुसाते हुए लीना और अंजना की बातें हो रही थी ...
बस एक बार , मेरी एक आखिरी बात रख ले ...
मूर्ख लड़की , ठीक है , मैं कह दूँगी , तू अभी इधर- उधर दिमाग मत लगा ...
अपनी झुंझलाहट को दबाते हुए उसे उठना ही पड़ा ...
क्या नौटंकी है , खाना क्यों नहीं खाया है तुमने ...अंजना बरस ही पड़ी थी राम पर ...
कुछ नहीं , अभी खा लूँगा ...
लीना से नजरे मिलाईं अंजना ने ,वह निर्निमेष उनकी ओर ही देख रही थी ...उसके व्यग्र चेहरे पर मुस्कान देख मन हल्का हुआ ...
इसको तो मैं बाद में देख ही लूंगी ...मन ही मन भुनभुनाते ,ऊपर से मुस्कुराते अंजना उसके पास लौट आई ...
सुबह देर तक होने वाले विवाह की रस्मों के बाद लीना विदा हो गयी थी ...ज्यादा दूर नहीं थी उसकी ससुराल मगर विवाह के बाद दूरियां ज्यादा कम होने से भी बहुत कुछ बदल जाता है , बेटी पर अपना अधिकार कम होने या समाप्त होने की भावना लड़की और उसके परिवार , मित्र मंडली सबको एक साथ भावुक कर देती है ...

लीना के पगफेरे की रस्म पर नहीं जा सकी थी वह .....लगातार सिर में दर्द और कमजोरी और कभी- कभी कुछ भी समझ नहीं पाने की उसकी हालत को थकान समझ कर अनदेखा नहीं किया जा सकता था ...एक दिन माँ ले ही गयी उसे चिकित्सक के पास ... टेस्ट की रिपोर्ट से चिंतित माँ ने पिता को बुला लिया था कागजनगर से ...अंजना के टेस्ट की रिपोर्ट्स मस्तिष्क के एक हिस्से में सूजन का होना दिखा रही थी ...कुछ महीने पहले हुए मियादी बुखार ने उसके दिमाग के एक हिस्से पर हमला किया था ...
सब कुछ छूट रहा था अंजना के हाथ से ...पढ़ाई और किताबों से होने वाला उसका पहला प्रेम भी ...डॉक्टर की आराम की सख्त हिदायतों के के बीच उसके पिता ने कुछ महीनों की छुट्टी लेकर कसौली ले जाना तय किया था .....लीना एक दिन मिलने भी आ गयी थी निखिल के साथ , वैसे भी उसे अपने घर खाने पर निमंत्रित करना था उन्हें ...सामान्य बने रहे अंजना के माता -पिता ने किसी को भी उसकी बीमारी के बारे में बताया नहीं ,लीना को भी नहीं ....

कसौली रवाना होने से पहले काकी के साथ लीना से मिलने गयी थी अंजना एक दिन ...राम के घर खाने पर बुलाया गया था उन लोगों को , दूसरे दिन ही निखिल अपने काम पर लौट जाने वाले थे ...

अंजना ने सोच लिया था आज उसे बात करनी ही होगी आंटी से , ड्राइंग रूम में भरसक शांत बने रहने की कोशिश में अंजना ने दीवारों पर रगड़ कर हटाये गए कुछ निशाँ देखे , अचानक सोफे के हत्थे के पास कुछ छिपा सा उभरा हुआ उसका नाम ...उसकी नज़रों का पीछा करते हुए आंटी की उदासी ने बहुत कुछ कहा अंजना से और वह चुप रह गयी ...क्या सचमुच वह अशुभ साबित होने वाली है अपने परिवार के लिए , सबके लिए ...एकदम से इस ख्याल ने अंजना को वहां ज्यादा देर रुकने नहीं दिया , लीना से विदा लेकर वह घर लौट आयी ...

शांत प्राकृतिक वातावरण में सबसे दूर माता पिता की स्नेहिल छाँव की और दवा ने असर किया था या अंजना की इस इच्छा शक्ति ने की ...नहीं , वह किसी के दुःख का कारण नहीं बनेगी , कौन जाने ....
पूर्ण स्वस्थ होकर वापस हैदराबाद लौटने से पहले ही राजस्थान के बीकानेर से बुआ की बेटी स्वाति के विवाह का न्योता आ पहुंचा उनके पास..... स्वाति के विवाह के दौरान ही अंजना के माता पिता का मिलना हुआ आर्णव और उसके परिवार से ... सुयोग्य आर्णव और अंजना का जीवन भर का रिश्ता जुड़ना तय हो गया ...तुरंत फुरंत सगाई और गोद भराई और तीन महीने बाद ही विवाह की तिथि तय होना , कुछ समय ही नहीं मिला किसी को कुछ सोचने का ...
सुलझे विचारों के समझदार आर्णव के साथ ने अंजना के जीवन को एक ठहराव और निश्चिंतता दी थी ...जब पहली बार मिला था आर्णव तभी पूछ लिया था उसें ," आप आगे पढना चाहेंगी " और सास की बड़बड़ाहट को अनदेखा कर भी उसने उसकी शिक्षा को पूर्ण होने में मदद की ...गृहस्थी की जिम्मेदारियों में कभी नौकरी के बारे में सोचा नहीं उसने ...अभी पिछले साल ही जब ट्रांसफर होकर वे लोग अपने शहर से दूर आये तो बचे हुए खाली समय का उपयोग और अपनी शिक्षा से दूसरों का भी भला करने के उद्देश्य से एक एन जी ओ द्वारा संचालित विद्यालय में विभिन्न गंभीर बीमारियों से जूझते बच्चों के विद्यालय में अपनी सेवा दे रही है ...

सप्तपदी की सारी रस्में हो चुकी थी ... दुल्हन के लिए ससुराल से लाये गए वस्त्र , आभूषण और लाख की लाल- हरी चूड़ियों वाला विशेष चूड़ा पहनाया जाना था .....काका ने अंजना को पुकारा तो लीना और अंजना का ध्यान भंग हुआ ...

विवाह कार्यक्रम उल्लास और धूमधाम से संपन्न हो गया था ...अब अंजना को लौट जाना था वापस ...लड़कियां जीवन भर इसी कशमकश में जीती हैं ,कौन सा घर है उनका अपना ...जिसकी छाँव और गोद में बचपन के सुनहरे पल बिताये , जिसने किशोरावस्था की चुहलबाजियाँ छोड़ युवावस्था की और बढ़ते देखा या फिर वह एक जो वर्षों से अनजाना रहा मगर एक ही पल में सबसे बढ़ कर अपना हो गया ...बहुत मुश्किल होता है उस घर से बिछड़ना जो उनके होने का कारण होते हैं तो वहीँ अपनी गृहस्थी की ललक और फिक्र खिंच ले जाती है कदम, जहाँ उनका होना ही घर होता है , जहाँ वे मकान को घर बना देती हैं ....फिर जल्दी ही लौटकर आने का वादा लेते परिवारजन स्टेशन तक छोड़ने आ पहुंचे थे ...
नामपल्ली स्टेशन से रवाना होते आंसू भरी आँखें अपनों के धुंधले होते जाते चेहरों पर टिकी रही देर तक ... ट्रेन से बाहर झाँक कर देखा अंजना ने ...रात गहराने लगी थी ...रात में झिलमिलाती रोशनियाँ शहर के सौंदर्य को और बढ़ा देती है ...

अंजना का मोबाइल घनघना उठा .."रवाना हो गयी , सीट नंबर क्या है , रास्ते में अपना ख्याल रखना , वैसे मैं बार- बार फोन करता रहूँगा "...आर्णव फिक्रमंद था उसके लिए ...

नहीं , अंजना अशुभ नहीं थी , वह प्यार और फिक्र किये जाने योग्य थी , है ...

अंजना लीना के साथ अपनी यादों के दौर को याद कर रही थी ...चाहे -अनचाहे राम को भी शामिल होना ही था उनमे ....समय के साथ घटनाओं के सन्दर्भ और व्याख्याएँ भी बदल जाती है ...आज सोच रही थी अंजना .... निराशा , उदासी और तनाव के उन दिनों में जो उसने सोचा नहीं था ... अकारण किसी का चाहे जाना भी अपने वजूद के होने का एहसास देता है , आत्मविश्वास बनाये रखता है , लडखडाती जिंदगी को मजबूती देता है ...
नहीं , वह अशुभ नहीं थी , अवांछित भी नहीं ... ट्रेन तेज घडघडाहट की आवाज़ के साथ पटरियां बदल रही थी ...उसी में सुर मिलाते धीरे से कहा अंजना ने अपने- आपसे ...." थैंक्स , राम !"



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शनिवार, 11 जून 2011

थैंक्स, राम ......(5)

थैंक्स राम भाग एक , भाग दो , भाग तीन , भाग चार से आगे


दूसरे दिन सुबह जल्दी ही हलचल शुरू हो गयी ...दिन भर मंगल गीतों के साथ कई तरह की रस्में होती रही ...हल्दी लगाना , बताशे पर घी लगा कर खिलाना , फिर चाक़ पूजन ...सभी महिलाएं पारंपरिक लहंगा -ओढ़नी में सजी धजी बैंड बाजे के साथ झूमती .नृत्य करती कुम्हार के चाक की पूजा करने गयी और लौटते समय सिर पर घड़ों की कतार...अच्छी लगती हैं ये परम्पराएँ , इस बहाने हमारे पारंपरिक हस्तकलाएँ , कुटीर उद्योंगों की पहचान लुप्त नहीं हुई है ...वरना फ्रिज के ज़माने में कुल्हड़ , मटकों की सौंधी महक को भुला ही दिया जाता ...शहर में रंग बिरंगी इंडणियों पर सजे मटकों को सिर पर उठाये इन महिलाओं को देख गाँव में पनघट पर पानी भरने जाती महिलाओं का दृश्य सजीव हो उठता है ...जिन महिलाओं ने सिर पर मटके रखे हुए थे , उनके पति ने एक- एक कर मटकों में कुछ रूपये डाले और सिर से उतार कर पूजागृह में रखने में मदद की ...अंजना को आर्णव की बहुत याद आई, इस भागमभाग में उससे बात ही नहीं हो पाई ...अंजना सोचने लगी क्या कर रहा होगा आर्णव , आज तो रविवार है ...घोड़े बेच कर सो रहा होगा , अभी खबर ले ही लेती हूँ ...काकी दूल्हे को बुला लाई थी ...जिनके पति वहां उपस्थित नहीं होते , दूल्हा ही इस रस्म को पूरी करता है ...

सो रहे थे ..
अरे नहीं , इतनी देर तक कब सोता हूँ मैं ..
अच्छा , आज सन्डे नहीं है ...
तुम नहीं हो तो संडे, मंडे सब एक जैसे ही हैं ...
क्या कर रहे थे ,
बस अभी तुम्हारे पौधों को पानी पिलाया ....

अंजना घर पर नहीं हो तो और कुछ ना करे , गमलों में पौधों को पानी देने का काम नहीं भूलता आर्णव ..जानता है कितना प्यार करती है अंजना इनसे , घर लौटते ही सबसे पहले पौधों को संभालेगी और फिर उससे नाराज होगी , मेरे पीछे से इनका ध्यान नहीं रखा ...पिछली बार पंद्रह दिन से लौटी थी असाम से तो पूरा घर धूल- मिट्टी से अटा पड़ा था , किचन तो शायद खोल कर भी नहीं देखी आर्णव ने , बिगड़ ही पड़ती अंजना मगर अपने पौधों को देखकर उसका मन खुश हो गया , आर्णव ने उनकी अच्छी देखभाल की थी...

कैसे हैं मेरे पौधे , वैसे ही हरे- भरे ना ...
बेचारे मालकिन को आस पास नहीं पाकर मुरझाने लगे थे ...आँचल की सरसराहट , हलकी मस्ती भरी गुनगुनाहट , चूड़ियों का खनकना , पायल की छन- छन सबको बहुत मिस कर रहे होंगे ...

और मालिक !!
मालिक तो थोड़ी देर बाहर तफरी कर आता है ना , मन बहल जाता है , ये बेचारे कहाँ जाएँ ...

पौधों के बहाने सब कहेगा आर्णव , ये नहीं कहेगा कि तुम मुझे याद आ रही हो , चेहरे पर ललाई दौड़ने लगी मुस्कराहट के साथ ...लीना कनखियों से देख रही थी , अंदाज लगा सकती थी किससे बात हो रही है ...
मियाजी से बातें हो रही थी ...प्रश्नवाचक निगाहों से सुर्ख हो उठा चेहरा अंजना का ...
हमारी सोचो , कितना लम्बा इतंजार करना होता है , यहाँ एक सप्ताह में में सूख कर काँटा हुए जाते हैं लोंग ...लीना मसखरी पर उतर आई ...
तो चली जा ना वही ...
जाना तो है ही , मुंबई में उनकी पोस्टिंग का इंतज़ार है ...
भात की रस्म शुरू हो गयी थी , काकी के मायके से दूल्हा- दुल्हन के साथ ही उसके माता- पिता , और सभी रिश्तदारों के लिए वस्त्र , रूपये आदि भेंट में दिए जा रहे थे ...

अच्छा है चाक़ -भात आज ही एक साथ हो गया ...कल निकासी शाम को ही होगी , दिन भर फ्री रहेगा , घूम कर आते हैं कल ...

सुबह स्नान और कुछ रस्मों से फ्री होकर दोनों सहेलियां घूमने निकल पड़ी ...काली मंदिर के पास धूप लोबान की खुशबू गुजरते लीना ने रोक लिया ...चल माँ के दर्शन कर लेते हैं ..चौड़े माथे पर बीचों बीच मोटी लाल बिंदी सा टीका लगाये पंडितों को देख अंजना पीछे सरक लेती है ...ईश्वर के प्रति पूर्ण सम्मान रखने , पूजन विधियों का पालन करते हुए भी ललाट पर तिलक लगाने के अवसर पर अंजना इधर- उधर बच निकालती है , कितनी बार अम्मा ने टोका होगा उसे ...
बचपन की कटु स्मृति बड़े होने तक पीछा नहीं छोडती ...अंजना को याद आ जाता है ...हलकी पीले रंग की सुन्दर छींटदार फ्रॉक पहने तितली सी उडती फिरती अनजान रुक गयी थी ...बैठक में में पापा के चिंतित मुद्रा में तो माँ का गुस्से से लाल चेहरा देखकर ..पापा के सामने कोई पंडित जी बैठे थे ...अपना मोटा पत्रा और लाल कागज बिखेरे वही लाल मोटा गोल टीका लगाये ..." अशुभ है " उसके कानों में आवाज़ पड़ ही गयी ..पंडितजी की सुर्ख लाल आँखों में जाने क्या देखा था मासूम अंजना ने , घबरा कर माँ के पीछे जा छिपी ...

अचानक उसे सामने देख माँ चौंकी थी ," क्या हुआ बेटा , आ तुझे नाश्ता दे दूं " ...माँ बहाने से उसे बाहर ले आई थी ....नाश्ता खिला कर बालों में थपकी देती माँ ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया ...माँ के आँचल से लिपटकर झपकी लेती अंजना को जब माँ ने बिस्तर पर लिटाया तो आँखों की कोर से कुछ बूँद लुढ़क पड़ी ...कभी संतान में अपने माँ बाप के लिए अशुभ होती है , खुद तो नशे में चूर रहता है , क्या भविष्य बताएगा किसी और का , उसकी हिम्मत कैसे हुई , आइन्दा मेरे घर में पैर नहीं रखे ...पिता बैठक से निकल कर माँ के पास आ गये थे ...
मेरी बच्ची, कैसे अशुभ कह दिया , आप भूल गये , आपकी तो इतनी अच्छी नौकरी , बंगला , नौकर- चाकर , सब सुख -सुविधाएँ इसके जन्म के बाद ही मिली हैं "
".क्यों चिंता करती हो , ऐसे ही बता दिया , हम कौन उसपर आँख मूँद कर विश्वास करते हैं "...अंजना को बिस्तर पर धीमे से सुलाती माँ को पिता ने समझाया ...माँ मुड़ी तो अंजना की छोटी हथेलियों में कसा उसका आँचल खींच गया ...सीने में ज्वार सा उमड़ आया...बेतहाशा अंजना को चूमती माँ फफक पड़ी ..

बचपन का वह भय , लाल आँखें अंजना के दिमाग से निकल नहीं पाई ...आज भी सिर पर लाल मोटी बिंदी लगाये पंडित को देख सहम जाती है ..सिर में अजीब भारीपन सा महसूस किया उसने ..
क्या हुआ अंजू ...
कुछ नहीं तू पूजा कर , मैं यहाँ बैठती हूँ ...मंदिर की सीढियों पर बैठती अंजना ने जवाब दिया ...

लीना की शादी की तैयारियों की बीच भी यही भारीपन महसूस किया था उसने कई बार ... कई बार दर्द की लहर उठती थी उसके सिर में ...वह सिर पकड़कर निढाल हो जाती थी ...उन्ही दिनों एक दिन माता -पिता को बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक सामने देख अंजना चौंक पड़ी थी ...फैक्ट्री के मजदूरों ने अचानक ही अफसरों पर धावा बोल दिया था ...सुरक्षा कर्मी जैसे- तैसे उन्हें वहां से निकाल पाने में कामयाब हुए थे ...जल्दी में जो थोडा बहुत समान समेट सकते थे , समेटा और पहली ही फ्लाईट से हैदराबाद रवाना हो गये ...
माता -पिता दोनों ही चुप से रहने लगे थे ...समझ नहीं आता था उन्हें मातम किस का मनाएं ... चाय बगान के मालिक ने कागजनगर में अपनी कागज की फैक्ट्री में उन्हें प्रशासनिक पद पर नौकरी दे दी थी , लेकिन अपनों की धोखेबाजी के जख्म अभी ताजा थे ...वर्षों तक जिन्हें अपना परिवार मानकर उनके सुख दुःख में शामिल होते रहे , उनके द्वारा इस तरह अचानक बेगाना कर दिए जाने की पीड़ा या फिर इतने वर्षों की गृहस्थी को ऐसे एक पल में छोड़ कर चले आना का दुःख , दर्द कौन सा गहरा था ...फिर से अच्छी नौकरी , और गृहस्थी का सामान तो जुटाया जा सकता था , लेकिन अविश्वास और धोखे की चोट को किस तरह मिटाया जा सकेगा ...क्या फिर कहीं किसी के साथ फिर से वह अपनापन और स्नेह पनपा पायेंगे , जो उन्होंने इतने वर्षों से अपनी फैक्ट्री के मजदूरों और मातहतों के साथ था ...अब किसी और पर विश्वास करना क्या इतना आसान हो पायेगा ...लीना के विवाह के लिए मासी ने उन्हें अभी वही रोक लिया था ...पिता माँ को वही छोड़ नई ड्यूटी ज्वाइन कर आये थे ...अंजना जब उनका उदास चेहरा देखती , वही सुर्ख घूरती आँखें , माथे पर गोल लाल तिलक याद आ जाता , वह हंसती खिलखिलाती अचानक चुप हो जाती , फिर भी भरसक खुद को लीना की शादी की तैयरियों में उलझाये रख मन की बेचैनी को भरसक दबाये रखने का यत्न करती ...

उस दिन लीना के ससुराल से महिलाओं को खाने पर आमंत्रित किया गया था ..लीना की गोद भरने की रस्म पर उन लोगों का आना तय था , मगर लीना को वहीं बुलाकर गोद भरने और अंगूठी पहनने की रस्म अदायगी कर दी गयी थी , तब उनका आना नहीं हो सका था .. "ब्याने जीमाने" का न्योता अधूरा नहीं रह जाए , इसलिए आज मासी ने उन लोगों को घर बुला लिया था ....सुबह से ही घर व्यंजनों की खुशबू से महक रहा था ...इमली की खटाई डले तिल मूंगफली के मसालों में पके ख़ास हैदराबादी भरवाँ बैंगन , जोधपुरी गट्टा पुलाव, छोले की सब्जी , बेसन की मिर्च , जयपुरी मिर्च के टिपोरे , मूंग दाल का हलवा , इन पर तेल और घी ऊपर तक नहीं तैरे तो फिर मारवाड़ी भोजन ही कैसा ....दही -बड़े का दही और खट्टी मीठी चटनी तैयार हो चुकी थी । गुलाबजामुन और दालमोठ मासी ने ऑर्डर पर बनवा लिए थे ...सलाद , चटनी , अचार ,पापड़... मासी ने संतुष्टि भरी नजर डाली ...अचानक उन्हें याद आया , देव पूजन के लिए लापसी चावल तो बनाये ही नहीं थे ...मासी ने कहा सत्या और अंजना से " नीचे रामू के घर से कूकर ले आ , कल शाम उनके घर कुछ मेहमान आये थे खाने पर तब वे ले गये थे...सत्या अंजना को खींच ले गयी साथ ....माँ के रोकते रोकते भी कि मेहमान आने वाले होंगे , तू तैयार हो जा , इधर उधर मत डोलती फिर , लीना भी उनके साथ हो ली ...

पहली बार ही उनके घर गयी थी अंजना और उनसे मिली भी थी पहली ही बार ,मगर उनकी बड़ी आँखों में परिचित होने का भाव नजर आया अंजना को .....घर की साजसज्जा आम मध्यमवर्गीय परिवार जैसी ही सुरुचिपूर्ण थी ...
कुसो मा...
उन्होंने सोफे पर बैठने का इशारा किया और लीना के साथ अन्दर चली गयी ...लौटी तो साथ में रसगुल्ला , मूंगफली -फुटाने की नमकीन और पानी भी साथ में था ...
" नहीं आंटी , हमें जल्दी है , मासी गुस्सा होंगी "
अंजना और सत्या लगभग एक साथ उठ खड़ी हुई ...दोनों लीना पर नाराज हो रही थी ...तुझे चिंता नहीं है , तेरे ससुराल से ही आने वाले हैं मेहमान ...
चल रही हूँ ना , मेरी अम्माओं ..
बाहर निकलते गेट पर रामू खड़ा मिल गया , जैसे रास्ता रोक रखा हो ...उसने अपनी हथेली खोल कर उनके आगे कर दी ...ढेर सारी चॉकलेट ...
लीना झूठ मूठ गुसा होते हुए बोल रही थी ," क्या बात है , टॉफियां बांटी जा रही है , हमें तो कभी नहीं खिलाई तूने "
पीछे हटते हुए बोला रामू , झपट्टा मत मार , सबके लिए है ...

अंजना को चॉकलेट बहुत पसंद है , सभी जानते थे , उम्र ने बचपन की टॉफियों के लालच को कम नहीं किया था ...आज भी अंजना के पर्स में दर्जन भर टॉफियां हमेशा मिल जाती हैं , खुद खाना और बच्चों में बांटना उसे बहुत अच्छा लगता है , मगर यहाँ अंजना अनदेखा करते हुए तेजी से बाहर निकलने लगी ...
ले ना ..लीना ने उठायी कुछ चॉकलेट और उसकी मुट्ठी में ठूंस दी ...
मासी उन्हें आवाज़ लगाती सीढियों तक उतर आई थी ...
कहाँ हो लड़कियों , अरे लीना , तुझे कुछ चिंता है या नहीं , क्या होगा इस लड़की का , ससुराल में मेरी नाक कटवाएगी ...
आ गये मासी .... तीनों सीढियों की ओर लपकी !
तुम लोंग इसे तैयार कर दो जल्दी से ...
मासी ने कहा तो सत्या और अंजना विमला दी की ओर लपकी ...दी, आप ही संभालो इसे , सजाना - संवारना हमारा डिपार्टमेंट नहीं है ...
ठीक है , मगर तुम यहीं खड़े तो रहो , मैं अकेले कैसे करुँगी ...
लीना साडी पहनती उनसे बातें करती जाती थी ...
अंजू, तुझे अब तेलुगु सीख लेनी चाहिए ...
क्यों .....मुझे यहाँ रहना नहीं है परमानेंट , वरना सीख भी लेती , फिलहाल तो तू घर संभालना, साडी संभालना सीख , मुझे तो निखिल जी की चिंता हो रही है , क्या होगा बेचारे की गृहस्थी का ...
मैं मजाक नहीं कर रही ...
मैं ही कौन सा मजाक कर रही हूँ ...नोंक झोंक चल रही थी दोनों में ...विमला दी ने डांटा ...सीधे खड़ी रहो , सच्ची ,मुझे भी चिंता है इस लीना की !
नीचे गाडी रुकने और मंगल गीतों की आवाज़ आने लगी थी , मेहमान आ चुके थे ...विमला दी फुर्ती से लीना का पल्ला और पत्लियाँ सेट करने लगी ...



क्रमशः ...
शादी की व्यस्तता के बीच मानसिक दबाव से उलझती अंजना ,यादों के सफ़र से गुजरती क्यों कह रही है थैंक्स , रामू ...आखिरी किश्त में !


गुरुवार, 26 मई 2011

सिनेमाई यादें ......थैंक्स राम !(3)

आपका नाम क्या है .. से आगे


" आपका नाम क्या है " ....उसने सामने देखा ,घुंघराले बालों वाला एक किशोर सामने खड़ा उससे ही मुखातिब था ...
" तुम्हे क्या मतलब है मेरे नाम से "
"नहीं , ऐसे ही पूछ लिया "
" ऐसे ही से क्या मतलब , ऐसे ही राह चलते किसी को भी रोक कर नाम पूछ लेते हो , तमीज नहीं है"...उबल पड़ी अंजना ....
शांत स्वभाव की अंजना का यह रौद्र रूप लीना ने कभी नहीं देखा था ,मगर अंजना ऐसी ही थी , यूँ तो शांत स्वभाव था उसका , मगर गुस्सा होने पर उसकी वाणी धाराप्रवाह आग उगलती थी ...उसने ये भी नहीं देखा कि आस पास लोंग इकट्ठे हो गये हैं ....लीना ने स्थिति सँभालते हुए तेलगु में कुछ कहा उस लड़के से , वह वहां से चला गया ...लीना उसका हाथ पकड़कर खींचती हुई घर ले आई थी ...

" ऐसा कुछ नहीं है अंजू , तू तो यूँ ही इतना गुस्सा हो गयी "
" यूँ ही का क्या मतलब ,बात गुस्सा होने की नहीं है, हिम्मत तो देख उसकी , खा जाता अभी थप्पड़ ...और तूने क्या कहा उस लड़के से , तेलगु में कहने की क्या जरुरत थी , बात ही क्यों करनी थी"
" मैं जानती हूँ उस लड़के को ...यही इसी बाड़े में रहता है "
" क्या , कहाँ रहता है , बता उसका घर , अभी उसके पेरेंट्स से बात करती हूँ , ये तमीज सिखाई है उन्होंने "
"तू क्यों इतना गुस्सा हो रही है , बात तो सुन ले पूरी ...अभी पिछली बार तू यहाँ आई थी तो तुझे देखा था उसने , हमसे नाम पूछा तो कहने लगा नहीं , ये नाम नहीं हो सकता , आप झूठ कह रहे हो , इसलिए जब आज तू अचानक नजर आ गयी तो उसने पूछ लिया "
" जान ना पहचान मैं तेरा मेहमान , करना क्या है उसको मेरे नाम से, खुद का क्या नाम है उसका , कौन से हीरे मोती जड़े हैं उसके नाम में " अंजना अभी तक डपट रही थी लीना को ..
" उसका नाम रामदास है , अच्छा मैं समझा दूंगी , नहीं पूछेगा " लीना हँस रही थी ....
मासी लौट आई थी काम से ...सब सुन कर हंसने लगी
मासी आप भी ...अंजना ने बुरा -सा मुंह बनाया !
तू रामू की बात पर इतना गुस्सा हो रही है , यहीं नीचे की मंजिल में रहता है , बुरा लडका नहीं है ,बावला है , ऐसे ही पूछ लिया होगा , अच्छा परिवार है , माँ टीचर है , पिता सिंचाई विभाग में इंजिनीअर हैं , उनके मकान का काम चल रहा है , यहाँ कुछ दिनों के लिए ही हैं " मासी लीना से भी दो कदम आगे बढ़कर उसका पूरा इतिहास, भूगोल बताने लगी थी...

" चल, तेरा मूड ठीक करते हैं , मूवी देख कर आते हैं ...दिलशाद में राम तेरी गंगा मैली लगी हुई है " बाड़े से कुछ ही कदम की दूरी पर था दिलशाद टॉकीज..

कम दूरियों पर ही अधिक सिनेमाहॉल , ये भी हैदराबाद की विशेषता मानी जानी चाहिए थी ...मूवी का नाम जाने बिना भी काकियाँ कई बार घर से रवाना हो लेती कि किसी न किसी थियेटर में तो अच्छी मूवी मिल ही जायेगी , पास -पास ही तो हैं ...महेश्वरी के साथ परमेश्वरी , संतोष के साथ सपना , रामकृष्ण में एक साथ तीन स्क्रीन , ऐसी ही एक दोपहर में मूवी तलाशते पहुच गयी थी वे लोंग मधुमती देखने ...

अच्छी मूवी होगी क्या ...काकियाँ सशंकित थी ...
"अच्छी क्लासिकल मूवी है , देख लेते हैं " ककियाँ उसपर भरोसा करके चली तो गयी मगर कलरफुल सिनेमा के दौर में उन्हें श्वेत श्याम देखना पसंद नहीं आया , देर तक कोसती रही उसे ," कहाँ लेकर आई है "

आखिर परेशान होकर इंटरवल से पहले ही निकल आई हॉल से और पास के टॉकीज में ले गयी पाताल भैरवी दिखाने...देखो , ऐसी मूवी देखने लायक ही हो आपलोग और काकियों को पूरी तन्मयता से पूरी मूवी देखते हुए उनकी पसंद पर अपना माथा ठोकती रही ...इस शोरगुल में थियेटर में सोया भी तो नहीं जा सकता था...

अंजना गंगोत्री के खूबसूरत दृश्यों में खोयी हुई थी , अचानक लीना को अपनी पास वाली सीट पर किसी से फुसफुसाते हुए बातें करते सुना ...मगर वे दोनों तो अकेले ही आई थी , ये तीसरा कौन है ..लीना पूरी देर उसी लड़के से बात करती रही ..मूवी ख़त्म होने से कुछ देर पहले वह युवक हॉल से बाहर चला गया ... दोनों बाहर निकली तो उसने लीना से उस युवक के बारे में पूछा ..." यहीं पास में ही रहता है , मेरी ही कॉलेज में है " लीना ने टरकाते हुए संक्षिप्त- सा जवाब दिया ...
लीना के ग्रुप से तो परिचित है अंजना , ये उनमे से नहीं था ...हमेशा को एजुकेशन में पढ़ी है लीना ..होगा कोई ..अंजना ने भी अपना सिर झटक दिया ...

घर पहुँचते ही एक और सरप्राईज उसका इंतज़ार कर रहा था ...ककियाँ अपने बाल -बच्चों के साथ बिलकुल तैयार ही थी , उसके घर में कदम रखते ही बोली ," चल , आज तुझे राम तेरी गंगा मैली देखा लायें , हम बस तेरा ही इतंजार कर रहे थे "
गश खाकर गिरना ही बाकी रह गया था अंजना का , कैसे कहती कि अभी यही मूवी देख कर लौटी है लीना के साथ ...चल ,जल्दी कर , कहते हुए काकी ने उसके हाथ में अपना बैग थमा दिया ...छोटे बच्चे हैं साथ में , दूध भर कर बॉटल , बिस्किट वगैरह भरे हैं बैग में ...बड़बड़ाती थी अंजना कई बार ," इतना क्या शौक है आपलोगों को , आलस भी नहीं आता , कांख में बच्चों को दबाये चल देती हैं झट से , कभी कोई रोयेगा , कोई बिस्किट के टुकड़े बिखेरेगा ,"

घर के बीचों बीच बने खुले चौक की रेलिंग से झांकते फुर्ती से से चलते काकियों के हाथ देखकर ...कभी कपड़े धोती , खाना बनाते , बर्तन साफ़ करते , बच्चों को नहलाते धुलाते ...सोचती अंजना कई बार , क्या जिंदगी है इनकी ,वही रोज की दिनचर्या , ये लोंग इतना खुश कैसे रह लेती हैं ...
कभी उसकी अपनी जिंदगी भी ऐसी ही होगी , अंजना ने तब सोचा नहीं था ...

ढेरों सपने थे , एक खास मुकाम पर पहुंचना है , पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर होना है , बहुत कुछ सीखना है , घर की चारदीवारियों के बाहर की दुनिया को जानना है , कुछ करना है इन सबसे अलग ...

सपने , ढेर सारे सपने ..कुछ पूरे होते हैं , कुछ टूट जाते हैं ...जिन सपनों को देखते इंसान बच्चे से बड़ा होता जाता है , टूटे हुए आईने की तरह उन टूटे सपनों की किरचें भी बहुत लहूलुहान करती हैं , आईने का छोटा टुकड़ा जो बाहर चमड़ी पर नजर आता हो , चिमटी से निकाल दिया जाए तो भी लहू तो बहता ही है , कुछ छूटे छोटे टुकड़े जो चमड़ी की सतह को पार कर भीतर चले जाते हैं , कौन सी चोट ज्यादा घायल करती है , बाहर खून टपकती छोटी खरोंचे या या जिगर के भीतर रिसते ज़ख्म ... कैसे भरा जाता है इन्हें ...शायद समय ही!

" देख ये कलर कैसा रहेगा " मजेंटा कलर की साडी का आँचल लहराते लीना उसे ही कह रही थी ...
मजेंटा की पृष्ठभूमि में हरे रंग के बौर्डर के साथ छोटे फूलों की कढ़ाई ...बहुत पसंद आई उसे साडी ...यही ले लेते हैं ...
" और कुछ बचा तो नहीं रह गया " अंजना ने लिस्ट चेक की ...सब काम हो गया ...

दोनों पैदल ऑटो स्टैंड तक आई...बाटा का शोरूम था अभी भी वहीँ , यहाँ से निकलते कई बार विम्मो दी ठिठक जाती थी ..देखना कोई बैठा है क्या , इधर तो नहीं देख रहा ...विम्मो यानि विमला दी , लीना के कॉलेज की चंडाल चौकड़ी की सबसे वरिष्ठ सदस्य , विमला दी सीनिअर थी , एक साल परीक्षा नहीं दे पाई थी , इस लिए एक ही क्लास में होने के बावजूद सब उन्हें विम्मो दी ही कहते थे ...अशफाक भाई भी इस चंडाल चौकड़ी के लिए अनजाने नहीं थे...वही, बाटा शोरुम वाले ...लीना के ग्रुप के सभी सदस्य उन्हें भाई जान ही कहते थे ...कॉलेज में उनके सीनिअर थे...उनके पिता और बड़े भाई व्यवसाय संभालते थे , अशफाक भाई को भी कहा था उन्होंने ," क्या करोगे पढ़ कर , घर का व्यवसाय है , संभालो इसे " मगर उन्हें अपने व्यवसाय में दिलचस्पी नहीं थी ....उनका लक्ष्य उच्च शिक्षा प्राप्त कर विदेश में नौकरी करना था ...विमला दी और अशफाक के रिश्ते के बारे में अशफाक के पिता और भाई के साथ ही लीना के ग्रुप के सभी सदस्य जानते थे , मगर इससे अनजान थे कि वे विवाह बंधन में भी बंध चुके हैं , अशफाक भाई जान और विम्मो दी दोनों ही पहले आत्मनिर्भर होना चाहते थे ....धर्म के कारण बाद में होने वाले विवादों से बचने के लिए कोर्ट मैरिज कर चुके थे, अभी ग्रुप में कुछ लोगों को ही पता था ...

विम्मो दी कहाँ है आजकल ...
अभी दोनों दुबई में हैं ...दो प्यारे छोटे बच्चे हैं उनके ! शुक्र है सबकुछ राजी खुशी निपट गया , वरना हम लोंग उनके लिए बहुत चिंतित थे ...प्रेम कथा सुखद अंजाम तक पहुंची आखिर ...

दोनों ने ऑटो को रोका ," गुलज़ार हौज़ "!



क्रमशः
विवाह की रस्मों के बीच अंजना और लीना तय करेंगी लीना की सगाई से विवाह तक का यादों का सफ़र ...