शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

यूँ ही ...कल्पना ही सही ...



इस तरह जुड़े हैं तुझसे
मेरे दिल के तार
बेतार
कि मैं ख़ुद हैरान हूँ
जख्म रिसता तेरा वहां है
दर्द होता मुझे यहाँ है
सोचती थी तन्हाई में अक्सर
कौन है जो
हर पल साया सा साथ चलता है
मेरी हँसी में मुस्कुराता है
मेरे ग़म में आंसू बहाता है
सख्त जमीन पर कड़ी धूप में
गुलशन सजाता है
मुट्ठी से फिसलती रेत के ढेर पर भी
आशिआं बनाता है
लडखडाते हैं जब चलते रुकते कदम
अपनी अंगुली बढाता है
नीम बेहोशी में अक्सर
अक्स जिसका नजर आता है.....
सोचती थी अक्सर यूँ भी
मेरा साया वो
कहीं मैं ख़ुद तो नही
या फिर कही
मेरी कोई
कल्पना तो नही .......
तुझसे जो मिले ख्वाब में जिंदगी
तो जाना
मोड़ कर हर राह
जिस तरफ़ नदी सी बही
तू है वही
कल्पना ही सही .......



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36 टिप्‍पणियां:

  1. जख्म रिसता तेरा वहां है
    दर्द होता मुझे यहाँ है....apno ki chahto ne kya kya diye freb.....kalpna hi sahi khushi to hai...

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  2. वाह...बहुत सुन्दर!
    कल्पना में अकल्पना और अकल्पना में कल्पना!
    बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
    बधाई!

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  3. क्या बात है !!!
    कल्पना !! ये तो कल्पना की भी पराकाष्ठा है..खुद को ही ख़्वाबों में देखना या फिर खुद के जैसे को देखना (कहीं वो मैं तो नहीं..?) कविता रहस्य से अटी लगी हैं....पाठकों को भी कल्पना करने पर विवश कर रही हैं.....आलेखों में आपकी लेखनी की धार देखते बनती है और कविता में कौमार्य.....बहुत सुन्दर....एक राज की बात बताऊँ मेरे जन्म के बाद मुझे पहला नाम 'कल्पना' ही दिया गया था लेकिन पता चला मेरी बुवा की बेटी का नाम भी यही है,,,बस फिर क्या था फटक से बदल दिया गया.......लेकिन आज आपकी कविता पढ़ कर 'कल्पना' बनाने को मन हुआ है......

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  4. जख्म रिसता तेरा --
    और
    नीम बेहोशी मे अक्सर
    अक्स जिसका नज़र आता है
    शायद दिल के तार तो बेतार के होते है और फिर ऐसे मे जख्म (किसी और का) और दर्द का रिश्ता बन जाता है

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  5. दिल तो है दिल,
    दिल का ऐतबार क्या कीजे...
    आ गया किसी पे प्यार,
    तो क्या कीजे...

    जय हिंद...

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  6. Di............ bahut hi sunder poem............hai........ feelings ko bahut achche se aapne ubhaara hai.........

    par na jaane kyun mujhe ab yeh feelings aur love poems appeal hi nahin kartin....

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  7. apne aapse baat karti hui kavita kuchh kah kar sakoon ki or le jati hai. kavita antardrashti paida karne mein saksham hai.badhai!!

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  8. इतनी उम्दा रचना कि वाह !///ख्याल तो पूरे-पूरे के बहर में हैं मैम..बहुत सुंदर

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  9. कल्पना में ही सही पर सुन्दर बात , बधाई

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  10. JAKHM RISTA TERA ....

    VAAH KAMAL KI ABHIVYAKTI HAI ... BHAAVNAAON KA SANGAM HAI AAPKI REACHNA ...

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  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  12. कल्पना हमेशा साथ रहती है बहुत सुख देती है पर महज वो कल्पना नही कोई शख्सियत ही कल्पना का रूप लेती है |
    बहुत सुंदर कविता |
    आभार

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  13. सुन्दर अभिव्यक्ति !
    हम अपनी कल्पनाओं में ही हैं ।

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  14. खाबों की ताबीर का उम्दा तसव्वुर
    और ऐसी दिलकश तर्जुमानी
    लहजा...
    मानो अल्फाज़ खुद गुनगुना रहे हों ....
    वाह !!

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  15. अदा जी ने बहुत सही कहा रचना के बार में
    वैसे आपकी लेखनी है बहुत कमाल की

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  16. कि मैं ख़ुद हैरान हूँ
    जख्म रिसता तेरा वहां है
    दर्द होता मुझे यहाँ है
    ========

    यह हैरानगी की बात है जरूर; पर यही मानवीयता का मूल तत्व भी है! और यह उतना ही रीयल है, जितना हमारा अस्तित्व।

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  17. मुट्ठी से फिसलती रेट पर भी
    आशियाँ बनता है

    शब्दों का सामंजस्य बहुत सुंदर बन पडा है .....बहुत खूब ....!!

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  18. बेहतरीन अभिव्यक्ति...कल्पना ही सही पर एक सुखद एहसास है ये, बहुत सुंदर कविता..धन्यवाद!!

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  19. vaani ji pranaam..
    sundr bhaav hai

    zakhm tistaa wahaan hai..
    dard yahaan hotaa hai..

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  20. sunder kalpna,par yeh ek sach hai,tabhi itna sunder hai ,achchi rachna badhai

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  21. कल्पनाओं की उड़ान ही तो जीने का अवलम्ब बनती है और एक मायने दे जाती है......
    बहुत ही बढिया

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  22. कल्lपनायें जिन्दगी से सुन्दर होती हैं और कल्पनाओं मे जी कर ही ऐसी सुन्दर रचना का जन्म होता है बहुत सुन्दर बधाई

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  23. vani ji 'Ek aalsi ka chittha' se aapke comment padh ke aaiya...

    "Mutthi bhar fisalti ret se bhi..."

    kamal ki kalpnasheelta....

    ...kai dimension hai is ek line main ...
    ya shayad mujhe dikhe !!

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  24. अक्सर साया ही यूँ साथ चल पाता है ...कल्पना सच से अधिक सुन्दर है ..पसंद आई आपकी यह रचना

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  25. सुन्दर संयोजन मनोभावों का....यकीनन...

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  26. ज्ञान जी ने संकेत किया है ...

    यह अन्तःसंयुक्त राग-बोध, निश्चयात्मक प्रतीति देता है ।
    कल्पना का निःसृत जल अतल तल में विहरता है और प्रकटतः जल-प्लावित करने की सामर्थ्य रखता है ।

    रचना भा गयी ।

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