शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

रोशनी है कि धुआँ … (6 )

  मध्यमवर्ग परिवार की तेजस्वी अपने संघर्ष और मेहनत  की बदौलत मिडिया में   कर्मठ व्यक्तित्व के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है।  नाम और यश प्राप्त कर अपने माता पिता और शहर का गौरव बनकर पुनः अपने शहर लौटी तो कुछ और चुनौतियाँ और संघर्ष उसकी बाट जोहते मिले .... 

धीमी सिसकियाँ आह भरे तेज रुदन में बदलते देर नहीं लगी . तेजस्वी  पास बैठी बस पीठ सहलाती रही , उसने सीमा को चुप करने का प्रयास भी नहीं किया . भीतर जमे दर्द को तेज हिचकोलों की जरुरत थी बहकर निकल जाने को वरना  जाने कब तक दबा बैठा धीमे रिसता धमनियों को सख्त करता रहता. मिसेज वालिया एक बार कमरे में आई भी मगर तेजस्वी  ने चुप रहने का इशारा करते हुए बाहर जाने को कहा . वापस पानी के गिलास  और चाय के साथ लौटी , तब तक सीमा का गुबार भी कुछ शांत हो गया था . तेजस्वी ने पानी का गिलास उठाकर दिया उसे , धीमी चुस्कियों में पानी पीकर रखते सीमा का चेहरा और धड़कन भी सामान्य हो चुकी थी . तेजस्विनी की ओर देख  उसने धीमे से सौरी कहा , दुपट्टे से आंसू पोंछते आँखों के किनारे और नाक भी सुर्ख लाल सी हो उठी थी . चाय की चुस्कियों के बीच संयत होती सीमा ने विवाह के बाद के सुनहरे दिनों के बदरंग होते पलों की दास्तान बयान की तो तेजस्वी  हैरान हो गयी .

विवाह के बाद ससुराल में सबने उसे हाथो- हाथ लिया था ,  सभी रस्में बहुत उल्लास और शालीनता से निभाई गयी थी . चूँकि सास और ससुर से सगाई और विवाह की तैयारियों के दौरान कई बार मिल चुकी थी , इसलिए उनके बीच नए घर में उसे कुछ  अजनबीपन नहीं लग रहा था.वह भी अपने आप को खुशकिस्मत समझ रही थी इस परिवार का सदस्य बन कर . मगर सौरभ से उसका अधिक परिचय नहीं हो पाया था . देखने दिखाने की रस्म के समय भी उसके माता- पिता ही साथ थे , मगर संकोचवश सीमा ने अकेले में मिलने की इच्छा  जताना उचित नहीं समझा वही सौरभ ने कहा दिया कि माँ पिता जी को पसंद है , इसलिए मुझे भी पसंद है . अलग से बात करने की कोशिश भी नहीं की गयी .सगाई की रस्म के समय भी दोनों के बीच औपचारिक बात चीत ही हो पाई , एक दो बार उसकी रिश्ते की छोटी बहन या सहेलियों ने फोन मिलाकर बात करने की कोशिश की तो कभी उधर से सौरभ स्वयं तो कभी उसका  नंबर व्यस्त आता मिला. शक सुबह की गुन्जईश इसलिए नहीं रही कि उसके सास ससुर अक्सर फोन पर बाते करते या मिलने आते . उसके ससुर कई बार अकेले भी मिलने चले आते. सुसंस्कृत मृदु व्यव्हार युक्त अच्छे परिवार  के गुणों से प्रभावित होकर इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया कि सौरभ कभी सीमा से स्वयं बात करने का इच्छुक नहीं रहा .

तेजस्वी  के मन में ख्याल आया कि भारतीय पारम्परिक विवाह की कितनी अजीब परम्परा है कि जिसके साथ पूरा जीवन बिताना है बस वही अजनबी रहे  . कही पढ़ा हुआ भी याद आया उसे कि अजनबी लड़कों से बात न करो , मगर शादी कर लो . स्मित मुस्कराहट उसके चेहरे पर आकर लौट गयी , वह गंभीरता से सीमा की बातें सुनने लगी .
हालाँकि विवाह की रस्मों के दौरान उसकी भोली प्यारी मुस्कान और हलकी फुलकी छेड़छाड़ ने सीमा को गुदगुदाए रखा , सुदर्शन हंसमुख सा पति , हर पल ख्याल रखने वाला परिवार और सबसे बढ़कर उसके हर पल की चिंता रखने वाले उसके शवसुर . सीमा का मन अपने भाग्य पर इतराने को करता क्योंकि सामान्य हिंद्स्तानी कन्याओं की ही तरह विवाह और अच्छे परिवार से इतर कुछ अपने लिए उसने न सोचा था , न ही उसे प्रेरित किया गया था . शिक्षा का मकसद तो विवाह के लिए अच्छा लड़का मिलने पर ही पूर्ण मान लिया गया था , उनकी इच्छा हो तो आगे पढ़ायें ,नौकरी करवाएं वर्ना घर गृहस्थी संभाले ! हालाँकि सीमा के सास ससुर का वादा था उसकी शिक्षा पूरी करवाने का . पगफेरे पर मायके जाकर एक दिन रह भी आई सीमा , बेटी का प्रफुल्लित चेहरा मिसेज वालिया के चेहरे की रंगत को बढ़ा गया था , बड़ी ख़ुशी और उत्साह  के साथ बेटी के ससुराल से आये तोहफे , जेवर , कपडे आदि दिखाती फूली न समाती थी .
विवाह की सभी रस्मों के बाद मेहमान लौटने लगे . विवाह की गहमागहमी और रिश्तेदारों से गुलजार घर कुछ सूना सा होने लगा , सौरभ को भी अपनी नौकरी के लिए जाना पड़ा , एक सप्ताह की ड्यूटी के बाद पुनः छुट्टी लेकर आने का वादा कर जाने की तैयारी करता रहा  , मगर सीमा ने महसूस किया इन दिनों में कि कई बार वह अकेले में बैठा घंटे तक कुछ सोचता ही रहता था या कभी लेटा रहता चुपचाप बस छत को निहारते , उस समय सासू माँ उसे किसी बहाने से अपने पास बुला लेती कि उसे आराम कर लेने दिया जाए , शादी व्याह के काम काज में बहुत थक गया है , तब वे सीमा को अपने पास बिठाकर उससे ढेरों बाते करती वह स्कूल में कैसी थी , बचपन में क्या करती थे , उसकी पढाई के बारे में . सीमा सोचती रहती कि कितने अच्छे हैं सब लोग उसे बिलकुल अकेला नहीं रहने देते .
श्वसुर  हमेशा उसके आस- पास ही मंडराते रहते .  सौरभ के  चले जाने के बाद तो घर उसे बहुत सूना सा लगा कुछ पल के लिए मगर श्वसुर उसका बहुत ध्यान रखते , उसके लिए नाश्ते की प्लेट , मिठाई का प्याला लिए उसके कमरे में ही चले आते , तेरी सास को करने दे कुछ काम , हम दोनों खायेंगे साथ  . कभी उसके कमरे में टीवी ऑन कर बैठ जाते , साथ पिक्चर देखते हैं , सीमा को थोडा संकोच होता , कई बार वह उठकर सास के पास चली जाती मगर वे उन्हें वापस अपने कमरे में भेज देती कि अभी तो वह नई बहू  है , घर के कामकाज के लिये परेशां होने की जरुरत नहीं . ज्यादा कुछ कहते उसे डर लगता कि कही वे बुरा न मान जाए .
एक दो दिन में उसके माता पिता मिलने आये और दामाद के आने तक  अपने साथ मायके ले जाने की अनुमति मांग बैठे , कुछ दिनों में उसकी क्लासेज भी शुरू होने वाली थी ,. सीमा के सास श्वसुर  ने  आदर सत्कार से उनकी मेहमानवाजी की . साथ ही यह भी कह बैठे कि आप तो हमारे घर की रौनक ले जाना चाहते हो , आपके पास रह ली इतने वर्षों , अब यही रहने दो . मगर मिसेज वालिया के बहुत इसरार करने पर आखिर एक सप्ताह के लिए सीमा को मायके भेजने के लिए राजी हुए . मायके लौटी सीमा अपनी आवभगत में डूबी सौरभ के फोन का इन्तजार करती .  एक दो बार उसके माता -पिता ने कहा भी कि दामाद जी का फोन आये तो उनसे बात करवा देना, उनसे कभी अच्छी तरह बात ही नहीं हो पाई  . मगर वह कभी फोन नहीं करता . सीमा ही मिला लेती कभी उसे फ़ोन तो बहुत कम ही बात कर पाता . सीमा को संकोच होता कि क्या कहे वह माता -पिता को , कई बार बहाना लगा लेती कि उन्होंने फोन किया था , आप पड़ोस में थी , आप सो रहे थे , आप घर पर नहीं थे . आखिर एक दिन उसकी सास का फोन आने पर मिसेज वालिया ने कह ही दिया कि दामाद जी से तो कभी बात ही नहीं हो पाती , हमेशा जल्दी में फोन करते हैं . उसकी सास ने कह बैठी , बेचारा बहुत व्यस्त है , ऑफिस की नई जिम्मेदारी , और वहां कोई और है भी नहीं सब काम उसे ही करना पड़ता है , स्वभाव से ही संकोची है !
उसी शाम  फोन आया सौरभ का सीमा के पास , सीमा से औपचारिक बातचीत के बाद उसने उसके माता- पिता से भी बात की , माफ़ी मांगते हुए कि व्यस्तता के कारण वह अब तक उनसे बात नहीं कर सकता था ! एक सप्ताह में उसके सास- ससुर एक साथ और अकेले ससुर दो बार चक्कर काट गए थे कि हमारा तो मन ही नहीं लगता इसके बिना. मिसेज वालिया बेटी के भाग्य पर  ख़ुशी से फूली न समाती . सौरभ के लौटने पर ही सीमा भी लौटी ससुराल नवदाम्पत्य के मद में सिहरन भरी सकुचाहट में शरमाई सी .

मगर इस बार घर की दीवारों में अजब- सी ख़ामोशी सूनापन- सा था ,  इस समय घर में सिर्फ चार प्राणी होने के कारण ही नीरवता का अहसास हुआ , यही सोचा सीमा ने .  सास- श्वसुर को अपने दफ्तर के लिए विदा करती घर में सौरभ के साथ अकेले रहने से रोमांचित होती रही मगर उसका उत्साह अलसाये से पड़े चुपचाप छत निहारते सौरभ को देख विदा हो लिया .
वह घबरा गयी , आपका स्वास्थ्य तो ठीक है , हाथ से सर छू कर देखा उसने मगर तापमान सामान्य देख उसे राहत मिली .  दिन भर बिस्तर पर लेते उसकी बातों का हाँ हूँ में जवाब देता देख सीमा ने सफ़र और कार्य की थकान को ही कारण समझा . विवाह की रस्मों के तुरंत बाद नए दफ्तर की जिम्मेदारी , वह तो कुछ दिन मायके में बेफिक्री में बिता आई थी मगर सौरभ को आराम मिला ही नहीं ,सोचते हुए उसने सौरभ को डिस्टर्ब नहीं किया ., शाम को कुछ समय बाहर गया सौरभ , लौटकर थोड़ी देर उसका मूड अच्छा रहा  , सबने साथ खाना खाया .सौरभ अपने  कमरे में जाकर लेट गया .  सीमा रसोई का काम निपटाकर आई  तो उसने सौरभ को नींद की आगोश में डूबा पाया . सास श्वसुर अपने कमरे में चले गए वह देर रात  तक टीवी देखती सो गई  . मगर जब अगले कई दिनों सौरभ का वही रूटीन रहा तो सीमा के मन में शंका होने लगी . उसे समझ नहीं आया कि वह क्या कहे , क्या करे . माँ का फोन आता तो शुरू में सब ठीक होने की बात कह बहाना बना देती , बताती तो तब जब उसे इस अजीबोगरीब व्यवहार पर कुछ समझ में आता  और जब उसे समझ आया तो उसके क़दमों के नीचे की जमीन ही गुम हो गयी जैसे . सौरभ नशे का आदी था,  नशे में दिन भर पड़े रहना और शाम को बाहर नशे का इंतजाम करने जाना उसकी दिनचर्या थी .वह स्तब्ध खामोश हो गयी थी . कैसे करे वह उसकी इस लत का सामना , किसे कहे , किसे बताये . सास को बताना चाहा तो मगर वह शायद पहले से ही जानती थी . प्रकट में सिर्फ यही कहा उन्होंने कि पढाई इतनी मुश्किल होती है कि बच्चे दबाव को सहन नहीं कर पाते , इसलिए कभी कर लेते हैं नशा . इस तर्क ने उसे क्षुब्ध कर दिया , वह भी तो यही पढाई कर रही है , उसे तो कभी जरुरत महसूस नहीं हुई किसी नशे की . यहाँ परिवार समाज का दबाव है तो यह हाल है , नौकरी पर क्या करता होगा ! यह ख्याल उसे परेशान करता रहा . दूसरी ओर उसके कॉलेज में नए सेमेस्टर की क्लासेज भी शुरू हो गयी थी , सास से इजाजत मांगनी चाही तो टाल देती , अभी नयी शादी है , अभी से क्या कॉलेज पढाई , साथ समय बिताओ , एक दूसरे को समझो जब तक छुट्टी पर है . समझती क्या ख़ाक वह जब शब्दों , मन अथवा स्पर्श का आदान प्रदान होता तब तो . मन मार कर सीमा उसकी पोस्टिंग पर जाने का इन्तजार करने लगी . आखिर पंद्रह दिन की छुट्टी बिताकर जब वह पुनः  लौट गया तो सीमा कॉलेज जाने की तैयारी में लग गयी , कॉलेज में पढाई और साथियों के बीच उसका मन फिर भी रमा रहता मगर घर लौट कर वही घुटन उसे तोड़ जाती , मायके भी हो आती बीच में, सबके साथ हंसती मुस्कुराती  मगर उसने सौरभ के व्यवहार के बारे में कभी किसी से बात नहीं की .
श्वसुर का व्यवहार उसके प्रति अभी भी अत्यंत प्रेमपूर्ण था . एक दोपहर जब वह कॉलेज से घर लौटी तो श्वसुर घर पर ही मिले , सास दफ्तर में ही थी . वह इस समय उन्हें घर पर देखकर चौंकी जरुर ,
सीमा के पूछने पर कहा उन्होंने , कुछ नहीं, थोडा सर में दर्द था , आराम कर लूं यही सोचकर घर लौट आया. वह चाय का कप तैयार कर ले आई थी .  मुड़ी ही थी कि पीछे से आवाज लगा कर उन्होंने बाम की डिब्बी लाने को कहा . बाम ले आई तो सर पर मल देने का इसरार कर बैठे . कई बार पिता के सर में दर्द होने पर भी लगाया ही था बाम , ममता से भरी उसने धीमे बाम मलना शुरू किया , थोड़ी देर बाद उन्होंने सीमा के  हाथ की अंगुलियाँ जोर से थाम ली . घबरा गई सीमा  , भौंचक धीमे से हाथ छुड़ा कर वह कमरे से बाहर आ गयी.


क्रमशः .... सौरभ के अजनबी व्यवहार से उबरी ही नहीं सीमा अभी  कि कुछ और हादसे उसका इम्तिहान लेने की प्रतीक्षा में हैं  !