शनिवार, 30 जनवरी 2010

हम तो डूब ही मरते ...भला हो नार्मन कजिन्स का .....बचा लिया



रोज सुबह चाय के साथ अखबार पढने की आदत है ...हालाँकि अखबार की हेडलाईन्स अक्सर दिल ही दुखाती है ...इस लिए मैं इनपर ज्यादा गौर नहीं करती ...हत्या , लूट पाट , जैसी ख़बरों पर भी सरसरी निगाह ही जाती है ....सबसे ज्यादा समय सम्पादकीय पृष्ठ पर गुजारती हूँ ....बहुत कुछ होता है उनमे पढने के लिए , गुनने के लिए ...और इन पृष्ठों पर छपने वाले नीति वाक्यों को पढना गुनना भी मेरा एक प्रिय शगल है ...
हंसी बेशर्मों का हथियार है........
मगर कल जैसे ही इस सूत्र पर नजर गयी ....सांस हलक में जहाँ की तहां अटक गयी ...कितनी जोड़ी उलाहने भरी घूरती निगाहें आँखों के सामने से गुजर गयी ....सुबह सुबह उठते ही तो अदाजी के साथ ठहाके लगाने का प्रोग्राम शुरू होता है कम्प्यूटर के जरिये ....मतलब ...अब तक हम पौ फटते ही बेशर्मी शुरू कर दिया किया करते थे ....ये तो डूब मरने जैसी बात हो गयी ....कहाँ मरे जा कर ....टैंक का ढक्कन हटा कर देखा तो पानी तलहटी में जा चिपका था ...इसमें तो चुहिया भी डूब कर ना मरे ....फिर दुबले पतले ही सही हैं तो इंसान ही ....और फिर अदाजी का खयाल आ गया ...हम तो जैसे तैसे इस चुल्लू भर पानी में समां भी जाए ...उनका भारी भरकम शरीर कहा समाएगा ....तो आप क्या सोचे थे ...हम अकेले ही डूब कर मरने वाले थे ....नो वे ....हमारी बेशर्मी में वे बराबर की हिस्सेदार हैं ...तो ...हम जो डूबे सनम तुमको लेकर डूबेंगे ....सोच विचार कर उनके इंडिया आने तक डूबने का प्रोग्राम कैंसल कर दिया .....तभी डॉ. रमेश चन्द्र अरोड़ा जी के एक पुस्तक " winning personality हाथ लग गयी ....धन्य है वे ....हमें शर्म से डूब मरने वाली स्थिति से बचा लिया ...जीते जी उनके एहसान से ना उबर सकेंगे ...अब तो अदाजी के आने के बाद भी डूब कर मरने का प्रोग्राम परमानेंट कैंसल ...कैसे ....देखिये तो सही .....

अमेरिकी पत्रिका सेटरडे रिव्यू के संपादक नार्मन कजिन्स को एक ऐसा रोग Rheumatoid Arthritis लग गया , जिसे चिकित्सकों ने असाध्य करार दे दिया था ....उनकी बीमारी के कारण उनकी सारी हड्डियाँ सिकुड़ गयी थी ....जो बहुत ही पीड़ादायक था ...वह कई बार निराश हो जाते थे अपनी असहाय स्थिति से ....एक बार उसे नर्सिंग होम में भरती किया गया ...उनके डॉक्टर मित्र ने उन्हें चेतावनी दे दी ..." कजिन्स ...याद रखो ....यह रोग कठिन है , किन्तु यदि तुम चिंता करते रहोगे , तो तुम्हारी मृत्यु अतिशीघ्र हो जायेगी ...तुम समझदार हो ....अतः अपने आप को संभालो ...."

डॉक्टर मित्र के चले जाने के पश्चात नोर्मन काज़िंस ने सोचा कि यदि चिंता करने से मृत्यु शीघ्र आ सकती है तो क्या प्रसन्न रहने से मृत्यु टल भी सकती है ...? क्यों ना प्रयोग किया जाए....? कजिन्स ने नर्सिंग होम में अपने प्राइवेट कमरे की नर्स से कहा , " तुम यह मत समझना कि मैं पागल हो गया हूँ ..."
और इस प्रकार एक अनूठा प्रयोग प्रारंभ हुआ ...नोर्मन कजिन्स ने अपने बंद कमरे में जोर जोर से ठहाके लगाने शुरू किये और लगभग १५ मिनट तक वह ठहाके लगता रहा ....शरीर में पीड़ा की उसने परवाह नहीं की और फिर तो यह क्रम निरंतर ही चलता गया ....दिन में तीन बार कजिन्स १५-१५ मिनट जोर जोर से ठहाके लगता ....कुछ दिन गुजर गए , कुछ सप्ताह बाद नार्मन कजिन्स का चेक अप किया गया तो डॉक्टर आश्चर्य में पड़ गए कि जो चिकित्सा पहले कजिन्स पर कोई असर नहीं दिखा रही थी , वह अब असर करती नजर आ रही थी ... धीरे धीरे कजिन्स के जोड़ खुलने लगे ....उसने ठहाके लगाना जारी रखा , कई महीनों तक इस जबरदस्त प्रयोग का प्रभाव हुआ ...एक चमत्कार के रूप में नोर्मन कजिन्स लगभग ठीक हो गया ...

स्वस्थ होने के बाद कजिन्स की अद्भुत कहानी अमेरिका के सारे अख़बारों में चर्चा का विषय बनी ....अमेरिका के ८० विश्व विद्यालयों में नार्मन कजिन्स को भाषणों के लिए बुलाया गया , जिसका विषय था ..." मैं अब तक कैसे जीवित हूँ ....?" ...हंसने का चमत्कार क्या हो सकता है , यह पहली बार वैज्ञानिक दृष्टि से सामने आया ...कजिन्स एक वर्ष के लिए मेडिकल विश्वविद्यालय में मनोचिकित्सा के प्रोफ़ेसर भी नियुक्त हुए ....अपने भाषणों से कजिन्स ने सिद्ध कर दिया कि हंसने से ढेरो मानसिक बीमारियाँ ठीक हो सकती हैं ...

वैज्ञानिक अनुसंधानों से सिद्ध हो गया है कि हंसने से चेहरे की मांसपेशियों की कसरत हो जाती है , चेहरा सुन्दर बनता है , मानसिक तनाव कम होता है , सृजनात्मकता बढती है तथा ह्रदय और फेफड़ों को भी शक्ति मिलती है ....

श्री श्री रविशंकर जी ने तो कहा भी है प्रसन्नता ही धर्म है और एक सच्चे धार्मिक व्यक्ति कि पहचान ही यह है कि वह प्रसन्न रहता है .....प्रातः उठते ही ईश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट करे और निश्चित करे कि आप सबसे अधिक प्रसन्न रहेंगे ....अपनी गलतियों और मूर्खताओं पर हँसना सीखे ...बच्चों और फूलों से प्यार करे और उनके साथ जी भर कर खिलखिलाएं ....

इतना कुछ तो लिख दिया है हंसी के बारे में ...अब मुस्कुरा भी दीजिये ......हाँ ...अब ठीक है ....थोडा ठहाका भी लगा लें ....


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नोट ...अदाजी सचुमच इतनी मोटी नहीं है ....यह एक निर्मल हास्य भर है ...इतनी पर गौर कीजियेगा ...:):)
सभी चित्र गूगल से साभार ...