गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

ग्रीटिंग कार्ड का टुकडा .........

कल जब यूँ ही पढने के लिए बुक सेल्फ से एक किताब निकाली तो उसके बीच से एक पुराने ग्रीटिंग कार्ड का एक हिस्सा निकाल आया ...याद आया ..ये ग्रीटिंग कार्ड का फटा तुडा मुड़ा सा टुकड़ा तीन चार साल पहले बेटी को उसके कोचिंग सेंटर के बाहर पड़ा मिला था ....अपनी कोमल भावना के वशीभूत होकर वह इसे घर उठा लाई ...इस तुड़े मुड़े कागज को देख कर मैं उसपर नाराज ही होती ....वर्षों से यत्न से संभाले मेरे कार्ड्स पर अपनी चित्रकला का सजीव प्रयोग कर उनकी दुर्गति करने वाली मेरी बेटी को इसमें ऐसे क्या ख़ास दिखा कि वह सड़क के बीच से इसे उठा लाई ....इसकी लिखावट को पढ़ा गौर से ...इसकी भाषा बता रही थी कि यह किसी सास ने अपने बहू को उसकी सफलता की बधाई देने के लिए लिखा था ...


इसका मजमून इस प्रकार है ...

Dear ??? {beta}

God bless you ,
I really fall in love with you , because you are so caring and sincere that I always dream t for my daughter in law . God give you lots which you imagine in in your dreams. I will never tolerate you to be sad always cheerful with your simplicity and love ...

your Maa & Papa


मैं उस सास की भावना पढ़ कर गदगद हो गयी ....हमारे समाज में जहाँ अमूमन सास बहू का रिश्ता अत्यंत ही तनावपूर्ण होता है ...वहां एक सास की अपनी बहू के प्रति इतनी ममता .... मुझे उस बहू पर बहुत गुस्सा आया जिसने अपनी सास के इतने प्यार से लिखे गए शुभकामना सन्देश को कचरे के ढेर के हवाले कर दिया .... और खुद पर थोडा सा गर्व भी हुआ ...कि मेरे बच्चों में इन रिश्तों के प्रति कितनी संवेदनशीलता है कि वह इस कागज के टुकड़े को अनदेखा नहीं कर पायी और इन बच्चों ने अपनी माँ से यह सब एकल परिवार में रहते हुए सीखा है ....थोड़ी हैरानी भी कि जो भावना एक 14 साल की बच्ची को इतना भावविभोर कर गयी ...वह एक परिपक्व युवती को अपने मोहपाश में क्यों नहीं बाँध पायी ...सास कितनी उमंग से अपने बेटे के लिए बहू चुनती है , या फिर बेटे की पसंद को ही बहू के रूप में अपनाती है ....फिर धीरे धीरे इन रिश्तों में ऐसा क्या हो जाता है जो उनके बीच स्नेह और अपनापन चुकता जाता है ...क्या सिर्फ इसीलिए कि एक ही व्यक्ति से दो जनों की भावनाए इतनी ज्यादा जुडी होती हैं जो उनके बीच में दरार का कारण बन जाती है ...अपने रिश्ते का अधिकार जताते हुए दोनों ही पक्ष में एक दूसरे के प्रति कटु भावना तीव्र हो जाती है ...दोनों पक्ष की जरा सी समझदारी और केंद्र में अवस्थित व्यक्ति की तटस्थता दोनों के मध्य टकराव को दूर करते हुए इस रिश्ते की गरिमा और उनके प्रेम को बनाये रखने में मदद कर सकता है ....

बहुत पहले किसी पत्रिका में कहानी पढ़ी थी ...सास बहू के रोज के झगड़ों से तंग आकर एक बेटा कुछ दिनों के लिए घर छोड़ कर चला गया ....ट्रेन की पटरी के पास किसी लाश का अनुमान कर दोनों सास बहुएं एक दूसरी की गोद में सर रखकर छाती पीटती विलाप करती रही ....और एक दूसरे का संबल बनती बड़े प्रेम के साथ विपत्ति के दिन साथ बिताने लगी ...जब कुछ दिनों बात बेटा वापस लौट कर आया तो चुपके से उन दोनों का प्रेम देखकर उलटे पाँव लौट गया ...इस भावना के साथ कि यदि वह वापस आ गया तो इनका नेह बंधन फिर से विकृत हो जाएगा ....

अजब गजब है यह रिश्तो की माया नगरी ....!!




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