गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

लिख ही दूँगी फिर से प्रेम गीत ....



लिख ही दूँगी फिर कोई प्रेम गीत
अभी जरा दामन सुलझा लूं ....

ख्वाब मचान चढ़े थे
कदम मगर जमीन पर ही तो थे
आसमान की झिरियों से झांकती थी
टिप - टिप बूँदें
भीगा मेरा तन मन
भीगा मेरा आँचल
पलट कर देखा एक बार
कुछ कांटे भी
लिपटे पड़े थे दामन से
खींचते चले आते थे
इससे पहले कि
दामन होता तार - तार
रुक कर
झुक कर
एक -एक
चुन कर
निकालती रही कांटे
जो लिपटे पड़े थे दामन से ..

लहुलुहान हुई अंगुलियाँ
दर्द तब ज्यादा ना था

देखा जब करीब से
कोई बेहद अपना था...
दर्द की एक तेज लहर उठी
और उठ कर छा गयी
झिरी और गहरी हुई
टिप - टिप रिस रहा लहू
दर्द बस वहीँ था ...
दिल पर अभी तक है
उसी कांटे का निशाँ
इससे पहले कि
चेहरे पर झलक आये
दर्द के निशाँ
फिर से मैं मुस्कुरा ही दूंगी

फिर से लिख ही दूंगी प्रेम गीत
अभी जरा दामन सुलझा लूँ ...




मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

बात की शुरुआत ....... दिल या दिमाग की कमजोरी है ..??

अभी कुछ दिनों पहले इस आभासी दुनिया की एक सखी से चैटिंग हो रही थी ...अक्सर हम लोग बतियाते रहते है ब्लॉगजगत में होने वाली हलचलों पर और लिखी गयी पोस्ट और कमेंट्स पर भी ...हम लोग एक रचनाकार की किसी रचना के बारे में बात कर रहे थे ...कुछ उलझन थी उनकी रचना को लेकर ...अभी हमारी बात चल ही रही थी कि अचानक उक्त महोदय की हरी बत्ती जल गयी ...यानि महाशय ऑनलाइन दिखने लगे ...गूगल आजकल बिना एड किये भी अपने आप आपके मित्रो के संख्या को बढाता रहता है ...हम सभी जानते हैं ..खैर....मैंने कहा अपनी उस फ्रेंड को कि वो जो भी सवाल है उनसे पूछ ले ...
उसने कहा ..." सुनो ..दिमाग की बात यह है कि कभी खुद आगे होकर किसी से बात मत करो ।"
मैंने कहा..." पर सवाल तो अपना है ना ...तो पूछना तो खुद को ही पड़ेगा ....बिना पूछे किसी को क्या पता चलेगा "...आगे जोड़ते हुए मैंने कहा ..." मैं तो कभी नहीं सोचती कि फलाना ही खुद बात करे तो मैं उसकी रचनाओं के बारे में बात करू ...मैं तो जिससे जो पूछना होता है, पूछ लेती हूँ , आखिर ब्लोगिंग का यही तो सबसे बड़ा सकारात्कमक पक्ष है कि आप रचनाकार से सीधे जुड़े होते हो , तुरंत सवाल कर सकते हो , जवाब पा सकते हो ?
" हाँ ....लेकिन पहले इतनी सहजता तो हो बातचीत में "
" सहजता तो बातचीत होने से ही आती है "
"हाँ .... मगर सहज बातचीत के लिए मित्रता भी तो होनी चाहिए"
" मगर उन लेखक महोदय ने अपनी एक पोस्ट में तुमसे चैट का जिक्र किया है "
" हाँ ...कभी कभार होती है बात "
" तुम्हारी पोस्ट में भी तो तुमने किसी से अपनी चैट का जिक्र किया था ..."
" हां ...बताया ना कभी कभार होती है बात " ....अब मेरी वह मित्र सकपकाने लगी थी ...
मेरी इस दुष्ट याददाश्त से बहुत लोग भन्नाए रहते हैं ....

बात तो ठीक है ...मगर ब्लॉगजगत में इतनी परिपक्वता नहीं आई है कि आपके सवालों को महज रचना के प्रति जिज्ञासा मान लिया जाए ....दिमाग की बात यही है कि आगे होकर बात नहीं की जाये "

मैंने उसे ..." मगर तुमसे भी बात की शुरुआत अक्सर मैं ही करती हूँ "

" हमारी बात और है " उसने बात को लगभग ख़त्म करते हुए कहा ....मगर मैं कहाँ इतनी जल्दी पीछा छोडती हूँ ...क्यों हमारी बात अलग क्यों है , हम भी इस ब्लॉगजगत के एक अंग ही है ...चाहे साधारण माने जाते रहे ....उससे क्या होता है ....और साधारण है इसलिए ही तो हमारे इतने सवाल होते हैं और सवाल करने की सहजता ...वह भी तो बात करने से ही होगी ...और इसमें परेशां होने जैसी क्या बात है ....

" हाँ ...मगर नहीं आपके सवाल को किस तरह ले , कही बकवास शुरू कर दे "

" हाँ... ये हो सकता है ...मगर जब तुम्हारा मन साफ़ है और सिर्फ जिज्ञासावश पूछ रही हो तो इसमें इतना सोचने जैसा क्या है ...अगर आपके पूछे गए सवाल का जवाब देने की बजाय बकवास करता है तो परेशानी उसकी है ...गड़बड़ी उसके दिमाग में है ...हम क्यों परेशां हों ...और जहा तक ब्लॉगजगत की बात है , यहाँ सभी पढ़े लिखे लोग है , तो ऐसी कोई संभावना नहीं होनी चाहिए " मैंने कहा
" तुम ज्यादातर दिल से सोचती हो , इसलिए ऐसा कह रही हो " मेरी उस सहेली ने कहा ...
उस दिन हमारी इस टॉपिक पर बातचीत काफी देर तक होती रही ....मैंने उसे बताया कि रामचरितमानस में शबरी और सीता- परित्याग को लेकर कुछ सवाल थे , तो रामायण पर शोध करने वाले एक वरिष्ठ ब्लॉगर से मैंने मेल कर के पूछ लिया ...उन्होंने बहुत सधे शब्दों में मेरी शंका का निवारण कर दिया ... मुझे इसमें कही कोई असहजता या बकवास का सामना नहीं करना पड़ा ....हिमांशु और गिरीजेश राव, प्रेमचंद गाँधी जी की कविताओं पर भी मैं उनसे सीधे बात करती रहती हूँ ...मुझे कभी किसी अप्रिय स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा ...

उस दिन हमारी बात यही समाप्त हो गयी ..मगर यह सवाल मेरे दिमाग में काफी उथल पुथल मचाता रहा कि कि क्या बात की शुरुआत करना दिमाग या दिल की कमजोरी है ??....अब ये फैसला आपकी टिपण्णी ही कर दे... इन्तजार रहेगा ....