अभी कुछ दिनों पहले इस आभासी दुनिया की एक सखी से चैटिंग हो रही थी ...अक्सर हम लोग बतियाते रहते है ब्लॉगजगत में होने वाली हलचलों पर और लिखी गयी पोस्ट और कमेंट्स पर भी ...हम लोग एक रचनाकार की किसी रचना के बारे में बात कर रहे थे ...कुछ उलझन थी उनकी रचना को लेकर ...अभी हमारी बात चल ही रही थी कि अचानक उक्त महोदय की हरी बत्ती जल गयी ...यानि महाशय ऑनलाइन दिखने लगे ...गूगल आजकल बिना एड किये भी अपने आप आपके मित्रो के संख्या को बढाता रहता है ...हम सभी जानते हैं ..खैर....मैंने कहा अपनी उस फ्रेंड को कि वो जो भी सवाल है उनसे पूछ ले ...
उसने कहा ..." सुनो ..दिमाग की बात यह है कि कभी खुद आगे होकर किसी से बात मत करो ।"
मैंने कहा..." पर सवाल तो अपना है ना ...तो पूछना तो खुद को ही पड़ेगा ....बिना पूछे किसी को क्या पता चलेगा "...आगे जोड़ते हुए मैंने कहा ..." मैं तो कभी नहीं सोचती कि फलाना ही खुद बात करे तो मैं उसकी रचनाओं के बारे में बात करू ...मैं तो जिससे जो पूछना होता है, पूछ लेती हूँ , आखिर ब्लोगिंग का यही तो सबसे बड़ा सकारात्कमक पक्ष है कि आप रचनाकार से सीधे जुड़े होते हो , तुरंत सवाल कर सकते हो , जवाब पा सकते हो ?
" हाँ ....लेकिन पहले इतनी सहजता तो हो बातचीत में "
" सहजता तो बातचीत होने से ही आती है "
"हाँ .... मगर सहज बातचीत के लिए मित्रता भी तो होनी चाहिए"
" मगर उन लेखक महोदय ने अपनी एक पोस्ट में तुमसे चैट का जिक्र किया है "
" हाँ ...कभी कभार होती है बात "
" तुम्हारी पोस्ट में भी तो तुमने किसी से अपनी चैट का जिक्र किया था ..."
" हां ...बताया ना कभी कभार होती है बात " ....अब मेरी वह मित्र सकपकाने लगी थी ...
मेरी इस दुष्ट याददाश्त से बहुत लोग भन्नाए रहते हैं ....
बात तो ठीक है ...मगर ब्लॉगजगत में इतनी परिपक्वता नहीं आई है कि आपके सवालों को महज रचना के प्रति जिज्ञासा मान लिया जाए ....दिमाग की बात यही है कि आगे होकर बात नहीं की जाये "
मैंने उसे ..." मगर तुमसे भी बात की शुरुआत अक्सर मैं ही करती हूँ "
" हमारी बात और है " उसने बात को लगभग ख़त्म करते हुए कहा ....मगर मैं कहाँ इतनी जल्दी पीछा छोडती हूँ ...क्यों हमारी बात अलग क्यों है , हम भी इस ब्लॉगजगत के एक अंग ही है ...चाहे साधारण माने जाते रहे ....उससे क्या होता है ....और साधारण है इसलिए ही तो हमारे इतने सवाल होते हैं और सवाल करने की सहजता ...वह भी तो बात करने से ही होगी ...और इसमें परेशां होने जैसी क्या बात है ....
" हाँ ...मगर नहीं आपके सवाल को किस तरह ले , कही बकवास शुरू कर दे "
" हाँ... ये हो सकता है ...मगर जब तुम्हारा मन साफ़ है और सिर्फ जिज्ञासावश पूछ रही हो तो इसमें इतना सोचने जैसा क्या है ...अगर आपके पूछे गए सवाल का जवाब देने की बजाय बकवास करता है तो परेशानी उसकी है ...गड़बड़ी उसके दिमाग में है ...हम क्यों परेशां हों ...और जहा तक ब्लॉगजगत की बात है , यहाँ सभी पढ़े लिखे लोग है , तो ऐसी कोई संभावना नहीं होनी चाहिए " मैंने कहा
" तुम ज्यादातर दिल से सोचती हो , इसलिए ऐसा कह रही हो " मेरी उस सहेली ने कहा ...
उस दिन हमारी इस टॉपिक पर बातचीत काफी देर तक होती रही ....मैंने उसे बताया कि रामचरितमानस में शबरी और सीता- परित्याग को लेकर कुछ सवाल थे , तो रामायण पर शोध करने वाले एक वरिष्ठ ब्लॉगर से मैंने मेल कर के पूछ लिया ...उन्होंने बहुत सधे शब्दों में मेरी शंका का निवारण कर दिया ... मुझे इसमें कही कोई असहजता या बकवास का सामना नहीं करना पड़ा ....हिमांशु और गिरीजेश राव, प्रेमचंद गाँधी जी की कविताओं पर भी मैं उनसे सीधे बात करती रहती हूँ ...मुझे कभी किसी अप्रिय स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा ...
उस दिन हमारी बात यही समाप्त हो गयी ..मगर यह सवाल मेरे दिमाग में काफी उथल पुथल मचाता रहा कि कि क्या बात की शुरुआत करना दिमाग या दिल की कमजोरी है ??....अब ये फैसला आपकी टिपण्णी ही कर दे... इन्तजार रहेगा ....
संवादहीनता तब ही होती है जब दिल में कुछ और दिमाग में कुछ चलता रहता है -मुझे लगता है संवाद बनाए रखने के लिए दिल पर ही भरोसा किया जाना चाहिए -जैसे आपसे बात करने में मुझे बहुत सहजता रहती है -क्योकि आप भी सहज होकर बात कर लेती हैं -यद्यपि कई अंतर्विरोध है तब भी -मगर दिल आपका साफ़ है (बडाई नहीं यह सच्चाई है और दिल से कह रहाहूँ )
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा को कभी भी कमजोरी की संज्ञा में रखा ही नहीं जा सकता ।
जवाब देंहटाएंहां ! परिपक्वता का आभाव निर्णय में गतिरोध उत्पन्न अवश्य करता है । आभार !
बात की शरूआत दिल या दिमाग की कमजोरी नहीं
जवाब देंहटाएंबल्कि उसकी ताकत है!
यही तो आत्मविश्वास होता है!
वाणी,
जवाब देंहटाएंमेरे बात की शुरुआत करने का क्या असर होगा ये सामने वाले के दिमाग पर है...अगर वो विदूषक होगा तो बात को सिर्फ बात समझ कर जवाब देगा...लेकिन अगर वो कोई मूर्ख हुआ तो मेरे उससे बात करने के एक दर्ज़न मतलब निकाल कर और न जाने क्या-क्या खिचड़ी पका कर मुझे परोस देगा....फिर भी मेरा भी यही मानना है कि अगर अक्ल काम नहीं कर रही है तो पूछ ही लेना चाहिए....क्या होगा..??
वैसे भी काठ की हांड़ी चढ़ी न दूजी बार...
आभासी दुनिया की एक ज्वलंत समस्या की ओर इंगित करती रचना...बधाई...
'अदा' ने आपकी पोस्ट " बात की शुरुआत ....... दिल या दिमाग की कमजोरी है... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंवाणी,
मेरे बात की शुरुआत करने का क्या असर होगा ये सामने वाले के दिमाग पर है...अगर वो विदूषक होगा तो बात को सिर्फ बात समझ कर जवाब देगा...लेकिन अगर वो कोई मूर्ख हुआ तो मेरे उससे बात करने के एक दर्ज़न मतलब निकाल कर और न जाने क्या-क्या खिचड़ी पका कर मुझे परोस देगा....फिर भी मेरा भी यही मानना है कि अगर अक्ल काम नहीं कर रही है तो पूछ ही लेना चाहिए....क्या होगा..??
वैसे भी काठ की हांड़ी चढ़ी न दूजी बार...
आभासी दुनिया की एक ज्वलंत समस्या की ओर इंगित करती रचना...बधाई...
कुछ कुछ संदर्भ तो समझ ही रहा था , बांकी बहुत सी बात तो अदा जी खुद ही स्पष्ट कर दी है । अब रही बात पहले करने या न करने की तो सच कहूं तो मुझे लगता है कि मैं आपसे और आपकी मित्र दोनों से ही सहमत हूं । कारण ये कि आपने मुख्य बात ये कही है शायद कि पहल कोई भी करे , यदि वो जरूरी है तो संवाद होना चाहिए बिना ये सोचे कि पहल कौन कर रहा है । अब यदि आपकी मित्र की तरफ़ से सोचूं तो ये लगता है जब शंका पहले ही हो रही हो कि उधर से बकवास हो सकती है तो फ़िर संवाद शुरू करके या कि उसका हिस्सा बनकर हासिल क्या होगा ।
जवाब देंहटाएंचलिए अभी थोडा और सोचता हूं फ़िर आता हूं
अजय कुमार झा
मन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए संवाद ज़रूरी है.....मैं भी अदा जी की टिप्पणी से सहमत हूँ.....स्वयं में विश्वास होना चाहिए..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा मुद्दा उठाया है...
सुनिए...कहिए...
जवाब देंहटाएंकहिए...सुनिए...
कहिए न...
कहते सुनते बातों बातों में,
बात बन जाएगी....
वैसे बात निकलती है तो दूर तलक जाती है...
ये और बात है कि इस पोस्ट की बात पूरा संदर्भ पता न होने की वजह से मेरे लिए गुगली साबित हुई है...
जय हिंद...
ताल और आवाज का तालमेल बैठता है तो गीत अद्भुत हो जाता है। जब दिल और दिमाग कहें,,,यहाँ तो पूछना चाहिए, तब रोकने की कोशिश मत करें, वरना वो कुछ गलत रच डालेगा, अगर आप बहते हुए पानी को रोकने की कोशिश करोगे.. वो दूसरी तरफ बहने लगेगा। पूछना बुरी बात नहीं, वैसे जिन्होंने दिमाग पर काबू पा लिया, जो दिमाग के मालिक बन गए, वो हमेशा ही खुश रहे हैं, जो दिमाग के कहने पर ही चलें हैं, वो गिरे हैं।
जवाब देंहटाएंवाणी जी .
जवाब देंहटाएंकोई बहुत बड़ी बात नहीं है ये .....मन में कोई गलत- फहमी है तो पूछ लेना बेहतर है पर पूछें यूँ कि दोनों का सम्मान बना रहे ...इस बात का ध्यान रखा जाये बात उन दोनों के बीच ही रहे ....अगर तीसरे तक पहुँचती है तो ये आपके चरित्र का परिचायक होगी ....आखिर ब्लॉग जगत एक बृहद परिवार ही तो है ....हमें सभी के मान सम्मान का ध्यान भी रखना है .....!!
chalo koi to bat hogi
जवाब देंहटाएंshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
वाणी जी
जवाब देंहटाएंमन की जिज्ञासाओं की शान्ति के लिये सम्वाद बहुत जरूरी है…………जब तक रचना के मर्म को हम नही जानेगे य जो रचयिता कहना चाह्ता है उसे नहि समझेगे तब तक पढ्ने का कोइ फ़ायदा नही।
मेरा तो यह मानना है और यह धारणा केवल स्वयं के अनुभव से ही बनी है कि हम संवाद प्रारम्भ करने से डरते हैं। पता नही सामने वाला कैसी प्रतिक्रिया करे? उसे हमारा संवाद पसन्द है या नहीं। कई बार लोगों के असली चेहरे लेखन से समझ नहीं आते। कुछ लोग अपना कद बहुत बड़ा मानते हैं और दूसरे का एकदम छोटा, तो ऐसे में भी डर लगता है कि पता नहीं कैसा व्यवहार मिले। लेकिन संवाद से ही डर भी दूर होता है। बस हिम्मत की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंसहमत इस बात से जब भी कोई शंका हो तो संवाद जरुर करे ,बात चीत से ही हर बात सही दिशा में सोची जा सकती है
जवाब देंहटाएंबाकी दिल और दिमाग की जंग तो अपने ऊपर है
हाँ! यह स्थिति तो बनती है कभी-कभी
जवाब देंहटाएंलेकिन किसी बात को लेकर उलझन रखने की बजाय
शंका समाधान कर ही लेना चाहिए।
बाकी अदा जी ने तो कह ही दिया है
सही है,शंका निवारण तो कर ही लेना चाहिए.....बहुत होगा तो यही कि सामने वाला कह देगा,अभी व्यस्त हूँ, या अगर आपको उसकी बात पसंद ना आए और आगे बात करने की इच्छा ना हो तो आप अपनी व्यस्तता का बहाना बना सकते हैं...कोई फोन आ गया, कोई दरवाजे पर है या सबसे अचूक हथियार...अदृश्य होकर कह देना...DC हो गया :)
जवाब देंहटाएंहमने तो आज तक ये सोचा ही नही. जो मिल गया सामने से..रामराम करली.
जवाब देंहटाएंरामराम.
दिल दिमाग अपनी जगह..संवाद अति महत्वपूर्ण है.
जवाब देंहटाएंजब दिल और दिमाग में जंग हो तो दिल की सुनें...
जवाब देंहटाएंअंततः बात तो होनी ही चाहिए .
जवाब देंहटाएंबात की शुरुआत करना तो एक सकारात्मक पहलू है! पहल करने की योग्यता होना भी व्यक्तित्व की एक विशेषता है!
जवाब देंहटाएंसंवादहीनता की संबंध को समाप्त करने में बडी भूमिका होती है .. संवाद बनाए रखने में देर से ही सही सारे भ्रम का निवारण होता है !!
जवाब देंहटाएंसुमन जी के nice का ठप्पा लगने के बाद भी आपको कोई जवाब चाहिए क्या? :)
जवाब देंहटाएंKabhi nahi socha tha is vishay pe...! Aksar mai pahal karke haalchaal poochh leti hun...yaa phir kisiki rachana achhee lagi ho,yaad rah gayi to kah deti hun...agale ke paas chat ka samay hai ya nahi yebhi poochh leti hun!
जवाब देंहटाएंदेखिये यहाँ एक सुविधा तो है की जिससे आप जिज्ञासा सामाधान हेतु बात/चैट कर रही हैं, वह कोई सामने आकर बैठा प्राणी तो है नहीं...जैसे ही लगे कि व्यक्ति बात करने लायक नहीं,झट अपनी खिड़की बंद कर दीजिये...अब कोई जबरदस्ती थोड़े न है कि वह सामने आकर सदेह बैठा हुआ है और शिष्टाचार के नाते उसे गलियां दे हम भगा नहीं सकते...
जवाब देंहटाएंज्ञान लेना हो,जिज्ञासा का समाधान करना हो तो नारी पुरुष की बात पीछे छोड़ आगे तो उसी को बढनी चाहिए जो जिज्ञासु हो...और बिना संपर्क किये जेंडर के आधार पर यह पूर्वानुमान लगा लेना कि अमुक बुरा ही होगा...मेरे विचार से सही नहीं...हाँ ,यह भी है कि हर पढ़ा लिखा कंप्यूटर पर लिख सकने वाला व्यक्ति सुसंस्कारी ही नहीं होता...इसलिए यह सब तो स्वविवेक से ही निर्णीत करना होगा...
इतना नहीं सोचना है इस बारे में ! जिज्ञासा आयी तो वह अभिव्यक्त होगी..उसे होने दीजिए ! अपनी ध्वनि का भी मामला है, जैसी होगी..प्रतिध्वनि वैसी ही न आयेगी !
जवाब देंहटाएंनिष्कलुष, निर्दोष, निःसंकोच रहने कॊ कोशिश हो .. बस!