गाँधीजी का कहना था कि " भारत का ह्रदय गांवों में बसता है"। आज भी हमारी ८५ प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। गाँव में ही भारत की सच्ची तस्वीर देखी जा सकती है । परन्तु गाँवो में रोजगार की कमी , उच्च शिक्षा के पूरे अवसर उपलब्ध ना होने के कारण गाँव से लोग तेजी से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं ।
मगर गाँव से शहर आकर भी उनका भीतरी गंवाई मन जब तब अपना फन उठाता रहता है ।
गाँव जहाँ प्रकृति अपने अप्रतिम सौंदर्य के साथ उपस्थित होती है, हरे -भरे खेत , झूमती सरसों , बरसता सावन, खुली हवा, सुगन्धित हवा , अप्रदूषित शांत वातावरण, अमरायिओं में गूंजती कोयल की कूक , सावन की पहली फुहार पर प्रफुल्लित नाचते मोर , खेतों के बीच की पगडंडियाँ , ताजा सब्जियों और धन्य -धन्य से भरे खेत -खलिहान ....जिसने भी सादा साफ़ सुथरा मधुर ग्राम्य जीवन जीया है , लाख शहरी हो कर भी बस मौका मिलते ही वापस वही भागने को मचलता है ।
गाँव जहाँ ना सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य बसता है , बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन भी अत्यंत मनोहारी होता है । गाँव में लोग प्रकृति की हर लय के साथ नाचते -गाते गुनगुनाते होली , दीपावली, तीज , आदि लोकपर्व या सामाजिक व धार्मिक पर्व बड़े धूम धम से साथ मिलकर मनाते हैं । भाईचारे का अटूट बंधन ग्रामवासियों को आपस में मजबूती से बांधे रखता है इसलिए ही वे एक- दूसरे के सुख-दुःख में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं ....जहाँ किसी एक इंसान की बेटी पूरे गाँव की इज्जत होती है , वही सभी का एक समान ध्यान रखने वाली ममतामयी भाभियों को अपने सहज स्नेह के लिए चरित्र प्रमाणपत्र नहीं लेना पड़ता । इनके सुख दुःख साझा होते हैं । विवाह की रस्में , गीत , विदा के क्षण ग्राम्यवासियों की भावुकता और व्यवहारकुशलता को प्रकट करते हैं ।
गाँव के निश्छल वातावरण में पले बढे ग्रामवासी जब कतिपय कारणों से शहर की ओर बढ़ते हैं तो कुछ समय के लिए शहरी चकाचौंध उन्हें बहुत लुभाती है मगर जैसे जैसे शहरी गीरगटी रंग और चमक -दमक के पीछे छिपा गन्दला और यत्न से ढक कर रखा लिजलिजा वातावरण सामने आता है , मन तो बस सहज , सौम्य , शांत गाँव की ओर ही सरपट भागता है , तन से शहर में रहने की मजबूरी को ढोते हुए भी ...
टेलीविजन धारावाहिकों से तेजी से गायब होते गाँवों के बीच एक सुखद ग्रामीण अहसास लेकर आया है ख्यातनाम व्यंग्यकार शरद जोशी की कहानियों पर आधारित धारावाहिक " लापतागंज " । जहाँ ज्यादातर धारावाहिक शहरी जीवन को रेखांकित करते भव्य , दोगलापन , भड़कीले सेट आईना बने हुए हैं , वही यह धारावाहिक हमें अपनी बिसरा दी गयी संस्कृति की जड़ों की ओर लेकर जाता है ।
भड़कीले रंगों से सजे ठेठ गंवई या कस्बाई सेट , और सीधे -सादे कस्बाई चरित्र कितने भूले गाँवों और कस्बों की संस्कृति को साकार करते नजर आ जाते हैं ।
मुकुन्दी और इंदुमती की छोटी सी गृहस्थी और एजी ओजी की पुकार के साथ उनके बीच होने वाली तकरार और हंसी ख़ुशी के पल के बीच पलता सहज स्वाभाविक जीवन , दस साल से डीपली कानून की पढ़ाई करता अपने अंग्रेजी ज्ञान को बघारता बिज्जी पाण्डेय और सुरीली का मूक प्रेम (क्यूंकि सुरीली गूंगी है ) दिमाग की नसों को शिथिल करने के लिए पर्याप्त है । कछुआ चाचा , सुरीली की मौसी , मामा आदि सभी पात्र इस धारावाहिक के कस्बाई चरित्र को पूरी तरह उभारते हैं । हलके फुल्के हास्य व्यंग्य के साथ व्यवस्था की खामियों पर प्रहार करता और सामाजिक सन्देश देता यह धारावाहिक भारत में लापता हो चुके ऐसे गाँवों की बहुत याद दिलाता है ।
शरद जोशी की कहानियों का पता लापतागंज -1
शरद जोशी की कहानियों का पता लापतागंज -2
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चित्र गूगल से साभार ...
अच्छा, लापतागंज का पता तो जी हमें आपसे ही आज मिला है...वो भी आपसे..
जवाब देंहटाएंअब देख भी लेंगे..अपने जो लिंक दिए हैं, उसके ..
ये सच है कि जिस इंसान ने भी जीवन में कुछ पा लिया या फिर एक उम्र के बाद, वो अपने जड़ों की ओर लौटने का ही प्रयास करता है...
और फिर गाँव की सादगी तो बरबस अपनी ओर आकृष्ट करती ही है...लेकिन अब गाँव भी वैसे नहीं रहे हैं (लोग ऐसा कहते हैं)
फिर भी हम तो अपना बुढ़ापा गाँव में ही बिताना चाहते हैं....जहाँ हम हों , मुकुन्दी हों, इंदुमती हो, सुरीली हो और वाणी हो....:):)
अब हकीकत में गांवों की तस्वीर बदल चुकी है ,शहरों की मानसिकता अब वहाँ भी प्रभावी हो रही है.
जवाब देंहटाएंशरद जोशी के व्यंग्यों पर आधारित यह कार्यक्रम मेरा प्रिय है..नियमित देख रहा हूँ..कछुआ चाचा और बिज़ी पाण्डे जबरदस्त रोल कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंलापतागंज वाकई बेहतरीन है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शरद जोशी की व्यंग रचनाएँ मेरी पसंदीदा रही हैं और ये धारावाहिक भी...( पापा कसम ) आपका लेख भी बहुत शानदार है...लोगों तक आपने इसे अपने इस लेख द्वारा पहुंचाने का प्रयास किया....बधाई
जवाब देंहटाएंवाणीजी
जवाब देंहटाएंआपने गाँव के शाब्दिक सुन्दर द्र्श्यो से मन मोह लिया और लापतागंज में भले ही गाँव कि प्रष्ठभूमि हो पर हम शहरों में रहने वाले मध्यम वर्गीय परिवारों उनके आदर्शो सिन्धान्तो को और मजबूत करता है महान व्यंगकार श्री शरद जोशी का अद्वितीय लापता गंज |
आज के ३० साल पहले के विषयों जो कि आज भी उतने ही प्रासंगिक है सच में मन को उद्वेलित कर देते है |
Mera bachpan gaanv me beeta...lekin ab gaanv waise nahi rahe...nahi kabhi maine gaanv ke logoko masoom paya!
जवाब देंहटाएंHaan..lapata ganj zaroor padhungi!
एकदम जैसे मेरे ही मन की बातें कह दी आपने....
जवाब देंहटाएंअल्पकाल ही गाँव में रहने का सुअवसर मिला,पर गाँव जैसे मन में राग राग में बस सा गया है...
"लापतागंज" किस चैनल पर दिखाया जाता है ??? कृपया चैनल और प्रसारण समय बतादें...
एक दो एपीसोड देखे हैं, अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएं@ सब टी वी ...रात 10बजे सोमवार से गुरूवार ..!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य आलेख!
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी. धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलापतागंज में बहुत कुछ है। कुछ देखते भी हैं, कुछ नहीं भी देखते।
जवाब देंहटाएंपंजाबी में एक गीत है... डुल डुल पैंदा प्यार पिंडां दे रीति रिवाजां चों
छलक छलक जाए प्रेम गांव के रीति रिवाजों से।
मै तो यहां आ कर भी गांव मै बसा हुं, यहां के गांव ओर भारत के गांव मै फ़र्क तो है, लेकिन शहर से बहुत अच्छा लगता है यहां
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत सुंदर लिखा शांति,भाई चारा यह सब गांव मै ही मिलता है
वाह वाणी...क्या याद दिलाया गाँव.....ये पोस्ट पढ़ कर तो मन हो रहा है...एक बार गाँव जरूर हो आऊं.....इस प्रोग्राम का रीपीट भी तो आता होगा...जरूर देखूंगी....शरद जोशी...मेरे प्रिय लेखक रहें हैं...बहुत पढ़ा है उन्हें धर्मयुग में...
जवाब देंहटाएंएक बार उनकी बेटी नेहा शरद एक माल में मिल गयी....उसे विश्वास नहीं था कि कोई पहचानेगा...पर मैंने पहचान लिया...खूब बातें की हमने...मैंने जब उनकी माँ के नाम ;इरफाना शरद 'को लेकर लिखे शरद जोशी के एक व्यंग की चर्चा की...तो इतनी खुश हो गयी..कि मुझे उनकी माँ का नाम भी याद है...वे भी अब इस दुनिया में नहीं हैं...पर बेटियों को अच्छी शिक्षा दे गयी हैं. बहुत down to earth लगी उनकी बेटी.
vani ji me aur mere bacche bahut khush ho kar is serial ko dekhte hai...aur bacche unke bhole pan ko dekh bahut enjoy bhi karte hai...acchha serial start kiya hai jis se bachho ko atleast thoda bahut sharad joshi ji k lekhan aur unki kahaniyo k bare me bhi pata chalta hai.
जवाब देंहटाएंगाँव के शब्द चित्र सटीक ताजगी भरे हैं
जवाब देंहटाएंशरद जोशी और आपका अनुमोदन /सिफरिश -यह तो सिनेर्जी हुयी न !
देखते हैं लापता गंज -किस चैनेल पर ?
वाणी जी,
जवाब देंहटाएंआज बहुत ही अच्छा लगा आपको देख कर..
अच्छा किया आज के दिन आपने अपनी तस्वीर लगा दी....
आपके दर्शन के व्याकुल नैयनों को बहुत चैन मिला है..
बस तस्वीर थोड़ी पुरानी लग रही है...
हाल-फिलहाल की कोई नहीं है आपके पास ..?
:):)
आपका आभार ....
लापतागंज तो नहीं देखा लेकिन आपने गाँव की छवि बहुत सुन्दर उतारी है।
जवाब देंहटाएंआज भी जब कभी गाँव जाते हैं तो बीते युग में खो से जाते हैं।
"Lapataganj".......pe itni badhiya, khubsurat aur saksham rai rakhne par dhanyawad!!........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंअच्छा नाम है लापतागंज। मेरा गांव भी कुछ समय में लापतागंज बन जायेगा। इससे पहले हो जाये, वहां जा कर सहेज लेने का मन है।
जवाब देंहटाएंबस आज हाजरी लगाने ही आयी हूँ नाईस से काम चलेगा?
जवाब देंहटाएंएक साहित्यिक ब्लाग पढकर अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंपहले ऐसे लापतागंज का एक ही पता था..दूरदर्शन ! अब अनगिन पतों के हो जाने के बाद भी बहुत कुछ लापता हो गया है !
जवाब देंहटाएंसब टीवी का यह कार्यक्रम बहुत ही स्वाभाविक परिणितियाँ देता है ! कई बार नब्ज पर ऊँगली ! और शरद जी का स्वाभाविक चुभता हुआ व्यंग..उसकी तो पूछिए मत !
आपने जिन दो एपिसोड्स का लिंक दिया है, उसका सौन्दर्य देखिए ! अदभुत !
गिरिजेश भईया ने सबसे पहले रिकमेंड किया था मुझे ! आज आपने भी ! खैर नियमित देखता हूँ तबसे !