मैं एक आम गृहिणी हूँ ....राजनीति से मेरा दूर दराज का भी कोई सम्बन्ध नहीं है ...पिता की कर्मभूमि होने के कारण बचपन और किशोरावस्था की बहुत सी यादें इसी प्रान्त से जुडी हैं ......फिर एक आम भारतीय की तरह भी देश की राजनीति में क्या हो रहा है , क्यूँ हो रहा है , जानने की रूचि रहती ही है ...
सुशासन का कोई विकल्प नहीं है ...बिहार की जनता ने साबित कर दिया है कि अब धर्म, जाति , प्रान्त , भाषा की राजनीति के दिन बस लद ही गए हैं ....पटना के गाँधी मैदान से दीपकजी का कार्यक्रम भी देखा ..आम जनता उत्साहित है ....मीडिया हाउस के लिए भीड़ जुटाना अपने कार्यक्रमों की पब्लिसिटी का एक अंग हो सकता है , मगर इसमें कोई शक नहीं कि बीते पांच वर्षों में बिहार में शासन की मंशा देश और विश्व स्तर पर राज्य की प्रतिष्ठा कायम करने की रही है ....और इसका प्रभाव भी नजर आ ही रहा है ...
पिता के देहावसान के बाद कभी बिहार जाना नहीं हुआ मगर बिहार से लौटने वाले लोंग जब वहां की साफ़ चमकदार गड्ढों रहित सड़कों की बात करते हैं, तो एकबारगी यकीन नहीं होता ...वरना वहां हाई वे तक का बुरा हाल देखा है ...कई बार अपने कस्बे से पटना या मुजफ्फरपुर जाने में अनुमानित समय से कहीं अधिक समय लग जाने के कारण ट्रेन छूटते रह गयी ....याद आ रहा है ...एक बार कार से पटना से कस्बे तक के सफ़र को तय करते हुए धचके खाता छोटा भाई सारे रास्ते झुंझलाता रहा ....पिता, जिनका ज्यादा समय सफ़र में ही गुजरता था , चुटकी लेते हुए बोले..." अगर ऐसी जगह पर तुम्हे नौकरी करनी पड़ती , तो क्या हाल होता तुम्हारा "
" मैं तो नौकरी ही छोड़ देता " मेरे भाई का जवाब था ..." बेटा , मैंने भी यही सोचा होता तो तुम लोगों का क्या हाल होता " ...पिता मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले ....खैर , रास्ते में आम और लीची के खेतों से गुजरते भाई का संताप कुछ कम हुआ ...
जब भी बिहार की सड़कों की बात होती है , मुझे ये सफ़र बहुत याद आता है ...अच्छा लगता है सुनकर कि बड़े शहरों से लेकर छोटे ग्रामीण इलाकों तक की सड़कों में काफी सुधार हुआ है ....कहा ही जाता है कि किसी भी देश/प्रदेश के विकास का रास्ता वहां की सड़कें तय करती हैं ...
बिजली व्यवस्था का हाल अभी भी इतना दुरुस्त नहीं है ....अधिसंख्य लोंग बिजली के लिए सरकारी व्यवस्था से ज्यादा जेनरेटर पर निर्भर करते हैं और उसकी भी अपनी सीमा होती है ....उम्मीद है सड़कों की तरह इसमें भी सुधार होगा ही ...
पंचायतों और शहरी निकायों जैसे आम जनता से सीधे जुड़े क्षेत्रों में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत सुरक्षित स्थान महिलाओं को प्रदेश के सरोकारों से सीधे सीधे जोड़ता है और माने या ना माने , इसका यथोचित शुभ प्रभाव नजर आता ही ... सुरक्षा और कानून व्यवस्था में सुधार के कारण डकैती, अपहरण जैसी आम घटनाएँ अब इतनी आम नहीं रही है ...अपनी फ्रेंड के पडोसी , पिता के जूनियर ऑफिसर , फॅमिली डॉक्टर के अपहरण की घटना तो आँखों देखी रही हैं ....और गोलियों और चीख पुकार की आवाज़ों के बीच दूर कहीं डकैती का अनुमान लगाते कालोनी के सभी परिवारों को इकठ्ठा भगवान् को याद करते हुए कुछ यादें भी ज़ेहन में रही हैं ...
जनता की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए नितीश की सरकार ने दिखा दिया है सरकारों की इच्छा शक्ति से प्रदेशों में मनचाहे बदलाव लाये जा सकते हैं ....वही बिहार की जनता ने भी साबित कर दिया है कि वे अब सिर्फ विकास की राजनीति में विश्वास करते हैं .... यही शुभेच्छा प्रत्येक प्रान्त की जनता और राजनैतिक दल की हो जाए , तो इस देश को अपने खोये गौरव को प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता ....
(प्रदेश की खुशहाली की कहानी मेरी सुनी हुई ही है या फिर अख़बारों में पढ़ा , टी वी पर देखा हुआ ...मेरी जानकारी में कुछ कमी हो तो अल्पज्ञता समझ कर क्षमा कीजिये )
बिहार की जनता की जीत के नाम ... हमारे शहर में (जयपुर) के गलता तीर्थ पर बिहार के लोक पर्व छठ के कुछ चित्र .....देर से लगा रही हूँ , मगर समय दुरुस्त है ....


