शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

भैंस पसरी पगुराय ......

चारों ओर बड़ा हड़कंप मचा था ....जैसे कोई अनहोनी हो गयी हो ...अनहोनी ही तो थी ....नगर के बीचों बीच एक भैंस ने डेरा जमा रखा था ....क्या नाम है इस नगर का ...चलिए विद्वान् नगर ही रख देते हैं ...तो इस विद्वान् नगर में जहाँ सभी एक से एक पढ़े लिखे विज्ञ महारथी रहते थे वहाँ भैंस का आ धमकना ....ना सिर्फ आना  बल्कि ऐसे मार्ग पर आ बैठना जहाँ से रोज जाने कितने महा विद्वान् गुजरते थे ....

विद्वान् नगर एक कुनबा-सा है . समाज है धुरंधरों का ...एक से एक बड़े डॉक्टर , इंजिनियर ,वैज्ञानिक , सैनिक अधिकारी , राजपत्रित अधिकारी , तकनीकी विशेषज्ञ , शिक्षाविद , मिडिया पर्सन , लेखक , साहित्यकार , संपादक ......कौन विद्वान नहीं है यहाँ... अपने अपने क्षेत्रों के महारथी ...मगर यहाँ बस वे लेखन का कार्य करते हैं या कर सकते हैं ... इनकी अपनी अभिरुचियों के अनुसार विद्वमंडल हैं ..... एक साथ कई भाषाओँ के जानकार जब धाराप्रवाह लिखते हैं  तो दूसरों की आँखें फटियाई रहती है . पहले तो जड़ स्तब्ध -सी, फिर एक चोर नजर खुद पर डाल लेते हैं - उनकी लिखाई मेरी लिखाई से चमकदार कैसे !


ऐसे विद्वजनों के नित्य आवागमन वाले मार्ग में एक भैंस का जम जाना ....कुफ्र की बात ही थी ...कुछ देर /दिनों मेहमानों का स्वागत करने जैसी औपचारिकता निभाने वाले हम भारतीय पशुओं का भी निरादर नहीं करते ...तभी तो हर चौराहे पर कुत्ते , सूअर आदि घूमते दिखाई दे जाते हैं ...पेट्रोल के बढ़ते दामों से अपनी जेब पर पड़ते असर से चिंतित लोगों के लिए कभी- कभी ईर्ष्या का सबब हो जाते हैं ...इन्हें आवागमन की कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती इसलिए बड़े मजे से धरती नाप लेते हैं ...कभी कभी गायें और बछड़े भी इसी तरह सडक किनारे पड़े कचरे में मुंह मारते दिख जाते हैं  मगर इस बार तो भैंस थी . और वो भी सड़क किनारे कचरे में मुंह डालने वाली नहीं व्यस्ततम मार्ग पर पसरी हुए जुगाली करती ...

इसकी ज्यादा देर अनदेखी नहीं की जा सकती थी ...अफरातफरी मची हुई थी . विद्वमंडल की बैठक जुटी .. ये क्या हो रहा है !  हम विद्वानों के बीच एक भैंस . अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा . हटाना होगा इसे यहाँ से ....कहाँ हम लोग अपने क्षेत्र के गंभीर विमर्श करने वाले उच्च शिक्षित लोग और कहाँ यह अनपढ़ भैंस जो जुगाली के सिवा कुछ नहीं जानती ...इसे हटाना होगा यहाँ से वर्ना हमारी साख मिट जायेगी .
तय किया गया की सभी विद्वान भैंस के पास जायेंगे और उससे विनम्र निवेदन करेंगे की वह यह स्थान छोड़ कर चली जाए क्योंकि यह स्थान सिर्फ विद्वानों के लिए हैं ....सभी सूटेड बूटेड लोग गए भैंस के पास निवेदन लेकर ...सब अपने अपने तर्क देकर भैंस को समझाने लगे , अब चूँकि सभी विद्वान् थे और सबके विभिन्न मत ...अस्तव्यस्तता हो गयी...जब वे खुद ही एक दुसरे को समझा नहीं पा रहे थे तो फिर भैंस तो आखिर भैंस है ....जिसके आगे कोई कितनी बीन बजाये  मगर वो मस्त पगुराए ....विद्वानों के सर पर पसीना चुहचुहाने लगा ....शोध ,लेखन , सड़केंब नाना , नक़्शे बनाना , नियम कानून बनाना ये सब तो वे जानते थे लेकिन भैंस को कैसे हटाया जाए तत्वज्ञ विद्वान् किसी भी पुस्तक में इसका तरीका नहीं खोज पाए थे ... सामूहिक रूप से कुछ कहने पर तो इसे कुछ असर नहीं हो रहा  क्योंकि सब अपने अलग राग में गा रहे थे तो उन्होंने आपस में तय किया की हममें से एक -एक व्यक्ति बारी- बारी से अपने अर्जित विद्या ज्ञान का उपयोग करते हुए भैंस को समझाएगा की ये स्थान उसके लिए नहीं है ....पहले कौन जाएगा ....लॉटरी निकाली गयी ...एक वैज्ञानिक महोदय के नाम से पर्ची निकली ...भैंस को वहां से हटाने का जुगाड़ करना अब उनकी जिम्मेदारी थी ....


क्रमशः

विद्वान् भैंस को अपने स्थान से हटा पाने में सफल रहे या नहीं ...अगले अंक में ...