रविवार, 3 जून 2012

हिन्दी इतनी सरल भी नहीं.... ( हिंदी को पढ़ते हुए )

हमारी हिन्दी की क्या बात है . हिन्दी से मेरा मतलब है हिन्दी भाषा , वह हिंदी नहीं जो आमतौर पर ईर्ष्यावश लोग एक  दूसरे की कर दिया करते हैं . 
हिन्दी यानि हमारी राष्ट्रीय भाषा . सिर्फ कागजों में दर्ज हो भले ही क्योंकि अक्सर सरकारी कामकाज अंग्रेजी में होते ही देखे हैं . कुछ प्रदेशों में तो ग्रामीण इलाकों में हिन्दी बोलने समझने वाले ढूंढें नहीं मिलेंगे . वही कुछ पढ़े -लिखे बुद्धिजीवी हिन्दी वालों की हिंदी करने में कहीं पीछे नहीं रहते . ख़ुशी यही है कि हम हिन्दी भाषी प्रदेश में हैं तो कम से कम अपनी अभिव्यक्ति के लिए तो दूसरी भाषा का मोहताज़ नहीं होना पड़ता .  

हिन्दी का अपना वृहद् शब्दकोष है जिसने उर्दू , फारसी , संस्कृत , अंग्रेजी के अनगिनत शब्दों को आत्मसात किया है . हिन्दी में शब्द किसी भी वस्तु , व्यक्ति या रिश्ते का सम्पूर्ण परिचय दे देते हैं . अंग्रेजी की तरह नहीं कि तू भी यू , तुम भी यू , आप भी यू ही , किसी पुरुष या स्त्री से यह कह कर मिलवाओ कि मीट माय  आंटी  या मीट माय अंकल ...तो सामने वाला सिर खुजाता ही रह जाए ...अब किसी अंकल की बात कर रहा है . तेरे पिता या माता का भाई और वो भी कौन सा छोटा या बड़ा  या फिर कहीं पड़ोस वाले अंकल की बात तो नहीं कर रहा . ऐसे ही ये आंटी कौन है , तेरी माँ की बहन या पिता की  या पड़ोसी अंकल की ....अंग्रेजी में इनके लिए अलग संबोधन नहीं है शायद उन्हें रूचि ही नहीं होती यह सब जानने में किंतु हम भारतीय तो सब कुछ जान लेना चाहते हैं , खोद -खोद कर पूछते हैं . शायद इसलिए ही शब्दकोष ने हमें यह सुविधा दी है कि ज्यादा मगजमारी ना हो . 

साहित्य के लिए प्रयुक्त शुद्ध हिन्दी और बोलने के लिये आम हिंदी में क्लिष्टता और सहजता का अंतर है . हिन्दी के विद्वानों और आम इंसानों को उनके बोलने और लिखने के अंतर से जाना जा सकता है . हमारे जैसा आम भारतीय हिंदी बोलता तो है परंतु हर किसी का (हमारा भी )हिन्दी भाषा पर सम्पूर्ण आधिपत्य नहीं है और इसलिए कई बार शब्दों की हेराफेरी में  अर्थ के अनर्थ हो जाते हैं . ऐसे ही कुछ शब्दों की पड़ताल है यहाँ जो दिखने/लिखने  में एक जैसे ही लगते हैं  परंतुअर्थ में भिन्न है .

1. प्रणय -परिणय 
प्रेम अथवा प्रीति का नाम प्रणय है जबकि परिणय विवाह को कहते हैं !
उनके प्रणय की परिणिति परिणय में हुई .

2. संपन्न -समापन 
संपन्न शब्द का प्रयोग समाप्ति का द्योतक है .
समापन अर्थात समाप्ति से पूर्व का अंतिम समारोह . 
समापन समारोह संपन्न हुआ . 

3. श्रम -परिश्रम 
श्रम का तात्पर्य शारीरिक श्रम से होता है जैसे श्रमिक का श्रम .
परिश्रम जिसमे शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का  श्रम शामिल हो , जैसे राम परीक्षा में परिश्रम से उत्तीर्ण हुआ .

4. शंका -आशंका 
शंका अर्थात जिज्ञासा , जानने की उत्सुकता , आपत्ति 
आशंका का प्रयोग संदेह के अर्थ में किया जाता है . " देशों के मध्य बढ़ते तनाव के मद्देनजर गृहयुद्ध की आशंका है ".

5. वेश्या -वैश्या 
वेश्या कुलटा स्त्री है , जो अपने शरीर का व्यापार करती है ...जबकि वैश्या वैश्य स्त्री है ,वह आचार्या भी हो सकती है .

6. भागवत - भगवद् गीता 
भागवत   अठारह पुराणों में से एक पुराण है जबकि भगवद् गीता महाभारत का वह  अंश है जिसमे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निष्काम कर्मयोग का उपदेश दिया था . 

7. नृत्य -नृत 
नृत्य एक कला है , जिसमे भावप्रधानता होती है जबकि नृत नृत्य का बाह्य अनुकरण है . नृत्य नृत और नाट्य का मिश्रण है जबकि नृत  में तालों का प्रयोग होता है.  

8. विस्तर   -विस्तार 
विस्तार का अर्थ फैलाव है जबकि  विस्तर अर्थात विस्तार प्राप्त किया हुआ . 

9. प्रेमिका -प्रिया 
प्रेमिका प्रेम करती है जबकि प्रिया वह है जिससे प्यार किया जाए . 

10. ब्रह्म -ब्रह्मा 
ब्रह्म एक विचार है , व्यक्ति नहीं जबकि ब्रह्मा हिन्दुओं के एक देव हैं . 

ऐसे अनगिनत और भी  शब्द हैं जिनकी पड़ताल उनके भावार्थ के रूप में की जा सकती है .हिन्दी की अधूरी रह गयी शिक्षा के कारण हिन्दी को पढ़ते हुए इन शब्दों के हेरफेर ने खूब चौंकाया . जब इन्टरनेट पर खंगाला तो पाया कि कई शब्दकोशों में भी इनके अंतर / अर्थ को स्पष्ट विभाजित  नहीं किया गया है . शायद  भाषा को  दुरुहता से बचाना और आमजन में लोकप्रिय बनाना इसका एक प्रमुख कारण रहा हो . ब्लॉग जगत के  हिंदी विद्वान /विदुषी इस पर प्रकाश डालें तो मुझ सहित आम हिंदी भाषी का भला हो जाए !