गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

जिजीविषा की पराकाष्ठा

हम जिंदगी में पता नही क्या क्या कर जाते ....अगर हमारे साथ ये न हुआ होता ...
अपनी प्रतिभा को जगजाहिर करने का मौका नही मिला ...वरना पता नही कितना नाम और यश प्राप्त करते ...
सही समय पर सही अवसर मिला होता ...तो सफलता की कितनी ही सीढियाँ चढ़ जाते ....

कई स्पष्टीकरण ....कई बहाने ....
अपने आलस्य और काहिली के चलते जो नही कर पाए ....उसे न्यायोचित ठहराने के लिए ...किसे बहलाना चाहते हैं हम ...किसकी आंखों में धूल झोंक रहे हैं ...दूसरो की ...या ख़ुद से नजरे मिलाने का साहस नही ...
जब जब भी जीवटता से भरे ऐसे इंसानों को....तमाम अक्षमता के बावजूद उनके किए गए प्रयासों को ....उनके हौसलों को देखते हैं ...ऐसी भावनाएं उमड़ आती है ....
ऐसे ही एक शख्स है " कमलेश पटेल " ......

कहना कुछ नही है ...बस यह विडियो देखिये ...और आप ही कहिये ....






कमलेश पटेल तुम्हे सलाम


सौजन्य ...." यू -ट्यूब "


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रविवार, 4 अक्तूबर 2009

लता मंगेशकर बनाम राखी सावंत

किसीने भी अगर मेरे शो पर अंगुली उठाई तो मैं अंगुली तोड़कर हाथ में दे दूंगी ...
बाप रे ...
कल जब राखी सावंत किसी समाचार चैनल पर गरज गरज का बरस रही थी ...हमारी सांसें ऊपर नीचे होती रही ...अभी परसों ही तो सिद्धार्थ जोशी के ब्लॉग दिमाग की हलचल पर उनकी प्रविष्टि लड़का ही क्यों पर टिपण्णी करते हुए राखी सावंत को याद किया था । राखी की कठोर और भयानक मुद्रा से हमारी चेतना शिथिल होने ही वाली ही थी कि स्थिति को भाँपते हुए चैनल बदल दिया गया ।
दिमाग की हलचल में हलचल मची थी लता मंगेशकर के साक्षात्कार के उस अंश को लेकर जिसमे लताजी ने अपनी एक मासूम सी इच्छा व्यक्त कर दी थी ..." मैं अगले जन्म में लड़का होकर जन्म लेना चाहती हूँ "....
हमारे पित्रसत्तात्मक समाज में किसी भी लड़की या महिला द्वारा इस तरह की इच्छा व्यक्त करना कोई अनहोनी नही है ...विशेषकर अपनी परम्पराओं की सलीब ढोते रुढिवादी मध्यमवर्गीय परिवारों में ...
इस प्रविष्टि पर मेरी टिपण्णी इस प्रकार थी ...
लताजी की यह इच्छा समाज में लड़कियों को लेकर बनी सोच को प्रतिबिंबित करती है ...लताजी के ऐसा चाहने के पीछे उनका सादगी और निश्छल व्यक्तित्व रहा है ...पर मैं सोचती हूँ की क्या मल्लिका शेरावत और राखी सावंत भी ऐसा ही सोचती होंगी ...जिन्होंने लड़की होने के कारण ही पैसा और शोहरत (?) पाई है ...या फिर क्या वे लड़किया भी यही सोचती होंगी जो सिर्फ अपनी आरामतलबी और स्वार्थ के चलते ससुराल वालों को झूठे मकदमे दर्ज करवा कर उन्हें भय से ग्रस्त अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर करती हैं ...
बहुत विरोधाभास है लड़कियों को लेकर ..

एक तरफ़ लता जी हैं जिन्होंने कम उम्र में अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए अपने मासूम सपनों की बलि चढाते हुए अपना जीवन अपने कार्य और अपनी कला को समर्पित कर दिया ...और जहाँ तक मेरी जानकारी है ...लताजी ने आज तक किसी सार्वजनिक मंच पर अपनी इस मज़बूरी , जिम्मेदारी या तकलीफ का जिक्र तक भी नही किया ....
एक तरफ़ राखी सावंत है ...रो रो कर अपनी मजबूरियों का बखान करते हुए कम उम्र में तकलीफें सह कर अपना एक मुकाम (?) हासिल कर ...परिवार को गौण समझते हुए नाम दाम कमाने की अपनी उपलब्धियों पर फूली नही समाती हैं । मैं यहाँ राखी की कला को कम नही आंक रही हूँ ...और यह भी सच ही होगा उसके भीतर भरे इस विद्रोह की अग्नि भी इस समाज की ही देन रही हो ...
दोनों ही स्त्रियाँ हैं ...किसी की बेटी ....किसी की बहन ....मगर दोनों का जीवन जीने का अंदाज कितना अलहदा है ...(लताजी ...मुझे माफ़ करें ... परिस्थिति विशेष में मैं आपकी तुलना ऐसी लड़की से कर रही हूँ जो आपकी चरणों की धूल बनने के काबिल भी नही है )
अभी किसी अखबार पर चर्चा में पढ़ा ...लगभग सभी ने एक सुर में सुर मिलते हुए यह कहा ..." लताजी ने जिस समय जिन परिस्थितियों में जिम्मेदारी वहन की ...जिसने उन्हें अगला जन्म बेटा बनकर लेने की इच्छा जगाई .... उस समय से आज परिस्थितियां बहुत बदल गयी हैं ...आज लड़कियां अपने आप से संतुष्ट हैं....ज्यादातर लड़कियों का कहना था कि वे अगला जन्म बेटी बन कर ही लेना चाहती हैं " ...
हाँ ...सचमुच वक़्त बदला है ...लड़कियां भी बदली हैं ...आज लताजी जैसा आदर्श जीवन जीना बहुत कठिन हो गया है ...मगर ये हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है कि वक़्त बदला है सिर्फ़ उन लड़कियों के लिए जो अपने नाम दाम और शोहरत के लिए अपने परिवार को हाशिये पर रखना पसंद करती हैं ....
उन मध्यमवर्गीय परिवारों में लड़कियों या महिलाओं के लिए समय इतना नही बदला ...जिन परिवारों की स्त्रियाँ या लड़किया अपनी महत्वाकान्क्षाओं की वेदी पर अपने परिवार की बलि नही चढाना चाहती ...राह उनके लिए आज भी बहुत दुष्कर है ...उन्हें समाज और अपने परिवार के बीच अपने आप को स्थापित करने के लिए रोज एक नया संघर्ष करना पड़ता है ...मौन रह कर ...चुपचाप .....पर उस तप और संघर्ष से बनी अपनी पहचान से मिली संतुष्टि को क्या राखी सावंत जैसी लड़की कभी समझ पायेगी ...??
हमारे समाज में बेटियों को लेकर मेरे भीतर यह विरोधाभास है ...
यही है मेरे दिल और दिमाग की रस्साकशी ....
अपने सुझाव और विचार व्यक्त कर इस रस्साकशी से उबरने में आप मेरी मदद करेंगे ...!!




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