शनिवार, 3 नवंबर 2012

जिनके मुख कछु और है , उनके हिय कछु और ....

कॉलेज के दिनों की बात है। परीक्षा समाप्त होने के बाद सभी सहेलियों ने किसी एक के घर मिलने  का कार्यक्रम तय किया  . हम लोग रीना के घर पहुंचे तो वहां  तनाव का माहौल नजर आया . रो रोकर आँखें सूजा रखी  रीना आवभगत करते हुए सामान्य दिखने का प्रयास करती रही  . बहुत पूछने पर आंसू बहाते  बताया उसने ...उसके पड़ोस में ही  कॉलेज का एक सहपाठी कमरा किराये पर लेकर रह रहा था . पास ही घर होने के कारण  परीक्षा के दौरान अक्सर प्रश्नों के जवाब उत्तर तलाशते दोनों साथ पढ़ लिया करते . रीना ने बताया कि  उसके चाचा को उनपर पता नहीं क्या शक हुआ है की उन्होंने  घर में क्लेश कर रखा है कि वह या तो उस लड़के को राखी बांधे या उससे बातचीत बंद कर दे . रीना के लिए उहापोह की स्थिति थी . रीना का कहना था की वह दोनों सिर्फ  मित्र हैं , प्रेमी नहीं ,यह साबित करने के लिए मैं उसे राखी क्यों बांधू , जबकि उसके चाचा का कहना था की यदि सिर्फ मित्रता है तो राखी क्यों नहीं बाँधी जा सकती . इस  वादविवाद का कोई हल नजर नहीं आ रहा था . हमें रीना का तर्क भी उचित ही लग रहा था .  कुछ समय बाद जब रीना से दुबारा मिलना हुआ तो उसने बताया कि  आशीष ने वह स्थान छोड़ देना ही उचित समझा . 


कॉलोनी में ही एक पडोसी के घर बेटे के विवाह की रस्मों की शुरुआत के समय अजीब दृश्य उत्पन्न हुआ . एक रस्म में बेटे के पिता की आरती की जानी थी . लम्बी दूरियों और नए समय में बदलते रिश्तों के कारण  करीबी रिश्तेदार  भी विवाह के समय से एक दो दिन पूर्व ही पहुँचते हैं , इसलिए उनकी कोई बहन वहां उपस्थित नहीं थी , ऐसे में वहा उपस्थित महिलाओं में से ही किसी एक को उक्त सज्जन की आरती करने के लिए कहा गया . जिस स्त्री को आरती करने के लिए कहा गया उसका तर्क यह था की यह रस्म तो घर की ही किसी लड़की से की जानी चाहिए , नहीं तो अपनी बेटी भी कर सकती है , और कोई उपस्थित ना हो तो पंडित भी यह रस्म कर सकता है। 
आखिर उनकी बेटी ने ही आरती की रस्म निभाई . आस पास उपस्थित महिलाओं ने कुछ नाराजगी जताई की आखिर उसे क्या आपत्ति थी . यदि किसी व्यक्ति की बहन नहीं होती है , तब भी तो उसे राखी बाँध दी जाती है ताकि वह इस रिश्ते की कमी ना महसूस करे , यहाँ तो सिर्फ आरती ही करनी थी .
 बाद में  उस महिला ने कहा की सिर्फ आरती करना ही नहीं होता , रस्म के तौर पर वे मुझे कुछ भेंट भी देते और इस प्रकार एक जबरदस्ती का रिश्ता कायम होता।  उसने बताया कि  उक्त व्यक्ति के चरित्र के बारे में बहुत कुछ सुना देखा हुआ है , पडोसी होने के कारण रस्मों में उपस्थित होना , सुख दुःख में काम आना और बात है , मगर आरती कर बहन का रिश्ता कायम करते हुए उन्हें अपने घर में निर्बाध  प्रवेश की इजाजत नहीं दे सकती .जिस व्यक्ति के चरित्र के बारे में मुझे जानकारी है , उसे भाई के पवित्र रिश्ते में क्यों बांधू .

किसी रिश्ते के बिना भी सगे भाई- बहनों से बढ़ कर रिश्ते निभाने वाले भी कम नहीं तो वहीं  धर्म भाई या बहन होने की आड़ में अवैध रिश्ते , ब्लैकमेलिंग के किस्से भी सरेआम ही हैं . आये दिन समाचारपत्र ऐसी ही घटनाओं से रंगे  होते हैं . धोखे की लम्बी कहानियों के बीच स्नेह बंधन से बंधे निस्वार्थ रिश्ते कलंकित होते हैं और सहज भाव से  रिश्ते निभाने वाले भी शक के घेरे में आ जाते हैं . रिश्तों को  संशय की तराजू पर तुलने से बचाने के लिए यही बेहतर होगा कि बहुत सोच समझ कर इन रिश्तो को नाम दिया जाए . आभासी दुनिया में तो इसकी और भी अधिक आवश्यकता है . सिर्फ हो -हल्ला करने से नहीं , बल्कि आपके कृत्यों या कर्मों से प्रमाणित होता है कि आपके मन में  किसके लिए क्या भावना है . 

पुरानी  फिल्मों में अक्सर ऐसे दृश्य नजर आ जाते थे ,  उम्र भर नायिका को परेशान करने वाले खलनायक आखिरी समय बहन बुलाकर राखी बंधवा ले और अपने सारे पाप धो ले  . नायक नायिका बिछड़ने के वर्षों बाद मिले हो , भावुक होकर कहेंगे दोनों , अब तुम मेरे लिए भाई या बहन जैसे हो .
हमलोग अक्सर इस पर हँसते थे ,  जिसके लिए  मन में इतना प्रेम रहा  ,साथ घर बसाने के सपने देखे , वह भाई या बहन कैसे हो सकता है  . ठीक है , अब आप लोगों के बीच कोई प्रेम नहीं रहा ,मगर कम से कम भाई या बहन तो मत कहो . खलनायकों की तो और भी बुरी स्थिति है , आजीवन कुदृष्टि रखने वाले  पीटने या दुर्दशा होने पर कह   दिया की आज से ये मेरी बहन है , मतलब क्या आप तक अपनी बहन के प्रति मन में इतने बुरे विचार रखते थे .  माना की आप सुधर गए , अच्छा है , आपके लिए भी और औरों के लिए भी .  मन की निर्मलता या भावनाओं का बदलाव  आपके कृत्यों में  नजर आ ही जायेगा , उसके लिए अवलंबन की आवश्यकता क्या है !!

इसी प्रकार पुरुष वर्ग के बीच स्त्रियों का नाम लेकर " बहन होगी तेरी " जैसे स्तरहीन मजाक भी प्रचलित रहे हैं , माना कि आपकी बौद्धिकता किसी अन्य रिश्ते के मुकाबले  मित्र होना अधिक उचित समझती है मगर  इसका यह अर्थ कत्तई नहीं होना चाहिए कि  किसी का भाई या बहन होना भी  कोई गाली या बुरी बात  है  , जिसका इन हलके या घटिया लहजे /शब्दों में उपहास किया जाए .  
वहीँ इन रिश्तों के नाम के पीछे बुरी मंशा रखने वालो के लिए भी  यह कहना है कि किसी के साथ छल  करना है , दुश्मनी निभानी है तो यूँ ही निभा ली जाए , कम से कम रिश्तों के नाम  तो इनसे बचे रहे . रिश्तों पर से लोगों का विश्वास ही उठ जाए ,इससे बेहतर है कि कोई नाम ही ना दिया जाए .

वर्तमान समय में नयी पीढ़ी के  उद्दंड अथवा दिशाहीन होने के अनेकानेक उदाहरणों के बीच भी कभी -कभी मुझे उनकी  साफगोई अच्छी ही लगती है कि  दो इंसानों के बीच स्नेह, प्रेम ,मित्रता / शत्रुता दर्शाने  अथवा निभाने के लिए  लिए वे किसी रिश्ते की ढाल  की आवश्यकता महसूस नहीं करते . 



नोट --- रीना और आशीष काल्पनिक  नाम है !