कहते हैं कि सर्वप्रथम शिशुपाल के वध के समय कृष्ण की अँगुलियों से बहे रक्त को रोकने के लिए द्रौपदी ने अपने चीर का एक टुकड़ा फाड़ कर कृष्ण को बाँध दिया था. उसी दिन श्रावण पूर्णिमा होने के कारण यह दिन रक्षाबंधन के पर्व के रूप में मनाया जाने लगा . वहीं इतिहास में रानी कर्णवती द्वारा मुग़ल शासक हुमायूँ को राखी बांधे जाने का जिक्र भी है . सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के शत्रु राजा पुरु को राखी बाँध कर सिकंदर को युद्ध में ना मारने का वचन लिया था .
राखी सिर्फ भाई ही नहीं देवमूर्तियों, वृक्षों , पंडितों द्वारा यजमानों को भी बांधी जाती है. राजस्थान में राखियाँ सिर्फ भाइयो को ही नहीं अपितु भाभी को भी विशेष लटकन वाली राखी " लुम्बा " बांधी जाती है .
राखी के अवसर पर राजस्थान के देवड़ा ग्राम का जिक्र ज़रूरी हो जाता है . जैसलमेर गाँव में एक पूरी सदी लड़कों की कलाईयां सूनी ही रही .ठाकुर बहुल इस ग्राम में बार -बार के आक्रमणों से व्यथित होकर लड़कियों को जन्म लेते ही मार देने की परंपरा थी . सदियों तक राखी के पर्व के नाम पर सिर्फ ब्राहमणों द्वारा ही पुरुषों के हाथ पर राखी बांधी जाती थी . शिक्षा और सामाजिक जागरूकता ने अलख जगाई और अब हर घर में लड़कियों की किलकारी और भाई की कलाई पर राखी है .
माँ जसोदा ने भी बांधी थी राखी . सूरदास ने गाया ...
राखी बांधत जसोदा मैया ।
विविध सिंगार किये पटभूषण, पुनि पुनि लेत बलैया ॥
हाथन लीये थार मुदित मन, कुमकुम अक्षत मांझ धरैया।
तिलक करत आरती उतारत अति हरख हरख मन भैया ॥
बदन चूमि चुचकारत अतिहि भरि भरि धरे पकवान मिठैया ।
नाना भांत भोग आगे धर, कहत लेहु दोउ मैया॥
नरनारी सब आय मिली तहां निरखत नंद ललैया ।
सूरदास गिरिधर चिर जीयो गोकुल बजत बधैया ॥ (साभार कविता कोष )
मेरी राखी

सीमा पर कठिन परिस्थितयों में भी हौसले और उमंग के साथ देश की रक्षा का ज़ज्बा लिए हर सैनिक भाई की सूनी कलाई के लिए भी....
चित्र गूगल से साभार ...