गुरुवार, 2 मई 2019

गीत ऐसे लिखे जाते हैं...


हमारी पीढ़ी का रेडियो से प्यार कुछ अनजाना नहीं है. यदि आजकल बच्चों को पता चले कि रेडियो सिलोन सुनने के लिए रेडियो को  घर में सबसे ऊँची जगह रखकर उससे कान सटा कर भी सुना जाता था तो हँस हँस कर दोहरे हो जायें.

मुझे याद है कि राह चलते सरगम फिल्म का डफलीवाले गाना कान में पड़ा तो हम ऐसी दौड़ लगाकर घर की ओर भागे कि अपने रेडियो पर पूरा गाना सुन सकें. भरी दोपहर में  रेडियो पर नामचीन लोगों के साक्षात्कार उनके पसंद के गीतों के साथ सुनना न तो आपके घरेलू कार्यों  में,  न ही ऑफिस में या अन्य कार्यस्थलों पर  बाधक होता है  और न ही  आपके आराम में.

ऐसे ही एक जानेमाने गीतकार के साक्षात्कार में उनके एक लोकप्रिय गीत की लेखन प्रक्रिया के बारे में बताया उन्होंने.
जून की भरी गर्मी में वे बस में सफर कर रहे थे. तभी एक कन्या बस में चढ़ी. उसने आँखों में काजल लगा रखा था और गर्मी के कारण चेहरा पसीने में भीगा हुआ था. ( खूबसूरत थी या नहीं, याद नहीं).  प्रतिभाशाली गीतकार हर परिस्थिति में गुनगुना सकते हैं. उनके मन से भी कुछ पंक्तियाँ प्रकट हुईं.

जून का मौसम मस्त महीना , चाँद सी गोरी एक हसीना
आँख में काजल  मुँह पे पसीना
याल्ला दिल ले गई....
याल्ला याल्ला दिल ले गई
 बाद में कविता को गीत में ढ़ालने के लिए जून का महीना को झूमता मौसम मस्त महीना किया गया क्योंकि जून के मौसम को मस्त कैसे कहा जा सकता था.

कवि/लेखक के ह्रदय में कविता कभी भी इस प्रकार  प्रस्फुटित होती है. मगर इसका अर्थ यह नहींं कि हर कविता बस में मिली उस युवती को ही देखकर रची गई हो. यह भी नहीं कि कवि उसके प्रेम में गिरफ्तार हो गया. उस समय में जो लिख गया वहीं रह गया.

(साक्षात्कार बहुत पुराना सुना हुआ है. अपनी स्मृति के आधार पर लिखा है तो हो सकता है कि मैं कुछ भूल भी रही हूँ)

उजाला फिल्म का यह गीत जब भी सुनती हूँ. हसरत जयपुरी की वह बस यात्रा आँखों के सामने वही दृश्य उपस्थित कर देती है

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