सोमवार, 3 नवंबर 2014

भीष्म पंचक (पंचभीकू ) लोककथा ....

पवित्र कार्तिक मास के आखिरी पांच दिन " भीष्मपंचक" (पंचभीकू )कहलाते हैं।  धार्मिक मान्यता में ये पांच दिन वे हैं जब बाणों की सरसैया पर लेते भीष्म पितामह ने पांडवों को उपदेश दिए थे।
 मगर लोक मान्यता में विभिन्न पर्व /व्रत  आदि के  नाम के बदलाव के साथ ही इससे जुडी  कथाएँ भी भिन्न हो जाती है।   सामाजिक , धार्मिक महत्व जो भी रहा हो इन लोक कथाओं का , मगर मनोवैज्ञानिक रूप से भी ये विलक्षण होती हैं।   कल्पनाशीलता की सजावट के साथ मनुष्य के मनोभावों , आदतों और व्यवहार पर तीक्ष्ण दृष्टि और समाधान रखती हैं ये लोककथाएं। किस प्रकार इन कथाओं के माध्यम से सामाजिक , मानसिक समस्याओं के विभिन्न पहलू  को प्रतीकात्मक रूप  उजागर कर समाधान ढूंढने का प्रयत्न
किया जाता रहा , विचारणीय है।

 पांच दिनों के इस व्रत अनुष्ठान के साथ लोकमानस में प्रचलित कथा इस प्रकार है -




एक साहूकार की बहू पंचभीकू का व्रत स्नान नियम से करती थी। तारों की छाँव में ही स्नान पूजन की कामना से गंगा स्नान को जाती स्त्री प्रार्थना करती  " गंगा -जमना -अड़सठ तीर्थ थारी पैड़ी पग  धरूं , मेरे सत (सतीत्व ) राखे" . और स्नान के बाद नहा धोकर , पीपल , केला , तुलसी , आवला और ठाकुर जी की पूजा करती। एक दिन स्नान के बाद अपनी माला और  मोचड़ी (जूतियां ) वहीँ भूल आई. राजा का बेटा गंगा किनारे जल पीने आते पशु पक्षियों का शिकार करने के लिए आया तो मोचड़ी देख मन में विचार किया कि जिसकी मोचड़ी इतनी सुन्दर है , वह स्त्री भी अवश्य सुंदर होगी। उसने साहूकार की बहू से मिलने का  प्रण किया और उसके घर बुलावा भेजा।  साहूकार और उसकी पत्नी भयभीत हुए कि अब क्या होगा।  राजा का आदेश टाला भी नहीं जा सकता और घर की बहू बेटी की सुरक्षा और इज़्ज़त का भी सवाल है।  बहू ने सुना तो ससुर जी को कहला दिया  कि वे चिंता न करें।  उधर राजा के बेटे को कहलवा दिया कि पांच दिन सुबह अँधेरे  ही वह गंगा स्नान को आएगी , वह उससे वहीँ मिल ले।  राजा के बेटे को चैन कहाँ।  वह रात में ही पहुँच गया नदी किनारे , रात भर उसके इन्तजार में जागता बैठा रहा , मगर सुबह  अँधेरे ही उसकी आँख लग गयी।  साहूकार की बहू गंगास्नान को आई , प्रार्थना करती " गंगा जमना अड़सठ तीर्थ थारी पैड़ी पग धरूँ , मेरा सत रखे। अपने नित्य कर्म किये।  अपने साथ वह तोते को लेकर आई जिसे साक्षी धरते हुए कह गयी ,  सुआ थारी साख धरुं , कह देना उस पापी हत्यारे को मेरी एक रात पूरी हुई !
जैसे ही साहूकार की बहू वहां से निकली ,  राजा के बेटे की आँख खुली तो सबेरा हो चूका था।  उसने देखा वहां कोई नहीं था , बस एक तोता था जो राजा के बेटे को देखकर हँसा कि  वह तो गई।  राजा के बेटे ने पूछा , कैसी थी !
सुआ बोला , "आभा की सी बिजळी , मोतिया सी झळ   " (उसकी आभा मोतियों की तरह थी जिसकी चमक बिजली जैसी हो )
अब तो राजा का बेटा बहुत पछताया।  दूसरे दिन प्रण कर बैठा वहीँ नदी किनारे कि आज तो देखकर ही रहूँगा।  मगर वही साहूकार की बहू के आने का समय हुआ और उसकी आँख लग गयी।  साहूकार की बहू ने अपने नित्य कर्म धर्म किये और तोते को साक्षी धर कह गयी , " सुआ ,  तेरी साख धरूं , कह देना उस पापी हत्यारे से मेरी दो रात पूरी हुई।  तीसरे दिन राजा के बेटे ने शूलों (काँटों ) की चौकी पर बैठा कि देखूं ,आज कैसे नींद आएगी।  मगर फिर वही साहूकार की बहू के आंने का समय हुआ और उसकी आँख लग गई।  सुबह जाते फिर साख भरा गयी कि  आज  तीन रात पूरी हुई।  चौथे दिन राजा अंगुली काटकर उस पर नमक छिड़क कर बैठा,  पांचवे दिन आँख में मिर्च डालकर सारी रात जागा मगर फिर उसे फिर भी आँख लग गई।  पांचवे दिन जाते जाते कह गयी - सुआ कह देना उस कामी लोभी को , मेरी पांच रात पूरी हुई। मेरी माला मोचड़ी मेरे घर पहुंचा दे। उसने एक स्त्री का सत बिगाड़ने की कोशिश की , सो उसे भगतना पड़ेगा।
राजा का बेटा निराश होकर महल चला गया।  घर पहुंचा तो देखा कि उसके सर पर गूमड़ हो गया है।  चार पांच दिन में गूमड़ बढ़ते हुए सींग बन गए।  अब तो वह छिप कर रहने लगा कि सब लोग उसे चिढ़ाएंगे कि उसके सर पर सींग निकल आये। राजा ने वैद्य बुलवाया मगर उन्होंने इलाज में असमर्थता व्यक्त करते हुए ज्योतिषी से पत्रा दिखाने को कहा. ज्योतिषियों ने उसका हाल देख बताया कि पराई स्त्री पर बुरा मन करने से उसकी यह दशा हुई है। वह पांच दिनों तक साहूकार की बहू के नहाये हुए जल से स्नान करे , तब ही उसकी बीमारी दूर होगी।  राजा  स्वयं साहूकार के घर गया और अपने पुत्र की करनी की माफ़ी मांगते हुए उनकी सहायता मांगी।  साहूकार की बहू ने  महल में जाने से इंकार कर दिया , राजा के बहुत विनती करने पर साहूकार ने कहा कि सुबह जब बहू स्नान करेगी तो छत के नाले से बहते पानी के नीचे राजा के बेटे को खड़ा किया जाए।  थक हार कर राजा को बात माननी पड़ी।  राजा के बेटे ने इस प्रकार स्नान किया तो उसके सींग झड़ गए।

(यह कथा थोड़ी बहुत फेरबदल के साथ भिन्न परिस्थितियों के अनुरूप कही जाती है )
इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण मुझे तो यही लगा कि मन के विकार तन को भी बीमार करते हैं।  यदि मन की शुद्धता का उपाय किया जा सके तो तन भी स्वस्थ होगा !! बाकी मनोविश्लेषकों से प्रार्थना है यदि वे इस कथा की व्याख्या कर सके.

 !
नोट - चित्र गूगल से साभार ! आपत्ति होने पर हटा लिया जाएगा