कॉलेज के दिनों की बात है। परीक्षा समाप्त होने के बाद सभी सहेलियों ने किसी एक के घर मिलने का कार्यक्रम तय किया . हम लोग रीना के घर पहुंचे तो वहां तनाव का माहौल नजर आया . रो रोकर आँखें सूजा रखी रीना आवभगत करते हुए सामान्य दिखने का प्रयास करती रही . बहुत पूछने पर आंसू बहाते बताया उसने ...उसके पड़ोस में ही कॉलेज का एक सहपाठी कमरा किराये पर लेकर रह रहा था . पास ही घर होने के कारण परीक्षा के दौरान अक्सर प्रश्नों के जवाब उत्तर तलाशते दोनों साथ पढ़ लिया करते . रीना ने बताया कि उसके चाचा को उनपर पता नहीं क्या शक हुआ है की उन्होंने घर में क्लेश कर रखा है कि वह या तो उस लड़के को राखी बांधे या उससे बातचीत बंद कर दे . रीना के लिए उहापोह की स्थिति थी . रीना का कहना था की वह दोनों सिर्फ मित्र हैं , प्रेमी नहीं ,यह साबित करने के लिए मैं उसे राखी क्यों बांधू , जबकि उसके चाचा का कहना था की यदि सिर्फ मित्रता है तो राखी क्यों नहीं बाँधी जा सकती . इस वादविवाद का कोई हल नजर नहीं आ रहा था . हमें रीना का तर्क भी उचित ही लग रहा था . कुछ समय बाद जब रीना से दुबारा मिलना हुआ तो उसने बताया कि आशीष ने वह स्थान छोड़ देना ही उचित समझा .
कॉलोनी में ही एक पडोसी के घर बेटे के विवाह की रस्मों की शुरुआत के समय अजीब दृश्य उत्पन्न हुआ . एक रस्म में बेटे के पिता की आरती की जानी थी . लम्बी दूरियों और नए समय में बदलते रिश्तों के कारण करीबी रिश्तेदार भी विवाह के समय से एक दो दिन पूर्व ही पहुँचते हैं , इसलिए उनकी कोई बहन वहां उपस्थित नहीं थी , ऐसे में वहा उपस्थित महिलाओं में से ही किसी एक को उक्त सज्जन की आरती करने के लिए कहा गया . जिस स्त्री को आरती करने के लिए कहा गया उसका तर्क यह था की यह रस्म तो घर की ही किसी लड़की से की जानी चाहिए , नहीं तो अपनी बेटी भी कर सकती है , और कोई उपस्थित ना हो तो पंडित भी यह रस्म कर सकता है।
आखिर उनकी बेटी ने ही आरती की रस्म निभाई . आस पास उपस्थित महिलाओं ने कुछ नाराजगी जताई की आखिर उसे क्या आपत्ति थी . यदि किसी व्यक्ति की बहन नहीं होती है , तब भी तो उसे राखी बाँध दी जाती है ताकि वह इस रिश्ते की कमी ना महसूस करे , यहाँ तो सिर्फ आरती ही करनी थी .
बाद में उस महिला ने कहा की सिर्फ आरती करना ही नहीं होता , रस्म के तौर पर वे मुझे कुछ भेंट भी देते और इस प्रकार एक जबरदस्ती का रिश्ता कायम होता। उसने बताया कि उक्त व्यक्ति के चरित्र के बारे में बहुत कुछ सुना देखा हुआ है , पडोसी होने के कारण रस्मों में उपस्थित होना , सुख दुःख में काम आना और बात है , मगर आरती कर बहन का रिश्ता कायम करते हुए उन्हें अपने घर में निर्बाध प्रवेश की इजाजत नहीं दे सकती .जिस व्यक्ति के चरित्र के बारे में मुझे जानकारी है , उसे भाई के पवित्र रिश्ते में क्यों बांधू .
बाद में उस महिला ने कहा की सिर्फ आरती करना ही नहीं होता , रस्म के तौर पर वे मुझे कुछ भेंट भी देते और इस प्रकार एक जबरदस्ती का रिश्ता कायम होता। उसने बताया कि उक्त व्यक्ति के चरित्र के बारे में बहुत कुछ सुना देखा हुआ है , पडोसी होने के कारण रस्मों में उपस्थित होना , सुख दुःख में काम आना और बात है , मगर आरती कर बहन का रिश्ता कायम करते हुए उन्हें अपने घर में निर्बाध प्रवेश की इजाजत नहीं दे सकती .जिस व्यक्ति के चरित्र के बारे में मुझे जानकारी है , उसे भाई के पवित्र रिश्ते में क्यों बांधू .
किसी रिश्ते के बिना भी सगे भाई- बहनों से बढ़ कर रिश्ते निभाने वाले भी कम नहीं तो वहीं धर्म भाई या बहन होने की आड़ में अवैध रिश्ते , ब्लैकमेलिंग के किस्से भी सरेआम ही हैं . आये दिन समाचारपत्र ऐसी ही घटनाओं से रंगे होते हैं . धोखे की लम्बी कहानियों के बीच स्नेह बंधन से बंधे निस्वार्थ रिश्ते कलंकित होते हैं और सहज भाव से रिश्ते निभाने वाले भी शक के घेरे में आ जाते हैं . रिश्तों को संशय की तराजू पर तुलने से बचाने के लिए यही बेहतर होगा कि बहुत सोच समझ कर इन रिश्तो को नाम दिया जाए . आभासी दुनिया में तो इसकी और भी अधिक आवश्यकता है . सिर्फ हो -हल्ला करने से नहीं , बल्कि आपके कृत्यों या कर्मों से प्रमाणित होता है कि आपके मन में किसके लिए क्या भावना है .
पुरानी फिल्मों में अक्सर ऐसे दृश्य नजर आ जाते थे , उम्र भर नायिका को परेशान करने वाले खलनायक आखिरी समय बहन बुलाकर राखी बंधवा ले और अपने सारे पाप धो ले . नायक नायिका बिछड़ने के वर्षों बाद मिले हो , भावुक होकर कहेंगे दोनों , अब तुम मेरे लिए भाई या बहन जैसे हो .
हमलोग अक्सर इस पर हँसते थे , जिसके लिए मन में इतना प्रेम रहा ,साथ घर बसाने के सपने देखे , वह भाई या बहन कैसे हो सकता है . ठीक है , अब आप लोगों के बीच कोई प्रेम नहीं रहा ,मगर कम से कम भाई या बहन तो मत कहो . खलनायकों की तो और भी बुरी स्थिति है , आजीवन कुदृष्टि रखने वाले पीटने या दुर्दशा होने पर कह दिया की आज से ये मेरी बहन है , मतलब क्या आप तक अपनी बहन के प्रति मन में इतने बुरे विचार रखते थे . माना की आप सुधर गए , अच्छा है , आपके लिए भी और औरों के लिए भी . मन की निर्मलता या भावनाओं का बदलाव आपके कृत्यों में नजर आ ही जायेगा , उसके लिए अवलंबन की आवश्यकता क्या है !!
हमलोग अक्सर इस पर हँसते थे , जिसके लिए मन में इतना प्रेम रहा ,साथ घर बसाने के सपने देखे , वह भाई या बहन कैसे हो सकता है . ठीक है , अब आप लोगों के बीच कोई प्रेम नहीं रहा ,मगर कम से कम भाई या बहन तो मत कहो . खलनायकों की तो और भी बुरी स्थिति है , आजीवन कुदृष्टि रखने वाले पीटने या दुर्दशा होने पर कह दिया की आज से ये मेरी बहन है , मतलब क्या आप तक अपनी बहन के प्रति मन में इतने बुरे विचार रखते थे . माना की आप सुधर गए , अच्छा है , आपके लिए भी और औरों के लिए भी . मन की निर्मलता या भावनाओं का बदलाव आपके कृत्यों में नजर आ ही जायेगा , उसके लिए अवलंबन की आवश्यकता क्या है !!
इसी प्रकार पुरुष वर्ग के बीच स्त्रियों का नाम लेकर " बहन होगी तेरी " जैसे स्तरहीन मजाक भी प्रचलित रहे हैं , माना कि आपकी बौद्धिकता किसी अन्य रिश्ते के मुकाबले मित्र होना अधिक उचित समझती है मगर इसका यह अर्थ कत्तई नहीं होना चाहिए कि किसी का भाई या बहन होना भी कोई गाली या बुरी बात है , जिसका इन हलके या घटिया लहजे /शब्दों में उपहास किया जाए .
वहीँ इन रिश्तों के नाम के पीछे बुरी मंशा रखने वालो के लिए भी यह कहना है कि किसी के साथ छल करना है , दुश्मनी निभानी है तो यूँ ही निभा ली जाए , कम से कम रिश्तों के नाम तो इनसे बचे रहे . रिश्तों पर से लोगों का विश्वास ही उठ जाए ,इससे बेहतर है कि कोई नाम ही ना दिया जाए .
वर्तमान समय में नयी पीढ़ी के उद्दंड अथवा दिशाहीन होने के अनेकानेक उदाहरणों के बीच भी कभी -कभी मुझे उनकी साफगोई अच्छी ही लगती है कि दो इंसानों के बीच स्नेह, प्रेम ,मित्रता / शत्रुता दर्शाने अथवा निभाने के लिए लिए वे किसी रिश्ते की ढाल की आवश्यकता महसूस नहीं करते .
नोट --- रीना और आशीष काल्पनिक नाम है !
बौद्धिकता किसी अन्य रिश्ते के मुकाबले मित्र होना अधिक उचित समझती है
जवाब देंहटाएंसही बात कही है अपने ...आजकल तो ऐसा माहौल है कि भाई बहन भी अगर साथ चल रहे हों तो लोग उन्हें गलत निगाहों से देखते हैं ....!
नई पीढी की साफगोई काबिलेतारीफ है
जवाब देंहटाएंसोचने की बात है| उपरोक्त (दूसरी) घटना में जहां किसी व्यक्ति से दूरी बनाए रखने की बात है वहीं पहली घटना में रीना की बात भी सही है कि जबरिया रिश्ता बांधा ही क्यों जाए| सौ बात की एक बात कि सभी लोगों को किसी भी एक नियम में नहीं बांधा जा सकता है| जैसे लोग वैसा व्यवहार|
जवाब देंहटाएंरिसते हुए नाम वालों रिश्तों से बेहतर अनाम रिश्ता . और डिस्क्लेमर जरुरी था.:)
जवाब देंहटाएंरिश्ते बनायें ना बनायें - एक तरीका ज़रूरी है . बात करते ही अनुमान लगाना,और फिर सरेआम करना - व्यक्ति के चरित्र को दर्शाता है . दुश्मनी हो या प्यार - आवश्यक तो नहीं कि नाम का मुहर लगायें . संबोधन पारिवारिक संस्कार से भी प्रेरित होते हैं , पर यह सही है कि यदि आपके अन्दर वह भाव नहीं है तो उम्र या समाज की वजह से किसी भी रिश्ते के संबोधन से दूर रहें . उम्र अपनी जगह है,भावनाएं अपनी जगह ......
जवाब देंहटाएंआभासी वह सबकुछ है,जिसे हम पढ़ते सुनते हैं - रिश्तों की गहराई प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष होने से नहीं आती,व्यक्ति की मानसिक बनावट पर है . सम्मान के लिए यह कत्तई ज़रूरी नहीं कि कोई संबोधन दिया जाये . इमरोज को युवा वर्ग भी इमरोज़ कहता है ... अंकल,नाना,दादा .... नहीं ! अमृता दीदी,महादेवी नानी .... ऐसा कोई प्रचलन उम्र से नहीं था,पर बातचीत में उनकी प्रतिभा प्रतिष्ठित है .
उम्र के हवाले से बेहतर है एक स्वस्थ मानसिक सम्बन्ध रखिये और अपने काम से मतलब ...
ज़िन्दगी में हमारे रिश्ते अच्छे हों यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि जो रिश्ते हैं वह हम कितनी अच्छी तरह निभाते हैं!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति।
बेहद उम्दा आकलन …………रिश्तों मे मर्यादा जरूरी है।
जवाब देंहटाएंरिश्तों को मात्र नाम देने से रिश्ते नहीं बनाते .... उनकी गरिमा बनाए रखने के लिए बहुत कुछ करना भी पड़ता है ... युवा पीढ़ी की साफ़गोई काबिले तारीफ है .... सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी भी नयी पीढी की तरह स्पष्ट है
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ ...... यह स्पष्टता कई बार रिश्तों को और मजबूती देती है .....
जवाब देंहटाएंएक मार्यदा...एक सीमा रेखा...एक दूरी.....सब जरुरी है८
जवाब देंहटाएं<.
स्नेह पल्लवित होना स्वाभाविक है पर राह स्पष्ट हो।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संस्मरण!
जवाब देंहटाएंसही कहा. रिश्ता बनाना आसान होता है , निभाना मुश्किल.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंसमाज की असल सच्चाई
मन मन की बात है !
जवाब देंहटाएंSahmat hoon vani ji. Aise karne se rishton kee maryada hi kam hoti hai.
जवाब देंहटाएंAbhar ..
सहमत हूँ आपकी बात से मेरे विचार से सही मायने में रिश्ता निभाने में कोई मजबूरी नहीं होना चाहिए क्यूंकि रिश्ते बनाना बहुत आसान है मगर निभाना उतना ही मुश्किल होता है उसे तो अच्छा है रिश्ते कम हो मगर उनमें ईमानदारी हो वरना "मुंह में राम बगल में छुरी" रखकर आप अपना कोई भी रिश्ता ईमानदारी से नहीं निभा सकते।
जवाब देंहटाएंरिश्तों को कोई नाम दिये बगैर भी आत्मीयता निभाई जा सकती है। यह बात लोगों को समझने की है ,रिश्ते का नाम देकर वे सुरक्षित हो जाना चाहते हैं .
जवाब देंहटाएंयहीं यह भी समझना होगा कि किसी के लिए अगर ऐसा संबोधन अपने आप स्नेहवश पनपता है तो उसकी भी आलोचना नहीं की जानी चाहिए।
सहज व्यवहार ..सहज रिश्ते ही मान्य होने चाहियें
मुझे तो दोनों घटनायों में लिए गए फैसले एकदम सही लगे। कारण जो भी उनलोगों ने दिया वो भी सही लगे .....
जवाब देंहटाएंखून से रिश्तों के अलावा जो भी रिश्ते होते हैं, उनको निभाने की ज़रुरत नहीं होती, वो तो बस होते हैं, दिल के इतने क़रीब कि कभी कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती।
रिश्ते किसी परिभाषा के मुहताज हों ये जरूरी नहीं है लेकिन हमारा समाज खून के रिश्तों के आलावा हर रिश्ते को शक की निगाह से देखता है। लेकिन भाव ओ मन के होते हैं उनके लिए किसी दबाव की जरूरत नहीं होती। हर रिश्ता भाई कहने से सुरक्षित नहीं हो जाता बल्कि कई मामले ऐसे भी हैं की घर वाले रिश्ते की बहन और भाई पर विश्वास रखते रहे और वे अपने रिश्ते को कुछ और रूप दे बैठे
जवाब देंहटाएंआज की पीढी की साफगोई और अपने फैसलों के प्रति इमानदारी काबिलेतारीफ है।
samajh gaye guru ji. :-)
जवाब देंहटाएंबिलकुल सहमत हूँ आप की बात से, ये फटाफट भाई बहन बना लेने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है , और बस खुद को सही साबित करने के लिए इस रिश्ते का नाम देना तो और भी गलत है , मैंने तो यहाँ लोगो को मना भी किया की मुझे बहन दीदी न बुलाये मैंने देखा है यहाँ एक दिन जो किसी को दीदी बुला रहे थे वही दुसरे दिन उन्हें गाली दे रहे थे ।
जवाब देंहटाएंकिसी के साथ छल करना है , दुश्मनी निभानी है तो यूँ ही निभा ली जाए , कम से कम रिश्तों के नाम तो इनसे बचे रहे . रिश्तों पर से लोगों का विश्वास ही उठ जाए ,इससे बेहतर है कि कोई नाम ही ना दिया जाए
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक बात.
बहुत ही सार्थकता है आपके इस आलेख में ... रिश्तों की गरिमा उनका सम्बोधन उनका निभाना इतना आसान भी नहीं जितना कहना ... आभार इस सशक्त प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंउस समय के हिसाब से रीना का फ़ैसला क्रांतिकारी ही माना गया होगा, अब तो खैर टाईम बहुत बदल चुका है।
जवाब देंहटाएंबुरी मंशा रखने वालों के लिए आपकी सलाह है तो अच्छी लेकिन ऐसे लोग ऐसी सलाहों से ऊपर उठे\_______ हुये होते हैं।
भारतीय समाज परिवारवादी समाज है इसलिए यहाँ बात-बात में रिश्ते बनाने के आदत है। हम सभी को भाभी, चाची, मौसी आदि नामों से सम्बोधित करते हैं और रिश्तों की अहमन्यता को भी स्वीकार करते हैं लेकिन पश्चिम का जगत व्यक्तिवादी समाज है इसलिए वहाँ बिना रिश्तों के ही दोस्ती निभायी जाती है। इसलिए यह संस्कृति का अन्तराल है, हमारे पुराने रिश्ते बनाने पर जोर देते थे और नए स्वतंत्र रहने पर।
जवाब देंहटाएंपुराने भारतीय समाज में हर इंसान का एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार का रिश्ता रहता ही था और उन रिश्तों की मर्यादा भी संपूर्ण रूप से रखी जाती थी. आज के समय में रिश्तों को मां..बहन..भाई...काका या कोई भी नाम दे दें...क्या इनकी मर्यादा निभाई जा रही है? इस समय रिश्तों में हर स्तर पर अबाध गिरावट देखने में आती है. इससे तो अच्छा है जो हैं उन्हें ईमानदारी से निभालें...बाकी सब अपनी अपनी आजादी है चाहे जैसे दुरूपयोग या सदुपयोग करे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हर बात का अपना महत्त्व है जीवन में ... सच तो ये है की जो रिश्ता बना है उसे निभाया जाय ... उसकी मर्यादा का मान रखा जाय ...
जवाब देंहटाएंशास्त्रानुसार साथ विद्याध्ययन करने वाले छात्रों का
जवाब देंहटाएंआपसी सम्बन्ध भाई-बहन का होता है.....