बुधवार, 9 दिसंबर 2009

क्या आपको भी मथते हैं ये सवाल ....!!

कल सुबह घर के बाहर बने छोटे से बागीचे में पानी डाल रही थी की दो छोटी लड़कियां आ पहुँची ...पिछले एक महीन से कई बार आ जाती है ...वही घर घर खाना मांगने वाली ....क्या भिखारन कहूँ उन्हें ...मन नही मानता ...ये छोटी बच्चियां भिखारन कैसे हो सकती हैं ...जो ये भी नही जानती ... बिना काम किए घर घर खाने की गुहार करना भीख मांगना ही कहलाता है ...
ज्यादा खाना बना लेना ...बहुत बुरी आदत है मेरी जिसे छोड़ना चाहती हूँ मगर बुरी लत की तरह छूटती ही नही ...कुल चार प्राणी है घर में ...आए दिन इतना खाना बन ही जाता है कि दो अतिरिक्त लो भोजन कर सके ...बहुत हाथ रोक कर बनाने पर भी ज्यादा बन ही जाता है ...अब बासी भोजन को फेंकने की बजाय जरुरतमंदों को देने में कोई बुराई तो नही है ....इसलिए इन बच्चों को दे तो देती हूँ ...मगर साथ ही उनसे बातचीत कर समझाती भी रहती हूँ कि भीख मांगना उचित नही है....तुम्हे स्कूल जाना चाहिए , पढ़ना भी चाहिए ....आदि आदि ...
उनके चेहरे से टपकती बेपरवाही और व्यंग्य भरी मुस्कान और एक दुसरे को देख कर मुस्कुराने को नजरंदाज करते हुए भी मैं अपना अनर्गल (?) प्रलाप जारी रखती हूँ ...कभी कोई बात उनके दिल में उतर जाए ...एक उम्मीद सी रखते हुए ...
मगर आज उनको देखकर अजीब सी वितृष्णा से मन भर गया ...काले कुचैले हाथ पैर ...मैल की मनों परते चढ़े हुए ...मानों सालो से नहाये धोये नही .. गालों और होठों पर ब्लशर का लाल रंग पुता हुआ ...हरे रंग से बिंदी लगाई हुई ...मैं खाना देते देते रुक गयी ...क्या इन्ही गंदे हाथों से ये लोग खाना खा भी लेते हैं ...अपने बच्चों के हाथ में स्याही का निशान ही बर्दाश्त नही कर पाती हूँ मैं ...गंदे हाथ पैरों के लिए डांटते हुए मैं पानी डालकर धुलाती उनसे सवाल करती रही ....
कितनी गन्दी हो रही हो दोनों ....ये लाल हरा क्या पोत रखा है .....
छाले हो गए हैं जो माँ ने लगा दिया ....
छाले ...गाल पर ...माथे पर ...मैं उलझने लगती हूँ ... इतनी गन्दी क्यों रहती हो ...हाथ मुंह नही धुलते तुमसे
पानी नही है ...
पानी नही है ....तुम लोग पानी पीते नही हो ....तुम लोग कहाँ रहते हो ...?
यही पास में ...धरम कांटे पर
वहां पानी नही है ...पानी कहाँ से लाते हो .....?
बोरिंग है बहुत दूर ...वही से
जब पानी ला सकते हो तो हाथ पैर धोना नहाना नही हो सकता...?
दोनों शर्माने लगती हैं ....
पहले अच्छी तरह हाथ मुंह साफ़ करो ...तभी खाना मिलेगा ....
दोनों बड़ी फुर्ती से हाथ मुंह धोने लगती है ...बीच बीच में मेरा नागवार प्रवचन भी झेल लेती हैं ...खाना मिलने के लालच में ...
बस मम्मा , क्या सब एक दिन में ही सिखा दोगे ...बेटी पीछे आ खड़ी होती है ...अपने मोबाइल कैमरे को ऑन करती हुई ...उनकी हालत से बेजार परेशान ....मेरा साक्षात्कार समाप्त नही हुआ अभी ...
तुम कितने भाई बहन हो ...?
दो भाई और तीन बहन
तुम सुबह सुबह खाना मांगे निकल जाती हो ...तुम्हारी माँ खाना नही बनाती ...?
नही...बस सुबह चाय पिलाई थी
और खाना ...सब लोग कहाँ खाते हैं ....?
पिताजी और भाई काम पर जाते हैं ...वही ठेकेदार खिलाता है ...
और तुम्हारी माँ ......?
वो भी मांग कर लाती है ...
मैं सोचने पर विवश हूँ ...क्या अब भी मुझे उन्हेंपढने , स्कूल जाने के लिए समझाना उचित होगा ...??
मैं बताना चाहती थी ...कई सरकारी विद्यालयों में मुफ्त खाना मिलता है ...तुम्हे पढने के साथ खाना भी मिलेगा ...पता नही क्या सोच कर चुप रह गयी...कोई बात नही ...अगली बार समझाउंगी ...

वे दोनों बच्चियां तो खाना लेकर चली गयी ....बेटी अपनी किताबों का बोझ उठाये अन्दर चली गयी ..पौधों में पानी डालते मेरा ख़ुद से विमर्श चलता रहा ...

क्या भविष्य है इन बच्चियों का ...इनके लिए जिंदगी के क्या मायने हैं ....

क्या इनका जन्म भी इनके माता पिता के लिए गर्व अनुभव करने का क्षण होता होगा ....

क्या इन्हे पहली बार गोद में लेकर इनकी माँ ने भी वही आह्लादकारी पल महसूस किया होगा ...

बच्चों को भीख मांगने के गुर सिखाते हुए उनका कलेजा नही काँपता होगा ....ख़ुद तकलीफ में रहकर बच्चों को सब सुविधा उपलब्ध कराने जैसे कोई भाव नही उठते होंगे इनके माता पिता के मन में ....

कीचड़ मिटटी में सने हाथ मुंह प्यार से धुला कर रूखे बालों को करीने से सँवारने की इच्छा नही होती होगी इनकी माँ की ....

आत्मसम्मान , स्वाभिमान ....ये लोग कुछ भी नही समझते होंगे .....!!

भावनाए भूख और बेकारी के आगे दम तोडती होंगी या फिर इनके दिल और दिमाग इस मिटटी से बनते ही नही जो इन्हे सोचने पर विवश कर सके ......

क्या धर्म , राजनीति , आध्यात्म इनका जीवन प्रभावित कर पाते होंगे ...

क्या हमें वाकई अपने शहर के चमचमाते शौपिंग काम्प्लेक्स , अत्याधुनिक मल्टी प्लेक्सों आदि पर ही गर्व करना चाहिए ....इन बच्चों के मटियामेट बचपन को नजरअंदाज करते हुए .....

कितने सवाल....
क्या मिलेंगे कभी मुझे जवाब ...

क्या आप लोगों को भी मथते हैं ये सवाल ..............................!!



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* अपनी पिछली पोस्ट पर हरकीरत जी की इस टिपण्णी ने मुझे सोचने पर विवश किया है.....
हरकीरत ' हीर' ने आपकी पोस्ट " मेरी बात ...खालिस गृहिणी वाली " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
पहचानने की कोशिश करती हूँ ......बड़ी सी बिंदी .....कभी कभी किसी और नाम से भी .....है न ...? मैंने भी देखा है अगर वही है तो .....

मैं स्पष्ट कर दूँ....मेरा सिर्फ़ एक ही ब्लॉग है और मैं वाणी गीत के नाम से ही अपनी पोस्ट और कमेन्ट पोस्ट करती हूँ ....जो मेरा वास्तविक नही आभासी नाम है लेखन के लिए .....इसके अलावा मैं http://kabirakhadabazarmein।blogspot.com/ पर आमंत्रित सदस्य हूँ ...एक दो पोस्ट नारी ब्लॉग पर भी लिखी है ....बस इसके अलावा मैं किसी और नाम से ब्लॉग पर मौजूद नही हूँ....


यह सब इसलिए लिखा है...कि कहीं ऐसा ना हो ....रात भर जाग कर गीत कविता लिखूं मैं ....सुबह जल्दी उठकर पोस्ट करू मैं ...और सारी क्रेडिट कोई और ले जाए ..... :) .........!!

32 टिप्‍पणियां:

  1. सवाल आपको मथते हैं, यह जायज़ भी है. कौन नहीं है जो मनुष्यों की ऐसी दुर्गति देखकर विचलित न होए.
    लेकिन मेरे कुछ अनुभव यह भी कहते हैं कि बिना कुछ करे-धरे रोजाना मुफ्त का खाना मिलने का लालच महानगरों में बहुतों को भिखारी जैसी वेशभूषा अपनाने को विवश करता है. शहरों में जगह जगह सरकारी नल, प्याऊ, और हैंडपंप लगे होते हैं फिर भी मंगतों (भिखारी न लिखूं तो ये सही) के शरीर अघोरियों की तरह दीखते हैं. उनके बाल जटा-जूट जैसे हो जाते हैं.
    शायद आपको पता हो कि बहुत से मंगते अपने पड़ोसियों के बच्चों को किराये पर लेकर रोजाना खाने और पैसे का जुगाड़ करते हैं. मैंने कई मौकों पर यहाँ साइन मंदिर पर लोगों को कम्बल और चादरें बांटे देखा है लेकिन फिर भी ये मंगते उघारे रहकर ठिठुरते नज़र आते हैं ताकि कोई तरस खाकर गर्म कपडे दे दे जिन्हें बेचकर वे नशा-पत्ती ले सकें. आप चाहो तो भी ये काम नहीं करेंगे या पढना नहीं चाहेंगे.

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  2. नेक भावना आपकी अच्छा किया विमर्श।
    मिटे सुमन की भूख जब सोचेंगे आदर्श।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. इसी विडंबना को तो आज तक समझने की कोशिश करते रहते हैं...ऐसा क्यूँ..कोई कहाँ और कोई कहाँ....

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  4. सवाल मथते तो ज़रूर हैं। आपने समस्य के विभिन्न पहलुओं पर गंभीरता से चर्चा की है।

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  5. ऐसे सवाल हमेशा मथते थे...पर कुछ समय से मथना बंद कर चुके हैं.....जब मेरी मुलाक़ात दो ऐसे भिखारियों से हुई::::

    पहला भिखारी रांची में फिरायालाल चौक के पास काली मंदिर के दरवाज़े पर ही बैठता था....उसकी कमाई इतनी थी कि वो रोजाना शाम को वाट ६९ पीता था और उसका बेटा .बीत मेसरा रांची का स्टुडेंट था जो मेरे भाई के क्लास में ही था...उसी लड़के ने हमें बताया...उसकी लाख कोशिशों के बावजूद उसके बाप ने यह काम छोड़ने से इनकार कर दिया....

    दूसरा भिखारी ..रोज हमारे घर आता था भीख मांगने...एक दिन कहने लगा अगले हफ्ते से मैं नहीं आऊंगा...मेरी जगह मेरा दामाद आएगा.....आपलोग उसका भी ऐसे ही ख्याल रखियेगा...मैंने कहा क्यूँ भाई तुम कहाँ जा रहे हो ...?? बोला बेटी की शादी कर दी है और ये इलाका दहेज़ में बेटी को दे दिया है....मैं तो आसमान से गिर गयी थी......समझ में नहीं आया की क्या कहूँ.....अब बताइए भला...भिखारी तक इलाका का इलाका दहेज़ में दे देते हैं...हम-आप दे सकते हैं क्या ?????

    बहुत बढ़िया लिखा है जी वाणी जी....और आपकी बगिया में क्या-क्या खिलता है..ये भी कभी बताइए....और दिखाइए...

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  6. तकदीर और हालात के मारे !
    बस एक ऊपर वाले के सहारे !!

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  7. मथते हैं ये सवाल, अपनी क्षमताओं का प्रयोग करती हूँ.......
    पर .......

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  8. बहुत ही अच्छा आलेख है,कई प्रश्न उठाता हुआ...लेकिन आजकल भीख मांगना भी एक व्यवसाय हो गया है...मेरे पास एक ई-मेल आया था जिसमे कई ऐसे भिखारियों का जिक्र था,जिनके होटल हैं...फ्लैट हैं...वे अच्छे कपड़े पहन कर आते हैं और पब्लिक स्नानागार में जाकर फटे पुराने कपड़े बदल
    भीख,माँगने बैठ जाते हैं.
    मेरी आँखों देखी बात है.....सुबह मॉर्निंग वॉक के समय मैंने तीन भिखारिनों को मंदिर के पास एक ऑटो से उतरते हुए देखा....वे लोग साथ में टिफिन भी लेकर आई थीं...और बैठते ही ..शेयर करके खाने लगीं....बैंगलोर का किस्सा आपने भी पढ़ा होगा...कि एक बेबी सिटर बच्चे को रोज एक घंटे के लिए किराए पर दे देती येथी...एक दिन अचानक माँ ऑफिस से आ गयी तो ये मोहतरमा टी.वी.देख रही थीं और बच्चा धूप में किसी की पीठ पर बंधा,सहानुभूति उगाह रहा था.
    एक सलाह दूँ,मेरी आजमाई हुई है...स्कूल के दिनों की बात है,ऐसे ही एक दस साल का लड़का भीख माँगने आया...मैंने उसे बोला..'ये घास साफ़ कर दो...तुम्हे खाना या पैसे जो चाहो मिलेंगे..वो भाग गया और फिर शकल नहीं दिखाई."...आप भी इन्हें फूलों की क्यारियाँ साफ़ करने को बोलें....फिर देखें

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  9. ada ji ne bilkul sahi baat kahi hai........aajkal bhikhari hum sabse jyada sukhi milenge kyunki unka ye business ban chuka hai.........lekin phir bhi sabka nhi isliye aapne jo likha hai wo prashn aaj bhi apni jagah kayam hai aur ye prashn hum sabko utni hi udwelit karte hain jjitna aapko magar hum sabki shayad utni kshamta nhi ki hum samaj ke is kodh ko khatm kar sakein.

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  10. हले बहुत मथते थे .पर ईमानदारी से कहूं .वक़्त के साथ अब नश्तर की तरह नहीं चुभते.....कुछ चीजे है जिन्हें हम बदल सकते है ...कुछ चीजो को नहीं.........संवेदनशील होने का मतलब आदमी को सब्जेक्ट की तरह देखना भर नहीं ...अपने सीमित साधनों के रहते उन परिस्थितियों को ओर बेहतर करना है ...

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  11. एक वाकया बताती हूँ। मेरे पड़ोस में एक कच्‍ची बस्‍ती थी। मेरे पति डाक्‍टर होने के कारण उनसे कुछ परिचय भी था। मुझे भी कई बार उनकी सेवा करनी पड़ती थी। इस कारण मन में विचार आया कि वहाँ के बच्‍चों को पढ़ाया जाए। हमने वहाँ सम्‍पर्क किया। मालूम पड़ा कि सारा ही मोहल्‍ला भीख मांगता है। बच्‍चे सुबह ही घर से निकल जाते हैं, चाय भी दुकान पर पीते हैं। बस शाम को उनके यहाँ खाना बनता है। हम हमेशा शाम को ही उनके घर जाते। वे सब कालबेलिया थे। उनका एक मुखिया था, हम उसी के यहाँ जाते, वे मेरा आदर भी करते थे। हमने वहाँ पाठशाला प्रारम्‍भ की। लेकिन एक साल तक मेहनत करने के बाद भी हम एक बच्‍चे में भी पढ़ने की ललक नहीं जगा पाए और न ही उनसे भीख मांगना छुड़ा पाए। उल्‍टा परिचय होने के कारण मेरे पति को उनकी सेवा और मुफ्‍त में करनी पड़ती। इसलिए भीख मांगना उनका धंधा है। यदि अपना हुलिया सुधार लेंगे तो फिर कौन भीख देगा? बस समय के साथ ही बहुत ही धीमे परिवर्तन आएगा। यह परिवर्तन तेज जब हो सकता है जब भीख मांगना अपराध घोषित हो और हम सब उनको कुछ भी भीख में न दें।

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  12. KUCH AISE SAWAAL HAMESHA HI KABHI NA KABHI HAR SOCHNE SAMAJHNE WAALE KI DIL MEIN AATE HONGE .... PAR KYA IN SAB KE LIYE UNKE MAATA PITA, YA VO HI JIMMEWAAR HAIN .... KUCH HAD TAK APNA SAMAAJ, SAMAAJIK PARISTHITI, GAREEBI, AUR HUM BHI JIMMEWAAR NAHI HAIN ..... ISKE ALAAWA BHI SHAYAD BAUT SE PAHLOO HAIN DEKHNE KE LIYE .....
    PAR AGAR EK CHOTI SI SHURUAAT APNE STAR BHI AGAR HAM KARTE HIN TO VE SWAGAT YOGY HAI ....

    AAPNE BAHUT HI MAHATVPOORN SAWAL UTHAAYE HAIN ... SAMVEDANSHEEL HI AAPKA MAN BAHUT ......

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  13. जिन्हे ये सवाल नही मथते वे इंसान नही है और ऐसे लोग ही हमारे कर्णधार है ।

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  14. वाणी जी ,
    ओम जी के ब्लॉग पे आपकी टिप्पणी देखी तो इधर चली आई ....पूरी पोस्ट पढ़ डाली ...बहुत अच्छा लिखा आपने ...पर जैसे ही नज़रें नीचे लिखे अपने नाम पर गयी हतप्रद रह गई ....कहीं मेरी टिप्पणी भी ओम जी की टिप्पणी की तरह चर्चित न हो जाये पहले ही अपनी बेवकूफी पर क्षमा मांग लेती हूँ .....मैंने सोचा शायद आप उस ब्लोगर की बात कर रहीं हैं जो दो नामों से अपना ब्लॉग चला रही है और वो गीत , ग़ज़ल, कथा ,कहानी , संस्मरण भी लिखती है ....खैर अपनी कमअक्ली के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ....!!

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  15. बहुत ही बढ़िया पोस्ट. इतने सारे सवाल देखकर लगता है जैसे उन्हें सुनने के लिए तैयार नहीं हूँ मैं. शायद सच्चाई से डर एक वजह है.

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  16. @ हरकीरत ' हीर'

    आपको किसी से भी क्षमा मांगने की कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि आपने ऐसा कोई काम किया है नहीं है ...बल्कि आपने मेरा ध्यान सही ओर आकृष्ट किया है ....क्यूंकि ये गलतफहमी और लोगो को भी हो सकती थी ....
    आपने बिलकुल सही किया है ...
    और अगर आप कभी कुछ गलत कहेंगी भी तो आपकी लेखनी पर आपकी हजार गलतियाँ कुर्बान ...कभी क्षमा मांगने की बात सोचियेगा भी मत ...किसी भी परिस्थिति में ...समझ गयी ना ...!!

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  17. ऐसे सवाल किसी भी संवेदनशील मानव को मथते ही हैं.
    कभी-कभी यूँ भी होता है कि जब इनसे सवाल पूछे जांय तुम कौन हो? कहाँ से आए हो?
    तो ये कहते हैं पश्चिम बंगाल से.. फिर लगता है कि ये बंगाल के नहीं बंगलादेश के रिफ्यूजी हैं!
    मानवता कहती है कि ये बच्चे हैं इन पर दया करो..
    राष्ट्रियता कहती है ये विदेशी हैं हमारे देश का संतुलन बिगाड़ रहे हैं
    भविष्य में आतंकवादियों के हाथों का मोहरा भी बन सकते हैं!
    राष्ट्र के लिए बोझ हैं!!
    ..मथते हैं, कई सवाल मथते हैं..
    इन्हें देखकर।

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  18. मथते तो है विचार पर भीख मांगना जिनका व्यवसाय हो ,जहाँ अघोषित ठेके दिए जाते हो भीख मांगने के लिए वहां दया दिखानी बेमानी लगता है |हाँ किन्तु शहरों की अपेक्षा गाँवो में उन्हें बुनियादी चीजो के बारे में समझाया जय तो सकारात्मक परिणाम मिलते है मैंने कुछ १५ -१६ साल पहले कोशिश की थी जिन्हें मंदिर की सीढियों पर भीख मांगने से स्कूल में बैठने में दो साल लगे और आज वो बच्चे नोवी कक्षा में पढ़ते है |

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  19. वाणी जी
    इन बच्चों के भी हो सकते हैं सपने . मगर समय ने इन्हें ऐसी परिस्थितियों में ला खड़ा कर दिया है कि 'सपने 'शब्द भी नहीं पता होगा .

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  20. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  21. दी.... ऐसे कई सवाल बहुत मथते हैं.... पर क्या कर सकते हैं....

    बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट.....

    दी.... देरी से आने के प्लीज़ इस छोटे भाई को माफ़ कर दीजियेगा....

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  22. @सहज और स्वयंस्फूर्त पहली टिप्पणी ही होती है जिसे आपके द्वारा पूरी स्वच्छन्दता लेते हुए निकाल दी गयी है -अफ़सोस !वैसे भी मैं इस समय केवल ब्लॉग पढ़ तो ले रहा हूँ मगर टिप्पनी नहीं कर रहा हूँ और खुद कुछ लिख भी नहीं पा रहा हूँ !मगर मेरी पहली टिप्पणी के निरस्त किये जाने के बाद फिर एक आफ्टर थाट (सुचिंतित ?) टिप्पणी जरूरी हो गयी है -जिससे कुछ तो आत्म सम्मान की रक्षा हो जाय ! अब मैं करूं भी तो क्या? कई लोगों को मेरी टिप्पणियां बहुत नागवार लग रही हैं-अब यह परिप्रेक्ष्य की कोई विसंगति है या मेरी कमी या फिर हिन्दी ब्लागिंग की प्रवृत्ति /प्रकृति ? ये सवाल मौजू रहेगें !
    आपने अच्छा लिखा है -स्व-प्रजाति के प्रति यह दया/परहित की यह भावना बहुत से लोगों में एक गहरे अनुवान्शकीय संस्कार की अभिव्यक्ति है जिसे "अल्ट्रूइज्म" कहते हैं -सवाल यह है की हम इनके लिए ठोस रूप से कर क्या पाते हैं ! यदि हम इनके लिए ठोस कुछ नहीं कर पाते हैं और महज गहरे संवेदित होते रहते हैं और उसे केवल लोगों के बीच बाँट कर अपने सरोकार की इति श्री समझ बैठते हैं तो फिर ऐसे ही मामलों में जार जार घडियाली आंसू द्धरकाने वाले नेताओं और हममे फर्क ही क्या है ?
    अब यह टिप्पणी भी कहीं डिलीट न हो जाय ?

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  23. यह सवाल अगर हमें मथें भी नहीं तो शायद हम ज़िंदा लाश से ज़्यादा कुछ नहीं हैं.

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  24. @ माननीय अरविंद मिश्रा जी
    आपके सौजन्य से प्राप्त विचारों मे घड़ियाली आँसू बहाने का आपका इल्ज़ाम सर आँखों पर ...कहते हैं विद्वानों का गुरूर और नाराज़गी जिसे मिल जाए ...उसका जीवन सार्थक हुआ ...पुराने जमाने के सिद्ध महात्मा जिस को गाली, फटकार देते थे वे अपने जीवन मे सफलता प्राप्त कर ही लेते थे ...हम भी कृतार्थ हुए..आशा है यह स्नेह और सदभावना बनाए रखेंगे ...
    पहली टिपण्णी हटाने का कारण आपको व्यथित करना नही था ...आप बेहतर समझते हैं ...फिर भी इससे आपको कोई तकलीफ़ हुई तो मैं हृदय से क्षमा प्रार्थी हूँ ...
    बहुत आभार ...!!

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  25. बहुत मथते हैं, और हरकत भी वही हो जाती है जो आपने की है...:)

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  26. पोस्ट पढ़ा....सोचा उपस्थित दर्ज करा दूं। ऐसा मेरे साथ कई बार होता कि कुछ पोस्ट पढ़ने के बाद समझ में ही नहीं आता कि क्या लिखूं।

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  27. u cannot do anything about it. because bhahut log ki aadat ho jati hai

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