रविवार, 13 दिसंबर 2009

सपूत......एक लघु कथा

पुराने ज़माने की बात है ....तब आज की तरह पानी के लिए नल और बोरिंग जैसी सुविधा नही थी ....सिर पर कई घड़ों का भार लिए स्त्रियाँ कई किलोमीटर दूर तक जा कर कुओं या बावडियों से पानी भार कर लाती थी
एक बार इसी तरह तीन महिलाएं घर की जरुरत के लिए पानी भार कर ला रही थी ...
तीनों ने आपस में बातचीत प्रारम्भ की ...
पहली महिला ने कहा ..." मेरा पुत्र बहुत बड़ा विद्वान् है ....शास्त्रों का विषद ज्ञान रखता है ...आज तक कोई भी उसे शास्त्रार्थ में नही हरा सका है ....."

दूसरी महिला भी कहाँ पीछे रही ..." हाँ , बहन ...पुत्र यदि विद्वान् हो तो पूरा वंश गौरान्वित होता है ...मेरा पुत्र भी बहुत चतुर है ...व्यवसाय में उसका कोई सानी नही ....उसके व्यवसाय सँभालने के बाद व्यापार में बहुत प्रगति हुई है ..."

तीसरी महिला चुप ही रही ....
" क्यों बहन , तुम अपने पुत्र के बारे में कुछ नही कह रही ...उसकी योग्यता के बारे में भी तो हमें कुछ बताओ ..." दोनों गर्वोन्मत्त महिलाओं ने उससे कहा .....

" क्या कहूँ बहन , मेरा पुत्र बहुत ही साधारण युवक है ....अपनी शिक्षा के अलावा घर के काम काज में अपने पिता का हाथ बटाता है ...कभी कभी जंगल से लकडिया भी बीन कर लाता है ..."

सकुचाते हुए तीसरी महिला ने कहा ...

अभी वे थोड़ी दूर ही चली थी की दोनों महिलाओं के विद्वान् और चतुर पुत्र साथ जाते हुए रास्ते में मिल गए ...दोनों महिलाओं ने गदगद होते हुए अपने पुत्र का परिचय कराया ....बहुत विनम्रता से उन्होंने तीनो माताओं को प्रणाम किया और अपनी राह चले गए....

उन्होंने कुछ दूरी ही तय की ही थी कि अचानक तीसरी महिला का पुत्र वहां आ पहुँचा ...पास आने पर बहुत संकोच के साथ उस महिला ने अपने पुत्र का परिचय दिया ....

उस युवक ने सभी को विनम्रता से प्रणाम किया ....और बोला ...
" आप सभी माताएं इस तपती दुपहरी में इतनी दूरी तय कर आयी है ....लाईये , कुछ बोझ मैं भी बटा दू ..."
और उन महिलाओं के मना करते रहने के बावजूद उन सबसे एक एक पानी का घड़ा ले कर अपने सिर पर रख लिया ....

अब दोनों माताएं शर्मिंदा थी ...

" बहन , तुम तो कहती थी तुम्हारा पुत्र साधारण है ....हमारे विद्वान् पुत्र तो हमारे भार को अनदेखा कर चले गए ...मगर तुम्हारे पुत्र से तो सिर्फ़ तुम्हारा...अपितु हमारा भार भी अपने कन्धों पर ले लिया ...बहन , तुम धन्य हो , तुम्हारा पुत्र तो अद्वितीय असाधारण है...सपूत की माता कहलाने की सच्ची अधिकारिणी तो सिर्फ़ तुम ही हो ......"

साधारण में भी असाधारण मनुष्यों का दर्शन लाभ हमें यत्र तत्र होता ही है ...हम अपने जीवन में कितने सफल हैं ....सिर्फ़ यही मायने नही रखता .....हमारा जीवन दूसरों के लिए कितना मायने रखता है....यह अधिक महत्वपूर्ण है ......!!

किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार ...किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार ...जीना इसी का नाम है .....


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27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्रेरक प्रसंग. सही कहा असाधारण व्यक्तित्वों से मुलाकात यत्र तत्र होती ही है..

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  2. रचना मर्मस्पर्शी है और मानसिक परितोष प्रदान करता है।

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  3. आचरण तय करता है श्रेष्ठता ! सद्भाव स्थापित करता है स्थान ! प्रेम देता है परितोष !

    प्रस्तुति ने संदेश दिया । अंत में लिखी गयी पंक्तियों ने सहजता से प्रविष्टि का सार प्रस्तुत कर दिया । आभार ।

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  4. आपने कथा की शरूआत ही यहाँ से की है,'पुराने ज़माने की बात है', ये आदर्श, संस्कार, व्यवहार आज के युग में कहीं नजर आते हैं? अब तो बूढ़ी मां नौकरानी बनकर बेटे-बहू की सेवा करती है. बेटे और मां की मुलाकातें महीनों में कहीं एक बार होती हैं. शायद यह कथा कुछ बेटों के दिमाग पलट दे.

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  5. मोरल ऑफ़ द स्टोरी ईज़:------




    पहले दोनों विद्वान थे.... उनके पास समय नहीं था.... बहुत काम करना था उन्हें इस समाज के लिए.... अगर वो ऐसे ही सबका बोझा ढोते रहते..... तो इस समाज के लिए काम कैसे करते....? इकोनोमी उन्ही कि वजह से चल रही है.... सामाजिक चेतना पहले दोनों कि वजह से ही हो रही है.... अगर तीसरा भी उन्ही के जैसा होता तो वो भी ऐसे ही व्यवहार करता..... तीसरा दिमागी रूप से कमज़ोर था....पर संस्कार कि वजह से सामाजिक था.... यह सामाजिकता उसकी मजबूरी थी..... तीसरे के पास समय बहुत था..... और समाज को देने के लिए कुछ भी नहीं...... इसलिए बेचारा...व्यवहारिकता से ही काम चला रहा था...... अच्छे तो वो दोनों भी थे..... जितना उनके बस में था....उतनी व्यवहारिकता उन्होंने दिखा दी..... तीसरा बोझा ढोने के ही लायक था..... इसलिए वो जिस लायक था ...उसी लायक काम कर रहा था.....


    दी.... आपकी यह लघु-कथा बहुत अच्छी लगी..... पर मेरे समझ में यही आया...ही ही ही ही ही .... जो कि प्रक्टिकल है....

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  6. आपकी लघुकथा...बहुत अच्छी लगी....
    तीनों नवयुवकों में शायद शैक्षणिक योग्यता सामान थी फिर भी तीसरा युवक संस्कारी था,
    यहाँ मैं कुछ कहना चाहूंगी....आज कल का ज़माना ऐसा है की इस तरह की योग्यता को कमजोरी समझा जा रहा है...
    अभी कुछ दिन पहले मेरे बेटे को मेलेनिअम scholarship मिला कनाडियन गवर्नमेंट से और उसे इंडियन कम्युनिटी द्वारा भी सम्मानित किया गया..जब वो अवार्ड लेने stage पर पहुंचा तो अवार्ड इंडियन कम्युनिटी के एक हिन्दुस्तानी गणमान्य व्यक्ति ने उसे सम्मानित किया...क्यूंकि यह एक इंडियन समारोह था तो मेरे बेटे ने उन महानुभाव के चरण-स्पर्श कर लिए अवार्ड लेने के बाद ....इस बात से उन्हें बहुत तकलीफ हो गयी....बाद में आ कर मुझे एक लम्बा भाषण दे कर गए की आप अपने बच्चों को ये क्या सिखा रहीं हैं...आज के ज़माने में पाँव छूना कितनी बुरी बात है आप ऐसा करने से मना कीजिये अपने बच्चों को....अब हम तो यही सोच रहे हैं...अगर कोई बोझा ले ले किसी से तो ये भी कहीं पिछड़ेपन की निशानी न हो....बस उस दिन से हम थोड़े कनफुसिया गए हैं...

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  7. बहुत प्रेरक कहानी ........ बहुत ही अच्छी लगी ........ सच है वो विद्वता किस काम की जो किसी के काम ना आ सके.........

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  8. विद्वता और संस्कार में यही फर्क आदमी को अलग पहचान देता है

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  9. अनुकरणीय, प्रेरणाप्रद शाश्वत उत्कृष्ट आचरण का सन्देश देती सुन्दर कथा!

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  10. कोई कलाकार हो,विद्वान् हो या संत हो..सबसे पहले एक अच्छा इंसान होना जरूरी है....बहुत ही प्रेरणादायी कथा.

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  11. bahut hi prerak kahani...........sanskar ki kheti har jagah ho bhi nhi sakti..........yahi fark hota hai vidwata aur sanskaron mein.

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  12. चांस मिलने पर मैं तीसरे का रोल अदा करना चाहूंगा!
    अच्छी बोध कथा।

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  13. बहुत अच्छी लघु कथा....प्रेरणा देने वाली....

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  14. बहुत ही प्रेरणात्‍मक प्रसंग सुन्‍दर संदेश के साथ ।

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  15. कहते हैं मानव जन्म एक ही बार मिलता है ...इसमें जितना पुन्य कमा सकते हो कमा लो ....!!

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  16. सरल सुन्दर बोध कथा.

    उस दौलत और ज्ञान पर कैसा घमंड
    जो कभी किसी के काम न आ पाया

    यही है प्रेरक प्रसंग. धन्यवाद!

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  17. कहानी ने पुरानी कहावत फिर से याद दिला दी:
    "All nice guys. They'll finish last. Nice guys. Finish last.

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  18. विद्या ददाति विनयम्....... कहानी का सार है यह... आज समाज को जरूरत हैं ऐसे प्रेरक कहानियों की ... घन्यवाद।

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  19. अपनी अपनी भावना और संस्कार हैं ..

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  20. जिनको ये कहानी पसंद नही आई हो सकता है वो अपने माता पिता को कही अकेले रहने के लिये छौड़ आये हो, और अब ये कहांंनी पड़ कर उन्हे पस्चताप हो रहा हो, उसी का गुस्सा निकालंंने के लिये वो कहानी का विश्लेसण गलत तरीके से कर रहे है ।
    बहुत ही प्रेरक कथा है ।

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  21. सुनिल बिल्लौरे
    जिन्हे कथा अच्छी ंंनही लगी हो सकता है वो अपने ंंमाता पिता को अकेले छौड़ कर अलग रह रहे हो ,

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